Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 22, 2018


जनहित याचिका और उसके पीछे के निहितार्थ को भाषित करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले का निहितार्थ !! क्या जज लोया की संदिग्ध स्थितियो मे हुई मौत की स्वतंत्र जांच क्या इस लिए – गर्हित है की उसमे देश के एक बड़े नेता का नाम लिया जा रहा है ?? क्या महाभियोग इलाज़ कर पाएगा ?

किंवदंती मे विक्रमादित्य और इतिहास मे जंहागीर की न्याय की ज़ंजीर का जिक्र है | जनहा उपलब्ध हालातो पर न्याय किया जाता था | एवं वह न्यायपूर्ण भी होता था | जनता संतुष्ट भी होती थी और आदर करती थी | आज न्यायपालिका पर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो गया है | जब किसी बड़े आदमी को बचाने के लिए अदालत वकीलो पर नाम लेने मात्र से नाराज़ हो जाती है | जज लोया की मौत की स्वतंत्र जांच और जय शाह की मानहानि का मुकदमा इस ओर कुछ इंगित करता है |
जज लोया की संदिग्ध हालातो मे मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली बाम्बे लायर्स एसोसिएसन की याचिका पर निर्णय देते हुए प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा और जज मनोहर खनविलकर तथा न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने याचिका को न्यायपालिका --- “” की स्वतन्त्रता पर हमला तथा राजनीतिक जंग मे न्यायपालिका को घसीटा गया एवं जनहित याचिका राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए दाखिल की गयी है "” ? जस्टिस च्ंदचूड ने कहा की "” जब जज लोया का केस सुप्रीम कोर्ट मे पेश किया गया -तब एक मैगजीन और एक अखबार मे न्यायपालिका की छवि को खराब करने वाली प्रायोजित रिपोर्ट्स छपी थी !!”” | इतने गंभीर "”आरोप "” वे मीडिया के प्रति लगाए है --- परंतु न्यायालय की ओर से कोई अवमानना की नोटिस इन मीडिया संस्थानो को नहीं दिया गया ! सवाल उठता है की जो अदालत याचिका के प्रस्तुतकर्ताओ के वीरुध "अवमानना का विचार कर सकती है --- जो न्यायीक भाषा मे "” आफिसर ऑफ ला " कहलाते है जैसे माननीय न्यायमूर्ति है | वह मीडिया घरानो को नोटिस जारी नहीं करती क्यो ?

याचिकाकर्ता की नीयत वही मानी जाती है जो उसने अपनी याचिका मे लिखा है , उसके अलावा किसी अन्य "कारण" का होना कोई अदालत कैसे कह सकती है | जब की याचिका शपथपत्र पर दी जाती है ! फिर यह कहना की यह राजनीति प्रेरित है – उसका आधार माननीय जजो ने फैसले मे नहीं दिया क्यो ?
किस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के जजो ने याचिका को राजनीतिक दुश्मनी निकालने वाला पाया ? क्या इसलिए की जज लोया भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का मामला सुन रहे थे ? अथवा उनसे पहले सुनवाई करने वाले जज का अचानक तबादला क्यो हुआ ? इसी संदर्भ मे अमित शाह के सुपुत्र जय शाह द्वरा "द वायर " पर किए गए "मानहानि के दावे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहा जाना "” की दोनों पक्ष अदालत के बाहर इस मामले को निपटा ले ! अदालत के बाहर अपने विवादित मुद्दे को सुलझाने का सुझाव "कुटुंब न्यायालय द्वरा ही होता है " अब देश की सर्वोच्च अदालत कुटुंब न्यायालय जैसा आदेश देने लगी है !! द वायर ने अदालत के इस आदेश से असहमति जताते हुए कहा " उनकी रिपोर्ट जनहित को ध्यान मे रखते हुए लिखी गयी थी | “”
अब देखे की जो मामले पूरी तरह राजनीति से प्रेरित थे उन पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपना गुस्सा नहीं निकाला --उदाहरण के लिए महाराष्ट्र के पुणे के एक निवासी ने सुप्रीम कोर्ट मे जनहित याचिका लगा कर "” महात्मा गांधी हत्यकाण्ड की नए सिरे से जांच की मांग की गयी थी | उस पर अदालत ने कहा की मामला "बहुत पुराना है और कोई नए तथ्य नहीं है " अतः मामला खारिज किया | क्या यह मामला राजनीति प्रेरित नहीं था ?? दूसरा मामला है बोफोर्स तोपों की खरीदी का , एक अर्ज़ी द्वरा मांग की गयी थी की इस मामले मे सीबीआई और निचली अदालतों ने ठीक से छानबिन नहीं की है | अतः दुबारा जांच नए सिरे से की जाये | अब सारे देश को मालूम है की इस मुद्दे को किस राजनीतिक दल के विरुद्ध खड़ा किया जा रहा है | जबकि यथार्थ यह है की आज भी भारतीय सेना इनहि तोपों का इस्तेमाल कर रही है | इस मामले मे अभी फैसला विचारधीन है | अब एक जनहित याचिका गांधी परिवार के संस्थान नेशनल हेराल्ड का है , जिसमे सुबरमानियम स्वामी याचिकाकर्ता थे , अब यह सभी को मालूम है की कौन कन्हा पर है | परंतु उस मामले मे भी अदालत ने " राजनीति प्रेरित '' नहीं माना |
एक ओर सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ काँग्रेस और अन्य दलो ने उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकिया नायडू को भेज दिया है | संविधान के अनुसार इस प्रस्ताव को वे "”परखेंगे '' और इस प्रक्रिया मे वे किसी भी न्यायविद की सलाह ले सकते है किसी दस्तावेज को देख सकते है | उनकी अनुमति के उपरांत ही प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ जांच समिति का गठन करेंगे |
अब जिस राजनीतिक दुश्मनी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी , वह तो विपक्ष और सत्ताधारी दल के मधी हो रही है और होगी | इस प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति की "'अनुमति मिलने का कोई अवसर नहीं है "” क्योंकि भले ही उन्होने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया हो -परंतु उनके मन को आसानी से पढा जा सकता है | अर्थात आज जब महाभियोग के प्रस्ताव को समर्पित किया गया है ----तभी उसके भविष्य का निर्धारण हो गया है | सभापति इस आरोप पत्र को "” तथ्य हीन'' करार दे देंगे " | इसे कहते है की गर्भ मे ही मौत हो जाना |

विगत दिनो सुप्रीम कोर्ट के चार वारिस्ठ जजो द्वरा जज दीपक मिश्रा की कारी शैली पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए थे ---वह अप्रतिम घटना थी | उस समय भी प्रधान न्यायमूर्ति ने मौन रखा था --कोई प्रतिक्रिय नहीं दी थी | फिर कालेजियम द्वरा कर्नाटक के एक जज को पदोन्नत कर हाई कोर्ट मे नियुक्त किए जाने के फैसले को केंद्र के विधि विभाग ने रोक दिया , तब भी न्यायमूर्ति चेल्मेस्वर ने प्रधान न्यायमूर्ति को पत्र लिख कर अशंतोष जताया था की केंद्र सरकार ने न्यायपालिका को विभाग प्रमुख बना कर रख दिया है |
इसी संदर्भ मे मुकदमो की सुनवाई के लिए पीठ के गठन के सवाल को लेकर जो नाराजगी चार जजो ने व्यक्त की थी --उसके जवाब मे कह गया था की "” प्रधान न्यायधीश मास्टर ऑफ द रोस्टर है , वे ही तय करेंगे की कौन सा मुकदमा किस अदालत मे सुना जाएगा ! जिन चार जजो ने सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका की स्वतन्त्रता और निष्पक्षता को खतरे मे बताया था , वे सभी सर्वोच्च संस्था "” कालेजियम '' के सदस्य है | अब यह बड़ा ही विचित्र है की जो निकाय उच्च न्यायालय मे पदोन्नति और नियुक्ति तथा सुप्रीम कोर्ट मे पददोन्नति और नियुक्त के लिए अधिकार रखता है ---- उसके लिए मुकदमो की सुनवाई का निर्धारण मात्र प्रधान न्यायधीश करे !! थोड़ा अटपटा लगता है की प्रधान न्यायाधीश की पीठ मे मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश मनोहर खानविलकर तथा न्यायमूर्ति चंदचूड ही सदैव रहते है ! जितने भी महत्वपूर्ण मामलो की सुनवाई अभी तक हुई उसमे कालेजियम के सदस्यो की अनदेखी ही की गयी | आखिर क्यो | सवाल अनुतरित ही रह जाएगा -ऐसी प्रबल संभावना है |