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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 26, 2020

 

चुनावी वायदे बनाम रेडियो झूठीस्थान का बुलेटिन

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शायद साठ साल पहले आकाशवाणी से एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ करता था , जिसका नाम ऊपर लिखा गया हैं | उसमें प्रसारित होने वाली खबरे मनोरंजन और हास्य का श्रोत हुआ करती थी | सुनते सब थे पर उन पर विश्वास ग्रामीण जन जो गैर पढे लिखे श्रोता भी नहीं करते थे | आजकल भी { कोरोना काल के पूर्व की महती सभाओ के संदर्भ में } नेता को सुने या उसका हेलीकाप्टर देखने के लिए भीड़ एकत्र हो जाती थी | परन्तु वह भीड़ कितना उनके कहे को सच मानती थी यह चुनाव परिणाम से पता चलता था | हालांकि पार्टी या उसके नेता के वादे पर सिर्फ "” कार्यकर्ता "” ही नारे लगाते थे , आम जन नहीं ! क्योंकि तब या तो वोट जात -पांत अथवा दबंगाई से डाले जाते थे | कुछ खरीदे भी जाते थे जैसे आजकल विधायक खरीदे जाते हैं |

बिहार विधान सभा के चुनावो में जिस प्रकार वायदों में दौड़ के बीच उलटफेर हो रहा हैं वह कुछ चकित कर देने वाला हैं | एक बात जो छन के आने वाली खबरों से निकलती हैं , वह हैं बीजेपी और लोजपा का संबंध ! ऐसा लगता था की की गठबंधन की राजनीति में एका जुमला इस्तेमाल हुआ करता था "” फ्रेंडली फाइट "’ यानि दोस्ताना लड़ाई ! अब दोनों ही शब्द विपरीत अर्थ देते हैं , पर धन्य हो हमारे देश के राजनेता की वे एक साथ दोस्ती और -लड़ाई भी कर सकते हैं ! अनुभव बताता हैं की यह फ्रेंडली फाइट अधिकतर किसी उम्मीदवार के "” समर्थको के वोट काटने "” के लिए किया जाता था | और नेताओ में महत्वाकांछा के "””सीमित अथवा नियंत्रित होने जैसा कोई "”तत्व" तो होता ही नहीं -आज भी नहीं | इस संदर्भ में लोजपा जो बिहार के के दलित नेता स्वर्गीय राम विलास पासवान की पार्टी थी ---और अब जिसकी पतवार उनके चिरंजीव "”चिराग "” ने थामी हैं उसकी भूमिका निश्चित ही मुख्य मंत्री नीतिश कुमार के अस्तित्व के लिए खतरा हैं | भले ही वे बीजेपी और जदयु की सरकार के पिछले दशको से मुख्यमंत्री हैं | एवं बीजेपी के छोटे मोदी यानि सुशील मोदी बार बार दुहरा चुके हैं की आगामी सरकार में भी नितीश कुमार ही मुख्य मंत्री रहेंगे , परंतु बीजेपी की राजनीति जानने वाले ----चिराग मोदी यानि नरेंद्र मोदी का छिपा "”बघनखा "” बताते हैं | जो बिहार में नितीश के प्रभाव को समाप्त कर बीजेपी की उखड़ी जड़ को मजबूती से रोपना चाहते हैं | क्योंकि बीजेपी बिहार की सरकार में विगत दस वर्षो से भले ही भागीदार रही हो , पर सरकार की पहचान तो नितीश कुमार से आज भी हैं | और यही संघ - बीजेपी - तथा हिंदुवादी संगठनो को राज्य में जड़ नहीं जमाने दे रहा हैं ! इसलिए अमित शाह और मोदी का प्रयास हैं की इस हिन्दी प्रदेश में भी उत्तर प्रदेश की भांति हिन्दू --मुसलमान कर के अपनी जमीन होनी चा हिए | जो जातिवाद से

जकड़े बिहार में लगातार 1977 से की जा रही कोशिस के बावजूद भी सफल नहीं हो रही हैं | कुल मिलाकर बीजेपी "” सरकार में बी टीम "” की ही हैसियत में रही हैं | जो सरकार के शीर्ष नेत्रत्व को वैसा ही खल रहा हैं जैसा लाख जतन और हथकंडे अपनाने के बाद भी दिल्ली में वे सरकार से बाहर हैं !

हंसी लगती हैं बीजेपी के सुशील मोदी पर , की जब आर् जे डी के तेजस्वी यादव ने दस लाख नौजवानो को नौकरी देने की घोसना की , तब बिहार के वित्त मंत्री सुशील मोदी ने निर्मला सीतारमन की तर्ज़ पर आंकड़े देकर इस इस वादे को झूठा साबित किया | परंतु 24 घंटे में ही उन्होने 19 लाख नौकरिया देने की घोसना की !! वैसे बीजेपी में "कुछ भी झूठ या सच "” को बारबार बोल कर अपने को सही साबित करने की कोशिस 2014 के लोकसभा चुनावो से शुरू हुई | जब अरेन्द्र मोदी जी ने "” राष्ट्रीय मीडिया "”को हर भर्तवासी को 15 लाख और प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार के अवसर सुलभ करने का वादा कर दिल्ली फतह की थी | जिसे 2019 के लोकसभा चुनावो में अमितशाह जी ने "”नकारते "” हुए जवाब दिया की वह तो "”एक जुमला भर था "” ! मतलब सिर्फ यह वादा कहने के लिए था , पूरा करने के लिए नहीं था ! अब इसे अगर झूठीस्तान की बुलेटिन ना कहे तो क्या कहे !

इस संदर्भ में एक वादा जरूर मोदी सरकार ने पूरा किया ---वह था काश्मीर को अनुछेद 370 के अंतर्गत मिला विशेस स्थान छिनने का ! जम्मू और काश्मीर राज्य को तीन भागो में विभाजित करने का ! हिन्दू बहुल जम्मू और मुस्लिम बहुल काश्मीर तथा बौद्ध बहुल लद्दाख अलग -अलग कर दिये गए ! वह भी धरम के आधार पर ! वही काम बीजेपी और संघ अन्य राज्यो में कर रही हैं !

अब पुनः बिहार की ओर लौटते हैं , चिराग और बीजेपी का रिशता यानहा वैसा ही हैं ---की दिल्ली में लोजपा सरकार में थी , पर बिहार में नहीं थी | केंद्र में जदयु सरकार में नहीं हैं पर बीजेपी बिहार में उनके अधीन सरकार में हैं | इस समीकरण को बदलने के लिए ही चिराग का इस्तेमाल बीजेपी अपने लाभ के लिए और गठबंधन के साझीदार जदयु को "”काटने "” के लिए कर रही हैं | एक कहावत हैं --- बाप से बैर और पूत से सगाई , मतलब एक ही घर में दो '’धाराए '’’| वैसे भी नितीश बाबू का खीजना और तेजस्वी पर हमला इसका परिणाम हैं | वैसे बीजेपी यह दाव सतर्कता से चल रही हैं --की अगर सरकार बनाने लायक बहुमत गठबंधन नहीं ला सका , तो जदयु इस लायक ना बचे की वह पाँच पार्टियो के महा गठबंधन में शामिल होकर फिर बीजेपी को विपक्ष में बैठने पर मजबूर कर दे जैसा लालू और जदयु के गठबंधन की सरकार के समय हुआ था |

रही बात विकास और नौकरी देने की ---- तो शिक्षको और डाक्टरों के रिक्त पद ही लाखो में हैं | दूसरा मसला शिक्षा का हैं ---- जिसे बाहुबलियो ने पैसा लेकर डिग्री देने का व्यापार बना रखा हैं | विश्व विद्यालयो में अकेदेमिक कलेंडर 12 से 20 माह पीछे चल रहा हैं | अगर शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के खाली स्थान भर दिये जाये तो लाखो युवको को रोजगार मिल सकेगा | बाकी वादे तो फिर वादे हैं ---वादो का क्या ?

Oct 13, 2020

 

क़र्ज़ और फर्ज़ साहब भले ही नहीं निभा सके पर -शौक तो पूरे करेंगे !



एयर इंडिया को नीलामी करने का सरकार का फैसला तीन -तीन बार असफल हुआ , भले ही मोदी सरकार को कोई खरीदार अभी तक नहीं मिला है पर – प्रधान मंत्री -राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के दौरो के लिए 8000 करोड़ के दो बोइंग जहाज खरीदने का सौदा हो चुका हैं ! और एक शाही जहाज तो आ भी गया | मतलब 16 हज़ार करोड़ का भुगतान बोइंग को हो गया | भले राज्य सरकारो को जीएसटी का हिस्सा देने में वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन ने हाथ खड़े कर दिये ,| सरकारी खर्चो में कटौती करते हुए नई भर्ती भी नहीं हो रही हैं | पर 32000 करोड़ का नया संसद भवन बनाने के लिए "”टेंडर "” निकलने की जल्दी हैं | टाटा को 835 करोड़ का काम शुरू करने का आर्डर भी निकाल दिया | सवाल है की आज कोरोना के समय में जब ढाई करोड़ से अधिक श्रमिक बेरोजगार हो कर राष्ट्रीय बंद के समय पैदल - दुपहिये और तीन पहिये पर अपने गावों को निकल पड़े थे | लोकतन्त्र में शायद ऐसा पहली बार देखा गया होगा जब ऐसी राष्ट्रीय आपदा में मोदी सरकार की चुप्पी वैसी ही थी , जैसी की फ्रांस की क्रांति के समय भूखी जनता का था | परंतु यूरोप और एशिया के लोगो के स्वभाव के मौलिक अंतर के कारण ना तो कोई राज्य सरकार को जनता से सहानुभूति थी और ना ही केंद्र को ! लोग मरते रहे भूखे -प्यासे और प्रदेश की सरकारे अपनी -अपनी सीमा में इन प्रवासी मजदूरो पर पुलिस के जरिये लाठी बरसाती रही | मजदूर अपना गुस्सा भी नहीं निकाल पाये , की पुलिस से कोई मुठभेड़ हुई हो अथवा सीमा पर पानी और छाया का कोई बंदोबस्त रहा हो ! परंतु निरीह ग्रामीण जन सुल्तान की ज़िद्द के आगे घुटने टेक कर बैठे थे !

बिगड़े और नये रईस की तरह \शौक को ज़िद्द की भांति पूरे करने के लिए इस हक़ीक़त से भी आँख मूँद ली की नागरिकों को राष्ट्रीय आपदा कोरोना के समय स्वास्थ्य सुविधाओ की कितनी ज़रूरत हैं ! जब दुनिया की सभी सरकारे अपने बजट में इस अद्रष्य शत्रु से निपटने के लिए खर्चो की रकम बड़ा रही थी ---तब मोदी सरकार का बजट जस का तस था \ हालत यह हो गयी की आज भारत जो साहब के लिए विश्व गुरु है , वह अपने कुल खर्चे में स्वास्थ्य संबंधी खर्चो में कोई व्रधी नहीं की | बस प्राइम मिनिस्टर केयर फंड से वेंन्टीलेटर के लिए गुजरात की एक फ़र्म को ठेका दिया | जिसने भी वेंटिलेटर के नाम पर घटिया सा उपकरण सप्लाइ किया | इस मामले में भी कोई जांच नहीं हुई --क्योंकि वह किसी "”राष्ट्रीय गुजरती "”की कंपनी थी ! इतना ही नहीं केंद्र ने अनुसूचित जाती और जनजाति को मिलने वाली छात्र व्रती का भुगतान भी राज्यो को विगत तीन सालो से नहीं किया ! क्या मोदी सरकार उनको मिलने वाली मुफ्त शिक्षा को बंद करना चाहती हैं , या कोरोना का बहाना बना कर पैसे की तंगी बताना चाहती हैं !

बिगड़ैल रईसो की भांति अब हालत यह हो गयी हैं की सरकार अपना सोना भी जनता को बेचने का कार्यकरम बना रही हैं | वैसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अपनी रिपोर्ट में तो दावा कर रहा हैं की ----- आर्थिक मंडी के इस दौर में भी भर्ता का विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा हुआ हैं < फिर क्यू सरकार को सोना बेचना पद रहा हैं ! क्या जहाज और नये संसद भवन के लिए रकम चाइए इसलिए ?



देश में अंग्रेज़ो के समय चली आ रही जमींदारी और तालुकेदारी के समय जब जमींदार को मोटर खरीदना होता था तब वह रैयत पर "”मोटराना "” या घोड़े खरीदने के लिए "”घोड वाना "” टैक्स लगा कर अपने शौक पूरे करता था | कुछ - कुछ केंद्र सरकार वैसा ही कर रही हैं | इतिहास में बड़े बड़े निर्माण कार्य शासको द्वरा करवाए गए हैं | इनमें लोक या जनता के लाभ के लिए सिर्फ नहर या कुआ खुदवाने तक ही सीमित रहा | कहते हैं हैं की चीन की विशाल दीवार के निर्माण में करोड़ो निरीह जनता के प्राण चले गए ----उनका अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया ,और उनके शवो को दीवार में ही चुनवा दिया गया | नए संसद भवन का निर्माण की "”झख "” भी नेता की ज़िद्द हैं ,की इतिहास में उनका नाम इस भवन के साथ अमर रहेगा | वे भूल जाते हैं की अवध के नवाब आस्फ़ुदौला ने अकाल के समय रिआया की मददा के लिए जिस इमारत को बनवाया --- उसका नाम ही "” भूल भुलैया "” हैं | लोग इस इमारत का नाम तो जानते हैं की यह लखनऊ में हैं , पर कम ही लोगो को मालूम हैं की इसका निर्माण किसने और क्यू करवाया था ! किस्सा कुछ यू हैं की बारिश की कमी से अवध के इलाके में फासले बर्बाद हो गयी थी , किसान - कर्मकार और छोटे जमीदार भी अकाल से पीड़ित थे | न तो उनके पास खाने को अन्न था और ना ही खरीदने के लिए धन | ऐसी दशा में आसफुदौला ने भूल भौलिया का निर्माण शुरू कराया | दिन में आम आदमी यानहा निर्माण करता था और उसे खजाने की ओर से मजदूरी मिलती थी | रात में शहर के सफेदपोश तबके लोग मुंह पर कपड़ा बांधे उसी निर्माण कार्य को गिरा देते थे | इन सफ़ेद पोष लोगो को लड्डू दिये जाते थे जिसमें अशरफीय चौपाई गयी होती थी | ऐसा इसलिए किया गया था की जिस्से की उन "”शरीफ "” लोगो की पहचान ना हो और उन्हे किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत हो | तो साहब हालत सुधरते ही निर्माण पूरा हुआ और इमारत तामीर हुई | यह था हिन्दुस्तानी शासको का निर्माण का तरीका | और चीन के शासको की करतूत बता चुके हैं |

कहने का मतलब की जनता का धन जनता या लोक कल्याण के लिए हो नाकी , नेता या शासको के तफ़रीहनुमा दौरो के लिए फाइव स्टार हवाई जहाज खरीदने के लिए ! दुनिया का सबसे पुराना प्रजातन्त्र ब्रिटेन का हैं , वनहा की संसद आज भी 500 साल पुरानी बिल्डिंग में ही लगती हैं | अमेरिका का राष्टपती भवन और काँग्रेस { दोनों सदनो के बैठने का स्थान } भी सौ साल से ज्यादा पुराने हैं | उनकी आर्थिक हैसियत भारत से काही ज्यादा बेहतर हैं | परंतु उनकी सरकारो के नेताओ को अपनी "”पुरातनता और परंपरा पर गर्व हैं "” इसलिए वे उसी में कार्य कर रहे है | जबकि हमारे नेताओ में कंपूयटर चलाने का प्रतिशत दस प्रतिशत से अधिक नहीं हैं | अधिकतर मंत्री "”टैबलेट या लैपटॉप "” का इस्तेमाल फेसबूक और ट्विटर तक ही करते हैं | दूसरा शासन का खर्चा कम करने की मोदी की मुहिम में जब करमचारी ही कम हो जाएंगे तब किसके लिए "” ज्यादा बड़ी जगह चाहिये | “”



Oct 11, 2020

 

लोकतन्त्र -जनहा विरोधी को अपराधी करार दिया जाये !!

चुनाव लोकतन्त्र में जनता के मत जानने का साधन हैं , परंतु दुनिया के दो बड़े लोकतन्त्र -अमेरिका और भारत आज दोनों ही अपने नेताओ की करनी और कथनो से अपने विरोधी विचार वाले व्यक्तियों को अपराधी बनाने का काम कर रहे हैं | क्योंकी विकास और जन कल्याण जैसे मुद्दे चैनलो और भासनों से नदारद हैं | मौजूद हैं -तो रंग और धरम के प्रति विषैला कथन | जो माहौल को गरम तो करता हैं परंतु "”सच" से बहुत दूर हैं | अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प खुले आम और्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व प्रतिद्वंदी हिलेरी क्लिंन्टन पर मुकदमा चलाने की बात कहते हैं | उन्होने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया की वे इसके लिए अटार्नी

जनरल और विदेश मंत्री माईक पांपीओ पर दबाव डाल चुके हैं ! परंतु दोनों ने ही उनकी बात नहीं मानी ! जबकि दोनों ही लोगो के नियुक्ति करता वे खुद हैं | अब किस कारण से उन्होने अपने सत्रह सहयोगीयो को निकाला , और इन्हे क्यू छोड़ दिया , इसका कारण शायद वनहा का जनमत ही हैं |

भारत में भी अनेक राज्यो में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं , परंतु यानहा विरोधी की चरित्र हत्या तक ही अभी तक मामला हैं | बिहार और उत्तर परदेश में जब नाबालिग लड़कियो से बलात्कार होता हैं --तब राज्यपाल खामोश रहते हैं ! परंतु बंगाल और केरल में कोई आरएसएस या बीजेपी के कार्यकर्ता पर हमला या हत्या होती हैं --तब वे तुरंत राष्ट्रपति शासन की धम्की देने लगते है | हाथरस में हुए जघन्य बलात्कार के उपरांत लड़की को पीट पीट कर मार डालने के मामले में मुख्यमंत्री और सरकारी अधिकारी सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं बता पाते की आखिर मृतका का दाह संस्कार आधी रात को पुलिस द्वरा क्यू किया गया ? जब इलाहाबाद हाइ कोर्ट ने इस मम्म्ले का स्वतः स्ंग्याँ लेते हुए कहा की "”अंतिम क्रिया को मर्यादित ढंग से हो -यह हर नागरिक का मौलिक अधिकार हैं " तब मुख्य मंत्री आदित्यनाथा ने बयान दिया की --दंगा होने की आशंका से पुलिस को दाह संस्कार रात्रि मेन करना पड़ा | सुप्रीम कोर्ट में यही जवाब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दिया गया ! सवाल हैं की किस्से दर था की दंगा हो सकता हैं ? क्या दलित परिवार -जिसकी लड़की की हत्या की गयी अथवा कोई और ? दूसरे ही दिन इस कांड के पीछे विदेशी खास कर इस्लामिक संगठनो को जिम्मेदार बताया | क्योंकि काँग्रेस के नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी शोक शंतंप्त परिवार से मिलने उनके गाव जाना चाह रहे थे ! पहले प्रयास में दोनों के साथ खूब धक्कामुक्की और लाठी बाज़ी हुई | पर दूसरे दिन किसी चमत्कार की भांति उत्तर प्रदेश सरकार ने ना केवल उन्हे जाने देने का न्यौता भेजा वरन उनकी अगवानी के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी भेजा | पर साथ ही यह भी कहा की पापुलर फ्रंट ओफ इंडिया नामक संगठन इस घटना द्वरा "””जातीय संघर्ष "” करवाना चाहता हैं ! गौरा तलब हैं यह वही संगठन हैं जिसका नाम दिल्ली में शाहीन बाग के आंदोलन में आया था | तुरत फुरत कारवाई में चार लोगो की गिरफ्तारी भी हुई ,जिनमें एक केरल के पत्रकार हैं , वे मुस्लिम हैं | अब अमेरिका के फॉक्स न्यूज़ की भांति जो सिर्फ वही खबरे दिखाता हैं जो ट्रम्प के "”माकूल "” हो , उसी प्रकार टीआरपी के घोटाले में घिरे चैनल भी भी यह बता रहे हैं की किस प्रकार पी एफ य के एक व्यक्ति को केरल सरकार ने नौकरी दे राखी हैं | इस तथ्य से वे यह बताना चाह रहे हैं की केरल की वाम पंथी सरकार इस्लामिक संगठनो को धन से मददा करती हैं | आज तक बाकी सभी दलो पर अपराधियो को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं , वे कुछ सीमा तक सही भी होते हैं | इसका प्रमाण यह हैं की सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ "”आपराधिक मुकदमो '’’के लिए जल्द जल्द कारवाई करने का निर्देश दिया हैं | इसमें सत्ताधारी पार्टी के नेता सबसे ज्यादा फिर समाजवादी के फिर काँग्रेस के फिर बहुजन समाज पार्टी के तथा आँय छेत्रीय दल हैं | वाम पंथी हैं पर काफी कम | हाथरस बलात्कार कांड पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमति आनंदी बेन ने कोई भी प्रतिकृया नहीं व्यक्त की !!! हैं अचरज की बात , महिला होते हुए भी कोई बयान नहीं |

अब असल मुद्दे पर आते हैं की ट्रम्प अपने राजनीतिक विरोधियो को जेल भिजवाने की धम्की देते हैं | परंतु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कोई बयान नहीं देते | जो कुछ करना होता है उनकी मातहत एजेंसिया करती हैं | महाराष्ट्र में अभिनेता सुशांत सिंह की मौत को हत्या निरूपित करने के लिए बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने तुरंत "”जांच के नाम पर परेशान करने वाली सीबीआई को पहले जांच दी | फिर एंफोर्समेंट डिरेक्टोरेट और अंत में नरकोटिक्स बोर्ड को लगा दिया | एम्स के 11 डाक्टरों की टीम ने साफ कहा की यह आतंहत्या हैं | अफवाह हैं की इस केस के द्वरा महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उढ़ाव ठाकरे के पुत्र जो खुद भी मंत्री हैं , उन्हे फंसा कर सरकार को बदनाम करने की साजिश थी | जिसमें तलवार बाज अभिनेत्री कंगना रनौट भी आ गयी | उनकी सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार ने तुरत -फुरत वाई श्रेणी की सुरक्षा भी सुलभ करा दी |

मतलब जो काम ट्रम्प अपने द्वरा नियुक्त मंत्रियो से नहीं करा सके , वह काम मोदी सरकार ने आंखो के इशारे से अपनी मात हत सरकारी एगेंसियों के अफसरो से करा लिया | इस मुक़ाबले में नरेंद्र मोदी ट्रम्प से ज्यादा चतुर निकले | परंतु उनके नेता चाहे गृह मंत्री अमित शाह हो अथवा दिल्ली की पुलिस हो --वे वही करते हैं जिसका इशारा किया जाता हैं | जैसे देसल्ही का शाहीन बाग का प्रदर्शन और दंगा ! पुलिस ने काफी मोटी चार्जशीट बनाई हैं | उसमें किसी एक के कहने से अनेक का हैं | उन लोगो के नाम भी लिखे हैं जो सिर्फ भासन देने गए थे ----पर आरोप दंगा का हैं | बाद में सफाई देते हुए पुलिस ने कहा की येचूरी , हर्ष मंदार आदि आरोपी नहीं हैं | तब फिर नाम क्यू ?

अब आते हैं ट्रम्प जिस प्रकार गोरो के प्रभत्व की बात करते हैं ----वह भारत के संदर्भ में हिन्दू साम्राज्य की बात हैं | संघ और बीजेपी का निशाना मुसलमान रहे हैं --जैसे हिटलर का निशाना यहूदियो पर था | दोनों ही इतिहास के उन पन्नो का दुहराव करते थे जब अमेरिका में अफ्रीकन अमेरीकन का उद्भव हुआ , अथवा भारत में राजनीति में मुसलमानो की भागीदारी हुई | दोनों ही नेता राष्ट्रवाद के नाम पर राष्ट्र की विभाजित जनसंख्या के बल पर राज्य करना चाहते हैं | उनका मकसद "”” बहुमत "”” पाना हैं | अब यह कैसे भी मिले मंजूर हैं | यही मकसद दोनों नेताओ का हैं |

Oct 8, 2020

 

युद्ध की तैयारी -किराए की तलवार से --,नई रक्षा नीति !




चाणक्य नीति कहती हैं की - युद्ध के पूर्व शत्रु की शक्ति और उसके ठिकाने का पता लगाने के लिए भेदिये की मदद लेनी चाहिए | एवं शत्रु को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए | नेत्रत्व में समझ -साहस और आत्मनियंत्रण के गुण होना आवश्यक हैं | देश इस समय पाकिस्तान के छापामार युद्ध की शैली से परेशान हैं | नेत्रत्व शत्रु को धर्म से जोड़ कर इस युद्ध को लड़ रहा हैं , परंतु सीमा पर विस्फोट की घटनाए होती जा रही हैं !

ऐसे में वायु सेना के एयर मार्शल भदौरिया का देश के लोगो

को यह संदेश देना की "”हम दोनों मोर्चो पर लड़ने को तैयार हैं "” कुछ बड्बोलापन ही हैं | फौज की यूनिट के लोगो को यह संदेश देना उनके साहस को बदने वाला हो सकता हैं , परंतु नेताओ की भांति देश को सार्वजनिक रूप से संबोधित करना -कतई उपयुक्त नहीं हैं | क्योंकि अगर आज का भारत पहले वाला नहीं हैं , तब यह भी सोचना चाहिए की चीन भी पहले वाला नहीं रहा | आज वह एक विश्व शक्ति हैं ,जो अमेरिका को आंखे दिखा रहा हैं | फिर क्या केवल राफेल विमान हमे वायु युद्ध में जीत दिला पाएंगे | हमको ये विमान आफ़सेट मूल्य पर मिले हैं | जबकि चीन के यानहा युद्धक विमान बना रहा हैं | जबकि हमको राइफल और उसकी गोलीया भी अमेरिका से मंगानी पद रही हैं ! हमे याद रखना चाहिए की अंतिम युद्ध जमीन पर ही लड़ा जाता हैं | द्वितीय विश्व युद्ध में हम देख चुके हैं "”डी"” डे ऑपरेशन समुद्र के जरिये नाजी जरमनी द्वरा फ्रांस पर क़ब्ज़े के छेत्र को आज़ाद कराया था | वनही जापान को युद्धक शक्ति से खीजे राष्ट्रो ने आखिर में आण्विक बम का इस्तेमाल कर घुटने टेकने पर मजबूर किया | परंतु आतंसमपर्ण के लिए उन्हे जापान के तट पर पोत में जनरल डगलस मैकआर्थर को जाना पड़ा |

कहने का आशय यह हैं की जिस प्रकार किश्तों में हम जवानो के लिए हथियार और साजो - सामान खरीद रहे हैं , वह हमको तात्कालिक वितीय भर से बचा ले , परंतु जब तक हम राइफलो के लिए गोली और टोपो के लिए गोले बनाने की छमता देश में निर्मित नहीं करते तब तक ---यह कहाँ की हम दोनों मोर्चो पर लड़ने के लिए तैयार हैं और सफल होंगे ! हमने देश की आयुध निर्मणियों को सुधारने के बजाय उन्हे ठेके पर देने का प्रस्ताव पर विचार करना शुरू कर दिया | देश को "”आत्मनिर्भर"”” की ओर ले जाने का प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का यह नारा , कनही जुमला बन कर न रहा जाये | आयुध निर्मणियों के बनाए सामाग्री को हमारी सेना के अफसरो ने "”कंडाम" बतया हैं | इस बात की पूरी संभावना हैं की स्वदेश में निर्मित साजो - सामान उतना सटीक और बड़िया ना हो , पर क्या हम अपनी माता के बनाए भोजन को होटल के खाने से तुलना करेंगे ? यह होना तो नहीं चाहिए ------पर समाचार पात्रो में छपी खबरे तो यही इशारा कर रही हैं !



प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के देशवासियों को आत्म निर्भर के आवाहन के मध्य देश की रक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव किया गया हैं | इसके तहत विदेशो से हथियार पाने के लिए अब सरकार "कांट्रैक्ट "” करेगी | सवाल यह हैं की जब रफाल विमान सौदे पर सी एजी ने आपति उठाई की विमान कंपनी ने आफ़सेट शर्त का अनुपालन नहीं किया | यह रिपोर्ट हाल में हुए संसद के आभासी सत्र में आया | आफ़सेट शर्त का अर्थ होता हैं की की हथियार विक्रेता को, उसे मिले मूल्य का निश्चित भाग देश में ही "”शोध अथवा कल - पुर्जे के निर्माण " में निवेश करना होता हैं | इससे धीरे - धीरे देश में उस हथियार के सामानो की आपूरतू घरेलू बाजार से ही हो जाती हैं | जिससे देश आत्म निर्भर हो सकता हैं | परंतु अमेरिकी कंपनियो को यह शर्त नहीं भाति हैं | क्योंकि इससे उनके घरेलू बाजार में हेलिकॉप्टर या विमान अथवा नौसेना के जहाज के कल पुर्जे बनाने वाली इकाइया प्रभावित होती हैं | इसलिए केंद्र सरकार ने खरीद के बजाय "”लीज " पर इन युद्धक सामानो की आपूर्ति करने का रास्ता निकाला हैं |

यह रास्ता मुझे एसियाई खेलो में सामानो की आपूर्ति की ही भाति का घोटाला होने की संभावना लगती हैं | एसियान गेम्स महासंघ के आद्यकश सुरेश कलमांदी पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे | जब प्रिन्टर और कम्पुटर तथा एयर कोंडीशनर आदि को किराए पर या कहे "”लीज "” पर लिया गया था | बाद में जांच में पाया गया की उन वस्तुओ की कीमत से कनही अधिक लीज रेंट का दाम था ! स्पष्ट हैं की ऐसा सामान आपूर्ति कर्ताओ को अनुचित लाभ पाहुचने के लिए किया गया था | अन्यथा सिर्फ रख - रखाव नहीं करना पड़े , मात्र इसी लिए लीज पर सामानो को लेकर वित्तीय नियमो की अवहेलना की गयी थी | आज भी सरकारी मंत्रालयों में कार रखने के बजाय अधिकारी टॅक्सी का उपयोग करते हैं | जो दीर्घ काल में कार की कीमत से अधिका का भुगतान होता हैं | राज्यो में भी यही परंपरा हैं | गरमियो में कूलर जब दफ्तरो में लगते हैं तब उनका भी किराया उसके वास्तविक मूल्य को एक गर्मी में चुका देता हैं | आपूर्ति करता को दूसरे साल से वह कूलर मुफ्त का पड़ता हैं | यह चलन सरकारी अस्पतालो में बड़ी - बड़ी मशीनों के मामलो में भी हैं | रेड क्रॉस अस्पतालो में रख -रखाव की अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए "” किराए पर "” लेने को आसान बताते हैं | उनके अनुसार रख -रखाव के लिए कंपनी अपने तकनीकी करमचरियों को भेजती हैं , मशीन ठीक चले यह उसकी ज़िम्मेदारी हैं | परंतु जितने दिन मशीन के खराब होने से नागरिकों को परेशानी होती हैं ---उसका कोई ज़िक्र तक "”किराए के अनुबंध "” में नहीं होता ! वह अफसरो से कंपनी के लोग कह सुन कर निपट लेते हैं ! बस यही "”निपट लेने में ही भ्रस्ताचर छुपा होता हैं | क्योंकि दंडात्मक शर्त के होने के बावजूद उसका पालन नहीं किया जाता | कुह ऐसा ही रक्षा मंत्रालय द्वरा हमारी सेनाओ के हथियार और वाहनो की आपूर्ति में भी हैं | पहले विदेशो से आयात कर्ता पर यह शर्त हुआ करती थी की वह निश्चित भुगतान के एक भाग को भारत में शोध और पुर्जो के बनाने में लगाएगा | इन्दिरा गांधी के जमाने में "”सुपर प्रॉफ़िट "” यानि 100 प्रतिशत से ज्यादा लाभ कमाने वाली कंपनियो को सौ प्रतिशत के ऊपर कमाए गयी राशि को भारत में ही निवेश करना पड़ता था | हथियारो की आपूर्ति में भी यह नियम लागू था | परंतु मौजूदा सरकार ने अमेरिकी कंपनियो के दबाव में , जो की सैन्य साजो सामान की सबसे बड़े आपूर्ति कर्ता हैं , उनको लाभा पाहुचने के लिए यह शर्त हटा ली और नाम दिया "”आफ़सेट " खरीद ! जबकि रूस - फ्रांस से खरीद सरकार से सरकार बीच होती हैं | राफेल के मामले में भी महालेखा नियंत्रक ने अपनी रिपोर्ट में कहा की राफेल ने अपने "””देय"”” का भुगतान या निवेश भारत में नहीं किया हैं | आगे पाठक स्वयं सोच सकते हैं |