गाँव के लोगो को खुले में जाने की आदत ?
भले ही पंचायत हो या नगरीय विकास अथवा शिक्षा विभाग हो ,स्कूल भवनों का निर्माण सभी करते हैं , परन्तु कमरे और आँगन बनाने का काम भर ही करते हैं । लड़के या लडकियों के लिए टॉयलेट बनाने की ज़हमत नहीं उठाते । हाँ अगर किसी मास्टर जी ने निर्माण के दौरान भूमिका निभाई तो उनकी बिरादरी के लिए कुछ टेम्परेरी व्यस्था तो हो ही जाती हैं । आप गांवो में जाइये और मुआयना करिए , सच आपके सामने आ जायेगा ।
आखिर ऐसी अनदेखी क्यों ? शायद योजना बनाने वाले इस प्राकृतिक जरूरत को इसलिए भूल जाते हैं क्योंकि शायद गाँव वालो के लिए ''टॉयलेट'' जरूरत की चीज़ नहीं हैं ! शहरी लोगो की सोच की ''गाँव में लोगो को खुले में जाने की आदत हैं ''।
शायद यही सोच ही स्कूल में टॉयलेट न होने की वज़ह हैं । क्योंकि नवोदय स्कूलों के छात्रावास में केन्द्र सरकार टॉयलेट की सही व्यव्स्था करती हैं । फिर प्रदेश सरकार क्यों नहीं एक जनरल आदेश से निश्चित करती हैं की स्कूल या छात्रावास के भवनों में छात्र और छात्राओं के लिए अलग -अलग शौचालय बनाने की बाध्यता होगी ।
फिलहाल प्रदेश में ३०४९५ स्कूल भवनों में लडकियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं हैं । एक रिपोर्ट के अनुसार पांचवी क्लास के बाद लडकियां इस लिए पढाई छोड़ देती हैं क्योंकि उनको स्कूल में उनकी ''ज़रुरत '' के वक़्त कोई सुरक्षित जगह नहीं मिलती हैं । आज शिक्षा के प्रसार के लिए ज़रूरी हैं सुरक्षा -शौचालय - पेय जल , इनके बिना देश की मुख्य धारा में हमारे गांवो की सहभागिता निश्चित नहीं की जा सकती ।
भले ही पंचायत हो या नगरीय विकास अथवा शिक्षा विभाग हो ,स्कूल भवनों का निर्माण सभी करते हैं , परन्तु कमरे और आँगन बनाने का काम भर ही करते हैं । लड़के या लडकियों के लिए टॉयलेट बनाने की ज़हमत नहीं उठाते । हाँ अगर किसी मास्टर जी ने निर्माण के दौरान भूमिका निभाई तो उनकी बिरादरी के लिए कुछ टेम्परेरी व्यस्था तो हो ही जाती हैं । आप गांवो में जाइये और मुआयना करिए , सच आपके सामने आ जायेगा ।
आखिर ऐसी अनदेखी क्यों ? शायद योजना बनाने वाले इस प्राकृतिक जरूरत को इसलिए भूल जाते हैं क्योंकि शायद गाँव वालो के लिए ''टॉयलेट'' जरूरत की चीज़ नहीं हैं ! शहरी लोगो की सोच की ''गाँव में लोगो को खुले में जाने की आदत हैं ''।
शायद यही सोच ही स्कूल में टॉयलेट न होने की वज़ह हैं । क्योंकि नवोदय स्कूलों के छात्रावास में केन्द्र सरकार टॉयलेट की सही व्यव्स्था करती हैं । फिर प्रदेश सरकार क्यों नहीं एक जनरल आदेश से निश्चित करती हैं की स्कूल या छात्रावास के भवनों में छात्र और छात्राओं के लिए अलग -अलग शौचालय बनाने की बाध्यता होगी ।
फिलहाल प्रदेश में ३०४९५ स्कूल भवनों में लडकियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं हैं । एक रिपोर्ट के अनुसार पांचवी क्लास के बाद लडकियां इस लिए पढाई छोड़ देती हैं क्योंकि उनको स्कूल में उनकी ''ज़रुरत '' के वक़्त कोई सुरक्षित जगह नहीं मिलती हैं । आज शिक्षा के प्रसार के लिए ज़रूरी हैं सुरक्षा -शौचालय - पेय जल , इनके बिना देश की मुख्य धारा में हमारे गांवो की सहभागिता निश्चित नहीं की जा सकती ।