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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 27, 2019


नागरिक रजिस्टर की कारवाई


एक चेहरे में छुपे है ?कितने चेहरे -- अमित शाह जी बता दीजिये ?


आज से बीस साल पहले तक साधारण व्यक्ति को अपने को "””भारतीय "” सिद्ध करने के लिए वोटर नागरिक की पहचान का रजिस्टर !
कार्ड दिखाने से उसकी पहचान सिद्ध हो जाती थी , वह कनहा का निवासी हैं -यह भी उसमे लिखा होता था | उसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने "”आधार कार्ड "” बनवाया | फिर गाव के खेतिहर मजदूरो के लिए मनरेगा बना | आज हालत यह हैं की वोटर कार्ड अब सिर्फ मतदान के लिए ही बचा हैं | सरकारी योजनाओ के लिए पहले आधार जरूरी किया गया , फिर सुप्रीम कोर्ट ने इसे शासकीय योजनाओ के "”लाभार्थियो "” के लिए जरूरी बताया | तब मोबाइल का '’सिम '’ लेने के लिए सरकार ने आधार जरूरी किया | मोदी सरकार के इस फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया | सवाल यह है की कोई आदमी कितने प्रमाण पत्र रखे "”जिससे वह यह साबित कर सके की वह भारतीय नागरिक हैं ?


अब केंद्र सरकार {मनमोहन सिंह से लेकर मोदी तक } नागरिकों की पहचान के लिए "”नागरिक रजिस्टर " की कारवाई कर रही हैं | भारत के गृह मंत्री अमित शाह जी ने आसाम में विदेशियों की पहचान के लिए की गयी इस "”कवायद "” को अब सारे देश में आजमाना चाहते हैं | वजह सिर्फ उनकी सनक या संदेह हैं की 60 साल तक मोटा भाई मोदी और उन्हे "”राज करने से "” बाहर रखने के लिए ये विदेशी ही जिम्मेदार है !!! वास्तव मे ये विदेशी आज या पिछले साठ - पचास सालो में देश में नहीं घुशे है ,वरन मोहम्मद गोरी के बाद यानहा आए हैं --जी हाँ ये हैं इस्लाम के बंदे !!! वैसे तो गोरी के पहले महमूद गजनवी सिंध -और गुजरात में तहलका मचा चुका था | गुजरात के "”बहादुर राजा भीमदेव "” का राज था , ----उसी समय उसने द्वारिका के सोमनाथ और नागेश के शिव मंदिरो को लूट पाट कर इलाके में काफी खुरेंजी की थी | शायद वह घाव सौराष्ट्र और आसपास के इलाको में रहने वालो को उसी प्रकार "”नासूर :: समान लगता होगा ----जैसा की देश विभाजन के समय पंजाब और सिंध से आए शरणार्थी लोगो के मन मस्तक में मुसलमानो के प्रति नफरत का भाव था !!!

जनसंख्या की गिनती ब्रिटिश भारत में सबसे पहले 1910 में हुई इसमें "”प्रजा "” के धरम का उल्लेख भी था | जातिगत आधार पर 1930 में जनगणना हुई थी जिसमे आबादी के परिवारों के धरम और जाति का भी उल्लेख था | इसके बाद प्रत्येक दस वर्ष के बाद जनगणना करने का कानून आज भी जारी हैं | हालांकि मर्दुंशुमारी में किन -किन तथ्यो की जानकारी बाशिंदों से ली जाएगी यह बदलता रहा हैं | अब धर्म तो पूछाजाता है पर जातिनहीं | जबकि झगड़ा सबसे ज्यादा इसी को लेकर हैं |

जनगणना की शुरुआत :--
ब्रिटिश साम्राज्य की ही भाति जापान में भी जनगणना का इतिहास ईसा पूर्व का हैं | जापान में गाव के मुखिया की यह ज़िम्मेदारी होती है की वह अपने इलाके यानि ग्राम में सभी जनम लेने वालो के माता - पिता का नाम और तारीख और वर्ष लिखना होता था ! इसी प्रकार म्र्त्यु का भी रेकॉर्ड रखा जाता था | पश्चिम में मिश्र के साम्राज्य में भी फैरो की प्रजा की गिनती और उनके कबीले की जानकारी भी रखी जाती थी | समकालीन रोमन साम्राज्य में पहली बार लोगो को "”नागरिक और गुलाम तथा कामगारों की गिनती होती थी | रोम में नागरिक को सम्मानजनक स्थान मिलता था | वह व्यवस्था "”लोकतान्त्रिक तो ना थी पर सीनेट के प्रतिनिधि नामित थे ----परंतु वे सीजर ,यानि की सर्वोच्च शासक का चुनाव करते थे | अधिकान्स्तः सीनेट सदस्य सेना में सेवा कर चुके होते थे | ईसा मसीह का जनम इसी रोमन जनगणना के समय ही हुआ था |

तो इस प्रकार राज्य की आबादी के बारे में जानकारी 2000 साल पूर्व भी रखी जाती थी | परंतु भारत की 630 देशी रियासतो में जनगणना का रिवाज नहीं था | हैदराबाद और मैसूर तथा त्रिवांकुर -कोचीन में भी गाँव ही इकाई थे , जनहा ऐसा कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता था , कम से कम मेरी जानकारी में

नहीं हैं | 1857 में जब ब्रिटिश साम्राज्य का आधिपत्य हुआ तब देश में दोहरी "””प्रशासन "”की व्यवस्था हुई ---- एक देशी रियासतो में दूसरी ब्रिटिश इंडिया में | 1910 के पूर्व मार्ले-मिंटो कानून के बाद ज़िलो में सैनिक अधिकारी ही नागरिक प्रहसन देखते थे | लखनऊ - कानपुर -इलाहाबाद आदि के जिलाधिकारियों के "”रोल्ऑफ आनर "” से यह तथ्य प्रामाणित हैं | उन्होने ही जनगणना की शुरुआत की – और ज़िले के इतिहास के गज़ेटियर बनवाए | हालांकि इन गजेटियरों में बहुत कुछ "” सुनी - सुनाई भी बाते हैं "” जिनकी पुष्टि का कोई प्रमाण नहीं मिलता |

परंतु भारत में आबादी में लेखा -जोखा रखने की परंपरा ब्रिटिश हुकूमत के उपरांत ही मिलती है | अब संविधान लागू होने के बाद नागरिक की परिभाषा में लिखा गया हैं की "” 15 अगस्त 1947 के बाद भारत की सीमाओ में बस्ने वाले सभी भारतीय नागरिक होंगे "” | परंतु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी राजनीतिक विंग भारतीय जनता पार्टी को उत्तर - पूर्व में जब सालो की "” हिन्दू राष्ट्रियता का पाठ यानहा की जन जातियो को सीखाने के बाद भी जब चुनवी सफलता नहीं मिली ----तब उन्होने बंगला देशी लोगो के आसाम में बस्ने का "”नारा बुलंद किया "” ! जिसका सीधा निशाना वनहा की मुस्लिम आबादी थी | फिलहाल अभी तक सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चलने वाली राष्ट्रिय नागरिकता रजिस्टर योजना को अमली जामा पहनाने की कोशिस में आसाम में चाय के बागानो में काम करने के लिए सौ साल से भी पुराने बिहार और उत्तर प्रदेश के निवासियों को भी "” घुस पैठिया "” मान लिया गया ! जिसमें मुसलमानो से कई गुना ज्यादा यानहा के हिन्दू "” गैर नागरिक "” घोषित हो गए !!! इससे मोदी - शाह द्वरा संघ के "” हिन्दुत्व "” एजेंडा को बड़ी चोट पहुंची !!
इस कवायद में सिर्फ 1600 सौ करोड़ लगे और 6 साल तक चली इस विद्वेष भरे फैसले में 55000 सरकारी मुलाजिमों ने सूचीय बनाई ! जिनमे पूर्व राष्ट्रपति फख़रुदिन अली अहमद के परिवार को भी "’विदेशी "’ घोषित " कर दिया ! भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त मुस्लिम हवलदार को -जो प्रादेशिक पुलिस में कार्यरत थे उन्हे भी विदेशी मूल का बताया ! सैकड़ो उदाहरण है जनहा माता -पिता को भारतीय और संतानों को बंगलादेशी बता दिया -जबकि उनकी भाषा असामिया थी !

ऐसा पहली बार नहीं हुआ हैं – पिछली सदी के आठवे दशक में में भी असम के "”मूल नागरिकों "” ने भी वनहा बसे बंगाली मूल के लोगो पर स्थानीय लोगो के रोजगार के अवसर छिनने का आरोप लगाते हुए आंदोलन किया था | जो काफी हिंसक बी हुआ था , इसी आंदोलन की उपज है असम गण संग्राम परिषद जिसे अब आसू भी कहते है यह अब एक राजनीतिक दल का रूप हैं " अबकी बार मोदी सरकार ने स्थानीय लोगो को यह घुट्टी भी पिलाई | महराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे ने भी " महाराष्ट्र मराठियो के लिए "” नारा देकर बंबई में काम कर रहे दक्षिण भारतीयो और उत्तर भारतीयो के संस्थानो पर शिव सैनिको के हमले हुए | परंतु आज जब उनके पुत्र उद्धव ठाकरे मुख्य मंत्री बनेंगे तब क्या वे उस नारे को दुहरा सकेंगे ??








Nov 16, 2019


आरोप - जांच { सीबीआई एवं ई डी} जमानत के करमकांड में जज -तथा न्याय ?

मामला तो पुराना हैं – परंतु देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे की मुकदमो में जांच एजेंसियो की नियत और अदालत के संकोच स्पष्ट दिखते हैं ! शीर्षक ही द्योतक हैं की देश की इन दोनों जांच एजेंसियो की नियत न्यायपूर्ण नहीं हैं , और अदालत भी "संकोचवश " इनकी की गयी गलती को सुधारने में इच्छुक नहीं है ! ताजा तरीन मामला हैं --कर्नाटक के पूर्व गृह मंत्री डी के शिवकुमार के खिलाफ एंफोर्समेंट डिरेक्टोरेट द्वरा वित्तीय अनियमितता केस में जांच के दौरान – दिल्ली उच्च न्यायालय द्वरा उन्हे जमानत दिये जाने के विरोध में इ डी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी | जिसकी सुनवाई जस्टिस नारिमान और जस्टिस रवीन्द्र भट्ट की खंड पीठ ने पहले तो इस मामले की सुनवाई करने के लिए ही तैयार नहीं थे | | गौर तलब हैं की इस मामले को अदालत में देश के सलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया था | जब तुषार मेहता लगातार अदालत से ई डी की अपील खारिज नहीं करने की प्रार्थना करते रहे – इस पर जस्टिस नरीमन ने कहा की यह “””ई डी “” की यह याचिका चिदम्बरम मामले की याचिका ही कापी है ! “” अदालत ने कहा की आप नागरिकों से इस तरह से पेश नहीं आ सकते ! “”
संयोगवश शुक्रवार को ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई डी की आपति पर पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम की इमेक्स मामले में जमानत की अर्जी छठी बार “”नामंज़ूर की हैं --कारण में वही कहा गया हैं की मुलजिम मामले को प्रभावित कर सकता हैं | गौर तलब हैं की इमेक्स मामले में सीबीआई ने अपनी चार्ज शीट में “” नौ लाख रुपये की रकम “ की गड़बड़ी का आरोप लगाया था | ई डी ने उसी मामले में लाखो रुपये के विदेशी मुद्रा के घोटाले का आरोप लगाया हैं !!! विषय वस्तु एक ही थी परंतु जब सीबीआई अपने तई कुछ सबूत नहीं जुटा सकी तब ई डी ने मौके -- वारदात पर हाज़िरी दी !!
यंहा यह टिप्पणी "”अति महत्व पूर्ण हैं की यह चिदम्बरम मामले की याचिका की ही कापी लगती हैं !! क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने डी के शिव कुमार की जमानत देने के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को "”रद्द "” किए जाने की अर्ज़ी डी थी | अब यह तो साफ हो गया की ई डी द्वरा चिदम्बरम और शिव कुमार को किसी सबूत के आधार पर नहीं वरन संदेह या शक के आधार पर जांच के लिए बुलाया फिर पुछ ताछ में "””सहयोग "” नहीं देने का आरोप लगाते हुए हिरासत में लेकर जेल भेजे जाने की अपनी मर्जी की अर्जी पर अदालत से मंजूरी की मुहर लगवाते रहे |
अब यंहा एक सवाल उठता हैं की --- जब सुप्रीम कोर्ट को यह मालूम हैं की शिव कुमार का मामला जिस प्रकार – बिना सबूत के हैं - उसी प्रकार चिदम्बरम के मामले में अगस्त से लेकर अभी तक जांच एजेंसियो ने अदालत में कोई नए सबूत नहीं पेश किए --- फिरा किस आधार पर दिल्ली उच्च न्यायालय बार - बार एक ही कारण बता कर "”” पूर्व वित्त मंत्री - और रसूख वाले व्यक्ति है -मामले को प्रभावित कर सकते हैं ! “” इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ ने ने ई डी को फटकारते हुए कहा की "””आप नागरिकों से इस तरह पेश नहीं आ सकते !”

अब धीरे धीरे यह स्पष्ट होने लगा हैं की चिदम्बरम के मामले में सरकार की "”तिकड़ी "” ने कोई लगाम खिच रखा है जो जांच एजेंसियो और अदालत को भी "”निसपक्ष और न्यायपूर्ण नहीं रहने दे रहे है !!” इससे इन जांच एजेंसियो के करता -धर्ताओ से यह भी अदालत को पुच्छना चाहिए की आखिर किसी नागरिक की आजादी छीन कर भी अगर वे कोई सबूत नही निकाल पाये ---तो क्यो नहीं उनके विरुद्ध संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 20{3} के उल्लंघन का मामला चलाया जाए ??

एक मामला और है जो न्यायपालिका की छ्वि पर सवालिया निशान लगा रही हैं ---- भीमा -कोरेगाव्न के आरोपियों नौलखा और चार अन्य को भी बिना किसी "”ठोस सबूत के "” जांच एजेंसी बस जमानत की अर्जी पर एतराज़ बताती है - की आरोपी बहुत खतरनाक है ये मुकदमें को प्रभावित कर सकते हैं !! और बस ज़िला अदालत इस अर्जी पर अपनी मर्ज़ी की मुहर लगाते हुए कहती है की दरखाष्त खारिज !! इसी सिलसिले में अगर हम प्रधान न्यायधीश शरद बोवड़े के कथन को "” न्यायपालिका और सरकार के मध्य मधुर रिश्ते होने चाहिए ---- ऐसे मौको पर लगता हैं की अदालते सीमा से अधिक सरकार के नजदीक हो गयी है क्या ?





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Nov 13, 2019


अयोध्या -चार दिन की चाँदनी भी नहीं रह पा रही !

मस्जिद को जमीन और मंदिर के ट्रस्ट पर अब हिन्दुओ में मचा महाभारत !


अदालत की "”आम "” परम्पराओ के मुताबिक बड़े फैसले शनिवार को नहीं सुनाये जाते --पर सुप्रीम कोर्ट ने चारा सौ साल से "अनसुलझे '’ मुकदमे को "निपटाने "” के लिए यही दिन चुना ! जबकि अदालत ने पहले नवंबर के दूसरे सप्ताह में सुनाये जाने के संकेत दिये थे ,पर मालूम नहीं क्यो " शनिवार "” को चुना गया !! खैर जो भी कारण रहा हो पर --भारी -भरकम और भीषण बंदोबस्त के बाद सड़क पर तो मरघट की शांति रही जो अगले दिन भी दिखाई पड़ी | परंतु जिस प्रकार सरकार से मधुर संबंध बनाने वाले मीडिया ने न्यायपालिका के कथन को पूरा किया की "” न्यायपालिका और सरकार में मधुर संबंध होना चाहिए – भावी प्रधान न्यायाधीश शरद बोवड़े के कथन का पूरा पालन किया ! टीवी चैनलो पर इस फैसलो को ऐतिहासिक और अद्भुत तथा देश हित में बताया गया !
परंतु रविवार का सूरज चड़ने के साथ ही पाँच जज़ो के सामूहिक और संयुक्त फैसले पर सवाल उठने लगे | हालांकि चैनलो में इन विचारो को जगह नहीं मिली | सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व न्यायधीश अशोक गांगुली ने कानूनी कसौटी पर इस फैसले को रखा --- उन्होने कहा की अदालत द्वरा यह तो कहा गया की सुन्नी वक्फ बोर्ड यह नहीं साबित कर सका की मस्जिद में 1526 के बाद नमाज़ अदा की जाती थी ? तब यह सवाल हिन्दुओ से क्यो नहीं पूछा गया की "”उसी अवधि में क्या वनहा चबूतरे पर पुजा की जाती थी क्या ? उन्होने कहा की एक फरिक के आस्था को प्रमाण मान लिया गया – दूसरे के सबूत को भी नहीं माना गया !!
मालिकाना हक़ के मुकदमे में आस्था या परंपरा को आधार बनाएँगे तब बहुत से धरम स्थान तोड़ने पड़ेंगे !

ये तो हुई एक जज की प्रतिकृया , अब दूसरे पक्ष को देखे | सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने में मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने और उसमे निर्मोही आखाडा को सदस्य बनाने तथा सुन्नी वक्फ बोर्ड को पाँच एकड़ भूमि देने का आदेश दिया !!
अब अयोध्या के बजरंगियों ने स्थानीय प्रशासन से मांग की हैं की , चूंकि अयोध्या की पाँच कोशी और बारह कोशी परिक्रमा होती हैं -----अतः मुसलमानो को मस्जिद के लिए भूमि का आवंटन -भी बारह कोश के बाहर किया जाए ! एक कोस में दो मील होते इस हिसाब से 24 मिल बाहर जमीन दे | वैसे भी स्थानीय प्रशासन ने अयोध्या में "”” महत्व पूर्ण स्थान पर 5 एकड़ भूमि की सुलभता पर असमर्थता जताई हैं ! “” तब कैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू किया जा सकेगा ???
दूसरा मसला मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार द्वारा ट्रस्ट बनाए जाने का निर्देश भी अदालत ने दिया हैं , | परंतु अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय और वितमंत्रालय इस ओर कवायद कर ही रहे थे की ----- राम जन्म भूमि न्यास के
नृत्य गोपाल दास ने दो मुद्दे या कहे आपतियों की "”कैवियट"” लग दी हैं | पहला तो सुप्रीम कोर्ट के ट्रस्ट बनाने के आदेश को हो अनावश्यक बता दिया हैं --उनके अनुसार राम जन्मभूमि न्यास है -अतः दूसरा न्यास निर्माण के लिए क्यो ? उन्होने कहा की निर्मोही आखाडा अपना न्यास विघटित कर हमारे न्यास में आ जाये | इस पर निर्मोही आखाडा के महंत दिनेन्द्र दास का बयान आया हैं की "”” हम शुरू से ही राम जन्मभूमि न्यास के खिलाफ जमीन और अदालत में लड़ाई लड़ते रहे हैं हम निर्मोही हैं हम राम जन्म भूमि न्यास का हिस्सा कभी नहीं बन सकते !! वे चाहे तो न्यास को सरनडर हमारे साथ आ सकते हैं !! हम निर्मोही हैं हम उनका हिस्सा कभी नहीं बन सकते !
राम जन्म भूमि न्यास के न्रत्य गोपाल दास ने प्र्सतवित केंद्र सरकार के ट्रस्ट के अध्यक्ष का नाम भी सुझा दिया है ----- उन्होने कहा की अगर राम जन्म भूमि न्यास को मंदिर निर्माण की ज़िम्मेदारी देने में कानूनी बाधा है तो उत्तर प्रदेश मे मुख्य मंत्री आदित्यनाथ योगी को केंद्र सरकार ट्रस्ट का मुखिया बनाए | उन्होने कहा की वे "” गोरक्ष पीठ "” के अधिश्वर हैं !! अब महंत जी स्वार्थ वश कितना असत्य भासन करते है यह उनके कथन से साफ है | वास्तव में गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ है --जो सिद्ध योगी परंपरा का ही | इस मठ का गोरक्षा से कोई लेना देना नहीं है | लेकिन आजकल की राजनीति में गाय या गौ राजनीति की वैतरणी पार करने का "’सिद्ध "” तरीका है " तो न्त्रया गोपाल दास जी नाच गए - खेल दिया दाव , क्योंकि आबादी में कुछ ही इस पाखंड को समझ पाएंगे | दूसरे धार्मिक ट्रस्ट आमतौर से छ्तृयों की अधीनता में नहीं होते | परंतु गोरख नाथ ज ने अपने पीठ को छत्रीय को ही देने का निर्देश दे गए थे | अब अगर ऐसा होता हैं तों ब्रामहन जाती के लोग तो इस बात का पुर ज़ोर विरोध करेंगे ------जैसा की उत्तर परदेश की राजनित में अभी हो रहा हैं |

तीसरी आपति मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट के स्वरूप के बारे में विश्व हिन्दू परिषद के अध्यछ चंपत रॉय ने की है | उनका कहना हैं की मंदिर निर्माण में हमारी भूमिका निर्णायक रही है हमारे कार सेवको ने अपनी जान गवाई हैं , इसलिए हमारी भावनाओ -त्याग का ख्याल केंद्र को रखना चाहिए | उनकी मांग हैं की प्रस्तावित ट्रस्ट में ना तो कोई सरकारी अधिकारी हो और ना ही कोई नेता मंत्री हो , अर्थात सरकार की ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं होना चाहिए !
उन्होने प्रस्तावित मंदिर की पुजा -अर्चना की विधि तथा इसमें किन सम्प्रदायो के लोगो को जगह मिले यह भी कहा -----की पुजारियो में वैष्णव - शैव और सगुण ब्रामह मानने वालो को ही जगह मिले | किसी एक परिवार का पुजा अर्चना पर एकधिकर ना हो इसलिए उन्होने बद्रीनाथ मंदिर माडल अपनाए जाने की वकालत की | अब चंपत रॉय जी की जानकारी को संशोधित करना होगा , क्योंकि बद्रीनाथ मंदिर में पुजा का प्रथम अधिकार आदिगुरु शंकराचार्य के समय से केरल के नंबुदरी ब्रांहनों का ही चला आ रहा हैं | उन्हे "”रावल महराज "” कह जाता हैं !!
अब इसे कहते हैं की शनिवार को किए कामो में "”स्थायित्व"” होता हैं ---- परंतु शनिश्चर यदि भरी हो कुंडली में तो "”” होता काम भी बिगड़ जाता हैं "| सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सार्थकता और प्रश्न चिन्ह तो लग रहा हैं |

दूसरी ओर संघ और सरकार समर्थक अभी भी समाचार पत्रो के पन्नो में आलोचना और फैसले पर सवाल उठाने वाली आवाजों को जवाब नहीं दे रहे है ----वे अभी भी इस मुगालते में हैं की जैसे काश्मीर में अनुचेद 370 को खतम कर राज्य का विभाजन कर दिया --- कुछ वैसा ही इस मम्म्ले में भी मोदी और अमित शाह कर लेंगे ! परंतु महाराष्ट्र में अपने सहयोगी से दगाबाजी का परिणाम ही हैं की "””परसी थाली भी सरक गयी "” | राजनीति में नैतिकता का कोई स्थान भारत में नहीं बचा हैं | क्योंकि कुर्सी ही धरम हैं , राजनीतिक दलो का , परंतु अदालत की इज्जत उसकी न्याया के प्रति सच्चाई के व्यवहार की हैं | जो इस मामले में संदिग्ध हो गयी है | बस खतरा एक ही हैं की जिस सांप्रदायिक वैमनष्य को बचाने के लिए "””कानूनी रूप में यह समझौते "” का रास्ता निकाला गया है ---कनही वह असफल ना हो जाये < सत्तधीशों की कुर्सी की लोलुपता और येनकेन प्रकारेंन अपनी चुनावी गोट बिठाने की जुगत इस देश में बसे लोगो को क दूसरे का खून का प्यासा न बना दे | जैसा एक प्रदेश में हुआ --जब सत्ता बदनीयत हु

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भारतीय जनता पार्टी की 27 साल की राजनीतिक चाल ने अंततः उनके मन्तव्य पर सर्वोच्च न्यायालय की मुहर लगवा ही ली ! अब यह फैसला इसलिए मान्य करना होगा -----चूंकि इस फैसले के खिलाफ कोई अपील तो नहीं हो सकती और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने रिव्यू याचिका दायर करने के फैसले को शाम को बदल दिया ! टीवी चैनलो की बहसो में भी एक ही सुर निकल रहा हैं – की एक शक्तिशाली नेत्रत्व की पहल से इस फैसले को सभी देश वासियो को स्वीकार करना चाहिए !!! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शह के ट्वीट अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की बरबस याद दिला देते हैं !
खैर दिन भर शहरो में धारा 144 लगाने की कानूनी कारवाई तो हुई , परंतु पुलिस का बंदोबस्त करफू वाला था – सब बाजार बंद --सभी स्कूल और कालेज बंद दुकाने बंद --गली -गली घूम कर छोटी छोटी चाय की दुकाने भी पुलिस बंद करा रही थी | सड़क पर पुलिस की घूमती गाड़िया साइरन बजा कर आम लोगो को किसी अनहोनी के अंदेशे का ड्सर दिखा रही थी | धारा 144 में कानूनी तौर पर पर चार आदमी से ज्यादा एक स्थान पर इकथा होने और अस्त्र शस्त्र लेकर चलने पर प्रतिबंध होता हैं , परंतु देव उठहनी एकादशी के दूसरे दिन सुबह की सैर पर जाने वाले लोगो को वापस भेज दिया गया – शायद इसलिए की उनमे कुछ के हाथ में छड़ी थी !! __________________________-____________________________________________________________________________________________________________________________________

Nov 7, 2019


भय का वातावरण और नागरिक अधिकारो पर खतरा तो कैसा भरोसा !

भारत के मनोनीत प्रधान न्ययाधीश शरद बोवड़े ने एक चैनल को दिये गए इंटरव्यू में देश की जनता को संदेश दिया की "” वह अदालत पर भरोसा रखे "” वे ऐसे समय में देश की सर्वोच्च न्यायपालिका की ज़िम्मेदारी सम्हाल रहे हैं ---जब देश में "”अविश्वास और अनिश्चय से उत्पन्न भय का वातावरण हो !
दिल्ली के तीस हजारी अदालत में जिस प्रकार पुलिस और वकीलो में हिंसक झड़पे टीवी पर दिखाई पड़ी -----औए जिस प्रकार वकील जिनहे बार काउंसिल "”’ऑफिसर ऑफ ला "” कहती//बताती है , उनके व्यवहार को देख कर "”’आरक्षण समर्थको अथवा छात्रो के आंदोलनो की याद आती हैं | “” उधर पुलिस को पीटते देख कर उन लोगो को जरूर दिल में सकूँ पहुंचा होगा ,जो कभी "”इनके चंगुल मे फंस कर "”जांच और पूछताछ "” की कारवाई के शिकार हुए होंगे ! परंतु जिस प्रकार दोनों पकछो ने एक दूसरे पर दोषारोपण किया हैं --- और पुलिस ने आंदोलन किया और उससे यह तो साफ हैं की "””हालत ठीक -ठाक बिलकुल नहीं हैं "” और जिस प्रकार दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और जज हरीशंकर ने 3 नवम्बर को ही आदेश सुना दिया की की वकीलो के खिलाफ पुलिस कोई कारवाई नहीं करेगी !!! जब रिवियू पेटिसन लगाई गाय -तब पुनः मुख्य न्यायाधीश की खंड पीठ ने केंद्र सरकार {{दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन हैं }} को निर्देश दिया की -अदालत के विगत आदेश में स्थिति स्पश्स्त हैं | अर्थात तीस हजारी या साकेत स्थित अदालत में वकीलो और पुलिस की "”भिड़ंत "” में कोई दोषी नहीं हैं !!! अब एक महिला पुलिस अधिकारी और उसकी सहायक महिला पुलिस सिपाही के साथ हुई "”बद्सलूकी "” कोई अपराध नहीं हुआ !! टीवी चैनल द्वरा दिखाये गए फुटेज में साकेत में मोटर साइकल सवार को काला कोट पहने और गले में बैंड लगाए लोग पीट रहे थे -----वह "’अपराध '’’ नहीं हुआ !!!

अदालत के इस फैसले के बाद पुलिस मुख्यालय पर अदालत पर भेदभाव और पक्षपात का सारे आम नारा लगाया गया | अगर वर्दी धारियो की भीड़ में से ऐसे नारे लगे तब ----निश्चय ही स्थिति "’असमान्य "” ही कहा जाएगा | जब कानून के रखवाले और शांति व्यवस्था के जिम्मेदार के साथ "”ज़िंदगी और मौत की सज़ा सुनने वाले जज साहब और अदालत पर भी अविश्वास सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया जाये ----तब प्रधान न्यायधीश जी "”जनता किस प्रकार कानून और अदालतों की सच्चाई और निस्पक्श्च्ता पर भरोसा करे ???उच्च न्यायालय ने तो दो निरीक्षकों को निलंबित और दो संयुक्त पुलिस आयुक्तों का तबादला करने का भी आदेश दिया था | उच्च न्यायालय की इस कारवाई से आम लोगो के मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक हैं | यह तब किया गया जब की अदालत ने पहले छ सप्ताह में घटना की न्यायिक जांच करने का निर्देश दिया था ! उसके दरम्यान वकीलो को कानूनी कारवाई से "”सुरक्षा कवच "” देने का कारण यह हो सकता हैं की ----पुलिस निसपक्षता से कारवाई नहीं करे ! तब उन झगड़े और बदतमीजियों के जिम्मेदारों के वीरुध कौन कारवाई करेगा !!!! बार काउंसिल ऑफ इंडिया के बार बार आग्रह पर भी वकील साहेबन काम पर नहीं लौटे ! उधर अधकरियों के समझने से पुलिस अपनी ड्यूटि पर वापस आ गए और आंदोलन खतम किया | भले ही पुलिस को समाज में "””खलनायक "” के रूप में देखा जाये , पर बक़ौल हरिवंश रॉय बच्चन की कविता "”” बात अगर हो लाख टके की , इनकी पीड़ा मिलकर देखो बिना पुलिस के चल कर देखो "” !
अदालत की साख उसकी निसपक्षता पर निर्भर करती हैं , वरना सज़ा तो पुलिस की हिरासत में भी होती हैं ,कभी कभी तो पूछताछ के दौरान ही "”’आदमी दम तोड़ देता हैं | पुलिस हिरासत में होने वाली मौत हो अथवा पुलिस के गोली चालन की घटना हो ---- उसकी जांच भी "”अदालती "” ही होती हैं ! क्योंकि भारत के लोगो को न्यायालय में काले कोट में बैठे सज्जन की ईमानदारी पर भरोसा होता हैं | परंतु जब पुलिस वालो का भरोसा अदालत से उठ जाये तब क्या होगा ?

क्या जब नागरिकों की जासूसी के लिए बंदोबस्त हो रहा हो , जब काले धन के मामलो में "” सरकार " लोगो के नाम अदालत के आग्रह के बाद भी सार्वजनिक नहीं करे ? जब आम नागरिक से जुड़े मुद्दो पर सरकार की बेरुखी की अदालत अनदेखी कर दे ! चार नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में व्याप्त प्रदूषण पर जिस तरह स्वयं नोटिस लेकर हरियाणा – पंजाब और उत्तर प्रदेश की सरकारो को फटकार लगाई ---वह जुडिसियल एकटीविज़्म का बेहतर नमूना हैं | परंतु वनही सुप्रीम कोर्ट को उत्तरा प्रदेश सरकार द्वरा मंदिरो की जमीन के मामले "” यह कहना पड़ा की की यू पी में क्या जंगल राज हैं ?”
दूसरी ओर उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश का तबादला और हाइ कोर्ट में जजो की नियुक्ति को लेकर मीडिया में अनेक प्रकार की खबरे आती रही है | जैसे कलकता हाइ कोर्ट की महिला जज का तबादला और जस्टिस कुरेशी को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करना फिर उन्हे त्रिपुरा जैसे राज्य में नियुक्त करना !! अथवा पटना हाइ कोर्ट के जज द्वरा न्यायपलिका के अंतर्गत व्यापात "” अनुचित व्यव्स्था "” की सार्वजनिक शिकायत पर उन्हे तबादला भुगतना पड़ा – साथ ही मुख्य न्यायाधीश का भी तबादला हो गया !!! इलाहाबाद हाइ कोर्ट के भी एक जज साहब ने भी न्याय पालिका में "”भाई - भतीजा वाद "” का आरोप लगाया , उन्होने इसकी शिकायत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से की !! जबकि उन्हे अपनी तकलीफ देश के प्रधान न्यायाधीश को बतानी चाहिए !क्या इससे यह नहीं सामने आता हैं की सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट में भी '’’’सब ठीक ठाक शायद नहीं है ? जैसा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के फैसलो के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के तीन जज धरणे पर बैठे थे !!

जब चुनाव आयोग के उस सदस्य को सरकार प्रताड़ित करे ---क्योंकि उसने अन्य दो सदस्यो के समान नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लोकसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन की आचार संहिता के उल्ल्ङ्घन का दोषी अपने फैसले में बताया था ! छपी हुई खबरों के अनुसार वित्त मंत्रालय ने उनके प्र्शसनिक कार्यकाल की जांच के लिए विजिलेन्स जांच करने की कारवाई शुरू कर दीहै ! उधर सीबीआई के निदेशक {अवकाश प्राप्त}] भी अपनी पेंशन और ग्रेचुटी पाने के लिए दफ्तरो के चक्कर लगा रहे हैं | क्योंकि उन्होने सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के कृपा पात्र के वीरुध जांच कराई थी |
अब इस संदर्भ में जज लोया की संदेह परिस्थितियो में मौत की जांच और गुजरात के आईपीएस अफसर भट्ट की गिरफ्तारी भी निसपक्ष न्याय का उदाहरण तो नहीं कहा जा सकता !

दूसरी ओर देखिये सीबीआई अदालत दिल्ली के जज साहेब ने पूर्व वित्त मंत्री चिदम्बरम की जमानत की अर्जी खारिज करते हुए "”उन्हे इमेक्स कांड का किंग पिन "” बताया ! जबकि सीबीआई उनके वीरुध मात्र नौ लाख रुपये की हेरा फेरि की चार्ज शीट उच्च न्यायालय में दाखिल की है | मजे की बात यह है की – यह फैसला उन्होने अपने नौकरी के अंतिम दिन सुनाया --और दूसरे दिन ही उन्हे दिल्ली में भ्रस्ताचर निरोधक अधिकरण का अध्यक्ष बना दिया गया ! इस संदर्भ में भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश को अवकाश प्रापत करने के बाद केरल राज्य का राज्यपाल बन दिया गया ! अब इन सब कारवाइयों से जनता के मन में अदालत के प्रति भरोसा -तो डिगता ही हैं |

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प्रधान न्यायाधीश शरद बोवड़े ने न्यायपालिका और सरकार के मध्य "”मधुर संबंध "” होने की भी बात काही | शायद इधर कुछ समय में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कुछ फैसलो पर विपरीत टिप्पणी की थी | जिसमे आरक्षण कानून में गिरफ्तारी को लेकर मतभेद था सरकार ना तो दलितो को नाराज़ करना चाहती थी और नाही सवर्ण मतदाताओ को आशंतुष्ट करना छाती थी | इसीलिए अदालत के फैसले के बाद संबन्धित कानून को पुनः संशोधित कर पूर्व स्थिति को लाने का प्रयास किया | न्यायलय जनहा नागरिक के मौलिक अधिकारो को महत्ता दे रहा था ---वनही केंद्रीय सरकार चुनावी जमीन पर पकड़ बनाने पर ज़ोर दे रही थी |
अगर सरकार से मधुर संबंध होंगे --तब “”भीमा -कोरे गाव “” के आरोपियों सुधा और अन्य की जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट अभी तक एक खंड पीठ नहीं बना पाया हैं ! अभी तक पाँच जजो ने इन आरोपीय की जमानत याचिका सुनने से पहले ही अपने को अलग कर लिया ! यह बहुत असमंजस की स्थिति है ,की याचिका कर्ता की सुनवाई ही टलती जाये | सिर्फ तारीख पर तारीख पड़ती जाये , फिल्म दामिनी का यह डायलाग इस स्थिति में मौंजू लगता हैं |जबकि इन आरोपियों के पास से किसी प्रकार के हथियार अथवा आपतिजनक साहित्य नहीं बरमद हुआ हैं | सिर्फ तोलस्टोय की “”वार अँड पीस “” को महराष्ट्र की अदालत ने आपतिजनक “”निरूपित किया “” | क्या ऐसे फैसलो से न्यायपालिका की “” निसपक्षता “” रह पाएगी ? अदालत को जनहितकारी मामले में नागरिकों का पक्ष लेना चाहिए अथवा सरकार का --यह तो अदालत को ही सोचना होगा |

सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मौलिक अधिकारो का संवैधानिक संरक्षक हैं | नागरिको की निजता पर जब राज्य का हमला हो रहा हो --तब क्या मौलिक अधिकारो की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट आगे आयेगा ? भले ही उसे राज्य या सरकार के खिलाफ फैसला देना हो !!
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