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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 5, 2014

समाज का खुलापन और नारी सुरक्षा के प्रश्न -समानता का अधिकार कहा ?

           समाज का खुलापन और नारी सुरक्षा के प्रश्न  
                               इधर काफी बड़ी बहस चल रही हैं की नारी की मर्यादा पर पुरुष के प्रहार को दंडनीय होना चाहिए | इसका परिणाम यह हुआ की किसी महिला द्वारा पुलिस मे मात्र शिकायत दर्ज़ करने की ""फ़ंला आदमी ने मेरी अस्मिता पर हमला किया हैं "" जरूरत हैं , बस इसके बाद उन सज्जन के दुर्दिन शुरू हो जाते हैं | जैसे शनि की  कूदृष्टि ही पद गयी ऐसे प्रकोप के वे शिकार बनते हैं |  उनकी गिरफ्तारी होती हैं - वे जमानत के लिए अदालत मे दरखास्त देते हैं ,लेकिन वह तो सिर्फ  उच्च  न्यायालय से ही राहत पा  सकते हैं | अब वह शिकायत महीनो या वर्षो पुरानी किसी घटना के आधार पर हो इस से कोई मतलब नहीं | 

           सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून की धारा 377 के अधीन समलैंगिकता को अपराध घोसित किए जाने के बाद  महिलाओ और पुरुषो ने इसका विरोध किया | नारियो का तर्क था ''मेरा शरीर मेरा अधिकार '''कानून कन्हा से आया"" परंतु पुरुष ऐसा नहीं कह सके | शायद यही भावना ही रही होगी जिसके कारण नारी सुरक्षा का नया कानून बना | जिसके अधीन पुरुष की ज़िम्मेदारी हैं की वह अपने को निर्दोष साबित करे |यानि महिला को सिर्फ आरोप भर लगाना हैं बाक़ी काम कानून का | फिर उस व्यक्ति  की   सामाजिक इज्ज़त पर जो हमला मीडिया द्वारा किया जाता हैं --उसकी भरपाई ""निर्दोष'' साबित होने पर भी नहीं होती |

              दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज   भट ने अपने फैसले मे कहा की कोई भी धर्म विवाह पूर्व  शारीरिक संबंधो को मान्यता नहीं देता | अतः यदि बालिग महिला विवाह के वादे पर किसी पुरुष से संबंध बनाती हैं तब वह स्वेक्षा से ऐसा करती है | जिसे ''बलात्कार'' नहीं कहा जा सकता | यह एक ऐतिहासिक निरण्य साबित हो सकता हैं एक बार इसे ऊंची अदालतों द्वारा मान्य कर लिया जाये | अभी हो यह रहा हैं की दिनो या महीनो की नहीं वरन सालो पुरानी घटना को लेकर किसी भी पुरुष को पुलिस द्वारा घसीटा जा सकता हैं | यहा  एक सवाल उठता हैं की क्या कोई समलैंगिक  महिला यदि महीनो सालो बाद अपने पार्टनर के खिलाफ शिकायत करे तो क्या पुलिस कोई कारवाई करेगी ? 

                       सहमति द्वारा बनाए गए  शारीरिक संबंध  को  नाराज़ होने पर अपराध की श्रेणी मे रखने का अधिकार "" केवल लड़की "" को ही हैं | इसी तथ्य पर दिल्ली की अदालत ने फैसला दिया हैं | इसी संदर्भ मे भोपाल पुलिस द्वारा महिलाओ के लिए चलाये गए समाधान केन्द्रो के अनुसार , शिकायत क़र्ता महिला आम तौर पर ''पीछा करने या परेशान करने ''' वाले की शिकायत करती हैं | जब उस व्यक्ति को पुलिस बुला कर पूछताछ करती हैं तब पता चलता हैं की वह महिला का पुराना  दोस्त हैं |इस पर पुलिस रिपोर्ट लिखवाने का आग्रह करती हैं तब ''राज़'' खुलता हैं की शिकायत  कर्ता  मुकदमा नहीं चलाना  चाहती हैं | वे बस परेशान करने वाले को ''समझाइस '' दिलाना चाहती हैं | क्योंकि अदालत जाने पर सारी बाते घर वालों और समाज के सामने खुल जाएंगी | परिणाम स्वरूप वे मामले को पुलिस के सामने ही समाप्त करना चाहती हैं |  अब इसे नारी स्वतन्त्रता कहा जाये या  यौनाचार ? एक गलत धारणा बन गयी हैं की छेड़छाड़  सिर्फ पुरुष ही करता हैं नारी नहीं | जबकि यह पूरी तरह भ्रामक हैं | अनेकों मामले  सामने आए हैं जनहा शारीरिक संबंध बनाने की पहल स्त्री द्वारा की गयी हैं |  
                     ज़रूरत हैं की की सूप्रीम कोर्ट एक बार इस कानून की व्याख्या करे और समानता के सिधान्त को लागू करे ,वरना यह लिंग के आधार पर भेदभाव ही माना जाएगा | |