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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 29, 2015

नया संसद भवन - इतिहास मे पहचान बनाने की पहल

नया संसद भवन - इतिहास मे पहचान बनाने की पहल ?
अथवा देश की धरोहर को नकारने की कोशिस ?
वर्तमान संसद भवन के स्थान पर नए भवन की जरूरत,, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल की शुरुआत मे ही कह चुके थे | अब उसी को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने दुहराया है | इस सुझाव का आधार '''स्थान की कमी ''''बताया गया" है | अब जिस भवन मे मात्र 75 दिन ही एक साल मे कार्य हो रहा हो , उसके लिए अरबों रुपये का खर्चा कहा से न्याय संगत है ? वैसे मौजूदा भवन को सौ साल भी बने नहीं हुआ है ,, और नए की मांग उठ खड़ी हुई है | आखिर जब केन्द्रीय सरकार वित्तीय संकट से गुजर रही हो --अनेकों जन हितकारी योजनाए केवल इस लिए बंद की जा रही हो की सरकार के पास वित्तीय संसाधन नहीं है ,ऐसे मे यह मांग कितनी जायज है -सोचने की बात है |

बाते जा रहा है की आस्ट्रेलिया -सिंगापूर मे नए संसद भवन का निर्माण किया गया है ,अतः यह मांग वाजिब है | एक ओर हम भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने की बात करते है , दूसरी ओर हम तुलना ऐसे देशो से करते है जो हमशे बराबरी नहीं कर सकते | क्या ब्रिटेन ने हाउस ऑफ कामन्स के स्थान पर नया भवन बनया है ? क्या अमेरिका मे काँग्रेस भवन का पुनर्निर्माण किया गया ? फ़्रांस मे भी सैकड़ो वर्ष पुराने भवन मे संसद लगती है | इन देशो ने अपने विधि निर्माण स्थलो को देश और प्रजातंत्र की धरोहर समझ कर बनाए रखा है | यह उनकी राष्ट्रिय पहचान भी है ,और सैकड़ो वर्ष के इतिहास की गवाह है | हम इसलिए स्थान की कमी की बात कर रहे की '''कुछ नया कर जाये यह सरकार ''' जिससे की इतिहास मे नाम हो जाए !


वैसे संसद भवन का निर्माण 1921 से शुरू हो कर 1926 मे पूर्ण हुआ | इस को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के लिए बने गया था | इसका उदघाटन 18 जनवरी 1927 को वॉइस रॉय लॉर्ड इरविन ने किया था | पहली लोकसभा मे सर्वाधिक बैठके हुई थी जो सौ से ज्यादा थी | उसके उपरांत किसी भी लोकसभा मे सौ बैठके नहीं हुई | यद्यपि नए लोक सभा परिसर की मांग पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी की थी -एयक समिति भी बनी थी ,फिर वित्तीय तख़मीने के कारण सरकार ने इसके निर्माण की योजना दाखिल दफ्तर कर दी थी | अब फिर से उसी मांग ने सर उठाया है | हमे विचार करना होगा की क्या वास्तव मे सांसदो के कामकाज के लिए मौजूदा भवन मे स्थान की कमी है ?? 

Dec 27, 2015

यह है कोटा कोचिंग वाला --बस अब तक इक्कतीस !!

यह है कोटा कोचिंग वाला --बस अब तक इक्कतीस !!
आज कल नौजवानो मे अपने भविष्य को लेकर काफी उत्सुकता रहती है , इसी लिए वे अपने भावी कैरियर के लिए सुबह से शाम तक दौड़ते रहते है | प्राथमिक शिक्षा के उपरांत ही नौकरी की दौड़ मे आगे बने रहने के लिए वह कॉलेज मे अध्ययन के बाद ट्यूसन और फिर कोचिंग जाना | इस सारी दिनचर्या मे खेल अथवा परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिलता ही नहीं | घर के सदस्यो से अधिक उसका साथ अपने मिलने - जुलने वाले साथियो से होता है | जिनके चाल - चरित्र का कोई पता नहीं होता |अब ऐसे वातावरण मे उसके '''सही और ठीक रहने '''' की संभावना कमजोर हो जाती है |

लगातार किताबे और पढाई का दबाव तथा भाग -दौड़ का माहौल , जिसमे सिर्फ "””बहते ही जाने की संभावना होती है ,,उसमे "” स्व विवेक ''के इस्तेमाल का मौका कम ही मिलता है | प्रतिस्पर्धा - मे पिछड़ जाने का अवसाद अक्सर छात्रो को दृग और नशे की ओर ले जाता है | एक कारण तो होता है की उसे लगता है की वह अपने माता--पिता की आशाओ पर खरा नहीं सिद्ध हो प रहा है | फिर उनके द्वारा मिलने वाली प्रताड़ना और अपमान उसे बेचैन कर देते है | ऐसे मे कोई बड़ा – बुजुर्ग उसे सान्त्व्ना देने वाला नहीं होता | टूटन के इस कगार पर वह कुछ ऐसा करना चाहता है जो उसके "””अहम"”” को संतुष्टि दे सके |
परंतु सुनहरे भविष्य और सुखद ज़िंदगी की "”आस '' उसे किसी अन्य विकल्प को चुनने का साहस नहीं दे पाती | असफलता से टूटे हुए को सांत्वना सिर्फ अभिभावक अथवा कोई बड़ा जिसके लिए छात्र के मान मे सम्मान हो ---वही उसे ''बचा सकता है "”' | | ऐसी स्थिति मे भी कोचिंग सेंटर के संचालक उनही छात्रो को छाती से चिपकाए रहते है ---जिनकी सफलता को वो अगले साल विज्ञापन मे फोटो देकर भुना सकते है | यह भी कोचिंग सेंटरो की आपस की प्रतिस्पर्धा का ही कारण होता है | वे नौनिहालों के भविष्य को सवारने का काम नहीं करते है ,,वरन करेंसी नोट कमाने का काम करते है || उन्हे सिर्फ भर्ती के समय ज्यादा से ज्यादा लड़को भरने का काम आता है | यह सेवा नहीं "””व्यवसाय''' है | जिसमे विज्ञापन पर भरोसा कर के लड़का अपने अभिभावकों को इस "” ख़र्चीले और मंहगे "” रास्ते की ओर जाने के लिए दबाव बनाता है | जब उसे पता चलता है की पिता ने ज़मीन --मकान गिरवी रखकर पैसा लिया है---कोचिंग मे उसकी भर्ती के लिए |तब उसे लगता है की की इस क़र्ज़े को उसे उतारने के लिए कुछ बनना होगा |


पर उसी के ऐसे हजारो महत्वाकांछी लोग राजस्थान के रेतीले इलाके मे बसे कोटा नामक इस शहर मे अपना भविष्य स्वरने आते है | पर असफलता का एक झटका लगते ही वे फांसी पर झूल जाते है | अब तक ऐसे लड़को की संख्या इकतीस हो चुकी है अब इन असफल लोगो की जान की कुछ कीमत है ?? उनकी मौत क्या इस "”'कोचिंग फैक्ट्री के शहर "” के इन संचालको को छात्रो की मनः स्थिति को समझने का का प्रयास करेंगे ?? अथवा इकक्तिस की यह संख्या आगे भी बदेगी ???

माधव का अखंड भारत का सपना ? जमीनी और हवाई हक़ीक़त

मोदी की लाहौर यात्रा --माधव का अखंड भारत का सपना ?
जमीनी और हवाई हक़ीक़त
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक लाहौर यात्रा को लेकर चंद लोग ''अति उत्साहित "” दिखाई पड रहे है | संघ के प्रवक्ता रहे और मौजूदा संगठन महा मंत्री राम माधव ने तो "”त्वरित टिप्पणी "” की तरह इसे अखंड भारत का आरंभ ही घोषित कर दिया | वे राजनीतिक प्रष्ठ भूमि के नेता नहीं है ---- संघ से आए है , जनहा एक सीमित विषयो पर ही विमर्श होता है | विदेश नीति के तहत संघ का मानना है की "”हम सर्व श्रेष्ठ है "” विश्व गुरु है , | अब इन अभिलाषाओ से आकांछा तो प्रश्फ़ुटित होती है ,,परंतु वह "” शतायु भाव "”” के आशीर्वाद की भाति है जो संभव होता नहीं है | परंतु हजारो वर्षो से परंपरा का निर्वाह आज भी होता चला आ रहा है |

इस संदर्भ मे पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई की लाहौर बस यात्रा की विवेचना करना होगा | तभी हम यथार्थ जान पाएंगे अटल जी दोनों देशो के अधिकारियों की विस्तारित चर्चा के बाद बस से 19 फ़रवरी 1999 को लाहौर गए थे | उम्मीद हुई थी की पड़ोसी को | भरोसा होगा --हमारी सदिच्छा पर | परंतु मई मे ही पाकिस्तानी सेना ने कारगिल मे मोर्चा खोला | बात यही तक नहीं थी सन 2001 मे संसद मे आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान से वार्ता भंग हो गयी थी | उस समय लोगो को अटल जी के प्रयास पर संदेह नहीं हुआ था ----क्योंकि तैयारी के बाद वार्ता हुई थी |
परंतु मोदी की इस यात्रा का सारा दारोमदार सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल और पाकिस्तान के सलाहकार के मध्य बैगकाक मे हुई '''चर्चा ''' ही आधार बनी है | उस बैठक के बाद ही अचानक विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान यात्रा हुई ,,जिस पर देश मे बहुत असमंजस था | उसके बाद अफगानिस्तान मे ''यारी मेरे यार ''' गाने के बाद अचानक तो नहीं पर अघोषित इस हवाई यात्रा से बहुत ज्यादा उम्मीद करना समझदारी तो नहीं होगी | विगत साठ वर्षो मे जिस काश्मीर के मुद्दे को सभी प्रकार की ''''वार्ताओ '''' से अलग रखा गया --उसे आज की सरकार एजेंडे पर लाना चाहती है |जिस विषय को भारत की संसद ने सार्वभौमिकता से जोड़ दिया है -उसको भी विचारणीय बनाए जाने का अर्थ क्या घुटने टेकना नहीं है ???

अब बात अखंड भारत की ले - राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के नक्शे मे ''अफगानिस्तान से लेकर वर्तमान पाकिस्तान तथा बंगला देश म्यांमार और इन्डोनेशिया द्वीपो तक फैला है | “ अब आज की अंतराष्ट्रीय परिस्थिति मे क्या ऐसी बात कहना या मांग रखना "”खतरनाक "””नहीं होगा | दूसरा महा युद्ध ऐसी ही सान्स्क्रतिक एकता को लेकर आर्क ड्यूक की हत्या हुई थी -बाद मे जिसने सारे विश्व को युद्ध की विभीषिका का कारण बना | जिस आर्य संसक्राति के आधार पर अखंड भारत की कल्पना संघ द्वारा की गयी है ----नाजी संसक्राति भी आर्य समूह को विश्व का शासक बनाने की बात करती थी | परंतु वे एशिया के आर्यों को " शुद्ध आर्य नस्ल"”नहीं मानते थे | अब ईरान के सम्राट की उपाधि भी "” अरियामेहर "” थी | जिसका अर्थ था आर्य श्रेष्ठ - परंतु आज हक़ीक़त क्या है ? खोमइनी का इस्लामिक राज्य ! अफगानिस्तान मे सान्स्क्रतिक रूप से तीन भाग है ,,वहा ताजिक --उज़्बेक और मुगल तथा पठान है , उनमे आपस मे इतना बैर है की ज़ाहिर शाह की बादशाहत खतम करने के बाद से सभी अपने - अपने क़बीलो की "”शुरा"” के फैसलो से चलते है | इन बैठको मे भी जंगजू नेताओ का बोलबाला रहता है | फलस्वरूप पिछले तीस सालो से वंहा बमो के धमाके और बंदूक की गोली ही 'राज़' कर रही है | ये कबीले आपस मे भी लड़ते है और अमरोकी फौजों के खिलाफ भी युद्ध घोषित किए हुए है | पाकिस्तान का फाटा इलाका भी कबयालियों के कानून से चलता है | पाकिस्तानी फौज कभी - कभी हस्तक्षेप करती है | वरना अपनी छावनियों मे क़ैद रहते है |

अखंड भारत का सपना संघ कैसे मंजूर कर रहा है ---जबकि उसका मुस्लिम विरोध जग ज़ाहिर है |
एका ऐतिहासिक तथ्य है की आज की दुनिया मे ''देशो का विभाजन सन्स्क्रातियों के आधार पर हुआ है ----परंतु दो देश का कोई गठबंधन बना हो ऐसा नहीं हुआ | मलाया और सिंगापूर मिलकर मलेशिया बना था --परंतु कुछ समय उपरांत ही अलग हो गया | मिश्र ने नासिर के समय इस तरकीब से अरब एकता को मजबूत करना चाहा था -परंतु वह भी बिखर गया | मार्शल टीटो ने युगोस्लाविया बने और उनके अंत केसाथ ही उनका गठबंधन भी बिखर गया | तीन हिस्सो मे बटे देश आज की हक़ीक़त है | भारतीय जनता पार्टी सपने देखने और उन्हे प्रचारित करने मे जमीनी हक़ीक़त भूल जाति है --यही कारण है की विगत बीस महीनो मे अनेक "”मुद्दो "”” पर उन्हे ''यू टर्न ''लेना पड़ा | वैसा ही इस मामले भी होगा |




Dec 25, 2015

अपराध का निर्धारण -शकल देख कर होगी सज़ा-गुनाह से नहीं


प्रक्रति मे न्याय -मत्स्य न्याय होता है | बलशाली कमजोर का शिकार अपराध का निर्धारण --शकल देख कर -- सज़ा-गुनाह से नहीं होता है | परंतु मानव ने प्राकरतीक न्याय का अर्थ ''समानता ---विधि के सम्मुख "” का सिद्धांत अपनाया | राजनीति शास्त्र मे भी दैवी सिधान्त के तहत भी न्याय "”एक ही कसौटी पर परखनी की बात काही है "””| यद्यपि एक ही अपराध के लिए ,, आम आदमी {{प्रजा}} और शासक वर्ग के लिए "””सज़ा"” मे भिन्नता होती थी | चाणक्य के अर्थशास्त्र मे भी ब्रामहण को और राजवंशियो के लिए हल्की सज़ा का प्रविधान था |

संदर्भ :- भारतीय जनता पार्टी सांसद कीर्ति आज़ाद का पार्टी से निलंबन |

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने आज़ाद को पार्टी विरोधी गतिविधि के कारण कारण बताओ नोटिस दिया | जिसमे डीडीसीए के मामले मे वितता मंत्री अरुण जेटली के वीरुध आप और काँग्रेस पार्टी से मिलकर बयान देने का आरोप लगाया गया है |

जिन लोगो ने रविवार दिसम्बर की आज़ाद की प्रैस कोन्फ़्रेंस देखि होगी वे जानते होगे की पूरी कोन्फ्रेंस मे कीर्ति ने जेटली का नाम नहीं लिया | उन्होने तत्कालीन अध्यक्ष के कार्यकाल मे हुई गडबाडियो का हवाला दिया था | जबकि यह सर्व ज्ञात सत्या है की जेटली ही उस काल मे पदासीन थे | मोदी की रूस यात्रा के समय जेटली ने कीर्ति को निलंबित क्यी जाने अथवा उनके द्वारा "””मंत्री पद के सिवाय "”” पार्टी के समस्त पदो से इस्तीफा देने का अल्टिमेटम शाह को दिया | वे शत्रुघन सिन्हा की तरह इस मामले की भी अनदेखी किए जाने को कहा था | परंतु जेटली के अल्टिमेटम ने ''अनुशासन ''' का सबक कीर्ति को सीखा //दिखा दिया |


इस परिप्रेक्ष्य मे दो बाते साफ हो गयी की --जेटली ना केवल डीडीसीए की जांच को बंद करना चाहते है -वरन कोई भी आदमी जो इस मुद्दे को छेड़ता है "””उसे वे सबक सीखना चाहते है "””” क्योंकि वे सुप्रेम को अपने र्ट के वकील है -कानून के जानकार है , वे जानते है की आरोप सिद्ध होने पर ना केवल उनका मंत्री पद से इस्तीफा होगा {{ जिसे वे किसी कीमत पर नहीं करना चाहते है }}]
वरन सोनिया और राहुल गांधी ऐसे "” नेताओ "”” की भांति उन्हे भी पटियाला हाउस मे जमानत के लिए "”चोटी अदालत के जज से जमानत की दरख्वास्त करनी होगी | जो उनके '''आतंसम्मान ''' के विरुद्ध है ||| क्योंकि वे "”शासक वर्ग "”” मे "””फिलहाल "””है |
कहते की कानून की देवी की आंखो पर गांधारी की भांति पट्टी बंधी है --- पर यहा कानून {{{पार्टी के नियम }}} के जिम्मेदारों की आंखो पर पट्टी बंधी है |
जो पार्टी अपने र्ट के वकील है -कानून के जानकार है , वे जानते है की आरोप सिद्ध होने पर ना केवल उनका मंत्री पद से इस्तीफा होगा {{ जिसे वे किसी कीमत पर नहीं करना चाहते है }}]
सदस्यो के साथ भेद भाव कर रही है वह दसदस्यो के साथ भेद भाव कर रही है वह देशवासियों के साथ क्या न्याया करेगी ??



Dec 23, 2015

सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या

सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या
डीडीसीए की गदबड़ियों के आरोप से बचने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आखिरकार सरकार और संगठन की ताक़त के बल पर अपने आलोचक सांसद कीर्ति आज़ाद को पार्टी से निलंबित करवा ही दिया | वैसे पार्टी के दूसरे सांसद शत्रुघन सिन्हा ने ट्वीट कर के अपने "”सभी मित्रो से आज़ाद का समर्थन करने का आग्रह किया है "””| बीजेपी नेत्रत्व की
मौजूदा ''हालत'' को देखते हुए यह उम्मीद करना तार्किक ही होगा की अब उनको भी अनुशासन का पाठ पढाया जाएगा | एक और सांसद है वे भी बिहार से है ,, पूर्व गृह सचिव आर के सिंह -जिनहोने ने पैसा लेकर विधान सभा चुनावो मे पार्टी के प्रदेश नेत्रत्व द्वारा पैसा लेकर टिकट दिये जाने का आरोप लगाया था | अब देखते है की पार्टी के नेताओ के काम -काज की आलोचना का क्या परिणाम इन दोनों सांसदो को मिलेगा ??

लेकिन निलंबन के फैसले से सार्वजनिक जीवन मे ना तो जेटली "””निर्दोष "”” साबित होंगे --और ना ही दल के कार्यकर्ताओ मे ''उपजे '' अविश्वास और असंतोष ''को दबाया जा सकेगा | एक निलंबन प्रदेश के वरिष्ठ नेता का भी हुआ था -लक्ष्मी कान्त शर्मा का ,,जिनहे 500 दिन जेल मे रहने के बाद जमानत मिली है | उनके जेल से बाहर आते ही राष्ट्रीय महा मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इस निलंबित नेता --का ना केवल स्वागत किया वरन अनकहे शब्दो मे पार्टी मे उनकी वापसी की उम्मीद भी बताई | अब इन दो निलंबन आदेशो का भविष्य क्या होगा इंतज़ार रहेगा ,, की किस आधार और किस ओर जाते है |पार्टी के आदेश ?

एक स्थिति का अनुमान लगाए की अगर अदालत जेटली को Derliction ऑफ ड्यूटी का दोषी करार देती है --तब पार्टी कैसे उन्हे अपील करने की इजाजत देगी ? क्योंकि निलंबन के बाद लक्ष्मी कान्त शर्मा को अपील करने का तो "””मौका "””नहीं दिया गया था ?? तो इंतज़ार रहेगा की की भारतीय जनता पार्टी का नेत्रत्व भविष्य मे क्या फैसला करेगा ?


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सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या

सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या
डीडीसीए की गदबड़ियों के आरोप से बचने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आखिरकार सरकार और संगठन की ताक़त के बल पर अपने आलोचक सांसद कीर्ति आज़ाद को पार्टी से निलंबित करवा ही दिया | वैसे पार्टी के दूसरे सांसद शत्रुघन सिन्हा ने ट्वीट कर के अपने "”सभी मित्रो से आज़ाद का समर्थन करने का आग्रह किया है "””| बीजेपी नेत्रत्व की
मौजूदा ''हालत'' को देखते हुए यह उम्मीद करना तार्किक ही होगा की अब उनको भी अनुशासन का पाठ पढाया जाएगा | एक और सांसद है वे भी बिहार से है ,, पूर्व गृह सचिव आर के सिंह -जिनहोने ने पैसा लेकर विधान सभा चुनावो मे पार्टी के प्रदेश नेत्रत्व द्वारा पैसा लेकर टिकट दिये जाने का आरोप लगाया था | अब देखते है की पार्टी के नेताओ के काम -काज की आलोचना का क्या परिणाम इन दोनों सांसदो को मिलेगा ??

लेकिन निलंबन के फैसले से सार्वजनिक जीवन मे ना तो जेटली "””निर्दोष "”” साबित होंगे --और ना ही दल के कार्यकर्ताओ मे ''उपजे '' अविश्वास और असंतोष ''को दबाया जा सकेगा | एक निलंबन प्रदेश के वरिष्ठ नेता का भी हुआ था -लक्ष्मी कान्त शर्मा का ,,जिनहे 500 दिन जेल मे रहने के बाद जमानत मिली है | उनके जेल से बाहर आते ही राष्ट्रीय महा मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इस निलंबित नेता --का ना केवल स्वागत किया वरन अनकहे शब्दो मे पार्टी मे उनकी वापसी की उम्मीद भी बताई | अब इन दो निलंबन आदेशो का भविष्य क्या होगा इंतज़ार रहेगा ,, की किस आधार और किस ओर जाते है |पार्टी के आदेश ?

एक स्थिति का अनुमान लगाए की अगर अदालत जेटली को Derliction ऑफ ड्यूटी का दोषी करार देती है --तब पार्टी कैसे उन्हे अपील करने की इजाजत देगी ? क्योंकि निलंबन के बाद लक्ष्मी कान्त शर्मा को अपील करने का तो "””मौका "””नहीं दिया गया था ?? तो इंतज़ार रहेगा की की भारतीय जनता पार्टी का नेत्रत्व भविष्य मे क्या फैसला करेगा ?


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सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या

सरकार -संगठन और अदालत के कवच से जेटली निर्दोष होंगे क्या
डीडीसीए की गदबड़ियों के आरोप से बचने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आखिरकार सरकार और संगठन की ताक़त के बल पर अपने आलोचक सांसद कीर्ति आज़ाद को पार्टी से निलंबित करवा ही दिया | वैसे पार्टी के दूसरे सांसद शत्रुघन सिन्हा ने ट्वीट कर के अपने "”सभी मित्रो से आज़ाद का समर्थन करने का आग्रह किया है "””| बीजेपी नेत्रत्व की
मौजूदा ''हालत'' को देखते हुए यह उम्मीद करना तार्किक ही होगा की अब उनको भी अनुशासन का पाठ पढाया जाएगा | एक और सांसद है वे भी बिहार से है ,, पूर्व गृह सचिव आर के सिंह -जिनहोने ने पैसा लेकर विधान सभा चुनावो मे पार्टी के प्रदेश नेत्रत्व द्वारा पैसा लेकर टिकट दिये जाने का आरोप लगाया था | अब देखते है की पार्टी के नेताओ के काम -काज की आलोचना का क्या परिणाम इन दोनों सांसदो को मिलेगा ??

लेकिन निलंबन के फैसले से सार्वजनिक जीवन मे ना तो जेटली "””निर्दोष "”” साबित होंगे --और ना ही दल के कार्यकर्ताओ मे ''उपजे '' अविश्वास और असंतोष ''को दबाया जा सकेगा | एक निलंबन प्रदेश के वरिष्ठ नेता का भी हुआ था -लक्ष्मी कान्त शर्मा का ,,जिनहे 500 दिन जेल मे रहने के बाद जमानत मिली है | उनके जेल से बाहर आते ही राष्ट्रीय महा मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इस निलंबित नेता --का ना केवल स्वागत किया वरन अनकहे शब्दो मे पार्टी मे उनकी वापसी की उम्मीद भी बताई | अब इन दो निलंबन आदेशो का भविष्य क्या होगा इंतज़ार रहेगा ,, की किस आधार और किस ओर जाते है |पार्टी के आदेश ?

एक स्थिति का अनुमान लगाए की अगर अदालत जेटली को Derliction ऑफ ड्यूटी का दोषी करार देती है --तब पार्टी कैसे उन्हे अपील करने की इजाजत देगी ? क्योंकि निलंबन के बाद लक्ष्मी कान्त शर्मा को अपील करने का तो "””मौका "””नहीं दिया गया था ?? तो इंतज़ार रहेगा की की भारतीय जनता पार्टी का नेत्रत्व भविष्य मे क्या फैसला करेगा ?


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Dec 22, 2015

अपनों पर करम और गैरो पर सितम की कहानी बनाम जेटली का मान हानि का मुकदमा , काम किसका और मुकदमा किस पर ?

अपनों पर करम और गैरो पर सितम की कहानी बनाम जेटली का मान हानि का मुकदमा , काम किसका और मुकदमा किस पर ?
दिल्ली क्रिकेट कंट्रोल असोशिएशन मे घपला और धन के दुरुपयोग के मामले मे काफी अजीब हो रहा है – भारतीय जनता पार्टी के सांसद कीर्ति आज़ाद ने तत्कालीन अध्यक्ष और मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली केआर कार्यकाल के समय मे हुई आर्थिक गड्बड़ियों की सीडी जारी कर के मामले को उजागर किया | परंतु जेटली ने मुकदमा दायर किया दिल्ली के मुखी मंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके चार सहयोगीयो पर ! जबकि आज़ाद खुले आम चुनौती दे रहे है की जेटली मे हिम्मत हो तो मुझ पर मुकदमा चलाये | परंतु जेटली ने ऐसा नहीं किया | यह भीउजागर तथ्य है की जेटली ने आज़ाद को पहले संघ और पार्टी के नेताओ से दबाव डलवा कर प्रैस वार्ता करने से माना किया था | परंतु आज़ाद अडिग रहे और रविवार को पत्रकारो के समक्ष सीडी वितरित की जिसमे वित्तीय अनियमितताओ का खुलासा किया गया था |
इस घटना क्रम से एक बात साफ होती है की जेटली अपना "”दामन "” साफ तो करना चाहते है -परंतु इसी बहाने राजनीतिक स्वार्थ भी सिद्धकरना चाहते है | परंतु "आफ्नो पर वार नहीं करना चाहते "| सवाल है क्यो ?
सीडी के तथ्यो से यह तो उजागर हो गया है की जेटली के कार्यकाल मे भयंकर घपले हुए - उसी प्रकार जैसे कोयला खानो के आवंटन मे मनमोहन सिंह के समय हुए थे | अब मनमोहन सिंह भले ही निर्दोष रहे हो -परंतु उस मामले की जांच सीबीआई से हुई और मनमोहन सिंह को अदालत मे पेश होना पड़ा | अब इस मामले मे भी अगर जेटली "बेदाग " भी हो तो भी सीबीआई से जांच और अदालत तक तो उन्हे भी जाना होगा | कम से कम तार्किक रूप से तो ऐसा ही लगता है |
लेकिन जेटली सीबीआई से जांच नहीं चाहते है ,क्योंकि ऐसा होने पर उन्हे पद से इस्तीफा देना होगा | क्योंकि उनके मंत्री रहते "”निष्पक्ष" जांच संभव नहीं | बस यही कारण है की वे इस पूरे मामले को अदालत मे फंसा कर के बचना चाहते है | विरोधियो की इस्तीफा देने की मांग पर ---उनका टकसाली उत्तर होगा की "”मामला अदालत मे है "
अतः कोई जवाब संसद मे नहीं दिया जा सकता और ना ही कोई कारवाई की जा सकती है | इसीलिए वे इन आरोपो को राजनीतिक प्रेरित बताते हुए --सिद्ध करने के लिए अदालत चले गए |इस प्रकार वे संसद मे तथा बाहर भी बेदाग बनेंगे | लेकिन उनके दो मुकदमो के जवाब मे केजरीवाल ने भी गोपाल सुबरमानियम की सदारत मे पूरे मामले की न्यायिक जांच करने क फैसला किया है | जिस से की उनकी कानूनी कारवाई का कानूनी जवाब दिया जा सके | अब बीजेपी की ओर से इस आयोग की वैधता पर सवाल किए जा रहे है | यह कह कर दिल्ली सरकार को यह फैसला करने का विधिक अधिकार नहीं है | यह भी हो सकता है की इस फैसले को नजीब जंग - लेफ़्टिनेंट गवर्नर से रोक लगवाई जाये | पर केजरीवाल ने इसलिए विधान सभा का आपातकालीन सत्र बुला कर अदालती जांच आयोग की नियुक्ति को वैधता प्रदान करने का तीर चलाया है | अब दो स्थानो पर एक मामले की कानूनी जांच होगी | देखना होगा की अगर दोनों ने एक दूसरे के विपरीत फैसला दिया तब क्या होगा ?? देखना दिलचस्प रहेगा |




Dec 21, 2015

जेटली द्वारा आप नेताओ के विरुद्ध मानहानि का मामला

जेटली द्वारा आप नेताओ के विरुद्ध मानहानि का मामला

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट मे वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके चार अन्य सहयोगीयो के खिलाफ मानहानि के दायर मुकदमे की अगली सुनवाई 2016 के पहले माह मे होगी | दिल्ली क्रिकेट असोशिएशन मे विगत तेरह वर्षो मे हुए वित्तीय घपलो को लेकर भारतीय जनता पार्टी के सांसद किर्ति आज़ाद द्वारा रविवार को प्रैस कान्फ्रेंस मे जारी की गयी विडियो सीडी मे तेरह फर्जी कंपनियो को सैकड़ो करोड़ के ठेके दिये जाने का आरोप लगाया गया है | मज़े की बात है की इन सालो मे असोशिएशन के आदयक्ष अरुण जेटली ही थे | परंतु मानहानि के मामले मे कीर्ति आज़ाद को पच्छकार नहीं बनाया गया है |
अरुण जेटली की यह पहल देश की राजनीति के लिए बहुत शुभ संकेत है – क्योंकि आज कल अधिकतर नेताओ को बिना "”आधार "” और "”बिना तथ्यो "”” के आरोप लगा कर अभियुक्त बनाने की रीति चल पड़ी है | हालांकि सीडी के हिसाब से जेटली जी कम से कम आरोपित गडबड़ियों की "””अनदेखी "” करने के जिम्मेदार तो साफ रूप से है | यह वैसा ही है जैसा जेटली जी कोयला खानो के आवंटन के लिए पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को "”कर्तव्य निर्वाह मे असफल "””” होने का दोषी बताते रहे है |
अब आरोपी को अभियुक्त बनाने का दावा करने की आदत पर कुछ तो "”लगाम "”” लगेगी,,ऐसा अनुमान किया जाना चाहिए | वैसे देखा जाये तो 2014 के लोकसभा चुनावो से आरोप -प्र्त्यरोपो का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह तो जारी है ही --साथ मे भारतीय जनता पार्टी के नेता अक्सर ''लोगो''' को देशद्रोही होने का फैसला सुनते रहे है | इतना ही नहीं अनेकों विरोधियो को तो देश से निकाल कर पाकिस्तान भेजने का भी दावा करते रहे है | अब ऐसे सभी नेताओ को सोचना होगा की क्या "”वे अपने बयान से किसी की मानहानि तो नहीं कर रहे है ?””” क्योंकि जेटली जी ने राजनीति मे आरोपो को "”कानून "”” की कसौटी पर कसने की जो शुरुआत की है वह तो बहुत दूर तलक जाएगी | इसका सबसे ज्यादा खामियाजा तो केंद्र की सत्तारूद पार्टी के नेताओ को ही भुगतना पड़ेगा ,, क्योंकि हर दिन अपने विरोधियो पर "”एका नया आरोप चस्पा " करने का सिलसिला तो उधर से ही शुरू हुआ है |
सुभरमानियम स्वामी इस कतार मे प्रथम है | वे अपने सभी आरोप अदालत मे ज़रूर ले जाते है --भले ही वहा वे पराजित हो कर आए | हाल के वर्षो मे सुप्रीम कोर्ट तक ने उन्हे सलाह दी है की वे गैर ज़रूरी मुद्दो से अदालत का समय बर्बाद करने से बचे | नेशनल हेराल्ड मामले मे भी सोनिया और राहुल गांधी को जमानत मिलने पर ''हताश'' स्वामी ने ,,अमेठी मे इस परिवार के ट्रस्ट द्वारा भूमि खरीद का मामला 2017 मे उठाने की घोषणा की है ! उनकी दूरंदेशी का स्वागत होना चाहिए |
वैसे अगर गंभीरता से देखा जाये तो जेटली जी जिस प्रकार "”खुद अदालत मे मामले को दायर किए जाने के समय मौजूद रहे -वह उनकी गंभीरता को दिखाता है | वे खुद सुप्रीम कोर्ट के "”बड़े वकील"”है उन्होने ज़रूर कोई न कोई मुदा तो खोजा ही होगा , मुकदमा दायर करने से पहले वरना खाली - पीली मामले को दायर कर जान बचाने की जुगत तो नहीं लगती है | हो सकता हो की वे मुकदमे के दौरान खबरों के छपने पर "”रोक "” लगाना चाहते हो | अनेकों मामलो मे अदालत सुनवाई के दौरान ऐसी रोक लगा सकती है | चूंकि यहा मामला "” मान या इज्ज़त "” का है और खबरों से प्रतिष्ठा पर तो प्रभाव तो पड़ता ही है | अब बोफोर्स वाला ही मामला देख ले --- राजीव गांधी या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा किसी भी प्रकार " धन "”” लिए जाने की बात कभी नहीं सिद्ध हुई | परंतु मीडिया ट्राइल द्वरा गांधी परिवार को बदनाम किया गया |
फलस्वरूप काँग्रेस परत्यु चुनाव मे पराजित हुई | अब जेटली जी तब यह कदम उठाते तो शायद काँग्रेस और गांधी परिवार भी ''मानहानि का आपराधिक मामला "”दायर करता तथा उच्च न्यायालय मे मानहानि के बदले मुआवजे का मुकदमा दायर कलर सकता था | परंतु तब जेटली जी ने भी "'आरोप ''लगाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी |

वह कहावत है ना की "”जाके पैर न फटी बिवाई ,सो का जाने पीर पराई "”' तो अब जेटली जी को महसूस हो रहा होगा की जिनके विरुद्ध वे आरोप लगते है वे कैसी पीड़ा से गुजरते है