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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 7, 2012

फर्क होना दामाद --नेहरु और गाँधी परिवार का

            यह शीर्षक  हो सकता हैं की कुछ पाठको को विस्मित करने वाला लगे ---परन्तु नेहरु -गाँधी परिवार के दामादो में एक  तुलना की  कोशिश हैं । नेहरु के दामाद फ़िरोज़ गाँधी संसदीय प्रणाली के एक प्रतिमान थे ।भारत के प्रथम  प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु की पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी  से उनके  विवाह के कारन ही राजीव -संजय और सोनिया तथा राहुल तथा प्रियंका को गाँधी का सरनेम  प्राप्त हुआअत्य हैं ।  । इसलिए कुछ लोगो का यह कहना की नेहरु परिवार ने महात्मा गाँधी के सरनेम का अनाधिकृत  प्रयोग किया --पूरी तरह  असत्य हैं । गुजरात में पटेल - गाँधी आदि कई ऐसे सरनामे हैं जो पारसियों और सनातन धरम मानने वालो मैं पाए जाते हैं ।          
                                    बात हैं की फिरोज  गाँधी एक कांग्रेसी संसद और प्रधान मंत्री के दामाद होने  के बावजूद  भी उस काल में  भी कभी गलत काम को उजागर करने में पीछे नहीं रहे ।मैं यंहा दो उदहारण रकः रहा हूँ --एक था तत्कालीन वितमंत्री  टी टी कृष्णामचारी का जिन पर फ़िरोज़ साहेब ने एक सौदे में एक व्यासायिक घराने को गलत तरीके से फायदा पहुचने का आरोप लगाया था ।कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओ ने नेहरु जी से कहा की वे अपने दामाद को ऐसा करने से रोके , परन्तु नेहरु जी ने ऐसा करने से मना  करते हुए कहा की   आरोपों का   वित्त मंत्री को  सामना करना चहिये । बहस के दौरान वित्त मंत्री निरुतर हो गए परिणामस्वरूप उन्हे अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा ।ऐसा ही एक और उदहारण हैं जब ब्रिटिश  इंडिया कारपोरेसन के सौदे में उन्होंने बंगाल के उद्योगपति हरी दास मुध्दा  पर आइनैतिक व्यापारिक  तरीको के इस्तेमाल का आरोप लगाया था ।इस सौदे के अनुसार कानपूर की लाल इमली मिल तथा अथर्तन वेस्ट मिलो के बेचे जाने की संसद में मांग की । जांच में उनके आरोप सत्य साबित हुए और हरी दास को जेल हुई । इन सभी प्रकरणों में प्रधान मंत्री की और से कोई भी हस्तछेप नहीं किया गया ।अब इन घटनाओ से यह तो स्पस्ट होता हैं की नेहरु के दामाद की निर्भीकता और सच का साथ देने का दम कितना था , इसके लिए आज के भारतीय जनता पार्टी के नेताओ से नेहरु -गाँधी परिवार को सर्टिफिकेट लेने की जरुरत नहीं हैं ।क्योंकि इस तरह का एक भी उदहारण वे प्रस्तुत नहीं कर सकते ।      
 
                                            अब रही बात रोबेर्ट वाड्रा  के व्यापारिक संबंधो की और उनसे संभावित  फायदे की , अरविन्द केजरीवाल नाम के नवोदित नेता ने सस्ती  लोक प्रियता बटोरने के लिए टीवी चैनल को एक लिस्ट दे कर कहा की पञ्च लाख से व्यापार शुरू कर के वे इतनी जल्दी अरबपति बन गए । अभी हाल में एक ठेकेदार के यंहा  आयकर का छापा पड़ा  इन सज्जन ने सन 2006 में छः लाख की पूंजी से काम शुरू किया था , आज वे दस हज़ार करोड़ से ज्यादा मिलकियत के आदमी हैं ।जब कांग्रेस की और से जांच की बात की गयी तो सत्तारुद दल ने इसे व्यापारिक गतिविधि कह कर उनका बचाव किया ।आज देश की सबसे बड़े ओउदोगिक घराने  अम्बानी घराने की प्रगति को देखे तो पिचले 28 सालो में यह ग्रुप बाद कर आज एक लाख करोड़ की सम्पति का स्वामी हैं , अब उनसे भी यह सवाल हो सकता हैं की इतनी प्रगति उन्होने कैसे कर ली ? यह सवाल आज की कई नवोदित  कंपनियों से पूछा  जा सकता हैं की पांच -छ वषों  में उन्होने स्टाक मार्केट मैं आपनी साख कैसे बनायीं ? क्या इन सब मामलो की अदालती जांच की मांग केजरीवाल करेंगे ? शायद नहीं क्योंकि ऐसा करने का मैन डेट उनके पास नहीं होगा ,क्योंकि वे तो सिर्फ कांग्रेस को ही देश की सभी बुराइयों की जड़ मानते हैं ।अब उनके गलत सोच और इतिहास के अज्ञान के लिए क्या किया जाए ।हाँ रोबेर्ट वाड्रा  अपनी और परिवार की प्रतिष्ठा  के लिए  अपनी और से सफाई पेश करे  जिससे नेहरु -गाँधी परिवार की प्रतिष्ठा बरक़रार  रख सके ।क्योंकि सत्तर =आस्सी साल में जो स्तिति इस परिवार को मिली हैं वह दाग -धब्बे लगाने वाले लोगो के प्रयास को निष्फल कर सके ।क्योंकि इस नव स्थापित पार्टी  का न तो कोई कार्यक्रम हैं न ही कोई जन कल्याण की योजना , बस मीडिया की सुर्खियों में बने रहने का जूनून ।जिस  पार्टी का उद्देश्य पोल-खोल हो वह धरना  अनसन और हुडदंग के सिवा और किया कर सकती हैं ।