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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 7, 2022

 

ग्रहस्थाश्रम --विवाह - में संतान- और सहवास में सहमति ?


भारतीय संसक्राति में अध्ययन पूर्ण करने के बाद ,जब युवक आजीविका से लग जाता हैं तब , सभी धर्मो में उसका विवाह ,परिवार की प्राथमिकता होती हैं | आजकल शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप लड़की के अध्ययन पूर्ण होने पर उसका भी विवाह प्राथमिकता होता हैं | आशय यह है की वंश बेली को आगे ले जाने के लिए विवाह से संतान की आशा सभी अभिभावकों को होती है | सदियो से चली आ रही इस परंपरा में अब एक कानूनी पेंच आ सकता हैं | यह तथ्य दिल्ली उच्च न्यायालय में कुछ "””नारी संगठनो "” द्वरा दायर एक याचिका से उपजा हैं | इसमें वर्तमान में भारतीय दंड संहिता के एक प्रविधान को लेकर आपति की गयी हैं |

इस याचिका में मांग की गयी हैं की दंड संहिता की

धारा 376 में बलात्कार की परिभाषा में , संशोधन कर के पत्नी को भी यह अधिकार दिया जाए की पति द्वरा बिना पत्नी की सहमति के सहवास को बलात्कार की श्रेणी में माना जाये ! अब तक यह माना जाता था की पत्नी के अलावा अन्य महिला से उसकी सहमति के बिना किया गया सहवास ही "”बलात्कार "” माना जाता था ,वह भी उस महिला की शिकायत के बाद | क्यूंकी कानुनन दो व्यसक आपसी सहमति से अगर सहवास करते हैं तब यह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है | हाँ यदि पैसा देकर यदि यह संबंध बनाया जाता हैं तब वह वेश्या व्रति के दायरे का अपराध हैं |

अब इन हालत में पति -पत्नी के मध्य भी सहवास को अगर "”पत्नी की सहमति "” को कानूनन मान्यता मिलती हैं , जिसका याचिका कर्ता मांग कर रहे हैं ----तब विवाह और परिवार की अस्मिता ही खतम हो जाएगी | क्यूंकी आज भले ही पति और पत्नी दोनों ही आजीविका कमाते हो , पर पहले घर चलाने के लिए धन का बंदोबस्त का दावित्व पति का होता था | एवं पत्नी संतान सुख और भोजन अथवा घर की व्यसथा की जिम्मेदार होती थी | परंतु स्त्री के हक़ की बात आज इसलिए उठाई जा रही हैं ,चूंकि अब महिलाए भी काम करती है | वे अब आर्थिक रूप से स्वतंत्र है | इसलिए वे अब अन्य छेत्रों में समान अधिकार पाने के बाद ---अब सहवास में भी अपना अधिकार चाहती हैं | वैसे शारीरिक संबंध को "”संभोग "” कहा गया हैं , अर्थात दोनों ही पक्षो द्वरा भोगा जाने वाला समान रूप का सुख | इस में नारी की सहमति स्पश्स्त हैं | परंतु देखा गया हैं की पुरुष अक्सर महलाओ की सहमति को जरूरी नहीं मानते हैं |

महानगरो और राजधानियों में जनहा , कामकाजी दंपतियों की संख्या बहुतायत से हैं वनहा ऐसी स्थिति बनती हैं | जब दोनों के अहम टकराते हैं | तब घर के हर निर्णय में बराबरी की हिस्सेदारी की बात उठती हैं | और यह घर से होती हुई उनके शयन कछ में भी आ जाती हैं | जिसके परिणाम स्वरूप सहवास में सहमति की बात उठती हैं |

पर इसका दूसरा पहलू भी हैं कामकाजी महिलाए अपनी आज़ादी को विवाह के नाम पर "”पुरुष"” के पास गिरवी नहीं रखना चाहती हैं | जिसका कारण हैं की अध्यापन और मेडिकल के छेत्र में कार्यरत महलाए "’अविवाहित "” रहती हैं | उनके माता -पिता इस स्थिति को अपूर्ण मानते हैं और दुखी होते हैं | अक्सर विवाह के विज्ञापनो में 40 वर्ष की महिलाओ के लिए भी "”वर "” खोजने की खबरे मिलती हैं | साफ हैं की इन "”वारिस्ठ कन्याओ "” के माता बनने का अवसर नहीं होता हैं | तब वे क्यू पति चाहती हैं ? उत्तर है वे पति नहीं साथ रहने वाला पुरुष चाहती हैं | अक्सर कैरियर को महत्ता देते हुए उसमे एक मुकाम बनाते -बनाते उनका निजी जीवन खोखला हो जाता हैं | व्यवसाय में मिलने वाला धन और सम्मान उन्हे अपनी निजी जिंदगी में झाँकने ही नहीं देता | फलस्वरूप जीवन के संध्या काल में उनका "”अकेलापन " उन्हे डँसता है |

परंतु इस हक़ीक़त के बाद भी अधिकतर महिलाए या तो "”एकाकी और बिना किसी के दखलंदाज़ी "” के बिताना चाहती हैं | उन्हे विवाह यौन सुख का एक रास्ता और परिवार की इकाई एक बोझ लगती हैं | वे अपने कार्य स्थल पर "बॉय फ्रेंड " से संतुष्ट रहती हैं | जो उन्हे डेट पर घुमाने और डिनर खिलाने या पार्टी मे साथ लेकर जाता हैं | जबकि उसकी पत्नी घर पर होती है ! ऐसे संबंध बसे -बसाये परिवार को बिखेर देते हैं | क्यूंकी यह संबंध सुविधा पर बने होते हैं -जो तात्कालिक सुख आधारीत होते हैं | जिनमे कोई कर्तव्य नहीं होता | जबकि परिवार पति और पत्नी के अधिकार और कर्तव्य से बनता हैं , जिसमे अधिकतर दोनों को ही मन मारकर जिम्मेदारिया निभाना होती हैं |