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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 7, 2014

वैदिक राष्ट्रियता किसी विश्व विजेता या सम्राट की विजय का परिणाम नहीं वरन हमारे धरम का प्रभाव है


ब्रहतर भारत की कल्पना किसी सम्राट की दिग्विजय यात्रा का परिणाम नहीं है जिससे यह कहा जा सके की
अफगानिस्तान से लेकर जावा -सुमात्रा तक जिस "'संसक्राति """की छाप दिखाई पड़ती है वह हमारे ऋषियों का योग दान है
जिनहोने हुमे समस्त विधाओ का ज्ञान दिया | एक गलतफहमी अक्सर लोगो के विचार मे रहती है जैसे की किसी समय हमारे
देश का राज्य इन सभी स्थानो पर था| परंतु ऐसा नहीं है , वस्तुतः जिस प्रकार सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए
अपनी संतनी को श्री लंका भेज दिया था , वह कोई पहली बार नहीं हुआ था | कंबोडिया और म्यांमार मे भी आज बौद्ध धर्म
के मानने वाले ही बहुसंख्यक है | परंतु कंबोडिया के सम्राट के नाम मे ""राम ""का उपयोग आवश्यक रूप से होता है ,
वंहा एक परंपरा है की बीस से पचीस वर्ष तक बौद्ध मठ मे रह कर शिक्षा प्रपट करते है | वैदिक धर्म की आश्रम व्यवस्था
मे भी बालक को प्रथम पाचीस वर्ष तक गुरु के आश्रम मे रह कर शीशा प्रपट करनी होती थी | यह परंपरा जारी होना ही
प्रमाण है की वैदिक धर्म का प्रसार वंहा था | इसका एक कारण हो सकता है की उनकी सभ्यता मे वैज्ञानिकता का अभाव
रहा होगा जो हमारे धर्म मे थी |

पिछले आलेख मे मैंने जंबू द्वीप के बारे मे बात की थी वस्तुतः यह समस्त छेत्र ही जंबू द्वीप है ,
जिसका विस्तार अफगानिस्तान से लेकर समस्त भारत होते हुए श्री लंका और वर्तमान इंडोनेशिया -कंबोडिया आदि तक फैली
हुई थी | भरत ख्ण्डे से मंत्र मे तात्पर्य वर्तमान भारत की वर्तमान सीमा सहित पाकिस्तान -बर्मा -भी शामिल रहे होंगे |
क्योंकि हिंदुकुश -हिमालय -विंध्या -पर्वत श्रंखलाओ के विस्तार के छेत्र शामिल है क्योंकि इन इलाको मे भी भरत खंडे के
ही मंत्र का जाप होता है | इसी प्रकार आर्यवेर्ते का तात्पर्य गंगा -यमुना के मैदान का इलाका है | दिल्ली और राजस्थान
के इलाके को ब्र्म्हवर्त कहा गया है | इसकी निशानी बताई गयी है की जनहा काले हिरण नहीं होते वह छेत्र ही ब्र्म्हवर्त
है |काफी समय तक यानहा तक की महाभारत के भी कुरुछेत्र को इसी इलाके मे बताया गया था |

इस संकल्प मंत्र की विवेचना करके यह तो लगभग निश्चित हो गया की वैदिक भारत की ""परम्पराओ ""
को गंगा -यमुना के मैदानो से दूर तक प्रसार हुआ | यह सब कम से कम दो से तीन हज़ार वर्षो पूर्वा का है ,क्योंकि
बौद्ध धर्म का प्रसार करने निकले भिक्क्षुओ ने इन सभी इलाको मे अपने धर्म का प्रसार किया | लेकिन उन्होने पुरानी
परम्पराओ को बरकरार रखा | यही कारण है की कंबोडिया या लाओस मे बौद्ध धर्म राज्य का धर्म तो है परंतु परंपराए
आज भी वैदिक है | इंडोनेशिया इस्लामिक राज्य है परंतु वंहा के जावा द्वीप पर इस्लाम धर्म कए मानने वाले बहुसंख्यक
है सिर्फ थोड़े से लोग आज भी सनातन परंपरा के वैदिक धर्म को मानने वाले है | जो सदियो पुराने मंदिरो की देख -रेख
कर रहे है वे अपने पर्व और त्योहार भी मानते है | यंहा की रामलीला भरत मे भी सराही जाती है , अब यह विचित्र
लगेगा की रामलीला मे राम कोई मुस्लिम बने ! हमारे देश मे अगर ऐसा हो जाये तो सांप्रदायिक दंगे हो जाये , जंहा
मंदिर पर लाउड स्पीकर लगाने को लेकर हिन्दू - मुस्लिम दंगा हो जाये वंहा ऐसी बात भी कल्पना लगती है |

इन तथ्यो के अनुसार हम अपनी परम्पराओ पर गर्व तो कर सकते परंतु हम इसे अपनी "विश्व विजय ""
क़तई नहीं कह सकते , हम इस पर न तो यह कह सकते है की यह हमारी """विजय""नहीं है | इसलिए हम इसका
अध्ययन ही कर सकते है , इसे अपने गौरव पूर्ण इतिहास की एक उपलब्धि तो मान सकते है , परंतु इसको
अपना नशा नहीं बना सकते | जैसे की चीन अपने """इतिहास मे चंगेज़ खान की विजय """ को शामिल कर के
तिब्बत और भारत के हिस्सो अरुनञ्चल पर अपना हक़ जता रहा है | कुछ तबको मे जंबू द्वीप की अवधारणा
को हमारी विश्व विजय के रूप मे पेश करने कोशिस की जा रही है जो बिलकुल सही नहीं है |