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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 24, 2016


"अब आपातकाल लागू नहीं होने देंगे””'-बीजेपी नेता कैलाश सोनी !!

"अब आपातकाल लागू नहीं होने देंगे””'-बीजेपी नेता कैलाश सोनी !!

आगामी 26 जून को नयी दिल्ली मे जंतर - मंतर कान्वेंसन सेंटर मे "” लोकतन्त्र सेनानी संघ "” के राष्ट्रिय अध्यक्ष कैलाश सोनी ने भोपाल मे पत्रकारो से बात करते हुए यह दावा किया | इस आयोजन मे आधे दर्जन केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे | सोनी जी ने इस दौरान दो मुख्य बाते कही 1-- बिना किसी संवैधानिक प्रावधान के इन्दिरा गांधी ने आपातकाल लगाया ,,2- उस दौरान जो क्रूरतम अपराध किया गया ,आज उसका कोई अभिलेख नहीं उपलब्ध है | चलिये उनके इस बयान को हक़ीक़त के आधार पर परखते है |
आम लोगो की धारणा है की इन्दिरा जी ने आपातकाल गैर कानूनी रूप से लगाया था ,,जिसका उन्हे कोई अधिकार नहीं था | परंतु यह सत्य नहीं है | संविधान के निर्माताओ ने आपात स्थिति की संभावनाओ का आंकलन करके ही इसका प्रविधान किया था |
सर्वप्रथम सोनी जी को शायद यह ज्ञात नहीं रहा होगा की भारत के संविधान मे अनुछेद 352 से लेकर 360 तक तक आपातकाल के उपबंधो का ही प्राविधान है | इनमे तीन हालत मे केंद्र सरकार देश मे अथवा देश के किसी भाग मे "”आपात"” घोसणा कर सकती है | 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति का समाधान ही इसका निर्णायक तत्व है | वास्तव मे इसे ''असंवैधानिक ''' कहने का अर्थ है की आप भारत के संविधान की मर्यादा का उल्ल्घन होगा |
354 अनुच्छेद मे आर्थिक /वित्तीय आपात का एवं 355 मे बाहरी आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति की स्थिति मे तथा 356 मे राज्य मे संवैधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति मे आपात की घोसणा की जा सकती है | उत्तराखंड मे रावत सरकार द्वारा संवैधानिक तंत्र कायम रखने मे विफल होने के "” तथ्य "” के आधार पर ही उनकी सरकार को बरख़ाष्त किया गया था |

परंतु इन सभी प्राविधानों का असर मात्र छह माह रहेगा और इस दौरान ततसंबंधी प्रस्ताव को संसद द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक है | इस परिप्रेक्ष्य मे यह कहना की "”आपात"” उद्घोसणा को लागू नहीं होने देंगे की हुंकार --- राजनीतिक प्रचार से बहादुरी का प्रदर्शन तो हो सकता है | परंतु हक़ीक़त इसके बिलकुल "”उलट "” होगी |


रही बात की उस समय के क्रूरतम कारनामो का कोई अभिलेख नहीं मिलता ,,तो इसका कारण आपातकाल लगाना नहीं है | वरन उसके अनुपालन करने वाली एजेंसी का दोष है --अर्थात प्रदेशों मे कानून -व्यवसथा की जिम्मेदार वनहा की पुलिस होती है उसकी है | अब पुलिस के पास रेकॉर्ड नहीं है ,, इसका तात्पर्य अधिकारियों का गैर जिम्मेदार रुख हो सकता है |   

Jun 15, 2016

मोदी उवाच -- मंहगाई पर तीन माह मे क़ाबू न हो तो फांसी पर चढा देना -किस कानून से ?

लात मारना या फांसी देना किस धारा मे किया जा सकता है ??

लोकसभा चुनावो को दौरान सार्वजनिक सभाओ मे नरेंद्र मोदी जी ''मंहगाई डायन"” को तीन महीने मे क़ाबू करने का आश्वासन जनता को देते थे | एवं वादा पूरा ना होने की दशा मे फांसी देने का प्रस्ताव देते थे | आज दो साल बाद जून 2016 मे खुदरा मंहगाई दर विगत वर्षो की तुलना मे सर्वाधिक है | हालांकि कुछ "”भक्त गण "” अभी भी इस तथ्य को "”दुष्प्रचार "”ही निरूपित कर रहे है | परंतु वस्तुओ के दामो के बारे मे वे मौन रहते है | तब मोदी जी ने बुलंद आवाज मे कहा था की अगर मंहगाई पर "”मै काबू ना कर सका तो "”आप "” लोग मुझे फांसी पर चढा देना | पर सवाल है कौन और किस जुर्म मे किस धारा के अंतर्गत उनके कहे को पूरा कर सकता है ??
चुनावो मे जिस प्रकार की बतोलेबाजी और झूठे वादे नेताओ द्वारा किए जाते है उनको अमल मे लाने की उनकी ज़िम्मेदारी कौन निश्चित कर सकता है ?? निर्वाचन आयोग ने एक परिपत्र मे राजनीतिक दलो को आगाह किया था की वे "”ऐसे वादे ना करे जिनहे पूरा करना संभव नहीं हो "” परंतु यह दिशा निर्देश भी संविधान के नीति निर्देशक तत्वो की भांति बन गया ---मतलब सरकार चाहे तो करे अथवा नहीं करे |

फिर दुबारा उन्होने वाराणसी मे भी कुछ ऐसी ही पूरी ना हो सक्ने वाली बात कही | जनहा वे उत्तर प्रदेश मे विधान सभा चुनावो का शंख नाद कर रहे थे | “””उन्होने कहा की आप बीजेपी को प्रदेश मे सत्ता मे लाओ ,और अगर वे प्रदेश की "”दशा"” नहीं सुधारे तो मुझे और पार्टी को लात मार कर उतार देना | पुनः वही प्रश्न की उनके कहे को कौन पूरा करेगा और किस धारा और कानून के तहत ?? अब यानहा दो सवाल है ----प्रथम दशा सुधारने का कौन सा पैमाना उनके पास है " ? क्या वह उनका पुराना गुजरात माडल है -जिसकी बहुत बड़ी -बड़ी बाते हुई थी | परंतु आज तक उस "”माडल "” का विवरण देश के सामने कभी नहीं आया | इसलिए ज़रूरी है की पहले देश के सामने प्रधान मंत्री जी अपने सपने की रूप रेखा ब्योरा पेश करे ---फिर जनता को मौका दे की वह किसका चुनाव करती है |

चुनाव सभाओ मे असंभव वादो को करने और बाद मे जब उनके बारे मे सवाल जवाब हो तो उसे "”अपने सहयोगीयो "” से "” जुमलेबाजी "” करार करा देना – देश की जनता के सामने है | इसलिए 2014 के लोकसभा की चुनावी तकनीक 2016 के विधान सभा निर्वचनों मे कितना काम आएगी --यह तो समय ही बताएगा | परंतु इतना तो प्र्मणित है की मोदी जी की जुमलेबाजी का असर दिल्ली विधान सभा के चुनावो मे ""पैदली मात "” खा चुका है | दूसरी पराजय मोदी जी को बिहार मे मिली जंहा उनकी पार्टी को मात्र दहाई मे सीटे मिली है | वनहा भी दिल्ली की भांति सरकार बनाने के लिए ताल ठोंकी थी | परिणाम पराजय के रूप मे मिली |



मोदी जी ने अपनी प्रथम सफलता को चुनावी जीत का पैमाना मान लिया था | जिसको लेकर उन्होने काँग्रेस को लोकसभा मे प्रतिपक्ष का ओहदा तक देने से इंकार किया |वनही दिल्ली मे अरविंद केजरीवाल ने 70 सदस्यीय विधान सभा मे मात्र 03 सीट पाने वाली भारतीय जनता पार्टी को प्रतिपक्ष का ओहदा भी देने का प्रस्ताव दिया |

सब देख रहे है की कौन सीमा लांघ रहा है -सरकार या न्यायपालिका ?

अपनी हदों मे रहे -कौन न्यायपालिका या सरकार ??

एक समाचार पत्र मे संपादकीय प्रष्ठ पर वारिस्थ पत्रकार शंकर शरण ने लिखा है की न्यायपालिका अपनी हदों मे रहे | उनके आलेख मे जज़ो की नियुक्ति के बाबत प्रश्न उठाया गया है | लिखा गया है की जज खुद ही अपनी नियुक्ति कर लेते है ,,सरकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है | कालेजियम सिस्टम के पूर्व जजो की नियुक्ति मे सरकार नियुक्ति की सिफ़ारिश किया करती थी | वह आज भी किया जाता है | तब भी सरकार द्वारा सिफ़ारिश पाये अधिवक्ताओ पर सुप्रीम कोर्ट आपति जताता था ,, और सरकार उनकी आपति का सम्मान करती थी | परंतु वित्त मंत्री अरुण जेटली जो खुद भी वकील रहे है और उनके मन मे जजो के प्रति "”आसक्ति और द्वेष "” की भावना है | इसीलिए वे ऐसा तंत्र बनाना चाहते है जिसमे "”केवल सरकार की सिफ़ारिश "”पाये लोग न्यायिक पीठ मे बैठे | एवं ऐसे लोगो को कोई अवसर नहीं दिया जाये जो उनकी विचारधारा अथवा उनके अनुसरणकर्ता ना हो |

सेवा शर्तो आदि के बारे मे भी उन्होने उल्लेख किया है की वे भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वयं ही निर्धारित किए जाते है | इन आपतियों के उत्तर मे केवल कुछ टाठी रखना ही समीचीन होगा | संसद स्वयं ही अपने सदस्यो के वेतन - भत्ते और सुविधाओ का निर्धारण करती है | स्वयं के बारे मे नियम बनाती है | अभी हाल मे जब सांसदो के वेतन भत्ते बड़ाये गए तब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हवाले से खबर आई थी की उन्होने भी इस प्रयास का पुनरीक्षण करने का सुझाव दिया था | परंतु उस पर संबन्धित लोगो ने शायद ध्यान ही नहीं दिया | उनका कहना था की वेतन व्रधी का कोई पुख्ता आधार होना चाहिए ---बस यू नहीं एक प्रस्ताव लाकर सदस्यो से "”हाँ "”' की जीत करा कर कानून नहीं बनान चाहिए |

न्यायपालिका के सदस्यो और सांसदो द्वारा स्वयम के नियम बनाए जाने मे यह समानता है | अंतर है तो उनकी नियुक्ति को लेकर----- लोकसभा और विधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित होते है | जबकि न्यायपालिका के सदस्य प्रांतीय न्यायिक सेवाओ से तथा अन्य "” बार"” यानि की वकीलो से नियुक्त होते है | सांसदो की पदासीन रहने की अवधि संविधान के अनुच्छेद 83 [2] द्वारा पाँच वर्ष की नियत है | विधानमंडलों की भी अवधि इसी के अनुरूप पाँच वर्ष है |


सर्वोच्च न्यायालय के जजो के वेतन के बारे मे अनुच्छेद 125 मे सपष्ट किया गया है की उनके वेतन भाती संसद दावरा निश्चित किए जाएँगे | पर संविधान ने व्यसथा की थी जब तक नियम नहीं बनते तब तक सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश को 10,000 रुपये प्रतिमाह और अन्य भत्ते तथा सुविधाए प्रपट होंगी | अन्य न्यायाधीशो को 9,000 प्रति माह तथा राज्यो के मुख्य न्यायाधीशो को भी 9,000 प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशो को 8,000रुपये प्रति माह एवं अन्य भत्ते और सुविधाए सुलभ होंगी | बाद मे सातवे संविधान संशोधन द्वारा इन वेतन भटू मे व्रधी की गयी |


प्रथम लोक सभा के सदस्यो को संभवतः पाँच सौ रुपये प्रतिमाह और बैठक होने पर पचास रुपये प्रतिदिन का भत्ता देय था | निशुल्क आवास और सीमित फोन सुविधा के साथ मुफ्त रेल यात्रा की सुविधा भी थी | तत्कालीन संसद सदस्यो के मुक़ाबले उस समय के न्यायाधीशो को बीस गुना वेतन मिलता था आज वह अनुपात कितना रह गया देखा जा सकता है \ इस लिए लेखक महोदय को "”हद मे रहने की सलाह किसे देनी चाहिए वे ही निश्चित करे ?  

Jun 10, 2016

न्यायपालिका --कार्यपालिका का काम ना करे --जेटली

न्यायपालिका -कार्यपालिका का काम ना करे --अरुण जेटली !

वित्त मंत्री जेटली ने एक बयान मे न्यायपालिका को नसीहत दी है की वो कार्यपालिका का काम नहीं करें | उनके इस बयान को पढ कर उनकी विद्वता पर शक होना स्वाभाविक है | खुद सालो तक सुप्रीम कोर्ट मे वकालत करने वाले व्यक्ति से ऐसा ऊटपटाँग बयान की उम्मीद नहीं थी | संविधान मे शासन का अधिकार कार्यपालिका को दिया गया है | न्यायपालिका को सरकार के कार्यो की समीक्षा का अधिकार दिया गया है | अर्थात सरकार के कार्य संविधान और विधि सम्मत है अथवा नहीं इसका निर्णय न्यायपालिका को दिया गया है | अब ऐसे मे क्या जेटली जी कोई भी एका कार्य बता सकते है जो कार्य पालिका के छेत्र मे आता हो और उसे न्यायपालिका ने अंजाम दिया हो ?

वस्तुतः आज तक जेटली जी कभी भी जनता द्वरा निर्वाचित नहीं हुए है | उन्हे जनता के कार्यो की मालूमात भी नहीं है | वे शायद नगर निगम और राज्य सरकार के कामो से भी अपरिचित हो सकते है | वास्तव मे उत्तराखंड विधान सभा के मामले मे जिस प्रकार केंद्र ने "”मनमाने तरीके से "”राष्ट्रपति शासन की उद्घोस्णा की थी और उसके बाद उच्च न्यायालया ने उसको चुनौती दी थी ,,और सदन तथा स्पीकर की सत्ता को बरकरार रखा उस से वे बहुत खिन्न है | जेटली के दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को यथावत रक्खा |
बस वही फांस जेटली के मन मे फसी हुई है | वे भूल जाते है की न्यायपालिका को अधिकार है की वह कार्यपालिका या उसके किसी भी अंग को याचिका के अधिकार के अंतर्गत निर्देश दे सकती है | अधिकार बंदी प्रत्यक्षी कारण अथवा परमादेश तथा प्रतिषेध द्वारा संविधान के अनुछेद 139 के तहत सुप्रीम कोर्ट आदेश दे सकती है जो सरकार या उसके अंग पर अंतिम होगा | अब इन न्यायिक अधिकारो को वे कार्यपालिका के कार्य मानते है अथवा उसके अधिकार छेत्र मे दखल मानते है तो उनकी अक़ल की बलिहारी है |


जिस प्रकार केन्द्रीय मंत्रियो द्वरा न्यायपालिका पर आछेप लगाए जा रहे है वह मोदी सरकार की मानसिकता को इंगित करता है की ----हमे मनमानी करने की छूट क्यो नहीं है ,,हम जनता द्वरा चुने गए है , न्यायपलिका कौन होती है हमारे काम मे मीनमेख निकालने वाली ? हम तो पाँच साल के लिए शासक है | वे प्रजातन्त्र मे रोक एवं संतुलन के सिधान्त को समझ नहीं पा रहे है की उनकी सत्ता अंतिम नहीं है

Jun 8, 2016

मथुरा कांड की जांच सीबीआई से कराने की बीजेपी की टेक

मथुरा कांड की जांच सी बी आई से करने की बीजेपी की टेक !!

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मथुरा के जवाहर बाग मे जय गुरुदेव के चेले राम व्रक्ष यादव द्वारा 2014 से गैर कानूनी क़ब्ज़े को हटाने पहुंची पुलिस पर की गयी गोलाबारी की घटना की न्यायिक जांच के प्रदेश सरकार के निर्णय से भारतीय जनता पार्टी असहमत है | उनकी मांग है की इस घटना की जांच केन्द्रीय जांच एजन्सि
सी बी आई से या वर्तमान जज से कराई जाये | इस घटना मे पुलिस के कप्तान मुकुल द्वेदी और थानेदार संतोष की मौत हो गयी और अनेक पुलिस जन गंभीर रूप से घायल हुए | अतिक्रमांकारियों मे 24 लोगो की मौत हुई |
प्रश्न यह है की जब सरकार ने न्यायिक जांच की घोसणा कर दी तब केन्द्रीय जांच एजेंसी से जांच की मांग के क्या अर्थ है ? क्या न्यायिक जांच सीबीआई से कमतर है ? विगत मे बीजेपी हमेशा से सरकारो से अदालती जांच करने की ही मांग करती थी | उनके अनुसार सीबीआई तो केन्द्रीय सरकार का "”तोता"” है | अब उसी तर्क के आधार पर क्या अब वह तोता स्वतंत्र हो गया है या वह सड़क पर बैठे ज्यतिषियों का तोता बन गाय है जो "”भविष्य "” भी बाँचता है ?
इस घटना को लेकर अखिलेश सरकार पर काफी गंभीर आरोप लगाए गए -----यानहा तक कहा गया की मुख्य मंत्री की चाचा शिवपाल यादव के राजनीतिक संरक्षण के कारण दो वर्षो से इन आसामाजिक तत्वो के वीरुध कोई कारवाई नहीं कर रही थी | जिसके कारण इन उपद्रवियों ने लोगो को मारना पीटना और धन वसूलने का क्र्त्य किया | यह तथ्य भी सामने आ रहा है की ज़िला प्रशासन द्वारा पुलिस को गोली चलाने का आदेश देने मे राजनीतिक दबाव के कारण विलंब किया | जिसके कारण ही पुलिस बल के दो अफसर वीरगति को प्रापत हुए |

चौतरफा निंदा होने के बाद पहले तो अखिलेश यादव ने इसे पुलिस की चूक बताया | उनके हिसाब से पुलिस को घटनास्थल पर पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए था | अब यह नहीं समझ मे आ रहा है की तैयारी थी या नहीं परंतु हमला होने के बाद भी पुलिस द्वरा गोली से उसका उत्तर नहीं देने का क्या कारण था ?? कहा जाता है की लखनऊ मे बैठे अधिकारी अपने आक़ाओ से सलाह -मशविरा कर रहे थे | इसी लिए पुलिस को गोली चलाने की अनुमति तुरंत नहीं मिल पायी | हालांकि जब पुलिस कप्तान मुकुल दिवेदी को उपद्रवी लाठीयों से मार रहे थे तब थानेदार संतोष ने अपने जवानो से कहा की अफसर को मार रहे है गोली चलाओ ,,कहते है इसी समय पेड़ पर बैठे किसी उपद्रवी ने थानेदार के माथे मे गोली मार दी | अब शासन की दुर्बलता दो कारणो से स्पष्ट है पहला की दो वर्षो से 260 एकड़ के बाघ पर कब्जा जमाये लोगो को खदेड़ने मे दो साल क्यो लगे ? कोई तो उनका रहनुमा सरकार मे होगा जिसने कारवाई को रोके रखा ? दूसरा पुलिस को गोली चलाने का आदेश क्यो देरी से दिया गया ? अब इनहि की जांच न्यायिक आयोग को करना होगा

लोकसभा और राज्यो मे एक साथ चुनव करने की पहल

लोक सभा और राज्यो मे एक साथ चुनाव कराने की पहल

लगता है की निर्वाचन आयोग को विगत कुछ वर्षो मे लगातार प्रदेश की विधान सभा के चुनाव कराने से काफी थकावट हो गयी है | क्योंकि हाल ही मे आयोग ने लोक सभा की संसदीय समिति की सिफ़ारिश का हवाला देते हुए सभी - जी हाँ लोक सभा और देश की सभी विधान सभा के चुनाव एक साथ कराने के लिए विधि मंत्रालय को पत्र लिखा है |

भारत के संविधान के अनुचेद्ध79 मे संसद के गठन और 81 मे लोकसभा की संरचना का वर्णन है | जबकि अनुच्छेद 83 [2] [] मे लोक सभा की अवधि पाँच वर्ष नियत है | वनही अनुच्छेद 85 [2] [] मे राष्ट्रपति को लोकसभा को विघटित करने की शक्ति प्रापत है | इसी प्रकार अनुच्छेद 74 मे देश की कार्यपालिका यानि मंत्रिपरिषद के गठन की बात तो कही गयी है परंतु इसका गठन कैसे होगा इस पर प्राविधान स्पष्ट नहीं है | चूंकि हमने ब्रिटेन की प्रजातांत्रिक परम्पराओ को अपनाया है | यद्यपि वनहा राजतंत्र है और भारतीय संविधान ''गणतन्त्र' “' है | जिसके अनुसार वयस्क मताधिकार के आधार पर होने वाले चुनाव मे बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल को सरकार यानि की देश की कार्यपालिका ---अर्थात मंत्री परिषद के गठन का अधिकार मिलेगा | किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलने पर बहुमत वाले गठबंधन को यह अवसर मिलेगा | यह परंपरा है |
बहुमत ही प्रजातन्त्र की आत्मा है , सर्वानुमत की तो कल्पना ही की जा सकती है , परंतु वस्तुतः यह संभव नहीं है | क्योंकि विभिन्न दलो की अवधारनाए - प्राथमिकताए अलग अलग होती है | परंतु राज काज चलाने के लिए कम से कम बहुमत का होना अनिवार्य है | क्योंकि लोक सभा मे या विधान सभा मे सरकार का काम चलाने के लिए बहुमत का होना आवश्यक है | इसी लिए परंपरा है की अगर कोई सरकारी विधेयक सदन मे पास नहीं होता तब सरकार विश्वास खो देती है | सरकार को अपदसथ करने के लिए भी बहुमत जरूरी होता है | यही प्रजातन्त्र की परंपरा है |

अब इन संदर्भों मे निर्वाचन आयोग का सुझाव अथवा संसदीय समिति की अनुषंशा का परीक्षण करे तो पाएंगे की --सदन के विघटित होने की शक्ति को सीमित करती है | देश मे संविधान के अंतर्गत पहले चुनाव 1952 मे हुए थे | इस चुनाव मे लोक सभा और राज्यो की विधान सभा के सदस्यो के निर्वाचन एक साथ हुए | 1957 और 1962 मे तथा 1967 मे एक साथ ही चुनाव हुए | 1967 मे अनेक राज्यो मे काँग्रेस पार्टी मे प्रादेशिक स्तर पर विभाजन हुआ | अलग हुए गुटो ने अपना नाम ''जन काँग्रेस ' रखा | उत्तर प्रदेश मे चरण सिंह बिहार मे महामाया प्रसाद सिंह और उड़ीसा मे विस्वनाथ दास विरोधी दलो की मदद से मुख्य मंत्री बने | परंतु इनकी सरकारे आंतरिक वैचारिक भिन्नता और प्राथमिकता के कारण ज्यादा समय नहीं चल सकी | फलस्वरूप सरकारो ने सदन मे बहुमत खो दिया | परिणामस्वरूप राष्ट्रपति शासन लगाया गया और चुनाव कराये गए |

चूंकि यह सब उत्तर भारत के राज्यो मे हुआ था इसलिए मध्यवधि चुनाव कराये गए | अब इस परिस्थिति मे निर्वाचन आयोग की सिफ़ारिश को पारखे तो पाएंगे की एक साथ सारे देश मे चुनाव संभव ही नहीं | क्योंकि जनमत का अपमान करके बहुमत की सरकारो को हटाया नहीं जा सकता | यद्यपि अयोध्या कांड के उपरांत बीजेपी शासित राज्यो की सरकारो को बर्खास्तगी का दंड बहुमत होते हुए भी भुगतना पड़ा था | परंतु वह दंड उनही की पार्टी के एक मुख्य मंत्री जो वर्तमान मे राजस्थान के राज्यपाल है कल्याण सिंह द्वरा "”असत्य हलफनामा"' देने और परिणामस्वरूप देश मे धार्मिक उन्माद को फैलाने के दोषी थे | कानूनी तौर पर सरकारो ने शांति --व्यवसाथा के दायित्व को भली भांति नहीं निभाया था |


इन संदर्भों से साफ है की सभी राजनीतिक दलो की सहमति के बावजूद भी संवैधानिक स्थिति को तोड़ा - मरोड़ा नहीं जा सकता | और फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट को दाखल देना पड़ेगा जो की मोदी सरकार को काफी अखरेगा |

बहुत आखर रही है संवैधानिक व्यसथा ---मोदी सरकार को

बहुत अख़र रही है संविधान की व्यवस्था --मोदी सरकार को

मोदी सरकार के मंत्रियो को रह - रह कर न्यायपालिका का हस्तछेप शूल जैसा चुभ रहा है | विपक्ष मे रहते हुए हमेशा न्यायपालिका को अंतिम निर्णायक - और अपने आरोपो की अदालती जांच के लिए बयान और धारणा - प्रदर्शन तक किया करते थे ,,आज उसी संवैधानिक निकाय को "””राज"”” करने मे रोड़ा बता रहे है | आखिर क्यो ?

हम देसखे तो पाएंगे की भारतीय जनता पार्टी द्वारा न्यायपालिका और जजो के प्रति विष वामन का अभियान भी उनके चुनाव प्रचार जैसा है | जिसमे वे अपने विरोधी को बकासुर और स्वयं को देवता निरूपित करते रहते है | उत्तराखंड मे रावत सरकार को "”येन - केन प्रकारेंण "” अपदस्थ करने की उनकी योजना जब सार्वजनिक रूप से उजागर हो गयी की बीजेपी ने केंद्र सरकार के अधिकारो का दलीय हित मे इस्तेमाल किया है | इस पूरे मामले मे उनके नेता कैलाश विजयवर्गीय - केंद्रीय राज्य मंत्री महेश शर्मा की संलिप्तता सामने आई | एवं वे अपनी कारवाई का कारण नहीं बता सके | इस मामले मे उत्तराखंड के जस्टिस जोसेप्फ़ पर जिस प्रकार चरित्र हत्या की गयी सोश्ल मीडिया मे ---उसे भी नागरिकों ने ,, राजनीतिक दल द्वरा विष वामन ही स्वीकारा गया | इस पूरे मामले मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की संलिप्तता भी स्पष्ट हो गयी | वैसे बीजेपी द्वारा काँग्रेस मुक्त भारत के अपने नारे को चुनाव के जरिये शायद ही पूरा कर पाये | परंतु लोगो की नजरों मे अरुनाचल मे काँग्रेस की सरकार मे "” विधायकों "” की तोड़ -फोड़ करके अपदस्थ करने के समय भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की रिपोर्ट की वैधानिकता की ओर इंगित किया था | परंतु जिस प्रकार राज्यपाल द्वारा एक स्कूल मे विधायकों को लेकर तथा कथित विधान सभा की बैठक की थी ,,उस पर अदालत ने तल्ख टिप्पणी की थी |

अपनी राजनीतिक "”चालो "” को अदालत द्वारा रोके जाने से बीजेपी के नेत्रत्व को साधारण जनो मे "”” साख"” का संकट दिखने लगा | भक्तो को भी संतुष्ट करने लायक ना तो तर्क मिल रहे थे नाही तथ्य | इसी कारण उन्होने एक बार फिर समाचारो मे आगस्टा और वाड्रा तथा इसी प्रकार के मुद्दे निकाल लिए | जिस से की उत्तराखंड की "”पैदली मात "” से ''समर्थक जन विश्वास ना खो दे |
आखिर अदालती दखल है क्या ?? संविधान के मूल अधिकारो मे अनुछेद 14 से लेकर31 अनुछेद तक वर्णित नागरिकों को प्रदत्त सभी अधिकारो की रक्षा का प्रावधान
अनुछेद 32 मे उल्लिखित है | वह है संवैधानिक उपचार का अधिकार ,, वास्तव मे इसी उपबद्ध द्वरा ही राज्य अथवा -सरकार के विरुद्ध न्यायपालिका की शरण मे व्यक्ति जाता है | अरतहट जब कभी किसी के मूल अधिकारो का उल्लंघन राज्य या सरकार के किसी निकाय दावरा किया जाता है -------तब यह अष्ञ उनके विरुद्ध काम करता है |
अब इस संदर्भ मे केन्द्रीय मंत्री गडकरी और वीरेंद्र सिंह और वित्त मंत्री अरुण जेटली की तकलीफ को समझना होगा | अब अगर उन्हे किसी भी प्रदेश की काँग्रेस सरकार को गिराना होगा तो उन्हे उन विधायकों की सदस्यता की कीमत पर करना होगा | दल बदल कानून के ''बड़े पैरोकार"” के रूप मे और राजनीतिक "”शुचिता "”के अलमबरदार होने के बाद भी वोटो की खरीद -फरोख्त का मामला राज्य सभा चुनावो मे सामने आ गया है | उत्तर प्रदेश - हरियाणा तथा मध्य प्रदेश मे अपनी पार्टी के अतिशेष वोटो से राज्य सभा मे "”अतिरिक्त"” सीट पाने के लिए खुले आम धन और अन्य प्रलोभन का काम चल रहा है | अब सफलता के लिए कुछ भी करेगा --की तर्ज़ पर राज्य सभा मे बहुमत पाना ही उद्देस्य है |

वास्तव मे जिन वादो और भरोसे पर मोदी जी ने वोट मांगा था वह "”अवास्तविक सा था "”| परंतु चुनाव की रौ मे ''सब बोला '' पर अब पूरा करना मुश्किल हो रहा है | एवं सरकार की मनमानी पर अदालत की रोक न्र्त्रत्व को आखर रही है | राजनीतिक दलो से तो वे कुछ भी "”बोल कर या प्रचार कर "” निपट लेने का प्रयास करते है | परंतु यानहा संविधान के रक्षक से कैसे निपटे यह नहीं समझ आ रहा है | हाँ जजो की नियुक्ति मे अंतिम निर्णय के मोदी सरकार के दो प्रयासो को सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य कर दिया | क्योंकि दोनों ही तरक़ीबों मे सरकार जजो की नियुक्ति मे भी मनमानी कर सकती है | इसलिए जस्टिस ठाकुर का यह कहना की अगर कार्य पालिका अपना कार्य ठीक से करे तो न्यायपालिका के पास लोगो नहीं आना पड़ेगा | केन्द्रीय मंत्री गडकरी का यह कहना की "”अगर सरकार काम नहीं करती तो लोग उसे हटा देते है "” --पर वे जान बूझ कर यह कहना भूल गए की यह मौका जनता को पाँच साल बाद मिलता है और वर्तमान सरकार के "'तीन साल बाक़ी है "|  

Jun 4, 2016

जोगी का सपना रमन मुक्त या कांग्रेस्स मुक्त प्रदेश ?

रमन मुक्त या काँग्रेस मुक्त छतीस गढ जोगी का सपना ?
कोटमी ग्राम मे अपने समर्थको की 5 जून को होने वाली सभा का खुला अजेंडा तो प्रदेश को मुख्य मंत्री रमन सिंह के भ्ष्टाचार से मुक्त करना है ---परंतु वास्तविकता कुछ और है | राज्य के निर्माण के उपरांत बने पहले मुख्य मंत्री के रूप मे अजित जोगी ने कलक्टरी के प्रशासनिक करतबो के साथ राजनीतिक कलाबाजिया भी दिखाई थी | परंतु उनके नेत्रत्व मे काँग्रेस पार्टी विधान सभा चुनाव मे पराजित हुई | पराजय का कारण भी उनके और उनके चिरंजीव अमित जोगी द्वारा बड़े पैमाने पर धन उगाही के आरोप थे | उनके काल मे केबल इंडस्ट्री पर तमिलनाडु की तर्ज़ पर आकाश नेट वर्क का प्रदेश मे जाल बनाया गया | जो लोग अपने इलाको मे केबल चला रहे थे उन्हे इस "”धंधे "”से जाने को कहा गया -----अब उन लोगो ने क्यो ऐसा किया ,यह कोई भी अंदाज़ लगा सकता है | उन तीन सालो मे सिर्फ जोगी जी के परिवार का साम्राज्य ही बड़ा | काँग्रेस पार्टी को कोई लाभ नहीं हुआ |

अगर देखा जाये तो इंदौर के कलेक्टर रहते हुए उन्हे स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने राजनीति मे प्रवेश दिलाया| उन्हे राज्य सभा के माध्यम से संसद मे भेजा गया | प्राशासनिक सेवा मे रहते हुए उन्हे अफसरशाही के गुर तो आते ही थे | परंतु सांसद बनाने के उपरांत "”'जन प्रतिनिधि "” का प्रोटोकाल समझने के कारण उनसे वारिस्ठ अफसर भी उन्हे जब "”सर "” कहते थे तो शायद उनके अहम को बहुत शांति मिलती थी | क्योंकि अफसर के रूप मे उन्हे "”बहुत सफल"” अफसर का खिताब उनके सहयोगी देते थे | उस दौरान उन्होने "””मनचाही"” पोस्टिंग ही प्राप्त की ! इस से उनकी सफलता का राज़ समझा जा सकता है |

जब मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ और छतीस गढ का उदय हुआ तब उस छेत्र मे कांग्रेस विधायकों का बहुमत होने के कारण कांग्रेस सरकार का बनना तय था ---मुश्किल थी तो मुख्य मंत्री के पद को लेकर थी | उस इलाके मे आज़ादी के पहले से विद्या चरण और श्यामा चरण शुक्ल का प्रभाव था | अविभाजित मध्य प्रदेश के पहले मुख्य मंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल की विरासत को उक्त दोन भाइयो ने पाला पोसा था | स्वाभाविक रूप से आम आदमी के मन मे यह अंदाज़ था की उक्त दोनों भाइयो मे ही कोई नए राज्य की कमान सम्हालेंगे | परंतु कांग्रेस की अंदरूनी कीचेन कैबिनेट मे कुछ और ही पक रहा था | मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने ही विद्या चरण के रायपुर के फार्म हाउस पर विधायकों को राज़ी किया की "”हाइ कमान "”” की मंशा है की आदिवासी को यह पद दिया जाये --और इस परिभाषा मे अजित जोगी फिट बैठते थे | सो वे पहले मुख्य मंत्री पद पर आसीन हो गए | इसके पहले वे कभी भी "”मंत्री पद "” पर नहीं रहे थे | परंतु उनके तीन वर्षो के शासन काल मे उनका शासकीय आतंक भरपूर रहा |

उसका परिणाम हुआ की गठन के समय कांग्रेस् की सदस्य संख्या 62 थी जो अगले विधान सभा मे 34 पर पहुँच गयी | तब से लेकर तीसरे और चौथी विधान सभा मे यह आंकड़ा 38 और 39 के पार नहीं जा पाया | वनहा विधान सभा की कुल सदस्य संख्या 91 है | अगर सूत्रो की माने तो कांग्रेस्स की इस हालत के लिए माननीय जोगी जी के नामांकित उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट नहीं दिया जाना है | यह भी कहा जाता है की तब से जोगी जी अपनी ताक़त "”हाइ कमान "”को दिखाने या जताने के लिए अपने समर्थको को पार्टी उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव मे उतार दिया |


अब जिस प्रकार के बेईमानी के आरोप वे प्रदेश के कांग्रेस नेत्रत्व पर लगा रहे है उनसे ज्यादा तो उनके वीरुध उनकी अफ़सरी के दौरान भी लग चुके है --यह बात और है की उनको उनमे "””क्लीन चिट "” मिल गयी | अब उनके रमन मुक्त प्रदेश के नारे को भारतीय जनता पार्टी के कांग्रेस् मुक्त के नारे से जोड़ा जा रहा है | क्योंकि बीजेपी की कांग्रेस पर दस विधायकों की बदत का कारण पार्टी के लोग "”इनके माथे "” पर ही डालते है | क्योंकि जिस प्रकार केंद्र मे सत्तासीन पार्टी उत्तर प्रदेश मे --मध्य प्रदेश मे और हरयाणा मे राज्य सभा के चुनावो मे अति शेष वोटो की राजनीति के आसरे डालो से क्रस्स वोटिंग कराने की कोशिस हो रही है ,,उसको देखते हुए बीजेपी की तह चाल कांग्रेस के लिए आगामी चुनाव मे भारी पड़ेगी