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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 14, 2016

विजय माल्या ने माल लिया -- दिया नहीं

विजय माल्या ने माल लिया -- दिया नहीं
लोग कुछ भी कहे ---परंतु शराब के कारोबारी विजय माल्या ऋषि चार्वाक के प्रथम तो नहीं ,,परंतु "”सर्वोत्तम "” शिष्य ज़रूर सिद्ध होंगे | ऋग्वेद मे उनके सिद्धांत को स्थान मिला है | प्रख्यात कथन "”” यावत जीवेत सुखम जीवेत , ऋण कृत्वा घ्रतम पीवेत "”” का शत – प्रतिशात अनुपालन किया है | उन्होने कल्पना किए जाने वाले जीवन को हक़ीक़त मे बदला | उनके लाइफ स्टाइल मे ज़िंदगी की कडुआहटो के लिए कोई स्थान नहीं था | लोग सूरज के साथ अपना दिन शुरू करते है ---परंतु इस शकख्स का सबेरा उसके अनुसार होता था | उनकी रात ब्रामह मुहूर्त से शुरू होती थी --जब वे सूरा से मदमस्त सुंदरियों के शरीर के अंग - प्र्त्यंगों का स्पर्श सुख लेते हुए आलीशान पलंग पर गिरते थे | इतने बड़े शराब के कारोबारी ने दोपहर से पहले कभी कोई मुलाकात या भेंट नहीं की | हाँ राज़ नेताओ के मामले मे थोड़ा बहुत उन्हे अपनी जीवन शैली मे फेर बादल करना पड़ता था | आखिर उनही की क्रपा से ही तो वे '''हैसियत से ज्यादा का क़र्ज़ '''' ले पाते थे |वरना किराए के जहाज़ो और किराए पर ली गयी जगह पर ग्यारह बैंको ने 9000 करोड़ का क़र्ज़ा दे दिया | अब क़र्ज़दार कह रहा है हानि - लाभ तो धंधे का आवश्यक परिणाम है | यह तो उन बैंको को देखना चाहिए था की उनका क़र्ज़ वापस होगा या नहीं ? यानि अब महाजनो की अक़ल पर सवाल ? धन्य हो |

इस मामले से अब बैंको के अगर "”कान "” खड़े नहीं हुए तो उनके पास अरबों देशवासियों की जमा पूंजी स्वाहा होते देर नहीं लगेगी | क्योंकि बड़े - बड़े उद्योगपतियों जैसे अडानी -अम्बानी-रूईया – -मित्तल - आदि को हजारो करोड़ो का क़र्ज़ वितिय '''आधारो'' पर नहीं वरन नेताओ की सिफ़ारिशों पर दिये जाते है यह स्पष्ट करता है की हमारी अर्थ व्यसथा मे दीमक कौन लगा रहे है ??



शराब के पुश्तैनी धंधे से अरबों रुपये की संपत्ति की विरासत पाने के बाद हवा मे उड़ने वाले इस रईस का धंधा ऐसा ठप हुआ की देश के ग्यारह बैंकों के 7300 करोड़ रुपये भी डूब गया | गोवा के सागर तट पर सुंदरियों को लेकर ऐश करने वाले इस सेठ की ज़िंदगी GOOD TIMES का उदाहरण बन गया था | लेकिन अब इनके अच्छे दिन को ग्रहण लग गया है | जब आयकर के इन्फ़ार्समेंट निदेशालय ने उनके विरुद्ध मनी लौंडेरिंग का मुकदमा दर्ज़ किया है | साथ ही क़र्ज़ वसूली अधिकरण ने भी ब्रिटेन की शराब बनाने वाली डिआजियो कंपनी से मिलने वाली 5000 करोड़ रुपये की राशि को निकालने पर रोक लगा दी है | साथ ही कर्ज़ की वसूली की बैंको की दरख्वास्त पर कारवाई करते हुए इस धन राशि पर रोक लगाई है | क्योंकि किंग फिशर एयर लाइन के कर्मचारी भी अपने वेतन -भत्ते के देयकों के भुगतान की लड़ाई लड़ रहे थे | वही बैंको भी अपने क़र्ज़ को वसूलने की कारवाई कर रहे है |

इस मामले मे एक नया मोड है की किंग फिशर एयर लाइन के पास कोई "अपनी संपति "””” नहीं है | इस कंपनी का सब कुछ किराए पर था ------जहाज से लेकर जगह और गड़िया तक| ”सभी कुछ किराए का ! इस्से याद आता है एक पाकिस्तानी नाटक किस्सा जिसमे __ शादी के लिए लड़के को देखने वाले आने वाले थे तो पिता और माता ने पड़ोस से सोफा सेट - पर्दे - चाँदी का टी सेट और यनहा तक की एक स्कूटर भी खड़ा करा लिया || जब लड़के वाले बात करने आए तब यह सब देख कर उन्हे लगा की घर और वर दोनों ही सम्पन्न है | हक़ीक़त यह थी की साहबज़ादे ]””रोड इंस्पेकटरी ''' करते थे यानि की बेकार थे | ऐसे ही माल्या जी ने बैंको को भी "””एयर लाइन का "”ताम-झाम "” दिखा कर ही 9000 करोड़ का क़र्ज़ा लिया | हालत यह थी की साहेब तो सड़क पर थे ----क्योंकि वे तो सब कुछ मांग कर ही लाये थे | पाँच जहाज जोई उन्होने बोइंग कंपनी से लीज़ पर लिए थे उनका "””किराया "”” बाकायदा भुगतांकर दिया गया है | किंग फिशर मे अगर किसी के साथ नाइंसाफी या कहे "”चूना ''नहीं लगा तो यह अमरीकी मल्टी नेशनल कंपनी बोइंग ही थी | बाक़ी तो सभी यानहा तक की कर्मचारियो का भी 400 करोड़ बकाया है |



Mar 8, 2016

कन्हैया को श्रवण कुमार की नसीहत देने का निहितार्थ भारतीय जनता पार्टी के सांसद आर के सिन्हा जो संघ के प्रवक्ता के रूप मे टीवी चैनलो मे देखे जाते है ----उन्होने आज अपने एक लेख मे कन्हैया को उसके माता - पिता की गरीबी का ध्यान दिलाते हुए उसे श्रवण कुमार बनाने की सलाह दी है | आम भारतीय को इस सलाह मे कुछ भी असहज नहीं लगेगा | परंतु थोड़ा विचार करने से इस कथन के पीछे की मंशा समझ मे आती है | उन्होने श्रवण कुमार को पौराणिक कथा निरूपित किया है -जो सत्य नहीं है | क्योंकि बाल्मीकी लिखित रामायण अथवा तुलसीदास रचित रामचरित मानस मे इसका उल्लेख हुआ है | और दोनों ही ग्रंथ पुराण की श्रेणी मे नहीं स्वीकार किए गए है | अब सिन्हा जी के कथन की मीमांशा करे तो पाएंगे की श्रवण की कथा का सार ----- अंधे माता- पिता को तीर्थाटन कराते समय अयोध्या नरेश दशरथ के हाथो उसकी हत्या हो जाती है और उसके माता - पिता इस घटना के कारण प्राण त्याग देते है | अर्थात श्रवण कुमार का जीवन उसके जनक और जननी की सेवा मे ही अंत हो गया | समाज और राष्ट्र के लिए उसने ना तो कोई योग दान किया नाही सत्ता का विरोध | सिन्हा जी भी यही चाहते है की देश के छात्र केवल "””अपने भविष्य '''की चिंता करे | वे अपने परिवार को सुख और धनोपार्जन करे | समाज और देश की चिंता करने के लिए तो "” राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ "””है | उसकी चिंता दूसरे ना करे | वनही कन्हैया ने कंस की सत्ता को चुनौती दी ,और गोवर्धन उठा कर समाज की अंध श्रद्धा को दूर करने का प्रयास किया | क्रष्ण की कथा मे रुक्मणी स्वयंबर से लेकर स्म्यंतक मणि की कथाओ मे नारी की स्वतन्त्रता और असुरो द्वारा हरण की गयी महिलाओ से समूहिक विवाह कर के उन्हे आश्रय दिया | गीता का उपदेश भी समाज और राष्ट्र को ''अधर्म - धर्म "” का भेद बताता है | सिन्हा जी के लेख से लगता है की वे और उनकी विचारधारा वाले यह मानते है की देश -राष्ट्र और समाज के लिए क्या उचित है क्या अनुचित इसका निरण्य करने की बुद्धि और शक्ति केवल और केवल उनही मे है | देश के युवा को उसके मुस्तकबिल और परिवार के सोच तक ही सीमित रख कर वे देश के सोच और विचार का ठेका खुद लेना चाहते है | कन्हैया ने जे एन यू संस्थान से सरकार की सत्ता के दुरुपयोग का जिस ढोंग और पाखंड को उजागर किया है उस से सत्ताशिन चिंतित हो गए है | क्योंकि शिक्षा संस्थान ही बदलाव के श्रोत रहे है | तक्षशिला और नालंदा के छात्र जीविकोपार्जन की विद्या के साथ ही देश और समाज की समस्याओ से रूबरू रहते थे | इतना ही नहीं अवसर पड़ने पर सत्ता के अत्याचार और सामाजिक कुरीतियो के वीरुध संगर्ष भी करते थे | सोश्ल मीडिया मे "””भक्तो"”” द्वारा कुछ वीडियो क्लिप भी डाले गए जिसमे यही कहा गया की सस्ता हॉस्टल और नाम मात्र फीस देकर वनहा के विद्यारथियों को देश और सत्ता तथा राजनीतिक विचार धारा मे नहीं पड़ना चाहिए | उन्हे कैरियर और पैकेज की ओर ध्यान देना चाहिए | आखिर वे देश के कर दाताओ के पैसे पर "”पल "”रहे है | इस के अलावा वे यह भी दिखा रहे है की चैनलो ने क्यो कन्हैया के भासण को दिखाया जो 50 मिनट का था | ध्यान देने योग्य बात है की चैनलो ने इस दौरान के ''विज्ञापन राशि '''' को भी खोया है | फिर उसके द्वारा दिये गए साक्षात्कार को भी दिखाया गया वह भी प्राइम टाइम पर | सत्ता से जुड़े लोगो का विश्वास है की इतना प्रचार पाने का अधिकार तो केवल "”” हमलोगो"”” का ही है | किसी अन्य का नहीं | उच्च न्यायालय की न्यायाधीश ने भी अपने आदेश मे लिखा की "”” हम स्वतन्त्रता का स्वाद इसलिए ले पा रहे है -चूंकि देश की सीमा पर सैनिक पहरा दे रहे है | “” उनका कथन सही है | परंतु अगर केवल उनका कथन ही सही है ,तब हर देश मे सेना का शासन होना चाहिए | जबकि जिन देशो मे सेना का शासन है वहा '''नागरिक अधिकारो और मानव अधिकारो ''' का सबसे ज्यादा हनन होता है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है की सनिक से ज्यादा ''साहसी''' व्यापारी होता है ,,जो हानि का जोखिम ले कर भी व्यापार करता है | संभवतः विद्वान जज ने समाज के एक ही पक्ष को अधिक महत्व देकर देश के भविष्य को मात्र नौकरी और वेतन ताक़ ही सीमित रखना चाहा है | कहलिए मान लेते है की कैंपस मे राजनीति नहीं होनी चाहिए --- तो इसकी शुभारंभ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भंग कर के की जा सकती है | क्योंकि तब सभी पार्टियो के छात्र संगठनो से भी यही उम्मीद की जा सकती है | परंतु यह पाखंड तो नहीं चलेगा की "””देश और राष्ट्र "”” के नाम पर राजनीति करने का एकाधिकार सिर्फ हमारा है | राष्ट्र भक्ति की शिक्षा के नाम पर राजीव गांधी के हत्यारो को छोड़ना और पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह के हत्यारो को छोड़ने के लिए अकाली दल -जो की बीजेपी का भागीदार है द्वारा दबाव डालना | इन्दिरा गांधी के हत्यारो को शहीद का दर्जा अकाल तख़त द्वारा दिया जाना --और उनके परिवार जानो को नौकरी तथा '''सिरोपा''' भेंट किया जाना --- कान्हा की राष्ट्र या देश भक्ति है ??? क्या इसे हत्या की राजनीति नहीं माना जाये ?? संगठन द्वारा ऐसे प्रयासो को बड़वा देने का ही कारण है की उनके पदाधिकारी कन्हैया की जीभ काटने और सर काटने की ''सुपारी'' देते है | खुद नहीं कर सकते ,इतने साहसी है | इसी संदर्भ मे अफजल गुरु का भी मसला है | कश्मीर मे मोदी जी की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार मे साझीदार है | महबूबा मुफ़्ती ने सरे आम अफजल को फासी दिये जाने की भत्सना की थी | घाटी मे आज भी पाकिस्तान --मेरी जान के नारे लगाए जा रहे है कुलगाम मे 6मार्च को ही हिजबूल संगठन के आतंकवादी दाऊद के सेना द्वारा मारे जाने पर उस इलाके मे हरताल भी हुई बाज़ार भी बंद रहे | अब इसे रस्त्रद्रोह मानेंगे या महबूबा के साथ हाथ मिलाएंगे ?? लिखने का आशय है की भारत मे बहुलता है भाषा की - सम्प्रदायो की - पहनावों की विश्वास की और खान पान की | केरल -आसाम और घाटी मे गाय का मांस लोग खाते है | उत्तर प्रदेश बिहार मे ऐसा करना गैर कानूनी है | ऐसा सदियो से रहा है और रहना भी चाहिए यदि हम एकता चाहते है |

कन्हैया को श्रवण कुमार की नसीहत देने का निहितार्थ

भारतीय जनता पार्टी के सांसद आर के सिन्हा जो संघ के प्रवक्ता के रूप मे टीवी चैनलो मे देखे जाते है ----उन्होने आज अपने एक लेख मे कन्हैया को उसके माता - पिता की गरीबी का ध्यान दिलाते हुए उसे श्रवण कुमार बनाने की सलाह दी है | आम भारतीय को इस सलाह मे कुछ भी असहज नहीं लगेगा | परंतु थोड़ा विचार करने से इस कथन के पीछे की मंशा समझ मे आती है | उन्होने श्रवण कुमार को पौराणिक कथा निरूपित किया है -जो सत्य नहीं है | क्योंकि बाल्मीकी लिखित रामायण अथवा तुलसीदास रचित रामचरित मानस मे इसका उल्लेख हुआ है | और दोनों ही ग्रंथ पुराण की श्रेणी मे नहीं स्वीकार किए गए है |

अब सिन्हा जी के कथन की मीमांशा करे तो पाएंगे की श्रवण की कथा का सार ----- अंधे माता- पिता को तीर्थाटन कराते समय अयोध्या नरेश दशरथ के हाथो उसकी हत्या हो जाती है और उसके माता - पिता इस घटना के कारण प्राण त्याग देते है | अर्थात श्रवण कुमार का जीवन उसके जनक और जननी की सेवा मे ही अंत हो गया | समाज और राष्ट्र के लिए उसने ना तो कोई योग दान किया नाही सत्ता का विरोध | सिन्हा जी भी यही चाहते है की देश के छात्र केवल "””अपने भविष्य '''की चिंता करे | वे अपने परिवार को सुख और धनोपार्जन करे | समाज और देश की चिंता करने के लिए तो "” राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ "””है | उसकी चिंता दूसरे ना करे | वनही कन्हैया ने कंस की सत्ता को चुनौती दी ,और गोवर्धन उठा कर समाज की अंध श्रद्धा को दूर करने का प्रयास किया |

क्रष्ण की कथा मे रुक्मणी स्वयंबर से लेकर स्म्यंतक मणि की कथाओ मे नारी की स्वतन्त्रता और असुरो द्वारा हरण की गयी महिलाओ से समूहिक विवाह कर के उन्हे आश्रय दिया | गीता का उपदेश भी समाज और राष्ट्र को ''अधर्म - धर्म "” का भेद बताता है | सिन्हा जी के लेख से लगता है की वे और उनकी विचारधारा वाले यह मानते है की देश -राष्ट्र और समाज के लिए क्या उचित है क्या अनुचित इसका निरण्य करने की बुद्धि और शक्ति केवल और केवल उनही मे है | देश के युवा को उसके मुस्तकबिल और परिवार के सोच तक ही सीमित रख कर वे देश के सोच और विचार का ठेका खुद लेना चाहते है |
कन्हैया ने जे एन यू संस्थान से सरकार की सत्ता के दुरुपयोग का जिस ढोंग और पाखंड को उजागर किया है उस से सत्ताशिन चिंतित हो गए है | क्योंकि शिक्षा संस्थान ही बदलाव के श्रोत रहे है | तक्षशिला और नालंदा के छात्र जीविकोपार्जन की विद्या के साथ ही देश और समाज की समस्याओ से रूबरू रहते थे | इतना ही नहीं अवसर पड़ने पर सत्ता के अत्याचार और सामाजिक कुरीतियो के वीरुध संगर्ष भी करते थे | सोश्ल मीडिया मे "””भक्तो"”” द्वारा कुछ वीडियो क्लिप भी डाले गए जिसमे यही कहा गया की सस्ता हॉस्टल और नाम मात्र फीस देकर वनहा के विद्यारथियों को देश और सत्ता तथा राजनीतिक विचार धारा मे नहीं पड़ना चाहिए | उन्हे कैरियर और पैकेज की ओर ध्यान देना चाहिए | आखिर वे देश के कर दाताओ के पैसे पर "”पल "”रहे है | इस के अलावा वे यह भी दिखा रहे है की चैनलो ने क्यो कन्हैया के भासण को दिखाया जो 50 मिनट का था | ध्यान देने योग्य बात है की चैनलो ने इस दौरान के ''विज्ञापन राशि '''' को भी खोया है | फिर उसके द्वारा दिये गए साक्षात्कार को भी दिखाया गया वह भी प्राइम टाइम पर | सत्ता से जुड़े लोगो का विश्वास है की इतना प्रचार पाने का अधिकार तो केवल "”” हमलोगो"”” का ही है | किसी अन्य का नहीं |

उच्च न्यायालय की न्यायाधीश ने भी अपने आदेश मे लिखा की "”” हम स्वतन्त्रता का स्वाद इसलिए ले पा रहे है -चूंकि देश की सीमा पर सैनिक पहरा दे रहे है | “” उनका कथन सही है | परंतु अगर केवल उनका कथन ही सही है ,तब हर देश मे सेना का शासन होना चाहिए | जबकि जिन देशो मे सेना का शासन है वहा '''नागरिक अधिकारो और मानव अधिकारो ''' का सबसे ज्यादा हनन होता है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है की सनिक से ज्यादा ''साहसी''' व्यापारी होता है ,,जो हानि का जोखिम ले कर भी व्यापार करता है |



संभवतः विद्वान जज ने समाज के एक ही पक्ष को

अधिक महत्व देकर देश के भविष्य को मात्र नौकरी और वेतन ताक़ ही सीमित रखना चाहा है | कहलिए मान लेते है की कैंपस मे राजनीति नहीं होनी चाहिए --- तो इसकी शुभारंभ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भंग कर के की जा सकती है | क्योंकि तब सभी पार्टियो के छात्र संगठनो से भी यही उम्मीद की जा सकती है | परंतु यह पाखंड तो नहीं चलेगा की "””देश और राष्ट्र "”” के नाम पर राजनीति करने का एकाधिकार सिर्फ हमारा है |


राष्ट्र भक्ति की शिक्षा के नाम पर राजीव गांधी के हत्यारो को छोड़ना और पंजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह के हत्यारो को छोड़ने के लिए अकाली दल -जो की बीजेपी का भागीदार है द्वारा दबाव डालना | इन्दिरा गांधी के हत्यारो को शहीद का दर्जा अकाल तख़त द्वारा दिया जाना --और उनके परिवार जानो को नौकरी तथा '''सिरोपा''' भेंट किया जाना --- कान्हा की राष्ट्र या देश भक्ति है ??? क्या इसे हत्या की राजनीति नहीं माना जाये ?? संगठन द्वारा ऐसे प्रयासो को बड़वा देने का ही कारण है की उनके पदाधिकारी कन्हैया की जीभ काटने और सर काटने की ''सुपारी'' देते है | खुद नहीं कर सकते ,इतने साहसी है | इसी संदर्भ मे अफजल गुरु का भी मसला है | कश्मीर मे मोदी जी की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार मे साझीदार है | महबूबा मुफ़्ती ने सरे आम अफजल को फासी दिये जाने की भत्सना की थी | घाटी मे आज भी पाकिस्तान --मेरी जान के नारे लगाए जा रहे है कुलगाम मे 6मार्च को ही हिजबूल संगठन के आतंकवादी दाऊद के सेना द्वारा मारे जाने पर उस इलाके मे हरताल भी हुई बाज़ार भी बंद रहे | अब इसे रस्त्रद्रोह मानेंगे या महबूबा के साथ हाथ मिलाएंगे ?? लिखने का आशय है की भारत मे बहुलता है भाषा की - सम्प्रदायो की - पहनावों की विश्वास की और खान पान की | केरल -आसाम और घाटी मे गाय का मांस लोग खाते है | उत्तर प्रदेश बिहार मे ऐसा करना गैर कानूनी है | ऐसा सदियो से रहा है और रहना भी चाहिए यदि हम एकता चाहते है |

Mar 7, 2016

जो पच्चीस साल पहले राम भक्ति का प्रमाण पत्र देते है इस बार राष्ट्र भक्ति या देश भक्ति का तमगा बाँट रहे है

जो पच्चीस साल पहले राम भक्ति का प्रमाण पत्र देते है इस बार राष्ट्र भक्ति या देश भक्ति का तमगा बाँट रहे है
बीसवी सदी के नवे दशक की बात है देश मे ''कुछ खास लोगो ने ''' नारा दिया था जो '''राम के नाम का नहीं ,वह हिन्दू के काम का नहीं "”| तब वे देश मे राम भक्त होने का प्रमाण पत्र बेचते थे | इनहि राम भक्तो ने अयोध्या मे बाबरी मस्जिद को ध्वष्त कर दिया | तब देश को कहा गया था ,अयोध्या मे राम मंदिर बनाएँगे | देश भर से करोड़ो -करोड़ो ''राम शिलाओ '' [[इंटे brick}}””” के साथ रुपये भी एकत्र किए गए | यह सब विश्व हिन्दू परिषद द्वारा किया गया था | कितना धन इस तरह एकत्र हुआ --- देश को कभी नहीं बताया गया | मंदिर निर्माण के बारे मे

अब पचीस साल बाद देश मे ''देशभक्ति ''' के प्रमाण पत्र बांटे जा रहे है |तब लोगो की भावनाओ को धर्म के नाम पर '''शोषण '''किया गया था | इस बार संघ और केंद्र सरकार की साख बचाने के लिए --राष्ट्र या देश भक्ति का तमगा इस्तेमाल हो रहा है |मंदिर विवाद के समय उत्तर प्रदेश मे भाजपा की सरकार थी ,,कल्याण सिंह मुख्य मंत्री थे | जिनहोने सूप्रीम कोर्ट मे "”प्रतिज्ञा पत्र "” दिया था की मस्जिद को सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी प्रदेश सरकार की है | जिसे वह सभी तरह से पूरा करेगी || सारा देश गवाह है की अयोध्या मे राम भक्त कार सेवाको ने क्या किया था ? सर्वोच्च न्यायालय ने जब अभियुक्त के रूप मे मुख्य मंत्री कल्याण सिंह से पूछा की आप ''असफल '' क्यो हुए ??तब कल्याण सिंह ने जो आजकल राजस्थान के राज्यपाल है ने स्वीकार किया था की वे ''दायित्व निर्वहन मे असफल रहे "”| अदालत मे बेचारगी का दावा करने वाले कल्याण सिंह बाद मे चुनावी सभाओ मे तो अपनी असफलता को ''तमगा'' बनाकर बताते थे |

यह संदर्भ इसलिए ज़रूरी है की जो आज राष्ट्र भक्त होने का प्रमाण पत्र दे रहे वे चिट फंड कंपनियो की तरह पहले भी भारतीयो के विश्वास को झूठा साबित कर चुके है | इस बार मंदिर वाले स्वयं सरकार मे है -----पार्टी बहुमत मे है ,, फिर भी मंदिर की बात नहीं करते | जैसे सहारा चिट फंड के सुब्रत रॉय को सूप्रीम कोर्ट ने लोगो का जमा धन वापस किए जाने तक जेल मे ही रखे जाने का फैसला किया है || वैसा मंदिर का झूठा वादा करने वालों के साथ नहीं कर सकते --क्योंकि यानहा राजनीति है |

वित्त मंत्री अरुण जेटली हो या अभिनेता अनुपम खेर हो सभी 9 फ़रवरी को जे एन यू मे राष्ट्र विरोधी या देश विरोधी नारे लगाए जाने का '''दावा'' करते है | केन्द्रीय गृह मंत्री राज नाथ सिंह ने भी दावा किया था की ''नारा '' लगाने वालों का संबंध ''लाशकरे - तोईब्बा से है | परंतु उनके दावे का "”जीवन"” सिर्फ दो दिन तक रहा | जब दिल्ली के तत्कालीन पुलिस आयुक्त बस्सी ने विश्व विद्यालय की घटनाओ के पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन से किसी भी प्रकार का संबंध होने का सार्वजनिक रूप से खंडन कर दिया | जब उनसे पत्रकारो ने उनके दावे के बारे मे पूछा की किस खुफिया इकाई ने उन्हे खबर दी थी ?? तो वे गोलमोल बोल कर सारा दारोमदार दिल्ली पुलिस की जांच पर दाल दिया | देश का गृह मंत्री की विसवा विद्यालय के लोगो के पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन से संबंध होने की बात का "”झूठा'' दावा करे तो उस सरकार की जनता मे साख का अंदाज़ा लगाया जा सकता है | मजिस्ट्रेट की जांच मे देश विरोधी नारा लगाए जाने के किसी सबूत होने का खंडन किया है | लेकिन गोयबल्ल्स की भांति एक गलत दावे को ज़ोर - ज़ोर से बार - बार दुहराये जाने से मान रहे है की लोग उसे स्वीकार कर लेंगे | परंतु आज मीडिया पल पल की खबर दुनिया की सभी ओर पाहुचा देता है |


सोश्ल मीडिया पर एक विडियो आया है जिसमे दो लदकिया देश भक्ति का प्रमाण पत्र बेचते हुई दिखाई गयी है | भले यह विद्रूप हाओ परंतु सत्य का आभाष तो देता है

Mar 6, 2016

आतंकवाद के अभियुक्त टुंडा और उसके साथियो की रिहाई ?? बनाम कन्हैया प्रकरण के तथ्य

आतंकवाद के अभियुक्त टुंडा और उसके साथियो की रिहाई ??
बनाम कन्हैया प्रकरण के तथ्य
बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद देश के अनेक भागो हुए बम विस्फोटो का आरोपी टुंडा एवं उसके चार अन्य साथियो को देशद्रोह - आतंकवाद के जुर्म मे गिरफ्तार किय गया था| जिसे विगत शुक्रवार को बाइज्जत बारी कर दिया गया | इस घटना का संदर्भ इसलिए समीचीन है की जिस देशद्रोह का आरोप जे एन यू छात्र संघ के नेता कन्हैया पर लगा है उसकी अदालती परिणाम क्या होगा |यह समझा जा सकता है | सालो साल टुंडा का मुकदमा चलता रहा परंतु एन आई ए अदालत मे ऐसा कोई सबूत नहीं पेश कर पायी जो ''संदेह से परे था ''' | आजकल सोश्ल मीडिया पर कुछ लोग , पड़े लिखे भी उसे देशद्रोही आरोपित करने से पूर्वा एक बार भी नहीं सोचते की यह अपराध क्या है और कौन से कार्य इस श्रेणी मे आते है |

मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता की धारा 124 अ मे बताया गया है की देशद्रोह काया कहलाएगा | इसी धारा के दो स्पष्टीकरणों मे यह भी साफ किया गया है की ''क्या देसद्रोह नहीं होगा "'' अर्थात यह धारा पूरे तौर से अपराध को परिभाषित ही नहीं करती वरन यह भी बताती है की आम तौर से जिसे देशद्रोह समझा जाता है वह क्यो नहीं अपराध होगा |

परंतु लिखने वाले भूल जाते है ज़बान उठा कर तालु से लगाकर भक से बोल देने अथवा की बोर्ड पर उंगली चलाने मात्र से आप किसी को देशद्रोह का अपराधी नहीं ''कह''' सकते | परंतु जो लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के दुरुपयोग का आरोप जे एन यू पर लगते है ---वे भूल जाते है की वे स्वयं ही दूसरे की बोलने की आज़ादी को बाधित कर रहे है| आप तार्किक विचार रख सकते है परंतु जो विवादित मुद्दा है उसे एक व्यक्ति लिख कर ''सिद्ध”” ' नहीं कर सकता |

राजस्थान पत्रिका द्वारा आयोजित विमर्श मे अखिल भारतीय विद्यारथी परिषद के महा सचिव विनय बिडे ने कहा की "” काइमपुस मे राजनीति नहीं हो ,और किसी पर "”लांछन " नहीं लगाया जाये | उनके विचार सर्वथा उचित है परंतु उनका संगठन क्या जे एन यू मे राजनीति नहीं कर रहा है "” अथवा कन्हिया के चरित्र पर दोषारोपण नहीं किया जा रहा है ?? कौन कर रहा है यह बताने की ज़रूरत भी नहीं है | विद्यार्थी परिषद की ही कणिका शेखावत ने कहा की ''' राष्ट्र विरोधी ''' गतिविधिया बर्दाश्त नहीं होगी , ठीक है परंतु राष्ट्र विरोधी गतिविधिया क्या है उन्हे कौन परिभाषित करेगा ? क्या एक खाश विचारधारा के चंद लोग ? या देश का कानून अथवा संविधान ??


सीआरपीएफ़ की कोबरा बटालियन के डेप्युटी कमांडर की ओर से एक बयान जारी हुआ है , जिसमे यह दावा किया गया है की "”लोग उन शहीदो की अनदेखी कर रहे है जो नक्सल हिंषा से लड़ रहे है | यह भी कहा गया है की वे जे एनयू मे पड़े है | नाम नहीं दिया गया है \ ताज्जुब होता है की उन्हे यह नहीं मालूम की कन्हिया के बड़े भाई जो सीआरपीएफ़ मे सिपाही थे स्वयं नक्सल हिंषा मे शहीद हुए है | तो अगर कमांडर साहब को पीड़ा है उनदेखा किए जाने की तो उन्हे गर्व होना चाहिए की उनके ही एक शहीद के भाई ने "”शोषण"” के खिलाफ आवाज उठाई है ,और वह उनसे कमतर नहीं है |

जो लोग कैम्पस मे देश विरोधी नारे लगाए जाने का दावा करते है उन्हे हैदराबाद की फोरेंसिक प्रयोगशाला की रिपोर्ट की जानकारी होनी चाहिए | जिसमे साफ तौर से कहा गया है की पाँच मे से दो सीडी मे छेड़छाड़ की गयी है | मतलब उसमे शॉट को बदला गया है | यह वही सीडी है जिनहे एक खास चैनल ने चालय था | जबकि बाक़ी सीडी मे ऐसा कुछ नहीं है | इतना ही नहीं घटना की मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट मे भी साफ -साफ कहा गया है की देश विरोधी नारे लगाए जाने का कोई ''प्रमाण''' नहीं मिला है |




इसी तारतम्य मे देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह का पहले दिन का बयान की जे एन यू की घटना के टार आतंकी संगठन हाफ़िज़ सईद के संगठन लाशकरे टोईबा से जुड़े होने खबर खुफिया एजेंसीओ को मिला है | दूसरे ही दिन दिल्ली के पुलिस आयुक्त {{अब अवकाश पा चुके } बस्सी ने बयान देकर इस घटना का कोई संबंध आतंकी संगठनो से होने बात नकार दी | अभी जब पत्रकारो ने उनसे उनके बयान के बारे पूछा तो उनका जवाब था की दिल्ली पुलिस अपना काम कर रही है | राजनाथ सिंह को क्या जल्दी पड़ी थी की बिना पूरे सबूत के ''अफवाह'' को सदन मे कह दिया |


जनहा तक अखिल भारतीय विद्यरथी परिषद की गतिविधियो की बात करे तो इल्लाहबाद विस्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष कुमारी ऋचा सिंह को परेशान करने और काम नहीं करने देने के विरोध मे लड़कियो ने मुंह पर काली पट्टी बांध कर मार्च किया है | मैंने इस पूरे प्रकरण को समझ कर लिखा है | कोई प्रतिवाद करना चाहे तो मई उत्तर देने का प्रयास करूंगा