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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 26, 2025

 

यादों के झरोखे से :-


बात तब की है जब मैं जूनियर हाई स्कूल का छात्र हुआ करता था | लखनऊ में पंडित नेहरू का दौरा था ' | अमौसी हवाई अड्डे पर उनका विमान उतरना था | अब हवाई अड्डे का नाम चौधरी चरण सिंह विमानपत्तन हो गया हैं | पंडित जी विक्टोरिया पार्क में सभा को संबोधित करने वाले थे | शाम को नियत वक्त पर देश के प्रथम प्रधान मंत्री पालिमाउथ कार से उतरे | उनके साथ शार्क स्किन की बुसशर्त और पैंट पहने लंबे से गलमुछ वाले व्यक्ति भी उतरे | पंडित जी पीछे की सीट से उतरे और यह सज्जन ड्राइवर की बगल से उतरे | पार्क में अनुमान से 20 से 30 पुलिस वाले थे ,जो व्ययस्थ देख रहे थे | वे नेहरू टोपी भी लगाए थे जो गुलाबी रंग की थी| पंडित जी के पीछे की कार से सम्पूर्णानन्द जी और एक और मंत्री भी उतरे थे | उनके साथ कोई भी आदमी नहीं था |

पूछने पर मुझे बताया गया की गलमूचों वाले व्यक्ति रॉय बहादुर जमुना प्रसाद त्रिपाठी थे ,जो उत्तर प्रदेश पुलिस मे पुलिस कप्तान थे | जो प्रधान मंत्री की सुरक्षा मे थे ,यानि बॉडीगार्ड थे | बाकी मंत्री अकेले थे | नेहरू जी के साथ शायद तीन या चार गड़िया थी हाँ दो पिकअप थी जिसमे से ही कुछ सिपाही उतरे थे | बस इतनी ही सुरक्षा प्रधान मंत्री की थी |

दूसरे वीआईपी थे ईरान के तत्कालीन शहंशाह आर्यमहर और एम्प्रेस

सुरैया का लखनऊ का दौरा | तब स्कूल की तरफ से हम लोगों को उनके गुजरत्ने वाले सड़क पर लाइन से खाद्य कर दिया गया था | हमरे मास्टर साहब ने कहा था की जब वे गुजरे तब नर लगाना था "” शाहे ईरान ज़िन्दाबाद " \| विदेशी शाही जोड़े के साथ खुली कर में दो लोग शायद सुरक्षा के थे | तीसरा वाकया था , प्रथम अंतरिक्ष यात्री रूस के "”यूरी गाग्रिन "” की लखनऊ यात्रा थी | तब शूली छात्रों को बस हाथ हिलाने थे | उनके साथ भी पाँच छा ही गड़िया रही होंगी | ये सभी राष्ट्र के प्रथम नागरिक के बराबर को उनकी सुरक्षा की हकदार थे |

ये वाकया इसलिए याद आया क्यूंकी भोपाल मे औद्योगिक अधिवेशन के उद्घाटन मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आना था ___ शहर को "” sanitaiez करने के एनएसजी के निर्देश पर भोपाल की एक तिहाई इलाके को बड़ाबांदी कर दी गई | बीस -तीस सड़क मार्ग को एकांगी कर दिया गया | अनेकों मार्गों को बंद कर दिया गया | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के राजभवन से ट्राइबल मूजियाम के रास्ते को तो घंटों पहले लोगों की आवाजाही को रोक दिया गया था | अब सुरक्षा के नाम पर ऐसी कवायद शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में होती होगी , जन्हा तक मुझे जानकारी हैं | वैसे इतनी तो सुरक्षा इंदिरा गांधी या राजीव गांधी की भी नहीं हुआ करती थी | हाँ आवागमन से आधे सेएक घंटे पूर्व ही ट्रैफिक रोक जाता था | पर अब तो ................|

 

आंदोलन का अधिकार मांगने वाले --- आज किसान और वकीलों के आंदोलन से भयभीत !


संभवतः आजाद भारत में सरकार के विरुद्ध पहला आंदोलन { गौ वध निरोधक कानून } की मांग को लेकर तत्कालीन जनसंघ और आरएसएस ने प्रभुदत्त ब्रमहचारी की अगुवाई में निकाला था | अब ब्रिटिश हुकूमत के ट्रेंड पुलिस वालों ने इन आंदोलनकारियों से उसी प्रकार निपटे ,जिस प्रकार वे स्वाधीनता आंदोलन के समय काँग्रेस के लोगों से निपटते थे | परंतु आजादी की लड़ाई से "”दूर "” रहने वाले स्वयंसेवकों को और सफेद वस्त्रधारी साधुओ को पुलिस के हथकंडों का अनुभव नहीं था ! इसलिए गौ रक्षा आंदोलन के इन कार्यकर्ताओ ने राजनीतिक सहयोगीयो की मदद से नेहरू सरकार को "”हिन्दू विरोधी "” और मलेकछ बताया था | आज वही जनसंघ और संघ की विरासत को आगे ले जाने वाली सरकार किसानों की मांग को दबाने केव लिए और वकीलों के विरोध को देखते हुए ----आंदोलन को दबाने के लिए "”कानून "” का सहारा ले रही हैं |

लेकिन मोदी सरकार के दोनों ही प्रयास बैक फायर कर गए |

गौर तलब हैं की 2020 में मोदी सरकार किसानों के हित के नाम पर तीन विधेयक

kraashi उपज व्यापार वाणिज्य विधेयक और क्रशक कीमत आश्वासन कर्षी व्यापार करार तथा आवश्यक वस्तु संशोधन बिल यह कह कर मोदी सरकार लाई थी की इन कानूनों द्वरा किसान की उपज का "”अच्छा मूल्य "” मिलेगा ! परंतु वास्तव यह विधेयक उद्योगपति अदानी की स्कीम मे ही मदद कर रहे थे | सरकार की मंशा को भाँपते हुए पंजाब और हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने "” दिल्ली चलो का नारा दिया | इस आवाहन पर हजारों ट्रकतोर जी टी रोड पर निकाल पड़े ---जिनका मकसद दिल्ली संसद भवन को घेरना था | परंतु सरकार अपने प्रयासों को किसानों के हिट मे बताती रही | परंतु किसान कानूनों को वापस लेने की मांग पर आड़े रहे |और किसान आंदोलन एक साल तक चला ! एक अनुमान के अनुसार 605 आंदोलनकारी किसानों की दिल्ली बार्डर पर मौत हुई | हालांकि "” संवेदनशील बताने वाली सरकार "” को ना ना तो मरने वाले किसानों की संख्या ज्ञात थी और इतनी संवेदना भी नहीं थी की लोकसभा में विपक्ष के संवेदना प्रस्ताव को विचार के लिए मंजूर करते | हालांकि एक साल तक सड़कों को खोदकर खाइनयां खोद कर और लोहे छड़े को सड़कों पर सीमेंट पर लगाने का काम मोदी सरकार के समय ही हुआ !! वैसे यह नरेंद्र मोदी सरकार की सार्वजनिक रूप से पहली "” खंदकी हार थी "” और किसानों की चमकती हुई विजय थी |

मोदी सरकार में "”सहनशक्ति "” का पूरी तरह से अभाव हैं | इसका उदाहरण हाल ही लाए गए एडवोकेट ऐक्ट 1961 मे संशोधन बिल को जनता की रॉय जानने के लिए सार्वजनिक डोमेन मे दल गया | संघ और सरकार समझते थे की सत्ता और अंधभक्तों की सहायता से वकीलों पर भी नियंत्रण कर लेंगे | विरोधी दल और सुप्रीम कोर्ट की बार काउंसिल के वरिस्थ सदस्य सरकार के कानूनों की "”वास्तविकता और सत्ता की मंशा "” को सार्वजनिक रूप से उजागर करते रहे हैं | जिससे सार्वजनिक रूप से सरकार की काफी "”किरकिरी" होती रहती हैं | सत्ता के भक्तों ने शीर्ष नेत्रत्व को वकीलों पर लगाम कसने की सलाह दी जिसका समर्थन "” प्रधान मंत्री के अंध भक्तों ने सोशल मीडिया पर किया | परंतु जब उत्तर प्रदेश और बीजेपी शासित राज्यों से भी सरकार की संशोधन की पहल का जोरदार विरोध हुआ तब सत्ता के कंगूरे पर बैठे लोगों को बताया गया की काफी विरोध है जो --- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बेतुके प्रशासनिक कदमों की भांति भर्त्सना की जा रही हैं | तब मोदी सरकार ने दूसरी बार "”अपने आगे उठे कदम को वापस लिया "” और केंद्र सरकार ने सार्वजनिक रूप से संशोधन वापस लिए जाने का ऐलान किया |यह शक्तिशाली प्रधान की सार्वजनिक पराजय थी |