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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 6, 2015

पंचांग से पर्व एवं त्योहार की तिथि अब हुई बेमानी - साप्ताहिक छुट्टी ही अब अवसर

                                   
                                        पंचांग  से पर्व एवं त्योहार की तिथि  अब हुई बेमानी - साप्ताहिक छुट्टी  ही अब अवसर बना , विदेशो मे बसे भारतीय   अपनी सान्स्क्रतिक  विरासत  को सम्हाल कर तो  रखते है परंतु  काम - काज  के दिन और घंटे उनके पर्व और त्योहार को एक  परंपरा की लकीर को पीटना भर होता है |   अमेरिका और इंग्लंड  तथा  अन्य  यूरोप  के देशो मे बसे  आप्रवासी   उन देशो मे प्रांत -भाषा और धर्म के बंधन को तोड़ कर   एक समुदाय मे  संगठित  हो जाते है | आज से पचास वर्ष पूर्व  कनाडा और  अमेरिका -  न्युजीलैंड  आदि मे वनहा गए  सिख समुदाय ने  गुरुद्वारों की स्थापना की थी ,,जो उनके समय -समय पर मिलने जुलने का स्थान बना ||  चूंकि वे लोग पराधीनता के समय चले गए थे और पारंपरिक रूप से किसानी  करने वाले इन लोगो ने वनहा  मशीन के प्रयोग से  अपने हुनर को स्थानीय लोगो के सामने सिद्ध किया ||   उनकी इस विरासत को आज भी  देखा जा सकता है | हालांकि  बाद मे उन्होने  अन्य हिन्दुओ को भी इन गुरुद्वारों  को सुलभ कराया जनहा वे  दसहरा - दिवाली  को मिलजुल कर मनाते थे ||


                                                                 परंतु  तब भी उन्हे अपने पर्व  और त्योहार  शनिवार और रविवार को ही मनाना पड़ता था | क्योंकि पश्चिमी  सभ्यता  के कामकाजी  माहौल  मे काम करना तो आप्रवासियो को आ गया --परंतु  वे उनके तौर -तरीके नहीं अपना सके ----अभी तक भी ! इसका कारण था उनकी सान्स्क्रतिक
विरासत  जिसको वे अपनी  जनम स्थली से लेकर  गए थे |  अपने संस्कार  --परंपराए --तीज  त्योहार  आदि सभी को वे अपने साथ  सुरक्शित रखे हुए है || पिछले  पचास सालो मे  इन देशो मे भारतीय अध्यात्म एवं योग
का प्रचार और प्रसार भी हुआ || अनेक मंदिरो को भी आज देखा जा सकता है ,, कृष्ण के गणेश के और शिव के मंदिरो  मे जमा होने वाले भारतीय  विभिन्न प्रांतो और जातियो से संबंध रखते है |  इसलिए वे सामूहिक  रूप से
अपने त्योहार को मिल -जुल कर मनाते है |  परंतु यह अवसर उन्हे केवल शनिवार  और रविवार को ही मिलता है |क्योंकि सभी  के कार्यालय उसी दिन बंद रहते है | फलस्वरूप  पंचांग  से  त्योहार को जानकारी  तो हो जाती है ,, परंतु पर्व  का उल्लास और समूहिक रूप से  उसे मनाने  का अवसर  इन भारतीयो को सप्ताह के अंतिम दो दिनो मे ही मिलता है |||

                                        विदेशो मे वहा  के काम करने के   कैलेंडर  मे  चूंकि  वेदिक धर्म के पंचांग से होने वाले पर्व  या त्योहारो को अवकाश   नहीं होता है |  अतः  आप्रवासियो की मजबूरी है की  वे अपनी धरोहर को बनाए रखने के लिए  अवकाश  के दिनो को पर्व मानते है ||  लेकिन अब यह परंपरा  भारत के महानगरो मे भी पनप रही है | चूंकि विदेशी कंपनियो मे या उनके कॉल सेंटर  मे काम करने वाले कर्मियों को  कंपनी के मूल देश के ''दिवस''' के अनुसार काम करना पड़ता है | इन सेंटरो मे काम करने वाले  """दिन को रात,, और रात को दिन """ बनाते रहते है |  हमारे देश मे भी अनेक ऐसे त्योहार है जो छेतरीय  स्तरो पर मनाए जाते है || फलस्वरूप  उन छेत्रों मे भी दूसरे इलाको के त्योहारो  को अवकाश नहीं होता | उदाहरण के लिए केरल के पोंगल और तमिलनाडू के पर्वो पर  उत्तर भारत मे  आ वकाश नहीं होता ||और उत्तर भारत  के त्योहार जैसे दीवाली और होली का अवकाश   दक्षिण भारत मे नहीं होता है |  
                                                                        लेकिन मुंबई और  बंगलोर  चेन्नई  मे बहू राष्ट्रिय कोंपनियों मे काम करने वाले उत्तर भारतीय   अपने पर्वो को छुट्टी  लेकर ही माना पाते है || शायद ऐसा देश की विविधता के कारण है |  परंतु अनेक युवको  को पहली बार झटका लगता है ,, जब उनको पता चलता है की जिस बेसबरी से वे  त्योहार मनाने का प्लान कर रहे है ---उस दिन तो कार्यालय मे अवकाश  ''ही नहीं है """ ! तब वे मायूस हो जाते है |  जरूरत है इस कठिनाई का हल खोजने की |
                                                                                                                     इति