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Sep 25, 2016

पितरपक्ष - पुरखो की याद -उनमे भी जिनमे पुनर्जनम नहीं है

पितरपक्ष - पुरखो की याद -उनमे भी जिनमे पुनर्जनम नहीं है

वेदिक वर्ष के कार्तिक माह मे सोलह दिन सभी सनातन धर्मियों के लिए विशेस अवसर होता है जब वे अपनी वंशावली को स्मरण करते है | परंपरा यह है की जिनके जनक //पिता का अवसान हुए एक वर्ष से अधिक हो गाय है -उनका ज्येष्ठ पुत्र अथवा उसमे कठिनाई होने पर कनिष्ठ पुत्र पूर्वजो का तर्पण कर सकता है | पहले कुछ पंडित और समाज के लोग स्त्रियो द्वारा तर्पण किए जाने को घोर अनुचित मानते थे | परंतु अब शिक्षा और समझदारी के साथ लड़को की भांति लड्किया भी अब दाह संस्कार सम्पन्न करती है उसी प्रकार सामूहिक तर्पण के आयोजनो मे लड़कियो और महिलाओ को भो नदी मे जलांजलि देते देखा जा सकता है |

कर्मकांड के अनुसार सभीको पिता -माता , बाबा - दादी , परबाबा -परदादी के साथ ही परनाना -परनानी ,नाना -नानी मामा -मामी तथा ससुर और सास को भी जलांजलि देने का विधान है | इस प्रक्रिया का अर्थ हुआ की हमे अपने इन सभी पूर्वजो के नाम मालूम होने चाहिए | यदि यजमान को नाम विस्मरत हो गया है तब अमुक बोल कर काम चलाया जाता है |


अब मुख्य प्रश्न यह है की वेदिक धर्म मे पुनर्जनम की अवधारणा है इसलिए एवं आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए हम साल मे एक बार उन्हे पूर्णमासी से अमावस्या तक स्मरण करते है | परंतु अन्य धर्मो मे जनहा पुनर्जनम की अवधारणा नहीं है वनहा भी पूर्वजो को याद करने की प्रथा है | इस्लाम मे पूर्वजो को '''बरावफ़ात '' के दिन स्मरण करते है | उस दिन पूर्वजो की कब्र को साफ करके रोशनी करते है | ईसाई लोग भी अपने पूर्वजो की कब्र पर जा कर उन्हे फूल चदाते है | इन दो धर्मो का उल्लेख इसलिए किया चूंकि इनके यहा एक अर्थात वर्तमान जनम की ही अवधारणा है | और "””आखिरात अथवा The Judgement Day की व्यवस्था है ---जिसके अनुसार आत्मा को अनंत काल का स्वर्ग अथवा नरक उसके कर्मो के आधार पर प्राप्त होता है