यह
है कोटा कोचिंग वाला --बस
अब तक इक्कतीस !!
आज
कल नौजवानो मे अपने भविष्य
को लेकर काफी उत्सुकता रहती
है , इसी
लिए वे अपने भावी कैरियर के
लिए सुबह से शाम तक दौड़ते रहते
है | प्राथमिक
शिक्षा के उपरांत ही नौकरी
की दौड़ मे आगे बने रहने के लिए
वह कॉलेज मे अध्ययन के बाद
ट्यूसन और फिर कोचिंग जाना
| इस
सारी दिनचर्या मे खेल अथवा
परिवार के साथ समय बिताने का
मौका मिलता ही नहीं |
घर के
सदस्यो से अधिक उसका साथ अपने
मिलने - जुलने
वाले साथियो से होता है |
जिनके
चाल - चरित्र
का कोई पता नहीं होता |अब
ऐसे वातावरण मे उसके '''सही
और ठीक रहने ''''
की
संभावना कमजोर हो जाती है |
लगातार
किताबे और पढाई का दबाव तथा
भाग -दौड़
का माहौल , जिसमे
सिर्फ "””बहते
ही जाने की संभावना होती है
,,उसमे
"” स्व
विवेक ''के
इस्तेमाल का मौका कम ही मिलता
है | प्रतिस्पर्धा
- मे
पिछड़ जाने का अवसाद अक्सर
छात्रो को दृग और नशे की ओर ले
जाता है | एक
कारण तो होता है की उसे लगता
है की वह अपने माता--पिता
की आशाओ पर खरा नहीं सिद्ध हो
प रहा है | फिर
उनके द्वारा मिलने वाली प्रताड़ना
और अपमान उसे बेचैन कर देते
है | ऐसे
मे कोई बड़ा – बुजुर्ग उसे
सान्त्व्ना देने वाला नहीं
होता | टूटन
के इस कगार पर वह कुछ ऐसा करना
चाहता है जो उसके "””अहम"””
को
संतुष्टि दे सके |
परंतु
सुनहरे भविष्य और सुखद ज़िंदगी
की "”आस
'' उसे
किसी अन्य विकल्प को चुनने
का साहस नहीं दे पाती |
असफलता
से टूटे हुए को सांत्वना सिर्फ
अभिभावक अथवा कोई बड़ा जिसके
लिए छात्र के मान मे सम्मान
हो ---वही
उसे ''बचा
सकता है "”' | |
ऐसी
स्थिति मे भी कोचिंग सेंटर
के संचालक उनही छात्रो को छाती
से चिपकाए रहते है ---जिनकी
सफलता को वो अगले साल विज्ञापन
मे फोटो देकर भुना सकते है |
यह भी
कोचिंग सेंटरो की आपस की
प्रतिस्पर्धा का ही कारण होता
है | वे
नौनिहालों के भविष्य को सवारने
का काम नहीं करते है ,,वरन
करेंसी नोट कमाने का काम करते
है || उन्हे
सिर्फ भर्ती के समय ज्यादा
से ज्यादा लड़को भरने का काम
आता है | यह
सेवा नहीं "””व्यवसाय'''
है |
जिसमे
विज्ञापन पर भरोसा कर के लड़का
अपने अभिभावकों को इस "”
ख़र्चीले
और मंहगे "”
रास्ते
की ओर जाने के लिए दबाव बनाता
है | जब
उसे पता चलता है की पिता ने
ज़मीन --मकान
गिरवी रखकर पैसा लिया है---कोचिंग
मे उसकी भर्ती के लिए |तब
उसे लगता है की की इस क़र्ज़े को
उसे उतारने के लिए कुछ बनना
होगा |
पर
उसी के ऐसे हजारो महत्वाकांछी
लोग राजस्थान के रेतीले इलाके
मे बसे कोटा नामक इस शहर मे
अपना भविष्य स्वरने आते है |
पर
असफलता का एक झटका लगते ही वे
फांसी पर झूल जाते है |
अब तक
ऐसे लड़को की संख्या इकतीस हो
चुकी है अब इन असफल लोगो की
जान की कुछ कीमत है ??
उनकी
मौत क्या इस "”'कोचिंग
फैक्ट्री के शहर "”
के इन
संचालको को छात्रो की मनः
स्थिति को समझने का का प्रयास
करेंगे ?? अथवा
इकक्तिस की यह संख्या आगे भी
बदेगी ???
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