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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 16, 2022

 

हुजूर  न्याय  सिर्फ अदालतों में ही नहीं होता है – भूखे बेरोजगारो का क्या

    प्रधान मोदी ने  प्र्देशोंके विधि मंत्रियो और सचिवो के सम्मेलन का वर्चुअल संभोधन करते हुए कहा की न्याय में देरी देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं !  यह हक़ीक़त भी हैं , यालगर परिषद के बंदियो को जेल में बिना मुकदमा चलाये ही जेल में रखा गया हैं | अभी साईबाबा मामले में  यू एय पी ए में भी उनकी गिरफ्तारी के लिए सरकार ने “”ना तो उनके खिलाफ सबूतो की वंचित जांच की और चार लाइन की रिपोर्ट पर पांचों अभियुक्तों को  पाँच साल तक , दिल्ली युनिवेर्सिटी  के प्राध्यापक  को माओ वादी हिनशा के लिए  दोषी पाया | जबकि उनकी इस अपरदधा में संलिप्ततता  का कोई भी प्रमाण पुलिस नहीं दे सकी | मात्र उनकी राजनीतिक  वामपंथी  विचारधारा के आधार पर उनको अपराधी बना दिया |

                          मान्यवर  नफरती भासन की दोषी  नूपुर शर्मा  को ना तो आज तक गिरफ्तार किया गया , और ना ही वे अदालत के सामने पेश हुई | हाँ उनको फटकारने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशो  पर “”भक्तो “” की टोली ने सोश् ल  मीडिया पर गज़ब  का हमला किया ! उनके अनुसार  जज हिंदुवादियों के वीरुध हैं | मजे की बात यह हैं की  दोनों ही जज हिन्दू हैं | परंतु देश में हिन्दू कौन हैं इसका प्रमाणपत्र  देने वाले स्वयंभू  संगठनो के लोग तो बस किसी भी बीजेपी या संघ अथवा बजरंग सेना या हिन्दू वाहिनी  के अभियुक्तों को तो  दोषी मानते ही नहीं | उनके अनुसार संविधान और समानता की बात करने वाला  द्रोही हैं ! 

                              जो राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी  मुसलमानो को “” अछूत “” मानती थी , अब चुनाव में वोट के कारण  संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत  दिल्ली में  मौलाना इलियासी के न केवला घर गए वरन  उनके मदरसे  में भी गए | लेकिन दूसरे ही दिन  से मुस्लिम संगठन पीएफआई   पर देश व्यापाई छापे  और मुसलमानो की गिरफ्तारिया  शुरू  हो गयी | यह एक सामाजिक संगठन है जो मुसलमानो के हित के  कार्य करता हैं | जैसे आरएसएस  एक सामाजिक  संगठन हैं जो हिन्दुओ के शिक्षा और संसक्राति के विकास के लिए कार्य करता हैं |  संघ की शाखाओ  मे स्वयं सेवक  लाठी लेकर भी जाते हैं | वनहा उनका झण्डा होता हैं | खेल के साथ व्यायायम  भी किया जाता हैं | कुछ ऐसा ही पीएफाआई  भी अपने दफ्तरो में करता था | परंतु उनके कार्य को  सरकारी एजेंसियो  ने देश  के वीरुध षड्यंत्र  बताया | कहा गया की वे देश में हिनशा  फैलाने की कोशिस कर रहे थे !!  किस्सा यह की हम करे तो राम लीला तुम करो तो  कैरेक्टर ढीला ! अब इस नीति और नियत को क्या न्याय कहा जा सकता हैं ?  यह तो हुई  अदालतों और पुलिस के न्याय की हालत , पारा क्या देश के 130 करोड़ लोगो को तो अदालतों से ज्यदा प्रदेश की और की सरकारो के कार्य और केंद्र के कानून  में भी न्याय का अभाव दिखाई देता हैं |

                                   इस समय हमारा देश वैश्विक  हनगर  लिस्ट में आज पड़ोसी  --पाकिस्तान -नेपाल और श्री लंका  तथा बंगला देश से भी नीचे हैं !!! क्या यह केंद्र के लिए न्याय  का विषय नहीं हैं ? देश में बेरोजगारो  की संख्या  करोड़ो में हैं , इनमें  लाखो इंन्जीनियर – और स्नातक और परास्नातक हैं , जो सैकड़ो रुपये के फारम  खरीद कर  प्रतियोगिता में बैठते हैं | अव्वल तो समय पर  उनकी परीक्षा नहीं हो पाती हैं , और हो गयाई तो सालो उसका परिणाम नहीं आता | प्रतियोगिता करने वाली एजेज्न्सिया  अरबों रुपया  इन मजबूर लोगो का खा कर बैठी हैं | सवाल करने पर कोई जिम्मेदार जवाब नहीं देता , औए जवाब दिया तो कह दिया सरकार की मंजूरी अभी नहीं आई ! मध्य प्रदेश के लोक सेवा आयोग की प्रादेशिक सेवाओ  की परीक्षा के परिणाम भी कई -कई साल नहीं आते |  अगर परिणाम आ भी गए तो कोई प्रत्याशी  अदालत चला जाता हैं , तब अदलते भी सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही रोक देती हैं !  बजाय इसके की वे कोई ऐसा निर्णय दे की याची को न्याय भी मिल जाये और सैकड़ो  प्र्त्यशियों  का परिणाम भी घोषित हो जाए | परंतु ऐसा होता नहीं हैं | क्यूंकी ना तो न्यायपालिका  में संवेदना बची है और ना ही सरकारी एजेंसियो  में तत्परता और कार्य के प्रति ईमानदारी बची हैं | राजनीतिक  दबाव से नियुक्त अफसर या सदस्य  बेरोजगारो के दर्द को समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं |

 

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सम्भोधन  में कहा की  -कानून बनाते समय उसकी एक्सपयरी  डेट भी लिख देनी चाहिए !  विधि शस्त्र के इतिहास में यह पहली घटना होगी जब किसी देश की कार्यपालिका के मुखिया ने ऐसा सुझाव दिया हो ! आगे उन्होने यह भी कहा की अंतिम तारीख पर उस कानून का पुनः -परीक्षण होना चाहिए !!  गज़ब हैं | विधि शस्त्र में तीन प्रकार के कानून बताये गए हैं :-

                      1:- दैविक अथवा प्र्क्रतिक कानून , जैसे सूर्य  की प्रथवि द्वरा प्रदक्षिणा , इस नियम को गैलीलियो ने उद्घाटित किया था | वरना भारत में धार्मिक लोग विश्वास करते हैं की प्र्रथ्वी  के चार कोनो को चार गज़ पीठ पर उठाए हुए हैं और वे स्वयं क्छप की पीठ पर खड़े हुए हैं | अब विज्ञान ने इस धार्मिक  विश्वास को मिथ्या साबित कर दिया हैं | अन्य हैं बदलो द्वरा पानी बरसाना  तथा वनस्पतियों  का होना आदि |

 2:- सामाजिक कानून --- ये हैं जैसे  धर्म -जाति कुल और गोत्र आदि | इन नियमो अथवा कानूनों का पालन अधिकतर जन्म – विवाह और अंतिम क्रिया में किया जाता हैं | इनमें कुछ को अदालतों द्वरा  रद्द भी किया गया हैं | जैसे पश्चमी  उत्तर प्रदेश में “”खाप पंचायत “” के फैसले | चूंकि ये फैसले तथ्य – और सबूत के आधार पर ना होकर कुछ मुखिया लोगो की “”हनक” से हुआ करते थे और व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारो की खुली अवहेलना हुआ करते थे |

    3:- राज्य द्वारा  निर्मित  कानून , जो संविधान की शक्ति से बनाए जाते हैं | जिनहे अदालतों की भी सुरक्षा प्रापत  हैं | हमारे संविधान में इन्हे  मूलभूत  नागरिक अधिकार कहे गए हैं | यदि राज्य अथवा केंद्र का कोई कानून  नागरिक के अधिकारो का अतिक्रमण करता है तो उसे हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रक्षा प्रापत हैं |

                        राज्य की विधान सभाए और केंद्र में संसद भी कानून बनाते रहते हैं |  परंतु इनको बनाने के समय  कोई भी यह नहीं बता सकता की ये कब “”निरस्त” हो जाएँगे ?  परंतु हमारे  प्रधान मंत्री जी ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी कर ली हैं |

                           अच्छा है कम कानून हो तो गणतन्त्र के लिए शुभ हैं  परंतु सालो से उनके द्वरा  1800 पुराने कानून निरस्त किए जाने की घोसना की जाति रहती हैं , परंतु इन निरस्त हुए कानूनों की लिस्ट कभी ना तो जारी हुई ना विधि मंत्रालय की वेब साइट पर इंका कोई ज़िक्र हैं | हैं न अज़ाब बात , काहीर कोई बात नहीं |