बहुत
अख़र रही है संविधान की व्यवस्था
--मोदी
सरकार को
मोदी
सरकार के मंत्रियो को रह -
रह कर
न्यायपालिका का हस्तछेप शूल
जैसा चुभ रहा है |
विपक्ष
मे रहते हुए हमेशा न्यायपालिका
को अंतिम निर्णायक -
और
अपने आरोपो की अदालती जांच
के लिए बयान और धारणा -
प्रदर्शन
तक किया करते थे ,,आज
उसी संवैधानिक निकाय को
"””राज"””
करने
मे रोड़ा बता रहे है |
आखिर
क्यो ?
हम
देसखे तो पाएंगे की भारतीय
जनता पार्टी द्वारा न्यायपालिका
और जजो के प्रति विष वामन का
अभियान भी उनके चुनाव प्रचार
जैसा है | जिसमे
वे अपने विरोधी को बकासुर और
स्वयं को देवता निरूपित करते
रहते है | उत्तराखंड
मे रावत सरकार को "”येन
- केन
प्रकारेंण "”
अपदस्थ
करने की उनकी योजना जब सार्वजनिक
रूप से उजागर हो गयी की बीजेपी
ने केंद्र सरकार के अधिकारो
का दलीय हित मे इस्तेमाल किया
है | इस
पूरे मामले मे उनके नेता कैलाश
विजयवर्गीय -
केंद्रीय
राज्य मंत्री महेश शर्मा की
संलिप्तता सामने आई |
एवं
वे अपनी कारवाई का कारण नहीं
बता सके | इस
मामले मे उत्तराखंड के जस्टिस
जोसेप्फ़ पर जिस प्रकार चरित्र
हत्या की गयी सोश्ल मीडिया
मे ---उसे
भी नागरिकों ने ,,
राजनीतिक
दल द्वरा विष वामन ही स्वीकारा
गया | इस
पूरे मामले मे प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी की संलिप्तता
भी स्पष्ट हो गयी |
वैसे
बीजेपी द्वारा काँग्रेस
मुक्त भारत के अपने नारे को
चुनाव के जरिये शायद ही पूरा
कर पाये | परंतु
लोगो की नजरों मे अरुनाचल मे
काँग्रेस की सरकार मे "”
विधायकों
"” की
तोड़ -फोड़
करके अपदस्थ करने के समय भी
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल
की रिपोर्ट की वैधानिकता की
ओर इंगित किया था |
परंतु
जिस प्रकार राज्यपाल द्वारा
एक स्कूल मे विधायकों को लेकर
तथा कथित विधान सभा की बैठक
की थी ,,उस
पर अदालत ने तल्ख टिप्पणी की
थी |
अपनी
राजनीतिक "”चालो
"” को
अदालत द्वारा रोके जाने से
बीजेपी के नेत्रत्व को साधारण
जनो मे "””
साख"”
का
संकट दिखने लगा |
भक्तो
को भी संतुष्ट करने लायक ना
तो तर्क मिल रहे थे नाही तथ्य
| इसी
कारण उन्होने एक बार फिर समाचारो
मे आगस्टा और वाड्रा तथा इसी
प्रकार के मुद्दे निकाल लिए
| जिस
से की उत्तराखंड की "”पैदली
मात "” से
''समर्थक
जन विश्वास ना खो दे |
आखिर
अदालती दखल है क्या ??
संविधान
के मूल अधिकारो मे अनुछेद 14
से
लेकर31 अनुछेद
तक वर्णित नागरिकों को प्रदत्त
सभी अधिकारो की रक्षा का
प्रावधान
अनुछेद
32 मे
उल्लिखित है |
वह है
संवैधानिक उपचार का अधिकार
,, वास्तव
मे इसी उपबद्ध द्वरा ही राज्य
अथवा -सरकार
के विरुद्ध न्यायपालिका की
शरण मे व्यक्ति जाता है |
अरतहट
जब कभी किसी के मूल अधिकारो
का उल्लंघन राज्य या सरकार
के किसी निकाय दावरा किया जाता
है -------तब
यह अष्ञ उनके विरुद्ध काम करता
है |
अब
इस संदर्भ मे केन्द्रीय मंत्री
गडकरी और वीरेंद्र सिंह और
वित्त मंत्री अरुण जेटली की
तकलीफ को समझना होगा |
अब अगर
उन्हे किसी भी प्रदेश की
काँग्रेस सरकार को गिराना
होगा तो उन्हे उन विधायकों
की सदस्यता की कीमत पर करना
होगा | दल
बदल कानून के ''बड़े
पैरोकार"” के
रूप मे और राजनीतिक "”शुचिता
"”के
अलमबरदार होने के बाद भी वोटो
की खरीद -फरोख्त
का मामला राज्य सभा चुनावो
मे सामने आ गया है |
उत्तर
प्रदेश - हरियाणा
तथा मध्य प्रदेश मे अपनी पार्टी
के अतिशेष वोटो से राज्य सभा
मे "”अतिरिक्त"”
सीट
पाने के लिए खुले आम धन और अन्य
प्रलोभन का काम चल रहा है |
अब
सफलता के लिए कुछ भी करेगा
--की
तर्ज़ पर राज्य सभा मे बहुमत
पाना ही उद्देस्य है |
वास्तव
मे जिन वादो और भरोसे पर मोदी
जी ने वोट मांगा था वह "”अवास्तविक
सा था "”| परंतु
चुनाव की रौ मे ''सब
बोला '' पर
अब पूरा करना मुश्किल हो रहा
है | एवं
सरकार की मनमानी पर अदालत की
रोक न्र्त्रत्व को आखर रही
है | राजनीतिक
दलो से तो वे कुछ भी "”बोल
कर या प्रचार कर "”
निपट
लेने का प्रयास करते है |
परंतु
यानहा संविधान के रक्षक से
कैसे निपटे यह नहीं समझ आ रहा
है | हाँ
जजो की नियुक्ति मे अंतिम
निर्णय के मोदी सरकार के दो
प्रयासो को सुप्रीम कोर्ट ने
अमान्य कर दिया |
क्योंकि
दोनों ही तरक़ीबों मे सरकार
जजो की नियुक्ति मे भी मनमानी
कर सकती है | इसलिए
जस्टिस ठाकुर का यह कहना की
अगर कार्य पालिका अपना कार्य
ठीक से करे तो न्यायपालिका
के पास लोगो नहीं आना पड़ेगा
| केन्द्रीय
मंत्री गडकरी का यह कहना की
"”अगर
सरकार काम नहीं करती तो लोग
उसे हटा देते है "”
--पर
वे जान बूझ कर यह कहना भूल गए
की यह मौका जनता को पाँच साल
बाद मिलता है और वर्तमान सरकार
के "'तीन
साल बाक़ी है "|
No comments:
Post a Comment