नागरिक रजिस्टर
की कारवाई
एक
चेहरे में छुपे है ?कितने
चेहरे --
अमित
शाह जी बता दीजिये ?
आज
से बीस साल पहले तक साधारण
व्यक्ति को अपने को "””भारतीय
"”
सिद्ध
करने के लिए वोटर नागरिक
की पहचान का रजिस्टर !
कार्ड
दिखाने से उसकी पहचान सिद्ध
हो जाती थी ,
वह
कनहा का निवासी हैं -यह
भी उसमे लिखा होता था |
उसके
बाद मनमोहन सिंह सरकार ने
"”आधार
कार्ड "”
बनवाया
| फिर
गाव के खेतिहर मजदूरो के लिए
मनरेगा बना |
आज
हालत यह हैं की वोटर कार्ड
अब सिर्फ मतदान के लिए ही बचा
हैं |
सरकारी
योजनाओ के लिए पहले आधार जरूरी
किया गया ,
फिर
सुप्रीम कोर्ट ने इसे शासकीय
योजनाओ के "”लाभार्थियो
"”
के
लिए जरूरी बताया |
तब
मोबाइल का '’सिम
'’ लेने
के लिए सरकार ने आधार जरूरी
किया |
मोदी
सरकार के इस फैसले को भी सुप्रीम
कोर्ट ने खारिज कर दिया |
सवाल
यह है की कोई आदमी कितने प्रमाण
पत्र रखे "”जिससे
वह यह साबित कर सके की वह भारतीय
नागरिक हैं ?
अब
केंद्र सरकार {मनमोहन
सिंह से लेकर मोदी तक }
नागरिकों
की पहचान के लिए "”नागरिक
रजिस्टर "
की
कारवाई कर रही हैं |
भारत
के गृह मंत्री अमित शाह जी ने
आसाम में विदेशियों की पहचान
के लिए की गयी इस "”कवायद
"”
को
अब सारे देश में आजमाना चाहते
हैं |
वजह
सिर्फ उनकी सनक
या संदेह हैं की 60
साल
तक मोटा भाई मोदी और उन्हे
"”राज
करने से "”
बाहर
रखने के लिए ये विदेशी ही
जिम्मेदार है !!!
वास्तव
मे ये विदेशी आज या पिछले साठ
-
पचास
सालो में देश में नहीं घुशे
है ,वरन
मोहम्मद गोरी के बाद यानहा
आए हैं --जी
हाँ ये हैं इस्लाम के बंदे !!!
वैसे
तो गोरी के पहले महमूद गजनवी
सिंध -और
गुजरात में तहलका मचा चुका
था |
गुजरात
के "”बहादुर
राजा भीमदेव "”
का
राज था ,
----उसी
समय उसने द्वारिका के सोमनाथ
और नागेश के शिव मंदिरो को
लूट पाट कर इलाके में काफी
खुरेंजी की थी |
शायद
वह घाव सौराष्ट्र और आसपास
के इलाको में रहने वालो को उसी
प्रकार "”नासूर
::
समान
लगता होगा ----जैसा
की देश विभाजन के समय पंजाब
और सिंध से आए शरणार्थी लोगो
के मन मस्तक में मुसलमानो के
प्रति नफरत का भाव था !!!
जनसंख्या
की गिनती ब्रिटिश भारत में
सबसे पहले 1910
में
हुई इसमें "”प्रजा
"”
के
धरम का उल्लेख भी था |
जातिगत
आधार पर 1930
में
जनगणना हुई थी जिसमे आबादी
के परिवारों के धरम और जाति
का भी उल्लेख था |
इसके
बाद प्रत्येक दस वर्ष के बाद
जनगणना करने का कानून आज भी
जारी हैं |
हालांकि
मर्दुंशुमारी में किन -किन
तथ्यो की जानकारी बाशिंदों
से ली जाएगी यह बदलता रहा हैं
| अब
धर्म तो पूछाजाता है पर जातिनहीं
| जबकि
झगड़ा सबसे ज्यादा इसी को लेकर
हैं |
जनगणना
की शुरुआत :--
ब्रिटिश
साम्राज्य की ही भाति जापान
में भी जनगणना का इतिहास ईसा
पूर्व का हैं |
जापान
में गाव के मुखिया की यह
ज़िम्मेदारी होती है की
वह अपने इलाके यानि ग्राम में
सभी जनम लेने वालो के माता -
पिता
का नाम और तारीख और वर्ष लिखना
होता था !
इसी
प्रकार म्र्त्यु का भी रेकॉर्ड
रखा जाता था |
पश्चिम
में मिश्र के साम्राज्य में
भी फैरो की प्रजा की गिनती
और उनके कबीले की जानकारी भी
रखी जाती थी |
समकालीन
रोमन साम्राज्य में पहली बार
लोगो को "”नागरिक
और गुलाम तथा कामगारों की
गिनती होती थी |
रोम
में नागरिक को सम्मानजनक स्थान
मिलता था |
वह
व्यवस्था "”लोकतान्त्रिक
तो ना थी पर सीनेट के प्रतिनिधि
नामित थे ----परंतु
वे सीजर ,यानि
की सर्वोच्च शासक का चुनाव
करते थे |
अधिकान्स्तः
सीनेट सदस्य सेना में सेवा
कर चुके होते थे |
ईसा
मसीह का जनम इसी रोमन जनगणना
के समय ही हुआ था |
तो
इस प्रकार राज्य की आबादी के
बारे में जानकारी 2000
साल
पूर्व भी रखी जाती थी |
परंतु
भारत की 630
देशी
रियासतो में जनगणना का रिवाज
नहीं था |
हैदराबाद
और मैसूर तथा त्रिवांकुर
-कोचीन
में भी गाँव ही इकाई थे ,
जनहा
ऐसा कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता
था ,
कम
से कम मेरी जानकारी में
नहीं
हैं |
1857 में
जब ब्रिटिश साम्राज्य का
आधिपत्य हुआ तब देश में दोहरी
"””प्रशासन
"”की
व्यवस्था हुई ----
एक
देशी रियासतो में दूसरी ब्रिटिश
इंडिया में |
1910 के
पूर्व मार्ले-मिंटो
कानून के बाद ज़िलो में सैनिक
अधिकारी ही नागरिक प्रहसन
देखते थे |
लखनऊ
- कानपुर
-इलाहाबाद
आदि के जिलाधिकारियों के
"”रोल्ऑफ
आनर "”
से
यह तथ्य प्रामाणित हैं |
उन्होने
ही जनगणना की शुरुआत की – और
ज़िले के इतिहास के गज़ेटियर
बनवाए |
हालांकि
इन गजेटियरों में बहुत कुछ
"”
सुनी
- सुनाई
भी बाते हैं "”
जिनकी
पुष्टि का कोई प्रमाण नहीं
मिलता |
परंतु
भारत में आबादी में लेखा -जोखा
रखने की परंपरा ब्रिटिश हुकूमत
के उपरांत ही मिलती है |
अब
संविधान लागू होने के बाद
नागरिक की परिभाषा में लिखा
गया हैं की "”
15 अगस्त
1947
के
बाद भारत की सीमाओ में बस्ने
वाले सभी भारतीय नागरिक होंगे
"”
| परंतु
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
और उसकी राजनीतिक विंग भारतीय
जनता पार्टी को उत्तर -
पूर्व
में जब सालो की "”
हिन्दू
राष्ट्रियता का पाठ यानहा
की जन जातियो को सीखाने के बाद
भी जब चुनवी सफलता नहीं मिली
----तब
उन्होने बंगला देशी लोगो के
आसाम में बस्ने का "”नारा
बुलंद किया "”
! जिसका
सीधा निशाना वनहा की मुस्लिम
आबादी थी |
फिलहाल
अभी तक सुप्रीम कोर्ट की
निगरानी में चलने वाली राष्ट्रिय
नागरिकता रजिस्टर योजना को
अमली जामा पहनाने की कोशिस
में आसाम में चाय के बागानो
में काम करने के लिए सौ साल से
भी पुराने बिहार और उत्तर
प्रदेश के निवासियों को भी
"”
घुस
पैठिया "”
मान
लिया गया !
जिसमें
मुसलमानो से कई गुना ज्यादा
यानहा के हिन्दू "”
गैर
नागरिक "”
घोषित
हो गए !!!
इससे
मोदी -
शाह
द्वरा संघ के "”
हिन्दुत्व
"”
एजेंडा
को बड़ी चोट पहुंची !!
इस
कवायद में
सिर्फ 1600
सौ
करोड़ लगे और 6
साल
तक चली इस विद्वेष भरे फैसले
में 55000
सरकारी
मुलाजिमों ने सूचीय बनाई !
जिनमे
पूर्व राष्ट्रपति फख़रुदिन
अली अहमद के परिवार को भी
"’विदेशी
"’
घोषित
" कर
दिया !
भारतीय
सेना के अवकाश प्राप्त मुस्लिम
हवलदार को -जो
प्रादेशिक पुलिस में कार्यरत
थे उन्हे भी विदेशी मूल का
बताया !
सैकड़ो
उदाहरण है जनहा माता -पिता
को भारतीय और संतानों को
बंगलादेशी बता दिया -जबकि
उनकी भाषा असामिया थी !
ऐसा
पहली बार नहीं हुआ हैं – पिछली
सदी के आठवे दशक में में भी
असम के "”मूल
नागरिकों "”
ने
भी वनहा बसे बंगाली मूल के
लोगो पर स्थानीय लोगो के रोजगार
के अवसर छिनने का आरोप लगाते
हुए आंदोलन किया था |
जो
काफी हिंसक बी हुआ था ,
इसी
आंदोलन की उपज है असम
गण संग्राम परिषद जिसे अब आसू
भी कहते है यह अब एक राजनीतिक
दल का रूप हैं "
अबकी
बार मोदी सरकार ने स्थानीय
लोगो को यह घुट्टी भी पिलाई
|
महराष्ट्र
में बाला साहब ठाकरे ने भी "
महाराष्ट्र
मराठियो के लिए "”
नारा
देकर बंबई में काम कर रहे दक्षिण
भारतीयो और उत्तर भारतीयो के
संस्थानो पर शिव सैनिको के
हमले हुए |
परंतु
आज जब उनके पुत्र उद्धव ठाकरे
मुख्य मंत्री बनेंगे तब क्या
वे उस नारे को दुहरा सकेंगे
??
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