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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 31, 2022

 

सरदार पटेल – इन्दिरा गांधी और 31 अक्तूबर का महत्व   

 

                     इस दिवस का देश के इतिहास और उसके वर्तमान नक्शे में महत्वपूर्ण योगदान है | इस दिन “सरदार “ वल्लभ भाई पटेल का जन्म दिन है ----तो वनही यह देश की पहली महिला प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की शहादत का दिन है | 

पटेल को सरदार की उपाधि  राष्ट्र पिता  महात्मा गांधी ने दी थी |

दोनों ही राष्ट्र के गौरव हैं | पटेल ने देश को एक सूत्र में बांधने की कोशिस की -वनही इन्दिरा गांधी ने देश विभाजक ताकतों से टक्कर लेकर खालिस्तानी आतंकवादियो  का मुंहतोड़ जवाब दिया | सिखो के एक वर्ग द्वारा  पाकिस्तान की तर्ज़ पर “खालिस्तान “  निर्माण की मांग करने वाले  भिंडरनवाले ,जो अमरतसर के स्वर्ण मंदिर में  छुपा बैठा था ---उसको समाप्त कर आतंकवाद को खतम किया | परंतु सिख अंगरक्षकों  द्वरा उनकी इसी दिन हत्या कर दी गयी थी | उन्होने प्राण देकर भी देश की अखंडता की रक्षा की , नमन है –इन दोनों विभूतियों को !

 

                                                                                                   देश के आज़ाद होने के बाद देश की 225 देशी रियासतो

 

 और -रजवाड़ो  को भारतीय संघ में  लाकर एक राष्ट्र का स्वरूप देने की कोशिस  ,वैसे तो  नेहरू मंत्रिमंडल का और काँग्रेस पार्टी का फैसला था | परंतु  उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्रालय का प्रभारी होने के कारण सरदार बल्लभ भाई पटेल के नेत्रत्व में इस काम को अंजाम दिया गया | वैसे मणिपुर और त्रिपुरा  जैसी रियासते  आजादी के बाद संघ में विलय हुआ | परंतु इन रियासतो  के विलय के बाद  ,  पहले  मैसूर , जयपुर , ग्वालियर , इंदौर , ट्रावंकोर कोचीन  जैसी बड़ी रियासतों  को संघ में विलय के लिए  शुरुआती समय में इन रियासतों के महाराजाओ  को राज प्रमुख का दर्जा दिया गया , जो की गवर्नर  के

समकछ था | वर्तमान राजस्थान  में जयपुर और उदयपुर की रियासतों में इस पद को साझा किया गया , अर्थात छह माह के लिए एक और उसके बाद दूसरे को यह पद दिया गया | कारण था इन रियासतो  के आपसी संबंधो  में सहजता का अभाव होना |

                                              खैर  ब्रिटिश इंडिया और देसी रियासतो  से बने इस भू भाग  को एकजुट करने में पटेल का महत्वपूर्ण योग दान रहा | इस विलय के लिए उन्हे  तरह -तरह के उपाय अपनाने पड़े | तत्कालीन केंद्रीय सचिव  मेनन के संस्मरणों में इनका  वर्णन किया हैं |

 2-आजादी के बाद :-

                    वर्तमान  राष्ट्र  का स्वरूप  राज्य पुनर्गठन  आयोग के बाद हुआ | तब सरदार पटेल राजनीतिक परिद्र्श्य  से जा चुके थे | यह सब पंडित  नेहरू के समय में हुआ | बंबई  का विभाजन  और  मध्य प्रदेश  का उदय  भी इसी समय हुआ |  पुर्तगाली छेत्रों गोवा -दमन -दियू का विलय  भी नेहरू काल में हुआ | फ्रेंच कालोनी -पांडिचेरी और माहे  भी वर्तमान भारत के अंग बने और  आज के भारत का नक्शा   उसी समय उदय हुआ |

3:-  इन्दिरा गांधी काल  

                                  इन्दिरा गांधी ने भी इस देश की सीमाओ को  फैलाये  जिनकी आतंकवाद के वीरुध  लड़ाई के कारण हत्या हुई , वह राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद ऐसी घटना थी जिसने देश को आक्रोश में भर दिया | कुछ हिंसा भी हुई | अगर महात्मा की हत्या के लिए मराठी ब्रांहनों को जनता का कोप भुगतना पड़ा , तो  देश की प्रथम महिला प्रधान मंत्री की हत्या का “जन आक्रोश “” देश के विभिन्न भागो में सिख धर्मावलंबियो  पर बिता | यह बहुत ही दुखद समय था |

                          इन्दिरा गांधी ने भी देश के नक्शे में  सिक्किम राज्य का विलय किया | जो आजादी के समय भूटान के समान एक स्वतंत्र रियासत  थी |  उनका दूसरा महत्वपूर्ण योगदान बांगला देश का निर्माण कराना था | आजादी के बाद बंगाल के मुस्लिम बाहुलय वाले छेत्र को  पूर्वी पाकिस्तान  के नाम से उदय हुआ | जो इस्लामाबाद की सरकार के एक प्रांत की हैसियत रखता था | परंतु पंजाबी और पठान मुसलमानो द्वरा  बंगाल के मुसलमानो का शोसन किया जाता था |  उनकी भाषा और सान्स्क्रतिक विरासत  को यानहा तक उनकी “नस्ल “ को खतम करने की भी कोशिस की जा रही थी |  ऐसे में वनहा की अवामी लीग  पार्टी के शेख मुजीबुर रहमान ने आज़ादी की आवाज़ उठाई | पाकिस्तान के फौजी शासको ने उनको सपरिवार जेल में डाल दिया | तब मुक्तिवाहिनी  के लड़ाको ने  पाकिस्तान के फौजी शासको  और फौज के खिलाफ हथियार  उठाए | पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान ने भारत पर  बंगला देश के मुक्तिवाहिनी को मदद देने का आरोप लगाया |  उसकी कोशिस में तत्कालीन राष्ट्रपति निकसन  ने दौरे पर गयी प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी को  को धम्की दी – पाकिस्तान पर हमला  होने की दशा में अमेरिका चुप नहीं बैठेगा|  इन्दिरा गांधी जी का अमेरिकी राष्ट्रपति को दिया गया करारा जवाब  तत्कालीन सुरक्षा सलहकार  किसिंगर ने लिखा हैं |  इन्दिरा गांधी ने व्हाइट हौसे की संयुक्त पत्रकार वार्ता को रद्द कर दिया |  उन्होने कहा था की हम भले ही विकासशील  राष्ट्र हो , परंतु हम अपने देश के लोगो की ताकत को समझते हैं | 

                      जनरल माणिक शॉ  के नेत्रत्व  में हुए युद्ध में   13 दिन में ही सारी पाकिस्तानी सेना  के 90 हज़ार  सैनिको मे माय हथियारो के आत्म समर्पण  कर दिया था |

         आज के कुछ “”अति “” बुद्धिमान  विचारक और कालम लेखको के अनुसार  इन्दिरा जी  को आतम समर्पण नहीं स्वीकार करना चाहिए था !  तो फिर क्या विकल्प था ? क्या उन सभी को इसलिए मार दिया जाता की वे मुसलमान थे ? क्या यह हिटलर के यहूदी निर्मूलन जैसा  अत्याचार  नहीं होता ? वे भूल जाते हैं की  90000 लोगो के शव  बंगला देश को तो महामारी  से नाश कर देते वरन हमारे देश के बंगाल – आसाम  आदि भी भयानक महामारी  से त्रस्त होते | शिमला समझौते  के समय ऐसा “”दावा “ किया जाता हैं की  ज़ुल्फिकरअली भुट्टो ने यह कह कर वार्ता को तोड़ने की धम्की दी थी – यदि जीते हुए इलाके नहीं दिये गए तो –भारत युद्ध बंदी अपने पास रखे !   इन विचारवान  लोगो से  पूछना चाहूँगा की युद्धबंदियों  को – वापस नहीं लाने की दशा  में  क्या वे अपने देश में सकुशल  रह सकते थे ?  हालांकि बाद में उनका अंत फौजी जनरल के कारण ही हुआ |

अंत में  आज के दिन 31 अक्तूबर को , सिर्फ सरदार पटेल को याद करने की मोदी सरकार की पहल अच्छी है ---परंतु इन्दिरा गांधी की आतंकवाद से लड़ाई में हुई शहादत  की अनदेखी करना ना केवल  उस व्यक्तित्व का अपमान है जिसे मोदी जी के नेता और पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपायी ने “लोकसभा में  बंगला देश की विजय के बाद  दुर्गा कहा था “

 

 

 

 

 

Oct 21, 2022

 

भगवानो के चेहरे हम तय करते है या फिल्म और सीरियल ?

 

     सभी सनातनी  धरम के लोगो के लिए   राम -कृष्ण अवतारी पुरुष है , जो बहुतों के लिए आराध्य है | उनकी कथा रामचरितमानस -रामायण  में हैं |   भारत में उनके हजारो मंदिर भी हैं ,जनहा उनकी मूर्तिया की पुजा -अर्चना  सुबह -शाम  की जाती हैं |  परंतु इन सभी मंदिरो में उनके चेहरे  एक समान नहीं हैं | केवल एक आराध्य ऐसे हैं जो करोड़ो जगह एक जैसे ही  पुजा अर्चना होती है  ----वे है देवधिदेव  महादेव , क्यूंकी उनकी लिंग स्वरूप में आराधना होती है |  अन्य  देवताओ में सूर्य हैं -जिनकी आराधना उनके आगमन पर अर्घ्य देकर होती हैं |  वह भी सार्वदेशिक हैं |

                     अगर देखे तो हम पाएंगे की मनुष्य ने ही अपने आराध्य के स्वरूप को  मूर्त रूप दिया हैं |   हजारो और सैकड़ो वर्ष प्राचीन मंदिरो में जिन आरध्यों की प्राण प्रतिस्ठा हुई हैं  वे भी किसी न किसी मूर्तिकार की कल्पना  ही होती हैं | जिसे उस काल के शासक  और धरम के अधिकारियों ने मान्यता दी होगी | तभी तो उनकी निरंतर  आराधना ,आज तक की जा रही हैं |  जनहा तक हमारे देवी – देवताओ  के चित्र स्वरूप  का सवाल हैं , तो अधिकतर  राजा रवि वर्मा  द्वरा चित्रित हैं |  उन्होने लगभग  सभी देवी देवताओ के चित्र बनाए हैं |   राम दरबार , और राधा -कृष्ण  हो  अथवा  शिव -पार्वती हो , गंगा अवतरण  हो अथवा देवी द्वरा महिशासुर  का संहार हो , इन सभी घटनाओ का चित्रांकन  उनके द्वरा किया गया हैं |  यह सब आखिर उनकी कल्पना ही तो हैं !  अब हम उन्हे  पूज्य मानकर अपने घरो अथवा  मंदिरो में लगाते  हैं | उनकी आराधना  करते हैं , पूरी निष्ठा  और आस्था से | इस प्रकार हम देखे तो हमने ही अपने देवी -देवताओ को स्वरूप दिया हैं | जो हमारी आस्था का प्रतीक हैं |

                        देवी -देवता की मूर्ति  बनाने वाले  हमेशा  अपनी कल्पना से  ही किसी भी मूर्ति का निर्माण करते हैं | आज कल की तरह नहीं जनहा नेताओ की फोटो देकर चित्र या मूर्ति बनवाई जाती हैं |  परंतु मंदिरो में स्थापित मूर्तिया उन मूर्तिकारों की कल्पना होती हैं | इसीलिए जगन्नाथ पूरी के के और मथुरा के बाँके बिहारी में विराजे क्रष्ण की मूर्तियो में कोई साम्य नहीं हैं | सिवाय इसके की सनातनी दोनों को ही समान श्रद्धा  पूर्वक मानते हैं | 

                                इस आलेख का मन्तव्य  यह हैं की रामानन्द सागर की रामायण  टीवी सीरियल में सीता का पात्र निभाने वाली श्रीमति चीखलिया  ने  आदि पुरुष में रावण  का पत्र निभा रहे सैफ अली खान  के चित्र  पर टिप्पणी की थी “की रावण कम से कम  मुग़ल जैसा नहीं था ! अब उनके  इस कथन  को देखे तो पहला सवाल उठता हैं ,की वास्तविक रावण कैसा दिखता था ?  यह कोई मानव नहीं बता सकता , ना ही कोई ज्योतिषी  या धर्माचार्य ही | कारण यह हैं की उस समय कोई ऐसी विधा या विज्ञान नहीं था जिससे लोगो के चित्र लिए जा सकते | हाँ कुछ अति उत्साही  लेखक पुष्पक विमान के भी चित्र को तकनीकी रूप से संभव बताते नहीं थकते |  लेकिन अगर हम तर्क और तथ्य  पर  उस शक्ति की महत्ता  को जाने तब हम पाएंगे की  दुनिया के सभी धर्मो में “उस शक्ति “” को अव्यक्त और निराकार  ही पाते हैं | अब्राहम और -मूसा का खुदा हो अथवा ईसाई या इस्लाम का खुदा हो सभी को कमोबेश एक प्रकाश पुंज के रूप में माना गया हैं | केवल मूसा को ही उस शक्ति से वार्ता करने का अवसर मिला , जब उस शक्ति ने उन्हे  दस निर्देश  यहूदी समाज के लिए दिये |  अब्राहम और ईसा के समय में देवदूतों द्वरा उस शक्ति की इच्छा  उन लोगो तक पहुंचाई गयी थी | हालांकि ईशा को उस शक्ति का पुत्र माना जाता हैं  जिसे ,यहूदी औ र इस्लाम  नहीं मानते | उनके अनुसार ईश्वर कोई इंसान नहीं जिसके पुत्र हों | परंतु विश्वव्यापी ईसाई धर्म के विभिन्न घटको द्वारा  उन्हे देव पुत्र  ही माना जाता हैं |  इस्लाम में मोहम्मद साहब को  खुदा का संदेश वाहक  माना जाता हैं |  कुरान को खुदा की सीख के रूप में मान्यता हैं |  कहने का तात्पर्य हैं की मूल रूप से सभी धर्मो में उस पराशक्ति को निराकार और प्रकाश  के रूप में माना गया हैं | मूर्ति पुजा को भारत -नेपाल -म्यांमार की कुछ जातियो द्वरा तथा लाओस और थायलैंड  कंबोडिया आदि में प्रचलन हैं |  

                     तथ्य यह हैं की भारत में बौद्ध और जैन धरम का उद्भव  मूर्ति पुजा और उसके कर्मकांड में पुजारियों द्वरा किए जाने वाले भेदभाव  के वीरुध ही हुआ था | मूल रूप से दोनों ही धरम मूर्ति पुजा के स्थान पर “””आत्मा “” की शुद्धता  पर कर्म -सदाचार पर ज़ोर देते हैं | परंतु कालांतर में चीन -जापान और म्यांमार ,थायलैंड  आदि में बुध की बड़ी -बड़ी प्रतिमाए लगी ,और उनकी पुजा -अर्चना की जाती हैं | अब यह समय और मानव समाज की समझ की बात हैं की जिस उद्देश्य से मूर्ति पुजा का विरोध हुआ ----उसी की मूर्ति की पुजा की जाने लगी |

इस सब को देख कर यही लगता हैं की ईश्वर ने यह ब्राम्हांड बनाया है या नहीं -यह तो  डार्विन सिधान्त  विवादित कर चुका हैं | परंतु मानव समाज ने अपनी आस्था और विश्वास को व्यक्त  करने के लिए  अपनी कल्पना को साकार रूप देकर मूर्ति रूप में आराधना – उपासना शुरू  कर दी | वास्तव में यही इंसानी फितरत हैं | इस आलेख में उठाए गए सवाल या परिणाम तर्क और तथ्यो पर आधारित हैं | जिनसे किसी भी समुदाय अथवा व्यक्ति की आस्था को हानी पाहुचना उद्देश्य नहीं हैं | यदि किसी को ऐसा लगता हैं ---तब मैं उन सभी से करबद्ध हो कर छमा मांगता हूँ |

                                                        

Oct 16, 2022

 

हुजूर  न्याय  सिर्फ अदालतों में ही नहीं होता है – भूखे बेरोजगारो का क्या

    प्रधान मोदी ने  प्र्देशोंके विधि मंत्रियो और सचिवो के सम्मेलन का वर्चुअल संभोधन करते हुए कहा की न्याय में देरी देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं !  यह हक़ीक़त भी हैं , यालगर परिषद के बंदियो को जेल में बिना मुकदमा चलाये ही जेल में रखा गया हैं | अभी साईबाबा मामले में  यू एय पी ए में भी उनकी गिरफ्तारी के लिए सरकार ने “”ना तो उनके खिलाफ सबूतो की वंचित जांच की और चार लाइन की रिपोर्ट पर पांचों अभियुक्तों को  पाँच साल तक , दिल्ली युनिवेर्सिटी  के प्राध्यापक  को माओ वादी हिनशा के लिए  दोषी पाया | जबकि उनकी इस अपरदधा में संलिप्ततता  का कोई भी प्रमाण पुलिस नहीं दे सकी | मात्र उनकी राजनीतिक  वामपंथी  विचारधारा के आधार पर उनको अपराधी बना दिया |

                          मान्यवर  नफरती भासन की दोषी  नूपुर शर्मा  को ना तो आज तक गिरफ्तार किया गया , और ना ही वे अदालत के सामने पेश हुई | हाँ उनको फटकारने वाले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशो  पर “”भक्तो “” की टोली ने सोश् ल  मीडिया पर गज़ब  का हमला किया ! उनके अनुसार  जज हिंदुवादियों के वीरुध हैं | मजे की बात यह हैं की  दोनों ही जज हिन्दू हैं | परंतु देश में हिन्दू कौन हैं इसका प्रमाणपत्र  देने वाले स्वयंभू  संगठनो के लोग तो बस किसी भी बीजेपी या संघ अथवा बजरंग सेना या हिन्दू वाहिनी  के अभियुक्तों को तो  दोषी मानते ही नहीं | उनके अनुसार संविधान और समानता की बात करने वाला  द्रोही हैं ! 

                              जो राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी  मुसलमानो को “” अछूत “” मानती थी , अब चुनाव में वोट के कारण  संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत  दिल्ली में  मौलाना इलियासी के न केवला घर गए वरन  उनके मदरसे  में भी गए | लेकिन दूसरे ही दिन  से मुस्लिम संगठन पीएफआई   पर देश व्यापाई छापे  और मुसलमानो की गिरफ्तारिया  शुरू  हो गयी | यह एक सामाजिक संगठन है जो मुसलमानो के हित के  कार्य करता हैं | जैसे आरएसएस  एक सामाजिक  संगठन हैं जो हिन्दुओ के शिक्षा और संसक्राति के विकास के लिए कार्य करता हैं |  संघ की शाखाओ  मे स्वयं सेवक  लाठी लेकर भी जाते हैं | वनहा उनका झण्डा होता हैं | खेल के साथ व्यायायम  भी किया जाता हैं | कुछ ऐसा ही पीएफाआई  भी अपने दफ्तरो में करता था | परंतु उनके कार्य को  सरकारी एजेंसियो  ने देश  के वीरुध षड्यंत्र  बताया | कहा गया की वे देश में हिनशा  फैलाने की कोशिस कर रहे थे !!  किस्सा यह की हम करे तो राम लीला तुम करो तो  कैरेक्टर ढीला ! अब इस नीति और नियत को क्या न्याय कहा जा सकता हैं ?  यह तो हुई  अदालतों और पुलिस के न्याय की हालत , पारा क्या देश के 130 करोड़ लोगो को तो अदालतों से ज्यदा प्रदेश की और की सरकारो के कार्य और केंद्र के कानून  में भी न्याय का अभाव दिखाई देता हैं |

                                   इस समय हमारा देश वैश्विक  हनगर  लिस्ट में आज पड़ोसी  --पाकिस्तान -नेपाल और श्री लंका  तथा बंगला देश से भी नीचे हैं !!! क्या यह केंद्र के लिए न्याय  का विषय नहीं हैं ? देश में बेरोजगारो  की संख्या  करोड़ो में हैं , इनमें  लाखो इंन्जीनियर – और स्नातक और परास्नातक हैं , जो सैकड़ो रुपये के फारम  खरीद कर  प्रतियोगिता में बैठते हैं | अव्वल तो समय पर  उनकी परीक्षा नहीं हो पाती हैं , और हो गयाई तो सालो उसका परिणाम नहीं आता | प्रतियोगिता करने वाली एजेज्न्सिया  अरबों रुपया  इन मजबूर लोगो का खा कर बैठी हैं | सवाल करने पर कोई जिम्मेदार जवाब नहीं देता , औए जवाब दिया तो कह दिया सरकार की मंजूरी अभी नहीं आई ! मध्य प्रदेश के लोक सेवा आयोग की प्रादेशिक सेवाओ  की परीक्षा के परिणाम भी कई -कई साल नहीं आते |  अगर परिणाम आ भी गए तो कोई प्रत्याशी  अदालत चला जाता हैं , तब अदलते भी सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही रोक देती हैं !  बजाय इसके की वे कोई ऐसा निर्णय दे की याची को न्याय भी मिल जाये और सैकड़ो  प्र्त्यशियों  का परिणाम भी घोषित हो जाए | परंतु ऐसा होता नहीं हैं | क्यूंकी ना तो न्यायपालिका  में संवेदना बची है और ना ही सरकारी एजेंसियो  में तत्परता और कार्य के प्रति ईमानदारी बची हैं | राजनीतिक  दबाव से नियुक्त अफसर या सदस्य  बेरोजगारो के दर्द को समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं |

 

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सम्भोधन  में कहा की  -कानून बनाते समय उसकी एक्सपयरी  डेट भी लिख देनी चाहिए !  विधि शस्त्र के इतिहास में यह पहली घटना होगी जब किसी देश की कार्यपालिका के मुखिया ने ऐसा सुझाव दिया हो ! आगे उन्होने यह भी कहा की अंतिम तारीख पर उस कानून का पुनः -परीक्षण होना चाहिए !!  गज़ब हैं | विधि शस्त्र में तीन प्रकार के कानून बताये गए हैं :-

                      1:- दैविक अथवा प्र्क्रतिक कानून , जैसे सूर्य  की प्रथवि द्वरा प्रदक्षिणा , इस नियम को गैलीलियो ने उद्घाटित किया था | वरना भारत में धार्मिक लोग विश्वास करते हैं की प्र्रथ्वी  के चार कोनो को चार गज़ पीठ पर उठाए हुए हैं और वे स्वयं क्छप की पीठ पर खड़े हुए हैं | अब विज्ञान ने इस धार्मिक  विश्वास को मिथ्या साबित कर दिया हैं | अन्य हैं बदलो द्वरा पानी बरसाना  तथा वनस्पतियों  का होना आदि |

 2:- सामाजिक कानून --- ये हैं जैसे  धर्म -जाति कुल और गोत्र आदि | इन नियमो अथवा कानूनों का पालन अधिकतर जन्म – विवाह और अंतिम क्रिया में किया जाता हैं | इनमें कुछ को अदालतों द्वरा  रद्द भी किया गया हैं | जैसे पश्चमी  उत्तर प्रदेश में “”खाप पंचायत “” के फैसले | चूंकि ये फैसले तथ्य – और सबूत के आधार पर ना होकर कुछ मुखिया लोगो की “”हनक” से हुआ करते थे और व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारो की खुली अवहेलना हुआ करते थे |

    3:- राज्य द्वारा  निर्मित  कानून , जो संविधान की शक्ति से बनाए जाते हैं | जिनहे अदालतों की भी सुरक्षा प्रापत  हैं | हमारे संविधान में इन्हे  मूलभूत  नागरिक अधिकार कहे गए हैं | यदि राज्य अथवा केंद्र का कोई कानून  नागरिक के अधिकारो का अतिक्रमण करता है तो उसे हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की रक्षा प्रापत हैं |

                        राज्य की विधान सभाए और केंद्र में संसद भी कानून बनाते रहते हैं |  परंतु इनको बनाने के समय  कोई भी यह नहीं बता सकता की ये कब “”निरस्त” हो जाएँगे ?  परंतु हमारे  प्रधान मंत्री जी ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी कर ली हैं |

                           अच्छा है कम कानून हो तो गणतन्त्र के लिए शुभ हैं  परंतु सालो से उनके द्वरा  1800 पुराने कानून निरस्त किए जाने की घोसना की जाति रहती हैं , परंतु इन निरस्त हुए कानूनों की लिस्ट कभी ना तो जारी हुई ना विधि मंत्रालय की वेब साइट पर इंका कोई ज़िक्र हैं | हैं न अज़ाब बात , काहीर कोई बात नहीं |