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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 17, 2023

 

|सुप्रीम  कोर्ट कालेजियम में पारदर्शिता

 तुम सिफ़ारिश करो –हम नामंज़ूर करेंगे  और  वजह भी  सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को  !

             

                       मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट के जजो की नियुक्ति की प्रक्रिया में  शामिल होना चाहती  है , परंतु उसकी नियत  ना तो ईमानदार हैं और ना ही पारदर्शी  ,जैसा की वह आरोप लगा रही हैं !  इसके उलट  केंद्र मोदी सरकार  खुद ही पारदर्शी  कदम नहीं सुझा रही हैं |  प्रधान न्यायधीश  चंद्रचूड़  को संबोधित पत्र में  विधि मंत्री किरण ऋजुजु ने   लिखा हैं की  कालेजियम द्वरा अनुमोदित नामो की जांच  सरकार करेगी { जैसा की अभी भी करती है } | एवं  सुझाए गये नाम पर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा  के लिए खतरे  के आधार पर  उस नाम को नामंज़ूर किया जाएगा !  एवं  कारण के दस्तावेज़  सिर्फ प्रधान न्यायाधीश  को ही दिखाये जाएँगे , एवं वे ऐसे  कारण और सबूतो  को अपने सहयोगी जजो को ना तो बताएँगे  और ना ही साझा करेंगे !

 

           तो यह है  मोदी सरकार की कालेजियम से   पारदर्शिता  का दावा :-  जब  प्रधान न्यायधीश  कालेजियम के चार सहयोगी जजो  को  “ प्रस्तावित नाम को  सरकार द्वरा नामंज़ूर किए जाने का कारण  ना बता सके तब  उनके सहयोगी  जज  कैसे अपने वारिस्ठ सहयोगी के निर्णय को उचित मान पाएंगे !

 

                     तो यह हैं केंद्र सरकार की मानसिकता ----की हम तय करेंगे की  राष्ट्रभक्त  या देशभक्त  कौन है ? हाई कोर्ट मे जज की नियुक्ति और सुप्रीम कोर्ट में  प्रोन्नति  के जिन भी सज्जन को प्रस्तावित  किया जाता है ---उनकी  देश भक्ति  या राष्ट्र भक्ति  पर सवाल उठाना  राजनीतिक “जुन्टा” के जैसा ही काम हो सकता है | जैसा की पड़ोसी देश में वनहा की चुनी राष्ट्रपति के समान पद पर चुनी गयी नेता  आंग  सांग सु ची  को देसद्रोही  आरोपित किया गया हैं |  यह  आरोप नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल के प्रथम वर्षो में  बहुत चला  , जब  राजनीतिक विरोधियो  को अथवा सत्ताधारी दल से असहमति रखने वाले  विचारको – समाजसेवकों और  पत्रकारो ,लेखको  पर यह लेबल  लगा कर उनके खिलाफ दुसप्रचार  और परेशान किया जाता रहा हैं | परंतु गुजरते समय के साथ   सत्ता के विरोधियो और सरकार से असहमति रखने वालो ने भी  इन कारवाइयों का जवाब  देना सीख लिया | यही कारण है की  सत्तारूद दल हिमांचल  और  दिल्ली नगर निगम म  सत्ता  खो बैठा |

                                          अब सुझाए नामो को देश के लिए खतरा  बताने के पीछे  कारण हैं की सरकार इन नामो  के कानून के ज्ञान और  न्याया  करने की  छंमता को जाचने की  योग्यता सरकार के ढांचे में नहीं हैं | यनहा तक की  सरकार में अटार्नी  जनरल  और सॉलिसीटर  जनरल  आदि की नियुक्तीय भी – उन सज्जनों की सत्ता के शीर्ष  पर बैठे लोगो के आधार  पर होती हैं | ना की किसी  अनुभव  और देश भक्ति पर !  क्यूंकी  सरकार को अपने किए गए  नियुक्तीया  तो “”राष्ट्रभक्त “” की ही होंगी , क्यूंकी उस पर सत्ता की मुहर जो लगी हैं !  जबकि  हाइ कोर्ट में नियुक्ति  दो तरह से होती हैं ---- पहला राज्य की न्यायिक  सेवाओ के सेवारत   जजो  और दूसरा  बार काउंसिल  के सदस्यो के अनुभव  और उनकी  योग्यता  पर नामित किए गए नामो से चयनित किया जाता हैं |  दशको  तक सार्वजनिक जीवन  में रहे ऐसे लोग  “”राष्ट्र की सुरक्षा के लिए कैसे खतरा हो सकते है “” |

             हाँ सरकार की नजरों में  भीमा कोरेगाव  के  आरोपी  इसलिए  “”राष्ट्र की सुरक्षा  के लिए खतरा  बन गए ---क्यूंकी वे आदिवासियो को  उनके अधिकारो  के बारे में बताते हैं | एक महिला सुधा जी सामाजिक कार्यकर्ता हैं | झारखंड के एक 90 वर्षीय पादरी को भी  राष्ट्र के लिए खतरा बता कर  जेल में दाल रखा हैं | उनका कसुर बस इतना हैं की वे  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी  की भाषा  और नारो का विरोध करते हैं |  आज चार साल हो जाने के बाद भी  इन लोगो के वीरुध अदालत में  मुकदमा शुरू नहीं हुआ हैं , जो सरकार की “”पारदर्शिता “” का बुरा उदाहरण हैं |  बाम्बे  विस्फोट के एक आरोपी को 13 साल से जेल में बंद है , उसका भी मुकदमा शुरू नहीं हुआ , एवं उस्म्ने जेल में रहकर  कानून की पढ़ाई  पूरी कर ली ,और बॉम्बे हाइ कोर्ट ने उसे बार काउंसिल की सदस्यता  के लिए अनुमोदित कर दिया हैं |  यह सब  सरकार द्वरा  जांच पूरी करके  अदालत  में मुकदमा  नहीं शुरु करना  कितनी पारदर्शिता है |

 

   पारदर्शिता  की कसौटी :- ऋजुजु द्वारा  यह कहना की सरकार की राष्ट्र की सुरक्षा  के कारण  सिर्फ प्रधान न्यायधीश ही देख सकते है | अब आइये समझते हैं की यह रिपोर्ट किस प्रक्रिया से बनाई जाती हैं | राज्य अथवा केंद्र की  इंटेलिजेन्स  इकाइया  संदेहास्पद  जानो की फाइल  बनती हैं | यह काम इंस्पेक्टर  लेवल के अधिकारी द्वरा की जाती हैं | कोई पुख्ता  कारण सामने आने पर  एसपी स्टार के अफसर इस रिपोर्ट को बनाते हैं | तब यह रिपोर्ट  आई बी  के निदेशक के स्टार पर जाती हैं | अब छानबिन  दो आधारो पर की जाती है , एजेंसी  और सरकार द्वरा  दिये गए नामो  हाल -हवाल   दर्ज़ किया जाता हैं |  फिर यही रिपोर्ट केंद्रीय गृह मन्त्र्लया  या गृह मंत्री  को दी जाती हैं |

                                

                                        जो रिपोर्ट  एक पुलिस इंस्पेक्टर या पुलिस अधीक्षक  के स्तर के अफसर द्वारा बनाई गयी है ----उसको सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम  के सदस्य  को क्यू नहीं बताया जा सकता ? इतना ही नहीं  प्रधान न्यायधीश  द्वरा रिपोर्ट  की सच्चाई को परखने के लिए  भी अवसर नहीं दिया हैं | आखिर  केंद्र हो या राज्य सरकारे  किसी भी विवाद  के लिए न्यायिक जांच क्यू करती हैं ?  यह सवाल  महत्वपूर्ण हैं |

 

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                          क्या पारदर्शिता  और मर्यादा  केवल  सुप्रीम और हाइ कोर्ट के लिए है ? क्या सरकार को पारदर्शिता और मर्यादा  का पालन नहीं करना चाहिए ? दरअसल  सरकार पारदर्शिता  से बचना चाहती है | हाल ही में जोशिमठ में हुए भू स्खलन  पर आईएसआरओ ने एक सैटेलाइट फोटो  सार्वजनिक  रूप से साझा की थी , जिसमे 12 दिन में 5 सेंटीमीटर  भूमि के धसकने की पुष्टि की थी | जिससे उत्तराखंड की सरकार  के झूठे वादे  की पोल खुल गयी थी | दूसरे ही दिन  केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय  ने  आईएसआरओ  को ताकीद  कर दी की वे कोई भी सूचना  सार्वजनिक  मत करे , और नाही मीडिया से बात करे ! यह है मोदी सरकार की पारदर्शिता की देश के लोगो से ही हक़ीक़त छुपाना !

 

                      दूसरा पारदर्शिता हीनता  का उदाहरण है  केंद्र सरकार द्वरा  सुप्रीम कोर्ट को   यह नहीं बताना की देश के बंकों का कितना धन किस क़र्ज़दार  पर कितना हैं , एवं उसने कितना  क़र्ज़ चुकाया और कब – कब ! आज तक  केंद्र सरकार  यह आंकड़े   सुप्रीम कोर्ट को गोपनियता  की शर्त पर एक लिफाफे  में देती हैं | बैंको  का क़र्ज़ के बारे में साधारण  नियम हैं की वह  उन कर्ज़ दारो की सूची सार्वजनिक रूप से अखबारो में   छपवाता है विज्ञापन के रूप में | आम किसान  और छोटे छोटे कामगार लघु उद्योगपति  के नाम  अखबारो में रोज छपते हैं | फिर अदानी के क़र्ज़ और अंबानी {दोनों भइयो} के  क्यू नहीं राष्ट्र को बताए जाते | क्या यह सरकार की मर्यादा और पारदर्शिता पर सवालहै क्या