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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 24, 2019

भोजपुरी और अवधी इलाके में प्रियंका गांधी के होने का तात्पर्य ?------------


भोजपुरी और अवधी इलाके में प्रियंका गांधी के होने का तात्पर्य ?----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल द्वरा लोकसभा चुनावो के पूर्व उत्तर प्रदेश में संगठन की जो जव्य विमूढ कर दिया है | लखनऊ के पूर्वी इलाके में जनहा भोजपुरी और अवधी बोली का आधिपत्य है उस इलाके में आज भी इल्लाहबाद के आनंद भवन की विरासत और गांधी बाबा का नाम बरकरार हैं | अभी तक इस पहचान के वास्तविक प्रतीक का अभाव इन छेत्रों से काँग्रेस को पहचानने में असमर्थ था | परंतु जवाहर और इन्दिरा गांधी के खानदान की प्रियंका गांधी ने उस प्रतीक को पुनः उजागर कर दिया है |विगत चुनावो में काँग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से बंजर साबित हुआ हैं | अब इसी धरती की माटी मे प्रियंका जी को योगी के दावो और वाराणसी में मोदी जी के चरित्र हत्या के बयानो के बीच पार्टी के लिए सफलता की फसल काटनी है | समय कम है चुनौती बड़ी है | पर इन्दिरा की पोती और राजीव की पुत्री ऐसी विरासत में जन्मी है --- जंहा माता की मौत का मातम मनाने के लिए भी समय नहीं रहता ----और प्रधान मंत्री पद की शपथ लेनी पड़ती है |


सोश्ल मीडिया पर संघ समर्थित अंध भक्तो ने अभी से उनकी नियुक्ति की घोष्णा के समय और उनके द्वरा गांधी नाम के प्रयोग पर "” हाय - तोबा मचाना शुरू कर दिया है "” | यंहा तक की खबरिया चैनलो ने तथाकथित राजनीतिक दलो और एक्सपर्टों पर इस मुद्दे पर "”बहस "” करनी शुरू कर दी है | ऐसा क्यो ? अन्य दलो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो आँय राजनीतिक दलो में भी पदाधिकारियों को नियुक्ति और बदलाव होते ही रहते है , तब इस तेज़ी से प्रतिकृया नहीं होती है | फिर प्रियंका के मामले में ऐसा क्यों ?
क्या इसका कारण यह है की नेहरू - गांधी परिवार की इस पीड़ी की वे ही एकमात्र सदस्य हैं ---जो सक्रिय राजनीति से दूर रही ? अथवा उनके व्यक्तित्व का करिश्माई होना है ? 1920 से जो परिवार देश की आज़ादी की लड़ाई में सतत लगा रहा ---जिसके परिवार ने काँग्रेस पार्टी को पाँच अध्यक्ष दिये --तीन प्रधान मंत्री दिये -----जिनमें से दो की हत्या आतंकवादियो द्वारा कर दी गयी , ऐसे परिवार की विरासत तो प्रकाशमान होगी ही | दूसरी ओर नब्बे वर्ष के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले का कोई एक भी नाम नहीं है | उधार में लिए सावरकर का कोई संबंध डॉ हेड्गेवार की इस संस्था से नहीं था ----सिवाय इसके की वे भी एक मराठी थे !
नेहरू -गांधी परिवार के दो सदस्य मेनका गांधी और वरुण गांधी आज बीजेपी के सांसद है | खबरिया चैनल की बहस में बीजेपी के एक प्रवक्ता को इस बात पर एतराज़ था की प्रियंका और राहुल गांधी सरनेम का उपयोग किस आधार पर करते है ? उनके अनुसार वे गांधी नाम का उपयोग कर देश को धोखा दे रहे हैं ! इन्दिरा जी ने फिरोज गांधी से विवाह किया , आम तौर पर पति का सरनेम पत्नी को स्व्व्मेव मिल जाता हैं | परंतु उन्होने दस्तावेज़ो में अपना पूरा नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू गांधी ही लिखा { रायबरेली के चुनाव नामांकन में } | उनके पुत्र राजीव जी को यह कूलनाम मिला | प्रियंका गांधी ने राबेर्ट वाड्रा ने शादी की | तब उनका नाम भी प्रियंका गांधी वाड्रा हुआ | अब यह तो उस व्यक्ति की इच्छा है की वह किस नाम का उपयोग अपनी पहचान के लिए करता है | इस पर बीजेपी या दूसरे दल क्यो इतनी हाय तोबा मचा रहे है ??

अब प्रियंका को पार्टी द्वरा दिये गए चुनौती पूर्ण लक्ष्य की बात करते है ---- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पूर्व दिशा में भोजपुरी और अवधी बोली का इलाका है | इस इलाके में सवर्ण मतदाताओ का बाहुल्य तो नहीं है - परंतु वे चुनाव की गणित में निर्णायक ज़रूर है | अभी तक राम मंदिर के मुद्दे को लेकर इस छेत्र में बीजेपी का वर्चस्व था | यादव और कुर्मी वोट समाजवादी को और दलित मतदाता बहुजन समाज को जाते थे | परंतु प्रियंका के आने के बाद इस समीकरण में भरी बदलाव की उम्मीद की जा रही है | यह बदलाव भावनात्मक स्तर पर होने की संभावना हैं | जैसे मंदिर के नाम पर बीजेपी और संघ मिल कर इस इलाके के सवर्ण मतदाताओ की आस्था को दूहते थे ----शायद वह इस बार संभव ना हो पाये | उसका एक कारण तो मंदिर मुद्दा "” काठ की हांडी "” साबित हुआ हैं | जिसे बीजेपी ने विगत कई चुनावो में भांति - भांति से भुनाया है | परंतु जैसी आशंका थी की -योगी जी की सरकार '’अर्ध कुम्भ '’ को कुम्भ प्रचारित कर लोगो को भरमा रही है , वह तकनीक चुनवो में भी सफल होगी | जिन नागा साधुओ और भगवा धारियो की बदौलत संघ परिवार "” आस्था की क्रांति "” करने का ऐलान कर रहा था | वह सब कुछ खतम हो गया | उसके दो कारण थे पहला था मामले का अदालत में होना --- दूसरा अदालत से चुनाव पूर्व किसी भी प्रकार के फैसले की उम्मीद नहीं होना |
ऐसे में मोदी - शाह की जोड़ी से उकताए लोगो के सामने इन्दिरा गांधी की छवि वाली प्रियंका एक बार तो चालीस वर्ष के ऊपर की आयु के लोगो को बंगला देश की याद दिला देगी | वह नसबंदी की पीड़ा की भी याद दिला सकती है | परंतु बदले माहौल में लोगो को परिवार नियोजन का महत्व समझ में आ गया है | जबकि बीजेपी के भगवा धारी नेता लोगो से अधिक से अधिक संतान उत्पन्न करने की अपील करते है !! नौजवान मतदाता जिसने इन्दिरा जी को पड़ा है या उनके बारे सुना है – और उन्हे फोटो में देखा हैं ---- वह जब प्रियंका और उनकी दादी की शकल में समांतए देखेगा तो प्रभावित तो होगा |
वैसे बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भी महिला वोटो का दावा कर सकती है | परंतु उनके फैशन - और धन प्रेम तथा क्रोध के किस्से कहानी आम है | छण में तोला छण में माशा हो जाना और तुनुक मिजाजी में फैसले बदल देना सार्वजनिक जीवन में उजागर हो चुका हैं | मायावती का रोश्पुर्ण चेहरे की तुलना में मुस्कान भरी शकल अयोध्या से लेकर गोरखपुर और वाराणसी से इलाहाबाद तथा सीतापुर तक अवश्य ही एक झलक के लिए उमड़ेगी | इन इलाको में बीजेपी की प्रादेशिक नेत्रत्व और राष्ट्रीय नेत्रत्व हैं | गोरखपुर तो योगी आदित्यनाथ का इलाका है | इस इलाके में महिलाओ में लाज और शर्म को आम तौर पर देखा जाता हैं | यंहा की महिलाए किसी भी ऐसे शब्द को सुन कर या द्रशय को देख कर मुंह पर हाथ लगा लेती है , और अभद्र सीन को देख कर आँख की ओट कर लेती है | यह इलाकाई संवेदना – पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट- गुजर और यादव बाहुल्य इलाके में नहीं मिलती | उसका कारण है की इस छेत्र की महिलाए भी खेतो में खलिहानों में मर्द के कंधे से कंधा मिला कर काम करती है | इसी कारण उनमें पुरुष जन्य कठोरता आ जाती है | जबकि पूरबी उत्तर प्रदेश में सवर्णों की महिलाए घर से ही काम काज करती हैं | वे अन्य छेत्रों की महिलाओ के मुक़ाबले कोमल होती है | उनमे गहरी संवेदना को समझने की शक्ति होती है | ऐसे इलाके में एक मशहूर परिवार की विरासत की सुंदर महिला के प्रति वही भाव होगा जो राजा - रजवाड़ो के इलाके में "” घंडी खंभा "” को देख कर होती है ! जंहा कुछ पाने के लिए नहीं वरन एक "”आभा" को देखने और आतम सात करने की होती है | जिसके सामने सर झुक जाता हैं | लाव - लश्कर के बिना सूती साड़ी में दिखती प्रियंका के मुक़ाबले तड़क - भड़क के सलवार सुइट में मायावती की छवि ----- का पराजित होना निश्चित हैं , ऐसा मेरा अनुभव कहता हैं |

रायबेरेली और अमेठी में माता सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के प्रचार का प्रबंधन करने को जिन लोगो ने समीप से देखा है , वे उनके मुस्कराते हुए दो टूक उत्तर और संभव सहायता के आश्वासन से परिचित होंगे | पत्रकार मंडली भी उनसे ऐसा कुछ नहीं कहलवा पाती जो ब्रेकिंग न्यूज़ बन सके | इन्दिरा गांधी से लेकर सोनिया तथा अब प्रियंका का राजनीति में पदार्पण सादगी - सौम्यता और सहजता का प्रतिमान है | वे कभी किसी को न तो गाली देती है ना ही क्रोध करती है