Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 9, 2021

 

हम भारत के नागरिक  हैं -या सरकार की प्रजा ?


भारत के संविधान में देश के प्रत्येक निवासी को नागरिक कह कर संभोधित किया गया हैं , पर पिछले कुछ वर्षो से देश में ऐसा माहौल बन गया हैं की ---नागरिक के अधिकार कई बार सरकार की एजेंसियो की प्रताड़णा के शिकार हुए हैं | इनमें वे लोग हैं जो नागरिक के रूप में सरकार से उसके फैसलो की उपयुक्तता के बारे में सवाल किए अथवा उन निर्णयो की आलोचना की हैं | अभी वारित पत्रकार विनोद दुआ के वीरुध हिमांचल की सरकार द्वरा देशद्रोह के मुकदमें को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया हैं | इसी प्रकार अनेक पूर्व अफसरो के खिलाफ भी कारवाई की गयी ,क्योंकि उन्होने सरकार और प्रधान मंत्री के फैसलो पर सावल खड़े किए | अनेक मामलो में सरकार के फैसलो पर जब उच्च न्यायालयों ने कड़ी फटकार लगाई तब और अफसर तिलमिला उठे , पर कोई अदालत के सवालो को जवाब नहीं दे सका | इस संदर्भ में ताज़ा मामला कोरोना से हुई मौतों की संख्या के बारे में हैं | जब समाचार पतरो में सरकार के :झूठे : आंकड़ो की गूंज देश के बाहर तक गयी | जिसको ना तो केंद्र और नाही प्रदेश की सरकारे झूठा साबित कर पायी | हाल ही में मोदी जी के प्रदेश गुजरात में उच्च न्यायालय ने कोरोना की मौतों के आंकड़े मांगे , चूंकि वनहा के भाषाई अखबार में जो संखाया शमशान और कब्रिस्तानों की आंकड़ो की प्र्कसशित की गयी वह सरकार के दावो से कई गुना अधिक हैं | आज से तीन साल पहले गुजरात या किसी हिन्दी भाषा के पत्रो में करने का अर्थ था "” सरकार के कोप का भाजन बनना "”” | पर अब सरकार की प्रजा अदालतों से इंसाफ की गुहार लगा रही हैं | सुप्रीम कोर्ट द्वरा स्वतः इस मामले को हाथ में लेकर ---जब वैक्सीन और ऑक्सीज़न तथा मरीजो और अस्पतालो के बारे में जवाब मांगा , तब प्रधान मंत्री ने टीवी पर आकार देश में नागरिकों को मुफ्त टीके देने का ऐलान किया ! अब यही बात अगर वे पहले कर देते तो शायद काफी मौतों को बचाया जा सकता था | वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर भी केंद्र की मोदी सरकार सोच सोच कर समय गँवाती रही हैं | पहले 18 वर्ष के ऊपर के लोगो को टीके की घोसना कर दी ---पर जब 40 वर्ष के ऊपर के लोगो को दूसरी डोज़ में कमी आगाई तब "”हुकुम हुआ "” की पहले 40 के ऊपर के लोगो को टीका लगाने में प्रथ्न्मिकता दी जाएगी ! फिर शुरू हुआ टीको की आपूर्ति के ऑर्डर देने का सिलसिला | अब दुनिया के दूसरे बड़े लोकतन्त्र की सरकार का अपनी प्रजा के स्वास्थ्य का यही रुख है तब किस ---प्रकार हम अपने को "” भारत गणराज्य का नागरी कह सकते हैं ?

भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगीयो की सरकारे बिहार और उत्तर प्रदेश में हैं --- पतितपावनी गंगा में बहती लाशे इन सरकारो के "” कल्याण कारी होने का सबूत ही हैं "” पियरी और चुनरी में "” गड़ी बनारस और इलाहाबाद में गंगा के तट पर हजारो लाशों के बारे में हिन्दू धर्म के ठेकेदारो का क्या जवाब होगा --- की जब परंपरानुसार इन राज्यो में हिन्दू शवो को अग्निदाह किया जाता हैं , फिर गाड़ने की यह विधर्मी परंपरा को क्यू होने दिया ? तब उन मंदिर समर्थको का जोश कान्हा गया ? एक बात तो तय हैं की विपदा में लोगो को जाति या धर्म की तुलना में जीवन की रक्षा सबसे पहले आती हैं | देश और प्रदेश का दुर्भाग्य हैं की गंगा उत्तराखंड --उत्तर प्रदेश और बिहार में ही शवो से प्र्दूषित हो रही हैं | और जनहा तक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन बनारस में भी गंदगी और प्रदूषण से भरपूर हैं | फिर प्रधान मंत्री के निर्वाचन छेत्र होने का क्या फायदा जब बाबा विश्वनाथ और दशाश्व्मेघ छेत्र के सुंदरिकरन को लेकर करोड़ो रुपये की योजना का क्या फल मिला ?

कोरोना और न्यायपालिका की भूमिका

अब यह स्पष्ट हो गया हैं विगत एक माह से अधिक की घटनाओ से की --- संसद और विधान सभाओ में बहुमत वाली सरकारो ने अपना दायित्व नहीं निभाया - जब दिल्ली और आसपास के इलाको के अस्पतालो में मरीजो की भीड़ और ऑक्सीज़न के लिए ,दवा के लिए नागरिक /प्रजा चीख पुकार मची हुई थी तब भी सरकार कोरोना त्रासदी के बारे में एकरूपता के बयान नहीं दे रही थी | इसके उलट स्वस्थ्य मंत्री और अन्य मंत्री के बयान भी भिन्न भिन्न रहे | जिनसे भ्रम और अविश्वास ज्यादा पैदा हुआ | बजाय इसके की सरकार से कोई राहत की आश होती --लोगो में सरकार के प्रति ही अविश्वास उत्पन्न हुआ | किसी आधिकारिक सूचना या सरकार के फैसले के अभाव के इस समय नें , देश के हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने हस्तकचेप किया | उन्होने सरकारो से "”बिन्दुवार "” जानकारी तलब करना शुरू किया | तब कोरोना त्रासदी और उससे निपटने के बारे मैं सरकारो को जवाबदेह होना पड़ा | कुछ "”अंध भक्त "” अदालतों की इस कारवाई को प्रधान मंत्री के वीरुध निरूपित किया < और लगे , कहने की यह जुडीसियल एक्टिविज़्म जनता द्वरा चुनी हुई सरकारो के प्रति यह उचित नहीं हैं | यानहा तक की कुछ बड़े पत्रकार भी भूल गए हमारे संविधान में अधिकरो का वितरण हैं | जिसमें संसद कानून बनाने और सरकार या कार्यपालिका उनको लागू करने और न्यायपालिका उनके निर्णयो का पुनरीक्षण का अधिकार रखती हैं | भले ही लोकतन्त्र में नागरिक सर्वोच्च हो परंतु कार्यपालिका , विधायिका का नियंत्रण करे , जो की हमेशा होता है तब ----उचित और सही का निर्णय "””बहुमत से नहीं हो सकता हैं "” कानून के द्वारा स्थापित राज्य की सरकारे कानून के मुताबिक चले , यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का अधिका भी है और कर्तव्य भी हैं | आखिर हमारा गणराज्य इनहि तीनों खंभो पर ही तो टीका हैं | वरना चीन -कोरिया और तुर्की जैसे देशो का प्रजातन्त्र बन जाएगा |