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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 21, 2019


अहिंसक आंदोलन की परीछा


हांगकांग और जम्मू -काश्मीर मैं क्या राज्य की शक्ति से शांति बहाली होगी ?


चीन ऐसी साम्यवादी { गैर लोकतान्त्रिक } व्यवस्था द्वरा , ब्रिटिश उपनिवेश हांग्कांग को हस्तगत करते समय वादा किया था की स्थानीय निवासियों को शासन मैं भागीदारी और स्वयातता मिलेगी | जैसा की ब्रिटिश उपनिवेश मैं था | परंतु "”एक राष्ट्र -दो हुकूमत "” के ज़ीन पियाओ पिंग के नारे को आजीवन राष्ट्रपति जी शीन पिंग ने डब्बे मैं बंद कर दिया | सबसे पहले उन्होने कमुनिस्ट शासको की भांति "आजीवन पद पर बने रहने पर – संसद से मुहर लगवाई | फिर हांगकांग को फिर ताइवान पर कब्जा जमाने की कोशिसे जारी कर दी !
इसकी तुलना मैं अगर हम गौर करे की आज़ादी के बाद बने प्रांतो का जब पुनर्गठन हुआ तब हिमाचल - बाद मैं गोवा और केंद्र शासित प्रदेश हुआ करते थे | बाद मैं स्थानीय निवासियों की आकांछाओ की पूर्ति के हेतु इन्हे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया | दिल्ली - और पांडचेरी को परिषद के स्थान पर विधान सभा प्रदान की गयी | सिर्फ अंडमान मैं आज भी काउंसिल हैं --जो नामांकित सदस्यो बनती हैं | और वह उप राज्यपाल को सलाह देती हैं | प्रतिनिधि निर्वाचित नहीं होते हैं | परंतु देश की अकखंडता के लिए राज्यो का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ | परंतु वर्तमान सरकार द्वरा अखंडता के नाम पर "”विभाजन किया गया "”” | लद्दाख को भी वैसा ही दर्जा मिला हैं जैसा की अंडमान -निकोबार को हैं | हांगकांग मैं भी काउंसिल हैं ---जिसके मुखिया को कम्युनिस्ट चीन मनोनीत करता हैं | यद्यपि परिषद मैं जनता के प्रतिनिधि भी होते हैं -परंतु कुछ सदस्य चीन की केंद्रीय सरकार द्वरा मनोनीत भी होते हैं | प्रशासन मैं काउंसिल की अध्यछ ही सर्वे - सर्वा होती हैं | बहुमत का सवाल नहीं होता | चीन सरकार ने हानकांग के आशंतुष्ट नेताओ के प्र्त्यर्पण के लिए एक कानून लाना चाहा था | जिसे कालोनी के निवासियों ने प्रताड़ना का हथियार बताया | और इस कानून के वीरुध दो माह से अहिंसक आंदोलन चल रहा हैं | हालांकि काउंसिल के चेयर परसन ने कहा की इस कानून को अभी लागू नहीं किया जाएगा | परंतु आंदोलनकारी इस कानून को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं |

विगत दो माह से 65 लाख की आबादी के इस द्वीप पर वनहा पर काम से लौटने वाले लोग तथा छात्र और व्यापारी वर्ग उनआंदोलनकारी
15 लाख लोगो का भाग है जो रोज चीन की हांकांग मैं दखलंदाज़ी का "””अहिंसक विरोध कर रहे हैं | इस शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने के लिए अभी स्थानीय पुलिस ही काम पर लगे हैं | जिस को आन्दोलंकारियों को तितर बितर करने के लिए वाटर कैनन --आँसू गॅस और बैटन का ही प्रयोग किया जा रहा हैं | जैसा की ब्रिटिश पुलिस ने स्थानीय लोगो को ट्रेनिंग दी थी | परंतु स्थानीय जनो के अहिंसक विराध प्रदर्शन ने चीन ऐसी शक्ति को भी विचलित कर दिया हैं | विगत शनिवार को हांगकांग की सीमा से लगती चीन की तरफ सैकड़ो टैंको और आर्मर्ड कारो का जमावड़ा देखा गया , जिसे विदेशी खबरिया चैनलो ने दिखाया |
विरोध का कारण है की हाङ्कांग मैं हुए किसी अपराध के लिए आरोपी को कम्युनिस्ट चीन मै प्र्त्यर्पण किया जा सकेगा | अब द्वीप के निवासियों को पीपुलस रिपब्लिक चीन की न्याय व्यवस्था की मनमानी और सज़ा मैं क्रूरता , जग ज़ाहिर हैं | जबकि हांगकांग मैं अदालते कानून और सबूत के आधार पर न्याया करती हैं | जैसा की ब्रिटिश व्यवस्था मैं था |
इस परिप्रेक्ष्य मैं अगर हम जम्मू और कश्मीर मैं भारत सरकार के निर्णय को देखे तो पाएंगे की लोकतान्त्रिक सरकार द्वरा कुछ - कुछ वैसा ही किया गया हैं ----जो चीन हंकांग मैं करना चाहता हैं | चीन द्वरा द्वीप पर चल रहे आंदोलन को कुचलने के लिए सेना को भेजने की जो तैयारी कर रहा हैं , उसका विरोध ब्रिटेन -कनाडा - फ्रांस और अम्रीका के ट्रम्प ने किया हैं | एक सार्वजनिक बयान मैं उन्होने चीन को बरजा हैं की वह तियानमन ईसक्वायर की घटना को दुहराने की हिमाकत नहीं करे | गौर तलब हैं की आज़ादी के अहिंसक आंदोलन कर रहे छात्रों को सेना ने गोली चला कर सामूहिक हत्या कर दी थी | अंतराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भी चीन ने इसे अपना घरेलू मसला बताया था | पर इस बार वह वह शायद ऐसा न कर सके | इसका कारण हैं ----- की दस लाख से ज्यदा युवा और छात्र इस मैं शामिल हैं |
जम्मू -काश्मीर की हालत पर गौर करे ,तो प्रशासन ने शुरू मैं कह था की कनही भी करफू नहीं लगाया गया हैं , परंतु चैनलो पर दिखे फुटेज साफ बता रहे थे की कंटीली तारो की बाधा और सन्नटा भरी सदको पर फौजी बुटो के साथ राइफल लिए जवान गश्त करते हुए ही दिखाई पद रहे थे | धारा 144 मैं प्रतिबंध पाँच लोगो से ज्यदा एकत्र होने तथा हथियार लेकर चलने पर पाबंदी होती हैं | 144 के अंतर्गत किसी प्रकार के पास की जरूरत तब होती है जब की कोई रात मैं आवाजही करे | यहाँ दिन मैं ही सभी घरो मैं बंद है , तब किसे अधिकारियों ने पास दिये ??? सुरक्षा सलहकर अजित डोवाल द्वरा कुछ { दर्जन भर } स्थानीय लोगो से बात कर के 40 लाख घाटी वासियो का मिजाज जान लिया , यह तो वैसा ही हुआ जैसे की कहा जाता हैं "””” वह आया और उसने देखा – तथा सब पर विजय प्रापत कर ली "”” |
जब विदेशी चैनलो ने घाटी के आशंतुष्ट लोगो के हुजूम द्वारा नारे बाजी करने और पुलिस के सामने  डटे रहने की फोटो दिखाई , तब प्रशासन को अपनी "”साख "” बचाने के लिए मंजूर करना पड़ा की कई स्थानो पर विरोध प्रदर्शन हुए !!!

उम्मीद करे अगर काश्मीर के जवान -छात्र और कामगार सदको पर केंद्र के फैसले पर एक होकर मार्च करे तब क्या होगा ??? अमेरिका मैं भी गोरे और कालो के भेद के विरोध मैं मार्टिन लूथर किंग ने भी वाशिंगटन मैं 28 अगस्त 1963 को मार्च किया था | जिसके बाद फेडरल कोर्ट ने रंगभेद के राज्यो के कानून को निरस्त करते हुए , भेदभाव करने को अपराध घोसीत किया था | उन्होने भी कोई हिंसक लड़ाई नहीं लड़ी थी | फिर भी उनका नाम महात्मा गांधी के अहिंशा के औज़ार से सरकार को झुका दिया था |तब भी दुनिया के अनेक देशो ने अमेरिका के दक्षिण के राज्यो की रंगभेद के लिए की भर्त्स्ना की थी | अब देखना हैं की चीन एक राष्ट्र दो व्यवस्था के सिधान्त को कितनी ईमानदारी से पालन करता हैं ? अथवा तियानमेंन चौराहे की तरह आन्दोलंकारियों को फौजी बूटो और टैंक से दबाया जाता हैं |


Aug 10, 2019


अनुछेद 370 और 35 ए ने देश को आतंकवाद और अलगाव वाद ही दिया !

क्या ईद की कुर्बानी शांति से काश्मीर मैं हो सकेगी ?




राष्ट्र के नाम रेडियो और टीवी चैनलो पर , संसद मैं गृह मंत्री अमित शाह के बयान को "”पुनर्भाषित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा की अनुछेद 370 और 35 ए ने काश्मीर को आतंकवाद और अलगाववाद के सिवा कुछ नहीं दिया "”” , देश के प्रधान मंत्री द्वरा सार्वजनिक तौर पर संविधान निर्माताओ और पूर्वर्ती सरकारो पर ऐसा कलंक का आरोप शायद --- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अलावा और किसी ने नहीं किया होगा !!!
लोकसभा के पूर्व महासचिव सुबाश कश्यप ने सरकार के कदम पर कहा की " 370 अस्थायी उपबंध था " ! सच हैं संविधान मैं ऐसा ही लिखा हैं | परंतु इसके भाग 371 क मैं नागालैंड के बारे मैं विशेस उपबंध भी हैं !371ख मैं असम और 371 ग मैं मणिपुर तथा 371 घ मैं आंध्रा और तेलंगाना तथा 371 च मैं सिक्किम एवं 371 छ मैं मिजोरम और 371 ज अरुनञ्चल तथा 371 झ गोवा राज्य के बारे मैं भी अस्थायी और विशेस उपबंध विद्यमान हैं | इस प्रकार प्रधान मंत्री का यह कथन की अनुछेद 370 और अनुसूची की धारा 35 ए ने अलगाववाद दिया ---- सही नहीं प्रतीत होता ! क्योंकि इस व्यवस्था द्वरा काश्मीर के लोगो की सान्स्क्रतिक पहचान बनाए रखने के लिए – निवास - नागरिकता - उनके अधिकारो - सरकारी नौकरी मैं अवसरो – को दूसरे प्र्देशों के लोगो से रक्षा करने के लिए था , जो महाराजा हरी सिंह ने 1927 की दरबार की शाही आज्ञा का उद्देश्य था | क्या केंद्र द्वारा नागालैंड - असम - मिजोरम - अरुनञ्चल और मणिपुर-- सिक्किम मैं लागू “”अस्थायी और विशेस संवैधानिक उपबंधो को को भी “”अलगाव वाद और आतंक ‘” का कारण मानते हुए इन्हे समाप्त करेगी ! जिससे की भारत के नागरिक इन राज्यो मई जा कर बस सके - व्यापार कर सके और उद्योग लगा सके , जिससे की स्थानीय लोगो को रोजगार मिल सके , तथा उनकी आर्थिक हालत मैं सुधार हो ?? प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ऐसा करने का साहस नहीं जूता सकती ! क्योंकि इन राज्यो मैं मुसलमानो की संख्या नहीं के बराबर हैं !!! हाँ इसियों की संख्या अरुनञ्चल और नागालैंड मैं बहुतायत से हैं | परंतु उड़ीसा मैं पादरी माइकल स्टेंस को जलाने के आरोपी , तत्कालीन बजरंग दल के प्रदेश के संयोजक जो अब केंद्रीय मंत्री है प्रताप चंद्र षडगी, सत्ताधारी दल को दुनिया के ईसाई देशो के कोप का ख्याल हैं | शायद इस लिये और स्थानीय निवासियों के पुरजोर हिंसक -सशस्त्र विरोध के सतत चलते हुए ना तो काँग्रेस और ना ही अटल बिहारी वाजपाई सरकार इन अस्थायी और विशेस उपबंधो को समाप्त कर पायी | अब इसे तत्कालीन सरकारो की कायरता कहे अथवा शांति बनाए रखने की कोशिस ---यह बहस का मुद्दा हो सकता हैं | परंतु तथ्य यही हैं | अब कश्मीर घाटी { जम्मू और लद्दाख छोड़कर } मैं सूत्रो और खबरों के अनुसार करीब पाँच लाख केंद्रीय सुरक्षा बल और सेना के दस्ते हैं !!! आबादी कुल शायद 64 लाख अब आप अंदाजा लगा सकते हैं , की यह शांति कितने फौजी बूटो और सड्को पर लगी कंटीली बाधाओ और धारा 144 मैं मिलने वाले कर्फ़ुव पासो से नागरिकों की आवाजही संभव हैं | शायद धारा 144 मैं पास का प्राविधान मेरी स्मरण शक्ति मैं पहली बार सुना हैं |

1 :- क्या इस बार काश्मीर मैं ईद -उज -जुहा पर शांति पूर्वक कुर्बानी दे सकेंगे ?
आगामी सोमवार यानि 12 अगस्त को केंद्र द्वरा किए गए शांति -व्यवस्था के बंदोबष्ट की कठिन परीक्षा होगी !

कश्मीर मैं मौजूदा फौजी बंदोबस्त और चप्पे - चप्पे पर बंदूक धारी वर्दिधारी जवानो और चौराहो पर फौजी वाहन डेट हुए हैं | ऐसी हालत मैं आम काश्मीरी राशन और दवा तथा रोज़मर्रा के सामानो की खरीद के लिए मुश्किल से निकलता हैं ------वह कान्हा से कुर्बानी के लिए बकरा या भेड खरीदने के लिए निकलेगा | गावों से आने वाले पशुपालक शहर आने इसलिए कतराते है की थोड़ी - थोड़ी दूर पर राह मैं फौजी पूछताछ होती हैं | पहचान बताने के कागज दिखाने होते हैं | डांट- डपट अलग से | अब श्रीनगर मैं तो बकरे पाले नहीं जाते , उन्हे तो बाहर से लाना ही होगा | परंतु मौजूदा हालत मैं यह बहुत कठिन हैं | 12 अगस्त को इस धार्मिक पर्व को क्या काश्मीरी अपने हिस्से की कुर्बानी दे पाएगा ? क्या वह इस्लाम मैं ज़कात दे पाएगा ? शायद नहीं |
वैसे प्रधान मंत्री के खास और देश के सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल जी "” निर्देश दे रहे की काश्मीरियों को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए "” पर फौजी इंतेजामत कोई ढिलाइ नहीं हो लोगो को एकत्रित नहीं होने दिया जाये | अब इन्हे कौन बताए की यह दीपावली नहीं हैं की -घर मैं अकेले भी दिये जला लो ! कुर्बानी -- इस्लाम मैं हर मुसलमान के लिए एक दायित्व हैं , जैसे नमाज़ और ज़कात | आम तौर पर कुर्बानी सार्वजनिक स्थान मैं ही की जाती हैं | जनहा साफ़ -सफाई से कुर्बानी हो सके |अब कुर्बानी के बकरे का खून और खाल का बंदोबस्त भी आम तौर पर मुसलमानो की इंतेजामिया कमेटिया करती हैं | इसके लिए उन्हे शहर मैं कई जगहो मैं जाना पड़ता हैं , जनहा से खालों को एकत्र कर उनको बेचा जाता हैं | जिससे बाद मैं धार्मिक स्थलो की मरम्मत मैं लगाया जाता हैं |

2:- घाटी मै कश्मीरी युवको को शिछा और रोजगार के अवसर सुलभ करने का वादा ? जब देश मैं आई आई एम और आई आई टी तथा डेंटल और पोलेटेक्निक मैं लड़के आदमिससोन नहीं ले रहे हो उस समय एक मात्र सरकारी नौकरी ही सहर बचता हैं | 370 और 35 ए के रहते घाटी की सरकारी नौकरियों मैं केवल काश्मीर के "”नागरिक "” ही आवेदन कर सकते थे | परंतु अब यह संतुलन बिगड़ेगा , क्योंकि डोगरी या काश्मीरी भाषा नहीं जानने वाले भी इन नौकरियों के लिए आएंगे | भले ही केंद्र सरकार कुछ बोल नहीं रही हो परंतु जिस प्रकार कश्मीर पुलिस को निसक्रिय किए जाने की कवायद की जा रही हैं , कम से कम वह स्थानीय लोगो का विश्वास जीतने मैं "”असफल "” ही होगी | इतना ही नहीं अब काश्मीर पुलिस मैं जम्मू छेत्र के लोगो का बोलबाला हो सकता हैं | जो धरम और इलाके से अंजान होंगे | अब ऐसे मैं क्या मोदी जी अथवा डोवाल साहब का यह कहना की त्योहार के मौके पर किसी कश्मीरी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए -------महज रसम अदायगी ही लगती हैं |
अब 12 अगस्त के बाद ही स्थिति साफ होगी की सरकार के इस कदम को
केंद्रीय बलो और सेना के जवानो की मौजूदगी मैं कितनी और -कैसी शांति बहाल होगी !!!


Aug 8, 2019


कन्हा गयी

संविधान की सत्य निष्ठा से पालन करने की कसंम ---अमित शाह जी ?




संसद मैं "” यह परिपाटी हैं की झूठ "” शब्द के प्रयोग की मनाही हैं ! परंतु अनुछेद 370 को लेकर केंदतीय गृह मंत्री और बीजेपी अध्यछ अमित शाह जी ने जो बयान दिया ----वह महाभारत मैं युधिष्ठिर द्वरा "” अशव्थमा हंतों नरो वा कुंजरों "” की याद दिला देता हैं | जिस प्रकार पांडु पुत्र ने "”अर्ध सत्य "” भाषण किया था--- वैसा ही अमित शाह जी ने किया ! उन्होने कहा की इस संवैधानिक प्रतिबंध के खतम होने से देश के बाकी राज्यो के लोग काश्मीर मैं "”जमीन खरीद सकेंगे और उद्योग लगा सकेंगे "”| इससे सरकार की यह मंशा तो साफ हो जाती हैं की -----मामला मुंबई और गुजरात के सेठो को खुली छूट दे दी गयी है की , वे वनहा जमीन लेकर दुकाने खोल सके !


परंतु इस आदेश पर राष्ट्रपति के दस्तखत होते ही , सरकार मैं भागीदार सुरजीत सिंह बरनाला ने सरकार से मांग की है की हिमांचल मैं मौजूद ऐसे प्रतिबंध को हटाया जाये , जिससे की पंजाब के लोग वनहा जमीन खरीद सके ! अब देखना यह होगा की सरकार अपने सहयोगी दल की इस मांग पर क्या कारवाई करती हैं | क्योंकि हिमांचल मैं बीजेपी की सरकार हैं ! लोकसभा मैं भी इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए यह तथ्य सामने आया की "” देश के 11 प्रदेशों मैं भी गैर इलाकाई लोगो के बस्ने या जमीन खरीदने पर प्रतिबंध हैं | विपक्ष की इस मांग पर सरकार के सदस्यो ने कहा की इन 11 राज्यो मैं प्रतिबंध को बरकरार र्कहा जाएगा ! अब इसे मोदी सरकार की एक ही मामलो मैं दुहरे मान दंड अपनाने का इल्ज़ाम सिद्ध होता हैं |

गौर तलब हैं की गैर कश्मीरियों - जम्मू अथवा लद्दाख वासियो के अलावा सभी गैर इलाकाई लोगो के जमीन खरीदने की रोक 1923 मई दरबार के आदेश से प्रभावी थी ! इस प्रतिबंध का जनम अनुछेद 370 से बहुत पहले से था | इस्का कारण था की काश्मीर के डोगरा राजा पंजाबियो द्वरा काश्मीर मैं जमीन की खरीद फ़रोख़त पर रोक लगा कर ----स्थानीय लोगो के हित सुरक्षित रखना चाहते थे | जैसा भारत सरकार उत्तर पूर्व के राज्यो मैं स्थानीय संसक्राति और उनके रोजगार के अवसरो को बचाने के लिए तत्पर हैं | फिर अमित शाह जी आपने क्या सिर्फ काश्मीर के झंडे और रंजीत सिंह संविधान और रंजीत सिंह अपराध संहिता को खतम करने के लिए ही इस प्रतिबंध को हटाया ??

2:- लोकसभा मैं सताधारी संगठन के सांसदो द्वरा अनुछेद 370 के हटाने के समर्थन मैं कहा की , इससे देश मैं एक विधान – एक निशान ही चलेगा | अभी तक काश्मीर मैं रियासत का और भारत का तिरंगा दोनों ही फहराए जाते थे | जिस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका मैं हैं | वह भी एक संघीय संविधान के तहत 50 राज्यो का देश हैं | वनहा भी प्रत्येक राज्य का अपना संविधान और दंड विधान हैं , तब क्या वह देश एक नहीं हैं ? वास्तव मैं "”भक्तो और स्वयंसेवको तथा भा जा पा समर्थको ने देश मैं व्यापात सान्स्क्रतिक भिन्नता को एक रूपता मैं बदलने को ही देश की एकता और अखंडता का आधार मान लिया हैं | इसी लिए उनके कुछ तबको मैं अभी भी एक मांग बची हुई हैं "”” सारे देश मैं विवाह - आदि संस्कार के लिए "” एक आचार संहिता "” हो ! अब इन लोगो को देश के विभिन्न भागो मैं रहने वाली विभिन्न जातियो की परंपराए और उनके उत्सव आदि का ज्ञान शून्य हैं | हिन्दू कोड़ बिल के प्रविधानों के अनुसार विवाह की तीन श्रेणीय बताई गयी हैं :- VOIDE EB INTIO --- VOIDEBLE AND ACCEPTABLE , इनको इस प्रकार समझा जा सकता हैं , की ऐसे विवाह जो पूर्णतया अवैध है , जैसे रक्त संबंध के लड़के और -लड़की का विवाह करना , दूसरा हैं की यदि लड़के अथवा लड़की को विवाह उपरांत पता चले की उन दोनों का विवाह परंपरागत अथवा प्रचलित रिवाज के अनुसार " निषिद्ध " है , तब
दोनों ऐसे विवाह को अदालत से "”निरंक " घोषित करवा सकते हैं | तीसरी श्रेणी मैं मैं वे विवाह हैं जो समाज की परम्पराओ द्वरा मान्य है |
अब दक्षिण भारत के ब्रांहणों सहित अन्य जातियो मैं लड़की का विवाह उसके "”मामा अथवा उसके लड़के से होना -प्रथम परंपरा हैं | उनके यानहा यह परंपरा हैं की लड़की के विवाह मैं विदा होने के पूर्व उसका भाई , अगर लड़की से छोटा हैं तब बहन से वादा लेता हैं की वह अपनी पुत्री का विवाह उससे से करेगी ! यदि भाई बड़ा है शादीशुदा है तब वह यह मांग अपने पुत्र के लिए करता हैं !! अब मनु संहिता के अनुसार यह विवाह "”वैध "” नहीं हैं | मनु संहिता के चलन के उपरांत सैकड़ो सालो से तमिलनाडू और केरल मैं मैं यह परंपरा चली आ रही हैं | अब ऐसे सभी विवाहो को संसद का कानून या सरकार की कौन सी अधिसूचना रद्द कर सकेगी ???
सनातन धर्म के अनुसार व्यक्ति के प्राण जाने के उपरांत – उसके दाह संस्कार की परंपरा हैं | दशगात्र और पिंड पारायण का विधान भी हैं | परंतु तमिलनाडू मैं कडगम समर्थको द्वरा राम और कृष्ण की मूर्तिया तोड़े जाने तथा वेद और रामायण की सार्वजनिक होली जलाने के बाद --रामास्वामी नायकर ने अपने समर्थको को मंदिर जाने --देव दर्शन का बाहिष्कार करने का निर्देश दिया था | जो आज भी जारी हैं | तमिलनाडू की मुख्या मंत्री जयललिता जनम से "”पंडित " या ब्राम्ह्ड़ थी ---परंतु उनका दाह संस्कार नहीं हुआ ---वरन उन्हे दफनाया गया !!! अब सवाल यह हैं की वे सनातनी थी वेदिक धर्म को मानती थी {{ हिन्दू धरम जिसे कुछ संगठन परम धरम मानते हैं }}} अथवा नहीं ? इस सवाल का जवाब वनहा की जनता ही दे सकती हैं | भारत सरकार की अधिसूचना अथवा कोई अन्य कानून नहीं |

3:--- काश्मीर की जनता को शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर का वादा ?
केंद्र सरकार ने रियसत के विलिनीकरण के समय की तथ्यो और कबयलियों द्वरा काश्मीर मैं हमले तथा उनकी परिस्थितियो का खुलासा नहीं किया | वे देश को यह बताना भूल गए की जिस रक्षा परिषद मैं युद्ध के लिए सेना भेजने के लॉर्ड माउंट बैटन के निर्देश के अनुसार ,फैसला हुआ था उसमाइन जनसंघ के जनांदता डॉ श्यामा प्रशाद मुकेरजी भी शामिल थे | फिर जब अंतराष्ट्रीय दाखल से युद्ध विराम करना पड़ा तब भी वे सदस्य थे !! युद्ध विराम एक तरफा नहीं हुआ था | जिसे सत्ता धारी दल के समर्थक प्रचार करते हैं | परंतु मजबूरी हैं की जो ज्यड़ा ज़ोर से चिल्लाता है और ज्यादा देर तक चिल्लाता हैं देश की भोली जनता उसे ही तथ्य मान लेती हैं |

जैसे देश के विभाजन के लिए संघ और उसके संगठन गांधी और पंडित नेहरू को दोष देते हैं :- वे फ्रीडम ऑफ इंडिया एक्ट के दर्शन भी नहीं करते | अन्यथा उन्हे "”” ज्ञान "” हो जाता की विभाजन तो ब्रिटेन ने ही कर दिया था | जमीन - संसाधन और सेवाए तक विभाजित हो गयी थी | जिस प्रकार रियासतो को यह अधिकार दिया गया था , उसी प्रकार शासकीय सेवाओ के अफसरो को भी यह अधिकार दिया गया था की वे जनहा चाहे चले जाये , पाकिस्तान अथवा भारत ! आज़ादी के बाद दो साल तक पुलिस और नागरिक सेवाओ मैं एक डैम से कमी आ गयी थी | जिसे संदेह हो वह आकार मुझसे मिले ,मई उन्हे दिखा दूंगा |

4:- जिस एक विधान को सरकार के सदस्य पंचम स्वर मैं गाते हैं --क्या वे इस बात का जवाब दे सकते हैं की , किन कारणो से नागा लैंड को अपने निवासियों को अलग से पासपोर्ट जारी करने का अधिकार दिया गया हैं ? वनहा भी कोई गैर नागा ना तो जमीन खरीद सकता हैं नाही बस सकता हैं , अत्रहवा ना तो कोई व्यापार अथवा उद्योग कर सकता हैं ! अरुनञ्चल - मणिपुर -त्रिपुरा आदि उत्तर पूर्व के सभी प्रदेशों मैं गैर इलाकाई लोगो पर "”पाबंदी "” वह भी कानूनी है | वैसे भी इन अशांत छेत्रों मैं वनहा के स्थानीय लोगो के संगठन जिनसे वनहा के लोग डर कर हर माह अपने वेतन से एक निश्चित मात्रा मैं "”रंगदारी "” टैक्स देने को मजबूर हैं | सड़क बनाने वाले ठेकेदार हो अथवा जंगल से लकड़ी अथवा अन्य उत्पाद ले जाने वाले व्यापारी हो उन्हे भी यह टैक्स देना होता हैं | यह हैं देश के उत्तर व्पुर्व मैं "”शांति - व्यसथा "” की हालत | यह भी एक "”संयोग "” हैं की इन सभी छेत्रों मैं भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी लोगो की सरकार हैं !!!

5 :- लोकसभा मैं इस मुद्दे पर हुई चर्चा के दौरान यह भी कहा गया की रियासत को 2004 से 2019 के दरम्यान 2 लाख करोड़ की राशि विकास के लिए दिये गए थे | जिनका उपयोग नहीं हुआ वरन इस राशि को "” बीचौलियों "” द्वरा हजम कर लिया गया |
इस संबंध मैं केंद्र द्वरा काश्मीर के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने को भी समझना होगा | देश के उत्तर पूर्व के सात राज्यो को केंद्र द्वरा जो भी सहायता दी जाती है --- उसमाइन 90% भाग ग्रांट इन ऐड होता हैं | इसे यू समझे की ग्रांट को वापस किए जाने की बाध्यता नहीं होती | केवल उसके उपयोग का प्रमाण पत्र राज्य सरकार को देना होता हैं | मात्र 10% भाग ही क़र्ज़ के रूप मैं होता हैं जिसे सरकार को चुकाना होता हैं | यह भी सुविधा इनको दी गयी है की वे यदि नियत अवधि मैं क़र्ज़ नहीं चुका सके तो – अगली ग्रांट की राशि से उतनी राशि काट की जाती हैं |
जबकि काश्मीर के मामले केंद्रीय सहायता का 70% ही ग्रांट होता हैं शेष 30% भाग क़र्ज़ होता हैं !! अब यह भेद किस आधार पर ? क्या इस आधार पर की राज्य मैं बहुसंख्यक मुसलमान हैं !!! हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस्लाम और ईसाई धरम से "” वैमनस्य "” जग ज़ाहिर हैं , परंतु अरुंचल और नागलंद मैं बहुसंख्यक आबादी ईसाई है !! पता नहीं इस मोह का क्या कारण हैं |

6:- रियासत के पुनर्गठन के मसले को देखे तो -वह साफ तौर पर झलकता हैं की केंद्र ने बदनीयती से अगर नहीं तो साफ नियत से भी यह फैसला नहीं किया हैं | अभी तक जब भी पुनर्गठन हुआ {{ राज्य पुनर्गठन आयोग के पश्चात }} तब - तब जनता की रॉय की सहमति से ही ऐसा किया गया | कहने का मतलब जनमत संग्रह नहीं कराया गया , परंतु जिस राज्य का हिस्सा काटना होता हैं उसकी सहमति ज़रूरी होती है | छतीस गड हो या उत्तराखंड अथवा तेलंगाना सभी के लिए --- मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तथा आंध्र की विधान सभाओ ने प्रस्ताव पारित करके केंद्र को भेजा था | पर इस बार मोदी सरकार बहुत जल्दी मैं थी , उसने यह संवैधानिक प्रावधान भी उखाड़ फेंका !!! क्योंकि छल से और बल से काश्मीर को तोड़ना था !
केंद्र के जवाब के अनुसार प्रदेश मैं विधान मण्डल स्थगित हैं , और राज्यपाल ही शासन चला रहे हैं | अतः उनकी सिफ़ारिश ही जनता की इछा है !!! वाह इस परिभाषा से तो राज्यपाल विधान सभा और लोकतान्त्रिक सरकार का विकल्प हो गया !!!!!! जबकि सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलो मैं यह स्पष्ट किया गया हैं की राज्य पाल केंद्र का प्रतिनिधि मात्र है {{ निजलिंगप्पा केस }} अब कानूनी तौर पर पुनर्गठन का फैसला वनहा के निवासियों का फैसला नहीं हैं | इस मुद्दे पर भी गृह मंत्री अमित शाह जी चुप्पी साध गए | भले ही वे पाक अधिकरत काश्मीर और चीन अधिकर्ता गिलगित के लिए "” जान दे देगे "” का बयान दे , पर मुद्दो से भटका कर की गयी इस कारवाई की न्यायिक समीक्षा बाकी है | देखना होगा की अयोध्या मंदिर की तरह सबूत पेश होंगे या तथकथित विश्वास पर मामला निबटेगा ???