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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 30, 2018


आस्था और विश्वास तथा इतिहास – सदैव ही विवादो के मूल मे रहे है ,
धर्म का आधार जहाँ आस्था है ,,वही संगठन के लिए उसके सदस्यो मे विश्वास होना जरूरी है | प्रथम दो गुणो का कोई पैमाना नहीं है ---- होने या ना होने का | परंतु इतिहास---- कुछ ठोस सबूतो और खोजो की तर्क पूर्ण व्याख्या से बनता है |
इन सबूतो को ही किसी नसल या राष्ट्र अथवा देश की धरोहर कहा जाता है |
अब कोई सरकार ही इन धरोहरों की रक्षा और रख रखाव की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सके ----- तो यह उस देश के नागरिकों के लिए शर्म की ही बात होगी !

आज भारत का जो आकार और विस्तार है --वह ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद मे ब्रिटिश सामराज्य की खिची हुई रेखा का ही परिणाम है | सिलसिलेवार घटनाओ को लिपिबद्ध करने का काम राज दरबारो से शुरू हुआ | वस्तुतः विश्व की सभी सभ्यताओ मे जो भी इतिहास लिपिबद्ध है -----वह राज दरबार से सम्राटो --महाराजाओ और राजाओ की विजय और पराजय तथा उनके द्वारा "”बनवाई गयी इमारतों -स्मारकों-- सड्को रूप मे मिलता है | मिश्र के सेती रहे हो या यूनानियो -- असीरिया -बेबीलोनिया और रोम के इतिहास और उस "”धरा "” की पहचान होते है | मिश्र के पिरामिड हो या ओलंपिया का भग्न मंदिर हो या बेबीलोनिया का"” झूलता बागीचा"” यह सभी --- तत्कालीन समय की मानव सभ्यता की महत्वपूर्ण उपलबधिया मानी गयी है | संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्थवी की ऐसी ही "” मूर्त धरोहरों को --संरक्षित छेत्र घोषित किया |

आगरा स्थित -मुगल सम्राट शाहजनहा द्वरा अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद मे बनवाया गया था |लालकिला भी उसी मुग़ल सम्राट की तामीर कराई इमारत भर नहीं है --वरन मुग़ल सल्तनत की राजधानी आगरा से दिल्ली आने की सूचक है | यानहा यह भी बताना जरूरी हो जाता है की ब्रिटिश साम्राज्य भी कलकत्ता से दिल्ली अपनी राजधानी लाये थे |
आज जब हम रामेश्वरम मे सागर के तल मे पत्थरो की रेखा को अवध के राजकुमार रामचन्द्र जी के रामायण वर्णित नल और नील द्वरा बनाए गए लंका पहुचने के पुल के "”अवशेष "” मान कर उनके लिए सर्वोच्च न्यायालय तक जाते है | जबकि रामायण काल का इतिहास मात्र महाकाव्य ही है | इसी प्रकार सिंधुघाटी सभ्यता के अवशेषो की खोज मे मिले मोहञ्जोदडो और हडप्पा की खुदाई के भग्नावशेषों को आरी सभ्यता की निशानी मानते है अथवा , द्वारिका मे समुद्र की गहराइयो और तट पर मिले अवशेषो को महाभारत काल का मानते है , जो एक "”विश्वास है "” जिसे तर्कपूर्ण खोजो द्वरा अभी सिद्ध किया जाना है | रामायण काल और महाभारत के समय को जब हम इन अवशेषो से जोड़ते है ----तब हम भी एक नया इतिहास निर्माण करना चाहते है | अब यह भविष्य के गर्भ मे है की इन अवशेषों का आंकलन विश्व के इतिहासकारो द्वरा कब माना जाता है | किव्न्दंतियों की बात करे तब शायद हम सीधे सतयुग काल से {{वेदिक धर्म के अनुसार नहीं वरन पौराणिक काल से }} अनेकों मंदिर आदि का निर्माण हजारो साल पहले हुआ था | फिर कैसे वे नष्ट हुए यह भी अभी तक निश्चित नहीं है |
परंतु इन धार्मिक आस्थाओ से जुड़े मामलो को इतिहास बता पाना कठिन ही है | भले ही हम अपनी व्याख्या द्वारा उन्हे "”अपने पूर्वजो द्वरा निर्मित कहे "” परंतु उसे साबित करना तो बहुत ही मुश्किल होगा |

इतना सब बताने का आशय यही है धार्मिक आस्था को बिना किसी तथ्य के विश्व के लोगो की मंजूरी पाना आसान ही नहीं बहुत कठिन है | जिस प्रकार किसी भी धार्मिक समुदाय मे उनके महापुरुषों द्वरा अनेक चमत्कारी कारणो से बताए जाने वाले व्रतांत को --- वैज्ञानिक आधार पर स्वीकार कर पाना कठिन है |
परंतु फिर भी उन समुदाय के लोगो द्वरा "”यात्रा अथवा तीर्थ स्थल "” मान कर इनको पुजा जाता है |

परंतु इन स्थलो के रख -रखाव की ज़िम्मेदारी उनही समुदाय के लोग सैकड़ो सालो से करते आए है | अब जब हम भारत के इतिहास की बात करे अथवा आर्य सभ्यता की बात करे तब प्रमाणो की जरूरत होती है | जो आज हमारे पास नहीं है | केवल विश्वास और आस्था ही उनके पीछे है | वेदिक धर्म को छोडकर यहूदी अथवा ईसाई और इस्लाम इन सभी धर्मो का इतिहास मिलता है | मिश्र के सेती अथवा अरबी मे फरौन केशासन काल का वर्णन किताबों मे मिलता है --उस समय की भाषा को पढना भी आज भी एक चुनौती बनी हुई है |
अनेक सभ्यताओ के साथ ऐसा ही है | उनकी इमारतों मे मिले लेख अभी भी बीजगणित की प्रमेय के समान है , जिसमे अनुमान लगाया जाता है | वेदिक कालीन संसक्रत भाषा और वर्तमान उसके स्वरूप मे भी अंतर है | व्याकरण अलग है | ऋचाओ की भाषा और पुराण कालीन स्तुतियों की भाषा अलग है |

अब मुद्दे की बात ;- भारत सरकार ने देश की अनेक महत्वपूर्ण स्मारकों और इमारतों को निजी कंपनियो को देख -रेख के लिए करार किया है ! इसका विरोध अधिकतर लोगो द्वरा मीडिया के साधनो से किया जा रहा है | वनही कुछ लोग ऐसे भी है जिनके अनुसार "” अरे दे दिया तो क्या हुआ कुछ अच्छा ही होगा ,, सरकार ने सोच समझ कर ही यह फैसला किया होगा ! सवाल यह की आम आदमी की ज़िंदगी मे भी परिवार मे कुछ वस्तुए परंपरा से पहचान की होती है , जिनहे पुश्तैनी कहा जाता है | परिवार मे कितना ही कठिन समय क्यो न आए लोग पुरखो की निशानी को "”किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देते --देख -रेख की बात तो अलग है | “” अब अगर सरकार यह कहे की उसके इस फैसले से "””विदेशी पर्यटको को सुविधा सुलभ कराई जाएगी "” तो बात या तर्क हजम नहीं होता है "” | इसके दो आधार है – पहला जब की पुरत्तव मंत्रालय की ज़िम्मेदारी इन सभी स्मारकों की संरक्षा और सुरक्षा की है , और इस कारी हेतु वे प्रवेश शुल्क सभी पर्यटको से वसूल करते है , तब उनको धन की कमी भी है तो वह केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है | सरकार के निर्णय की पैरवी करते हुए एक सज्जन ने लिखा "” सरकार ने ना तो इन स्मारकों को बेचा है और नाही इन्हे उनकी सुपुर्दगी मे दिया है | जिन कंपनियो ने यह ठेका लिया है वे मात्र इन स्थानो पर कुछ सुविधा सुलभ कराएंगे !! तब यह भी प्रश्न है की अगर बात सिर्फ सुविधा सुलभ करने की है तब ----- सरकार को उन सभी बाटो का खुलाषा सार्वजनिक रूप से करना छाइए था | क्योंकि यह मसला आम लोगो की भावनाओ से जुड़ा है | एक अन्य सज्जन का तर्क है की ''' इस समझौते मे ना तो सरकार डालमिया और एमआरजी को कोई धन देगी और ना ही ये संस्थान सरकार को कोई राशि देंगे ,|तब फिर ये कारपोरेट क्यो सरकार से देख -रेख की ज़िम्मेदारी ले रहे है ? आखिर वे व्यापारी है बिना लाभ देखे तो कोई काम वे करेंगे नहीं ? एक जवाब यह भी आया है की इन कंपनियो द्वरा "” कंपनी सोसल रेस्पोन्स्बिलिटी '' फंड से यह खर्च करेंगी ? यह फंड बड़ी - बड़ी कंपनियो को अपने लाभ का एक छोटा भाग जनहित कार्यो मे लगाना होता है --- तब फिर अगर यह सौदा "”एकतरफा है , तब उसमे किसी एक संस्थान को ही क्यो यह ज़िम्मेदारी दी गयी ? देश की बहुत कंपनीय इस राष्ट्र हिट के करी मे भाग ले सकती थी | उत्तम तो यह होता की इस सीएसआर की रकम को पुरातत्व मंत्रालय ले कर खुद ही बताई गयी या सुझाई गयी सुविधाओ का बंदोबस्त करता ! बता रहे है की प्रवेश शुल्क पहले की ही भांति मंत्रालय द्वरा किया जाएगा ! सिर्फ विदेशी पर्यटको को सुविधा सुलभ कराने की ज़िम्मेदारी इन घरानो को दी गयी है ! अभी भी ताज महल हो या लाल किला --स्मारक के बाहर जल और खाने -पीने की सुविधा मिलती है |एक स्थान पर पुरातत्व मंत्रालय ऐसे लोगो से फीस वसूल करता है वह भी सालाना ! अब या तो डालमिया जी को स्मारक के अंदर परिसर मे इन सुविधाओ के स्टाल बनाए की इजाजत मिलेगी या फिर वे अपनी मनचाही जगह पर इन तथाकथित सुविधाओ को विदेशी पर्यटको को सुलभ कार्यएंगे | जबकि नियमो के अनुसार संरक्षित स्मारक के परिसर मे कोई भी धंधा करने की अनुमति नहीं होती , उल्टे यदि किसी को ऐसा करते पाया जाता है तो उससे जुर्माना वसूल किया जाता है |

अब अंत मे यह कहा गया की यथास्थिति को बदलना जरूरी है ! वाह भाई आप संरक्षित स्मारकों के विश्व भर मे लागू नियमो का उल्ल्ङ्घन को "”” जायज करार देने जा रहे है ---जो सभी जगह निषिद्ध है , और आप का तर्क है की सुविधा सुलभ कराएंगे !! वैसे ही जैसे नोटबंदी के समय और इज़ ऑफ डूइंग मे करा है उसी प्रकार !! अभी देश मे चुनाव का माहौल है इसलिए सरकार के विरोध मे नागरिकों को आवाज़े आ रही है | पर चुनाव समाप्त होने के बाद यह मुद्द राजनीतिक दल ज़रूर उठाएंगे | तब सरकार को बताना होगा | वैसे नोटबंदी के आदेश के बाद उस आदेश मे 60 संशोधन किए गए थे ---कनही वैसा ही हाल ना हो !

Apr 29, 2018

bhartiyamin.blogspot.in/: मोदीजी का स्वच्क्ष भारत अभियान अब एक सुझाव...

bhartiyamin.blogspot.in/: मोदीजी का स्वच्क्ष भारत अभियान अब एक सुझाव...: मोदी जी का स्वच्क्ष भारत अभियान अब एक सुझाव नहीं रहा -- ना ही सरकारी योजना , वरन अब इसे पालन कराने के लिए धमकी भी देना शुरू !! ...

मोदी जी का स्वच्क्ष भारत अभियान अब एक सुझाव नहीं रहा --ना ही सरकारी योजना ,वरन अब इसे पालन कराने के लिए धमकी भी देना शुरू !!
पुडुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी तो कम से कम ऐसा ही कर रही है

2- मध्य प्रदेश मे साढे तीन लाख शौचालय बनाए जाने की रिपोर्ट गलत
पायी गयी ! हालांकि जांच चल रही है , निर्माण कार्यो को रद्द भी किया जा रहा है परंतु यंहा राज्यपाल ने सरकार को कोई धमकी नहीं दी !! सिर्फ इसलिए क्या की पुडुचेरी मे काँग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश मे भारतीय जनता पार्टी की !!!
केंद्र शासित पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश पुडुचेरी की उप राज्यपाल किरण बेदी ने वंहा के नागरिकों और सरकार को धमकी दी है की अगर इलाके मे खुले मे शौच करते लोग पाये गए तो वे गरीबी की रेखा के नीचे रहने वालो को मिलने वाला सस्ता चावल "”बंद करवादेंगी " ! अब राज्यपाल केंद्र का एजेंट होता है -----यह कानूनी रूप से सीध है | परंतु वह इस प्रकार की धमकी भी दे सकेगा यह कभी किसी ने नहीं सोचा होगा ! मोदी सरकार के राज मे उप राज्यपाल कुछ "ज्यादा " ही अपने राजनीतिक आक़ाओ की हुकुंबरदारी कर रहे है "! दिल्ली मे जिस प्रकार अरविंद केजरीवाल की सरकार की शिक्षा और स्वास्थ्य की जन हितकारी योजनाओ को उप राज्यपाल चलते रोक देते है की --- इसकी अनुमति सरकार से नहीं प्राप्त की गयी वह काफी हंसी का सबब होता है |
एक सवाल किरण बेदी जी के बयान से यह भी उठता है की क्या गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालो को यह शर्त बताई गयी है की ---अगर वे बाहर शौच करते पाये जाएँगे तो जुर्माना स्वरूप उनका राशन - पानी बंद कर दिया जाएगा ??

अब स्वछता अभियान मे स्थानीय हालत को जाने बिना जिस प्रकार कागजो मे "”” सफल "” दिखाया जा रहा है , उसकी तो अब जांच भी शुरू हो गयी है | परंतु इस गड़बड़ी के दोषियो को कोई दंड भी मिलेगा – इसका भरोसा नहीं है | भारत के ग्रामीण छेत्रों मे पानी की किल्लत का पता सभी को है --- परंतु अगर किसी को नहीं है तो वे है इस योजना के कर्णधार !
उत्तर भारत के पर्वतीय छेत्र हो अथवा मैदानी सभी इलाको मे भू जल का स्तर काफी नीचे चला गया है | उत्तर प्रदेश के बुंदेल खंड मध्य प्रदेश के बघेल और बुंदेल खंड के अलावा मालवा के नगरो मे दो दर्जन ऐसे है जिनमे सप्ताह मे प्रतिदिन पेय जल सुलभ नहीं होता ! प्रदेश के बुंदेल खंड के सांसद प्रह्लाद पटेल जो की भारतीय जनता पार्टी के पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी रहे है ---उन्होने बातचीत मे कहा की मैंने लोकसभा मे इस योजना पर बहस के दौरान कहा था की – हमारे इलाको मे चार से छह महीने पीने का पानी लाने के लिए महिलाए मीलो जाती है ! जब पीने का पनि नहीं मिल रहा तब ऐसे छेत्रों मे शौचालय के लिए पानी कैसे सुलभ होगा ? खैर जन प्रतिनिधि की बात अनसुनी करना सरकारो के लिए कोई नयी बात नहीं है | परंतु यही जमीनी हकीकत है | आज जब उत्तराखंड हो या हिमांचल अथवा उत्तर पूर्व के राज्य हो ---उनके ग्रामीण इलाको मे पेय जल “” आसानी से सुलभ नहीं है “” | चेरापुंजी आज से कुछ सालो पहले तक दुनिया के सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान के रूप मे भूगोल मे बाते जाता है | परंतु अंधाधुंध जंगलो की कटाई से अब वंहा भी पानी का अकाल पड़ने लगा है !

महाराष्ट्र मे कई जगह ऐसी भी है जंहा गरमियो मे लोगो को पानी सुलभ कराने के लिए सरकारो को रेल से पानी भेजना पड़ता है | कुछ समय पहले तक उत्तर प्रदेश के बांदा और अतर्रा मे भी रेल से पानी न्हेजना पड़ा | अब ऐसे स्थानो मे क्या कभी यह अभियान सफल हो पाएगा ?

एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के मंत्रियो के इलाको मे निर्मित शौचालयों को हजारो की तादाद मे "”रद्द करने लायक "” बताया गया है | योजना के अंतर्गत प्रत्येक आवास मे शौचालय बनाने के लिए शासन की ओर से बारह हज़ार रुपये की राशि अनुदान के रूप मे दी जाती है | जमीनी अधिकारी और ठेकेदार मिल कर लोगो के नाम शौचालय निर्माण की मंजूरी करा लेते है | परन्तू ज़मीन पर उनका या तो निर्माण ही नहीं होता अथवा आधा अधूरा होता है | मसलन दरवाजे न होना --या पानी की टंकी न होना और दूषित जल के लिए ज़रूरी "सोकपिट '' ना होना | अब इनहि शिकायतों की जांच चल रही है | सोशल मीडिया मे ऐसे शौचालयों की फोटो की भरमार है जंहा ऐसे आधे अधूरे निर्माण हुए है |

आश्चर्य की बात है की सरकारी विज्ञापनो मे प्रदेश को स्वछ भारत अभियान मे सारे देश मे "”अव्वल बताया जा रहा है "” | इस संदर्भ मे एक घटना याद आ रही है --की भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भोपाल के समीप एक आदिवासी के घर पर भोजन के लिए आने वाले थे | ताबड़तोड़ ढंग से अफसरो ने उस आदिवासी के पड़ोसी के घर मे सारा इंटेजम किया --- परंतु उसके घर मे शौचालय नहीं था तुरन ही गद्दा खोद कर बंदोबस्त किया गया – बैठने के लिए दरी से लेकर खाने के सामान और बर्तन तक सुलभ करा दिये गए | जब वे चले गए तब संवदाताओ को वंहा जाने दिया गया | खोजबीन से पता चला की मेहमान के जाते ही अफसारान शौचालय तक निकाल ले गए !! परंतु अखबारो मे खूब फोटो छपे लंबे लंबे समाचार भी थे | परंतु चैनल द्वारा दूसरे दिन हकीकत बया हो गयी !!

इन संदर्भों मे अगर हम उप राज्यपाल किरण बेदी के बयान या यूं कहे धमकी को देखे तो लगेगा की वास्तविकता से दूर सपने ही बुने जा रहे है |

Apr 28, 2018


कोरिया को
जापान विजेता जनरल मैकार्थर – का वॉटर लू कहे या – फौजी जनरल की विजय आकांछा को नागरिक प्रशासन द्वारा लगाम लगाना कहे ??

दूसरे महायुद्ध की परछाई 68 साल बाद भी विश्व को डराए हुई थी , जब उत्तर कोरिया के तानशाह कॉम जोंग उन ने 38 देशांतर को लांघ कर --- दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन से हाथ मिलाया | इस मुलाक़ात के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और उत्तर कोरिया के उन के बीच ""तू - तू मै- मै "" की धमकियो से आण्विक युद्ध के खतरे का जो माहौल दुनिया मे बना था | वह समाप्त हो गया | विश्व युद्ध मे जापान को " आत्म समर्पण " करने पर मजबूर करनेवाले जनरल डगलस मैकार्थर को , जापान के उपनिवेश कोरिया मे युद्ध के दौरान ही "” अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन द्वरा 11 अप्रैल 1951 को "” बड़े बेआबरू से हटाया गया | वास्तव मे कोरिया की दास्तान जर्मनी की भांति है | दूसरे महा युद्ध के बाद मित्र देशो मे भी खेमेबाजी हो गयी | समाजवादी रूस एक ओर था -और दूसरी ओर ब्रिटेन - फ़्रांस तथा अमेरिका | जिस प्रकार जर्मनी को पूरब और पश्चिम मे बाँट दिया था < उसी प्रकार कोरिया जो जापान का उपनिवेश था , उसे भी उत्तर दक्षिण मे बाँट दिया गया |जर्मनी मे
बर्लिन दीवार – की ही भांति 38 समानान्तर को कोरिया को दो भागो मे बांटने वाली विभाजक रेखा बन दिया गया | भूगोल का ऐसा प्रयोग राजनीति मे बिरले ही देखने को मिलता है |

शुक्रवार 27 अप्रैल 2018 दुनिया के लिए राहत भरा यादगारी दिवस रहेगा | जब दूसरे विश्व युद्ध की विभिषिका का अंतिम अध्याय लिखा गया | परंतु इस विश्वव्यापी घटना के पीछे एक अमेरिकी जनरल डगलस मैकार्थर की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता | 15 अगस्त 1945 को जापान का सरेंडर स्वीकार करने के बाद , उन्होने जापान की राजवंश की || दैविक सत्ता || को समाप्त कर दिया | उन्होने सम्राट हिरोहितों को शाही परकोटे से निकाल कर जापान के दूर - दराज़ इलाको मे घूमने पर मजबूर किया | जापान मे हजारो साल तक यह परंपरा रही थी की सम्राट अपने परकोटे से नहीं निकलते थे और "आम आदमी "” को उनसे मिलने लगभग लेट कर जाना पड़ता था | वे ही थे जिनहोने एक ओर युद्ध के अपराधियो को "” वार ट्राईबुनल "” से सज़ा दिलाई | वनही उन्होने जापानी राजवंश को युद्ध का अपराधी घोषित किए जाने के ---ब्रिटेन -फ्रांस और
अमेरिका की कोशिसों का विरोध किया और आखिर मे सफल रहे |
जब वे जापान का नया संविधान लिखवा रहे थे – उसी दौरान चीन और रूस की शह पर उत्तरी कोरिया की सेनाये --दक्षिणी कोरिया की सीमा {{ 38वी देशांतर }} को पार किया | संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने अमेरिका को सैनिक कारवाई करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सेना बल भेजने का प्रस्ताव दिया | इस मुहिम के लिए सर्व सम्मति से सभी संबन्धित राष्ट्रो ने मैकार्थर के नाम पर मंजूरी दी | तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमन ने जापान स्थित अमेरिकी फौज को लेकर कोरिया की मुहिम को जाने को कहा |
इस अमेरिकी जनरल की ज़िंदगी भी पराजय और -विजय की कहानी है | युद्ध के दौरान फिलीपींस मे कब्जा करने के बाद , मैकार्थर पहले अमेरिकी जनरल थे जिनहे "”फील्ड मार्शल " की पदवी दी गयी | यह जानना जरूरी होगा की अमेरिका और ब्रिटेन मे '' बोस्टन टी पार्टी " विद्रोह के बाद सान्स्क्रतिक रूप से छत्तीस का आंकड़ा बन गया था | अगर फौजी पहचान को ले तो ब्रिटेन के उलट सिपाही के पद चिन्ह अमेरिका मे होते है | चूंकि ब्रिटिश आर्मी मे फील्ड मार्शल का पद होता है ----इसलिए अमेरिकन फौज मे वह पद नहीं होता | वनहा सर्वोच्च फौजी पद //अलकरण जनरल ऑफ द आर्मी होता है | ब्रिटिश फरमेशन मे मेजर जनरल -लेफ्टिनेंट जनरल और फिर जनरल और अंतिम पद फील्ड मार्शल होता है |
पुनः कोरिया पर आते है , उत्तर कोरिया की फौजी कोशिस को विफल करने के लिए डगलस ने प्रारम्भिक कुछ लड़ाइयो मे चीन और उत्तरी कोरिया की संयुक्त सेना को धकेल दिया |परंतु बाद मे चीन की लाल सेना ने गुरिल्ला युद्ध मे अमेरिकी फौज के हजारो जवान मारे गए | काफी नुकसान उठाने के बाद जब मैकार्थर ने "”निर्णायक युद्ध के लिए आण्विक हथियार "” का सुझाव रखा तो राष्ट्रपति ट्रूमन के मंत्रिमंडल और चीफ ऑफ स्टाफ ने इस विकल्प को मैकार्थर की "”विजय आकांछा''' करार देते हुए उन्हे बुलाने का आदेश देने की सलाह दी | परंतु अमेरिकी सेनाधिकारियों और राष्ट्रपति मे यह साहस नहीं हो रहा था ---की वे एक जनप्रिय जनरल को बीच युद्ध से बुला ले | परंतु काँग्रेस के निचले सदन मे एक सदस्य ने मैकार्थर का राष्ट्रपति को भेजा पत्र पढा-जिसमे उनहो ने कहा था की साम्यवाद यूरोप के रास्ते दुनिया मे नहीं आएगा , वरन वह एशिया के कमजोर देशो मे पैर फैलाएगा | उनकी उस सलाह का आधार चीन की फौजी ताकत {{ संख्या मे गुण मे नहीं }} थी | जिस प्रकार चीन ने थोड़े से समय मे करीब तीन लाख की सेना भेज कर दक्षिण के अनेक हिस्सो पर कब्जा किया ----वह पश्चिमी राष्ट्रो के लिए चेतावनी थी | आज 68 साल बाद के हालत देखे तो पाएंगे की "”छोटे से उत्तर कोरिया ने महाशक्ति कहे जाने वाले ---दुनिया के अंतर्राष्ट्रीय दारोगा की भूमिका निभाने वाले अमेरिका को "” हड़का कर रखा "” यह दुनिया ने देखा | और अब चीन के राष्ट्रपति शी जिस प्रकार अपने देश के दूसरे "माओत्से तुंग बन कर अंतिम सांस तक पदासीन रहना चाहते है ---वह विश्व के शक्ति संतुलन को बिगाड़ सकता है | शीत युद्ध की समाप्ती का कारण रूस का विघटन था जिससे दुनिया – एक ध्रुविय हो गयी थी | मिखाइल गोरबाचेव के ग्लास्नोस्त ने रूस के संघीय स्वरूप को खतम कर दिया | आज वनहा भी अघोषित रूप से तानाशाही है | जैसा की चीन मे है | दोनों ही राष्ट्र लोकतन्त्र के लिए खतरा है | अभी रूस द्वरा अमेरिकी चुनावो मे जिस प्रकार चुनावो को प्रभावित किया गया उसकी जांच चल रही है | फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावो मे भी रूस ने यही हरकत की थी | परंतु जैसा की फ्रांस के अमेरिका स्थित राजदूत ने सीएनएन से कहा था की --- रूस की इस चालबाजी को फ्रांस के मतदाता समझते है | और वाकई मे वैसा ही हुआ | रूस समर्थित साम्यवादी रुझान वाली राष्ट्रपति की उम्मीदवार की बुरी तरह पराजय हुई | यह स्थिति बताती है की डगलस मैकार्थर की समझ अपने समय से कितने आगे तक की थी | उन्होने कितना समझा था |


Apr 27, 2018


कल्याण सिंह के राज़ मे अयोध्या मे तोड़ - फोड़ और ,आदित्यनाथ के समय"सौंदर्यीकरण के नाम पर काशी की युगो की परंपरा को धुल-धूसरित '' करने का अभियान ! अब माणिकर्णिका घाट और "डोम राजा " की वैदिक उपस्थिती को सरकारी नियमो मे बांधने की "”सरकार की सनक "
भारत माता के मंदिर और संगीत तथा साहित्य की गलिया तोड़ी जाएंगी -और बनेगी चौड़ी सड़क !!!
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वैदिक कालीन काशी फिर वाराणसी तत्पश्चात बेनारस बाद मे बनारस की पहचान हमेशा से "बाबा विश्वनाथ - गंगा एवं माणिकर्णिका घाट '' रहा है | अंग्रेज़ो के पहले से शिव के त्रिशूल पर स्थित इस नगरी मे साहित्य और संगीत फला फूला था | राजा शिव प्रसाद ''सितारे हिन्द "” भारतेन्दु एवं जयशंकर प्रसाद तथा विदेशियों , को हिन्दी सीखने पर मजबूर करने वाले बाबू देवकी नन्दन खत्री के उपन्यास " चंद्रकांता संतति और भूतनाथ " के रहस्यो भरे पात्रो को लोग भूल नहीं पाते है | इसी नगरी मे देश का पहला '''भारत माता का मंदिर बना था ,जो आज घायल पड़ा है |कारण है सरकारी सनक :- जो वाराणसी को चौड़ी सड्को और साफ -सफाई वाला "” शहर '' बनाने पर तुली है |

सतयुग के राजा हरिश्चंद्र की मणिकर्णिका शमशान घाट के डोम राजा के यंहा की नौकरी से लेकर अनेकों किस्से काशी मे गूँजते है | जब देश के बड़े -बड़े शहरो की सुबह आठ बजे की चाय के प्याले से होती है ,, तब काशी मे "”बाबा"” की शान मे भारत रत्न बिस्मिल्ला खान की शहनाई के स्वर उषा काल से सुनाई पड़ा करते थे | छोटी - छोटी गलियो से गंगा नहाकर आए भक्त विश्वनाथ पर जल अर्पण करते है ---- देश विदेश से आए श्रद्धालु भी इनहि संकरी गलियो से आते रहे है |
पर बस अब यह सब नहीं बचेगा ----क्योंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन छेत्र होने के कारण वे अपने विदेशी मित्रो को लेकर कई बार बनारस की प्राचीन नगरी तक आए परंतु उन्हे ''' अंदर नहीं लाये '”” | कारण शहर की संकरी गलियो मे बिखरी -अस्तव्यस्त दशा , तथा गलियो के दोनों ओर बहती नाली ---- भले ही खाँटी बनारसी को ना अखरे जो अंगौछा बांध के बनियाइन पहने चार - छह मील का चक्कर लगा आने को रोज़मर्रा की बात माने | परंतु प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री को इस बनारशी अंदाज़ से सख्त एतराज़ है -ऐसा लगता है |
क्योंकि वे अपने विदेशी मेहमानो को अपने साथ बाबा के दर्शन नहीं करा सकते ! अधनंगे मर्द -औरत की कतारे उनकी शान मे बट्टा लगा देती है | संदर्यीकरण योजना के अधिकारी कोई सिंह साहब है – जिनहोने कहा की नगर मे लोगो ने ''' अतिक्रमण करके अवैध निर्माण कर लिए है ''' !! बाद मे उन्हे शायद समझ आगया की --यह नगरी तब से है '''''जब अतिक्रमण और नक्शा पास करा कर निर्माण नहीं हुआ करते थे !!””इन साहेबन को नहीं मालूम की अंतर राष्ट्रीय जगत मे मिश्र के पिरामिड या एथेंस और स्पार्टा की तरह ही काशी -बनारस और सरकार के लिये वाराणसी भी एक सतत इतिहास की जीवित धारा है |

मोदी जी और आदित्यनाथ जी गंगा की गंदगी को साफ करने मे असफल रहने पर लगता है अब विद्वेष के कारण इस नगरी के बाशिंदों को कटु अनुभव करा कर ही छोड़ेंगे | इतना ही नहीं सरकार के "”इस तुगलकी फरमान से लाखो लोग प्रभावित होंगे | मिली खबर के अनुसार देश मे भारत माता का पहला मंदिर इसी नगर मे बना था -----वह भी "”सौंदर्यीकरण "” का शिकार हो गया है | देवकी नन्दन खत्री का छापा खाना सिटी पुस्तकालय जिसमे नयी ---पुरातन,, चालीस हज़ार से अधिक पुस्तके अल्मारियों से झाकती हुई पूछ रही है --की अब हमको भी गट्ठर मे बांध कर सरकार के तोशाखाने के अंधेरे मे पटक दिये जाएँगे |हमारे पन्ने अब फिर नहीं पलटे ----कुछ जाएँगे |
यद्यपि बनारसी लोगो ने अपनी "” विशेस संसक्राति और पूरा धरोहर को बचाने के लिये मुहिम तो चला रहे है -------परंतु जिद्दी शासक और नादान अफसरो की अगुवाई जब इतिहास की धारा को मोड़ने पर जुटी है !
जिन धरोहरों को विदेशी भी महत्वपूर्ण मानते है उनको उत्तर प्रदेश सरकार के लोग इस्लामिक कट्टर वादियो की भांति जैसे उन्होने अफगानिस्तान मे बामियान स्थित हजारो साल की गौतम बुद्ध की मूर्ति को धराशायी कर दिया कुछ वैसा ही यंहा हो रहा है | अभी तक शायद 45 छोटे मंदिर और सैकड़ो शिवलिंग -जलहरी के साथ अपने ''''स्थान से हटा दिये गए है | हालांकि सौंदर्यीकरण योजना के करता - धर्ता मीडिया को आश्वासन दे रहे है की ''''' मंदिर की मूर्तियो को वेदिक विधान से ही हटाया जाएगा !! हालांकि अभी तक ऐसा हुआ नहीं है |

लगता है नोटबंदी और जी एस टी की मानिंद "” सुंदर दिखने की और कुछ अलग दिखने की सनक ही इस नए प्रयोग का कारण है | जिस काशी के नरेश की वेश भूषा भी आज के लोगो को '''कुछ अजीब लगे '''' जनहा धोती और बंडी शरीफाना पहनावा हो वनहा पश्चिमी सूट भले ही वह बंद गले का हो लोगो की निगाह मे अजनबीपन भर देता है |

इस योजना मे जिन हजारो निवासियो का घर और व्यापार छीना जा रहा है ---उनको कितना धनराशि मिलेगी ? तथा कान्हा उनका नया ठिकाना होगा ,,इसका अभी तक कोई पुख्ता इंतिज़ाम नहीं है | इन सभी करीब लाख लोगो के सामने सबसे बड़ा संकट आजीविका का है | क्योंकि अभी तक चले आ रहे निज़ाम मे घर और दुकान एक ही जगह होने से कोई दिक्कत नहीं थी | लेकिन अब इन "” विस्थापितों का भविष्य भी नर्मदा परियोजना के हजारो किसानो जैसा ही लग रहा है ---जिनकी ज़मीन को तो बांध मे डूबा दिया गया ----और साथ ही उन के भविष्य को भी डूबा दिया | “”

परंतु राम मंदिर यही बनाएँगे की किलकारी गाहे - बगाहे भरने वाले --- क्यो सोमनाथ को उजड़ने वाले गजनी बन रहे है ? अरे नदी की सफाई मे असफल होने और अरबों रुपये फूँक देने के बाद भी जब कुछ "” हाथ नहीं लगा जिसे दिखा कर वोट लिया जाये --तब काशी का ही जीर्णोद्धार करने पर उतारू हो गए | बिना इसका विचार किए हुए की यंहा का फक्कड़ पना - और सादगी ----संगीत तथा साहित्य के "” अड्डे या चौगड़े "” ऐसे स्थान होते है ---जो बरसो की लोगो की साधने से ''जीवित ''' हो पाते है ---उन्मे ईंट गारे से नहीं वरन एहसास से जान आती है | अब चलते हुए केदारनाथ सिंह की कविता बनारस ही याद आ रही है ----वे भी आकाश से अपनी प्रिय नगरी की आत्मा को '''कंक्रीट मे बदलने के प्रयास पर आशीर्वाद तो कतई नहीं दे रहे होंगे |