सत्ता का मद कैसे भटकाता हैं मर्यादा से
कभी -कभी सत्ता में बैठे लोग "राज धर्म" को भूल जाते हैं , इसकी दो घटनाये हॉल में प्रकाश में आई हैं । पहली हैं साल भर से रिक्त पड़े सूचना आ युक्त के पद के लिए उम्मीदवार खोजने की और दूसरी घटना हैं भोपाल गैस त्रासदी के अभियुक्तो के लिए सरकारी वकील ने अदालत से मांग की सभी अभियुक्तों को ""प्रत्येक मौत "" के लिए सजा मिले , इसका मतलब हुआ की सैकड़ो लोगो की मौतों के लिए अदालत को सभी के लिए अलग - अलग सजाये दी जाये । मुक़दमा पूरे हादसे के लिए हैं ,वह भी एक , परन्तु सजा की मांग हर एक के लिए अलग -अलग !
सूचना आयुक्त के पद के लिए सरकार के पास एक पैनल में कई नाम भेजे जाते हैं , शासन उनमें से एक व्यक्ति को चुन जाता हैं । पद के लिए पात्र व्यक्ति को जिला जज अथवा शासन में सचिव पद से अवकाश प्राप्त होना चाहिए । अभी तक इस पद के लिए जिन लोगो का भी चयन हुआ वे किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े नहीं थे । अधिकतर सरकारी अधिकारी थे । जिनके किसी भी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता । परन्तु पहली बार सत्ता रूड दल के एक विधायक ने बाकायदा मुख्य सचिव को पत्र लिख कर कहा की ऐ . च . अस पटेल , जो अवकाश प्राप्त कुटुम्ब अदालत , इंदौर में प्रधान न्यायाधीस रहे हैं , उन्हे इस पद पर नियुक्त करे क्योंकि वे मीसाबंदी भी हैं । अब अगर मीसाबंदी होना ऐसे निकायों के पदों पर नियुक्त किये जायेंगे तो शायदऐसे पदों के लिए अभ्यर्थियों की कमी हो जाएगी ।
अब आप ही समझे की क्या सरकार के प्रतिनिधि '""राजधर्म ""का पालन कर रहे हैं क्या ?