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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 28, 2019

चिदम्बरम और चंदा कोचर होने का फर्क ! सीबीआई और ईडी पर एक सवाल ?


चिदम्बरम और चंदा कोचर होने का फर्क ! सीबीआई और ईडी पर एक सवाल ?
जनवरी का महीना सीबीआई और ई डी के लिए बहुत दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ है ! सीबीआई के निदेशक का तबादला करने के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का फैसला "कितना निष्प्रभावी रहा "” यह इस तथ्य से सिद्ध होता हैं की --- अवकाशग्रहण की आयु के बाद उन्होने एक आईपीएस अधिकारी का तबादला किया ! जो एक प्रकार से मज़ाक का विषय बना | अतिरिक्त निदेशक अस्थाना {जो सरकार की आँख के तारे थे } को भी सीबीआई छोड़कर जाना पड़ा !
परंतु बक़ौल सुप्रीम कोर्ट के इस सरकारी तोते के मास्टर ने एक वफादार अधिकारी नागेश्वर राव को "”कार्यवाहक "” का कार्यभार दिला दिया ! उसी का परिणाम हैं की -उस अधिकारी को "”शंट" कर दिया -जिसने आईसीआईसीआई और वीडियोकॉन के "”अपवित्र गठ बंधन को उजागर करने के लिये 22 जनवारी को ज़रूरी दस्तवेज़ों पर दस्तखत किए | और 24 तारीख को "” इस अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट " दर्ज़ की | परंतु 25 तारीख को ही अमेरिका मे ऑपरेशन करा कर "”आराम कर रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में --- हजारो करोड़ के क़र्ज़ घोटाले में फसने वाले आठ बड़े लोगो के वीरुध इस कारवाई को "” दुस्साहस "” बताया ! जिसे दो केंद्रीय मंत्रियो पीयूष गोयल और निर्मला सीता रमन ने "”साझा किया "” ! फिर क्या था आनन फानन में बैंकिंग सेक्युर्टी अँड फ़्राड सेल के अधिकारी सुधांशु धर मिश्रा को "इन महान वीआईपी लोगो के खिलाफ जांच की "” ज़ुर्रत {दुस्साहस } करने के अपराध में झारखंड की राजधानी रांची तबादला का फौरी आदेश थमा दिया ! इतिफाक हैं की आगरा और रांची के पगलखाने प्रसिद्ध हैं ; अब चंदा कोचर - केवी कामात - संदीप बक्शी - संजय चटरजी-- जरीन दारुवाला-- राजीव सबबरवाल – होमी खुशरो के साथ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर के खिलाफ मोदी सरकार के रहते कोई अफसर कारवाई करने की हिम्मत करे तो उसे तो सबक सीखना ही होगा | मिश्रा के तबादले के बाद ही सीबीआई के सूत्रो ने बताया की उन्होने प्राथमिकी लिखे जाने की खबर को लीक किया था !!!

जिस सरकार के निज़ाम में बंकों का अरबों रुपये लेकर नीरव मोदी --मेहुल चौकसे और विजय माल्या विदेशो में "”ऐश करे " उस सरकार के रहते --- अंबानी परिवार के भाइयो के बंटवारे को अंजाम देने वाले केवी कामाथ पर नज़र उठाने वाले का हश्र तो यही होना था | अभी तो मिश्रा जी को | ईमानदारी और कर्तव्य परायणता के इस दुशसाहस की और भी कीमत चुकानी पड सकती है !

नागेश्वर राव के अधीन यह वही सीबीआई है जो 25 जनवरी को दिल्ली हाइ कोर्ट के जस्टिस सुनील गौड़ की अदालत में दरख़ाष्त देती है कि--- आई एन एक्स मीडिया मामले में पूर्व वित्त मंत्री चिदांबरम को हिरासत मे देने का आदेश करे --- क्योंकि वे जांच एजेंसी {{सीबीआई -ईडी }} के सवालो का गोलमाल जवाब देते है !! यह दलील देश के अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश करते है !

अब इस संदर्भ में अगर हम सीबीआई की कार्य प्रणाली को देखे तो साफ लगता है की "”सरकारी तोता वही पट्टु पट्टू बोल रहा जो उसके राजनीतिक आक़ा {{सरकार में बैठे है }} चाहते है ! यानि की अंबानी और अदानी जी के करिबियों और व्यवसायिक दोस्तो की कानून उल्लंघन की कारवाई को अनदेखा किया जाये | इसी सीबीआई ने काँग्रेस नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्य मंत्री हुड्डा के घर पर --तीन बार छापा मारा – क्योंकि एक भूमि आवंटन किया था जिसमें रोबर्ट वाड्रा शामिल थे !

पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार के समर्थक द्वरा निर्मित फिल्म "”एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ही नहीं वे एक्सीडेंटल फाइनेंस मिनिस्टर भी रह चुके है --- नरसिंघ राव सरकार में | यह तंज़ अरुण जेटली जी के उस लेखन के बाद है की "”” अंत हीन जांच का दुशसहस और विभागीय जांच में "””अंतर होता हैं "”” ? अब इस अंतर को इन घटनाओ से समझा जा सकता है !
यह एक संयोग ही हैं की वकालत के छेत्र में -जेटली और एटार्नी जनरल तुषार मेहता चिदम्बरम से बहुत जूनियर है | एवं जिस मामले की जांच में "”उन्हे अभियुक्त "”बनाया गया है --- उसमें उन्होने एक कंपनी को " अनुमति "” देने की ज़ुर्रत की थी | अब मौजूदा वितता मंत्री के इस लेखन के बाद "”जिस प्रकार सीबीआई और ईडी ने उपरोक्त आठो "”महान लोगो '’ के खिलाफ सारी कारवाई बंद कर दी है | उसका कोई प्रशासनिक कारण नहीं बताया गया है |

हरीशंकर व्यास जी ने तो यनहा तक लिखा है कि सीबीआई जैसी भ्रष्ट संस्था द्वरा अगर किसी पर कारवाई कि जाये तो उसे शंका कि निगाह से देखे | क्योंकि जेटली के "”ब्लॉग में भी कहा गया "” आईसीआईसीआई के मामले में संभावित लक्ष्यो का रास्ता हैं ! इस जांच में सबूत या बिना सबूत के शामिल करेंगे तो हम क्या हासिल करेंगे ? “”” अब उनकी इस भावना को विस्तार दिया जाये तो चिदम्बरम – उनके पुत्र और पत्नी तथा अखिलेश और हुड्डा कि जांच का क्या आधार होगा ??
चिदम्बरम और उनके परिवार के सदस्यो से "”पूछताछ"” करने के लिए सीबीआई को "” हिरासत क्यो चाहिए ? “ क्या वह एक पूर्व वित्त मंत्री के परिवार कि सामाजिक प्रतिस्ठा को इसलिए लांछित करना चाहता है कि ---- उन्होने भी ट्वीट करके मौजूदा वित्त मंत्री के फैसलो कि तार्किकता और तथ्यो पर प्रश्न चिन्ह लगे था इसलिए ? अथवा नोटबंदी और जीएसटी के माडल पर उन्होने सर्वदलीय बैठक कि सहमति को अनदेखा करने का आरोप लगाया था ? या कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन कि ताकत को विगत दो उप चुनावो में देख चुके है , इसलिए वे अखिलेश और मायावती को प्र्टादित करना चाहते है ? क्योंकि उनकी संयुक्त ताक़त बीजेपी कि आगामी लोक सभा चुनावो में मौजूदा संख्या को "” काफी घटा देगी ? अथवा जनता कि चौपाल पर हारे जुआरी कि भांति --- जीतने वाले को बुरा -भला कह कर अपमानित करने के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करना हैं ?
ऐसे सवाल अब तो उठेंगे - प्रदेश के सबसे बड़े भ्रष्टाचार के घोटाले व्यायापम मे बीजेपी कि तत्कालीन सरकार और पार्टी के लोगो को "”क्लीन चिट'’ इसी सीबीआई द्वरा तथा कथित जांच के बाद दी गयी ~! अब तो वे व्हिसिल ब्लोवेर ही गलत साबित हो रहे हैं < हो सकता है कि उन्हे ही इस मामले का दोषी बना दिया जाये !!

Jan 24, 2019

भोजपुरी और अवधी इलाके में प्रियंका गांधी के होने का तात्पर्य ?------------


भोजपुरी और अवधी इलाके में प्रियंका गांधी के होने का तात्पर्य ?----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काँग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल द्वरा लोकसभा चुनावो के पूर्व उत्तर प्रदेश में संगठन की जो जव्य विमूढ कर दिया है | लखनऊ के पूर्वी इलाके में जनहा भोजपुरी और अवधी बोली का आधिपत्य है उस इलाके में आज भी इल्लाहबाद के आनंद भवन की विरासत और गांधी बाबा का नाम बरकरार हैं | अभी तक इस पहचान के वास्तविक प्रतीक का अभाव इन छेत्रों से काँग्रेस को पहचानने में असमर्थ था | परंतु जवाहर और इन्दिरा गांधी के खानदान की प्रियंका गांधी ने उस प्रतीक को पुनः उजागर कर दिया है |विगत चुनावो में काँग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से बंजर साबित हुआ हैं | अब इसी धरती की माटी मे प्रियंका जी को योगी के दावो और वाराणसी में मोदी जी के चरित्र हत्या के बयानो के बीच पार्टी के लिए सफलता की फसल काटनी है | समय कम है चुनौती बड़ी है | पर इन्दिरा की पोती और राजीव की पुत्री ऐसी विरासत में जन्मी है --- जंहा माता की मौत का मातम मनाने के लिए भी समय नहीं रहता ----और प्रधान मंत्री पद की शपथ लेनी पड़ती है |


सोश्ल मीडिया पर संघ समर्थित अंध भक्तो ने अभी से उनकी नियुक्ति की घोष्णा के समय और उनके द्वरा गांधी नाम के प्रयोग पर "” हाय - तोबा मचाना शुरू कर दिया है "” | यंहा तक की खबरिया चैनलो ने तथाकथित राजनीतिक दलो और एक्सपर्टों पर इस मुद्दे पर "”बहस "” करनी शुरू कर दी है | ऐसा क्यो ? अन्य दलो चाहे भारतीय जनता पार्टी हो आँय राजनीतिक दलो में भी पदाधिकारियों को नियुक्ति और बदलाव होते ही रहते है , तब इस तेज़ी से प्रतिकृया नहीं होती है | फिर प्रियंका के मामले में ऐसा क्यों ?
क्या इसका कारण यह है की नेहरू - गांधी परिवार की इस पीड़ी की वे ही एकमात्र सदस्य हैं ---जो सक्रिय राजनीति से दूर रही ? अथवा उनके व्यक्तित्व का करिश्माई होना है ? 1920 से जो परिवार देश की आज़ादी की लड़ाई में सतत लगा रहा ---जिसके परिवार ने काँग्रेस पार्टी को पाँच अध्यक्ष दिये --तीन प्रधान मंत्री दिये -----जिनमें से दो की हत्या आतंकवादियो द्वारा कर दी गयी , ऐसे परिवार की विरासत तो प्रकाशमान होगी ही | दूसरी ओर नब्बे वर्ष के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले का कोई एक भी नाम नहीं है | उधार में लिए सावरकर का कोई संबंध डॉ हेड्गेवार की इस संस्था से नहीं था ----सिवाय इसके की वे भी एक मराठी थे !
नेहरू -गांधी परिवार के दो सदस्य मेनका गांधी और वरुण गांधी आज बीजेपी के सांसद है | खबरिया चैनल की बहस में बीजेपी के एक प्रवक्ता को इस बात पर एतराज़ था की प्रियंका और राहुल गांधी सरनेम का उपयोग किस आधार पर करते है ? उनके अनुसार वे गांधी नाम का उपयोग कर देश को धोखा दे रहे हैं ! इन्दिरा जी ने फिरोज गांधी से विवाह किया , आम तौर पर पति का सरनेम पत्नी को स्व्व्मेव मिल जाता हैं | परंतु उन्होने दस्तावेज़ो में अपना पूरा नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू गांधी ही लिखा { रायबरेली के चुनाव नामांकन में } | उनके पुत्र राजीव जी को यह कूलनाम मिला | प्रियंका गांधी ने राबेर्ट वाड्रा ने शादी की | तब उनका नाम भी प्रियंका गांधी वाड्रा हुआ | अब यह तो उस व्यक्ति की इच्छा है की वह किस नाम का उपयोग अपनी पहचान के लिए करता है | इस पर बीजेपी या दूसरे दल क्यो इतनी हाय तोबा मचा रहे है ??

अब प्रियंका को पार्टी द्वरा दिये गए चुनौती पूर्ण लक्ष्य की बात करते है ---- उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पूर्व दिशा में भोजपुरी और अवधी बोली का इलाका है | इस इलाके में सवर्ण मतदाताओ का बाहुल्य तो नहीं है - परंतु वे चुनाव की गणित में निर्णायक ज़रूर है | अभी तक राम मंदिर के मुद्दे को लेकर इस छेत्र में बीजेपी का वर्चस्व था | यादव और कुर्मी वोट समाजवादी को और दलित मतदाता बहुजन समाज को जाते थे | परंतु प्रियंका के आने के बाद इस समीकरण में भरी बदलाव की उम्मीद की जा रही है | यह बदलाव भावनात्मक स्तर पर होने की संभावना हैं | जैसे मंदिर के नाम पर बीजेपी और संघ मिल कर इस इलाके के सवर्ण मतदाताओ की आस्था को दूहते थे ----शायद वह इस बार संभव ना हो पाये | उसका एक कारण तो मंदिर मुद्दा "” काठ की हांडी "” साबित हुआ हैं | जिसे बीजेपी ने विगत कई चुनावो में भांति - भांति से भुनाया है | परंतु जैसी आशंका थी की -योगी जी की सरकार '’अर्ध कुम्भ '’ को कुम्भ प्रचारित कर लोगो को भरमा रही है , वह तकनीक चुनवो में भी सफल होगी | जिन नागा साधुओ और भगवा धारियो की बदौलत संघ परिवार "” आस्था की क्रांति "” करने का ऐलान कर रहा था | वह सब कुछ खतम हो गया | उसके दो कारण थे पहला था मामले का अदालत में होना --- दूसरा अदालत से चुनाव पूर्व किसी भी प्रकार के फैसले की उम्मीद नहीं होना |
ऐसे में मोदी - शाह की जोड़ी से उकताए लोगो के सामने इन्दिरा गांधी की छवि वाली प्रियंका एक बार तो चालीस वर्ष के ऊपर की आयु के लोगो को बंगला देश की याद दिला देगी | वह नसबंदी की पीड़ा की भी याद दिला सकती है | परंतु बदले माहौल में लोगो को परिवार नियोजन का महत्व समझ में आ गया है | जबकि बीजेपी के भगवा धारी नेता लोगो से अधिक से अधिक संतान उत्पन्न करने की अपील करते है !! नौजवान मतदाता जिसने इन्दिरा जी को पड़ा है या उनके बारे सुना है – और उन्हे फोटो में देखा हैं ---- वह जब प्रियंका और उनकी दादी की शकल में समांतए देखेगा तो प्रभावित तो होगा |
वैसे बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती भी महिला वोटो का दावा कर सकती है | परंतु उनके फैशन - और धन प्रेम तथा क्रोध के किस्से कहानी आम है | छण में तोला छण में माशा हो जाना और तुनुक मिजाजी में फैसले बदल देना सार्वजनिक जीवन में उजागर हो चुका हैं | मायावती का रोश्पुर्ण चेहरे की तुलना में मुस्कान भरी शकल अयोध्या से लेकर गोरखपुर और वाराणसी से इलाहाबाद तथा सीतापुर तक अवश्य ही एक झलक के लिए उमड़ेगी | इन इलाको में बीजेपी की प्रादेशिक नेत्रत्व और राष्ट्रीय नेत्रत्व हैं | गोरखपुर तो योगी आदित्यनाथ का इलाका है | इस इलाके में महिलाओ में लाज और शर्म को आम तौर पर देखा जाता हैं | यंहा की महिलाए किसी भी ऐसे शब्द को सुन कर या द्रशय को देख कर मुंह पर हाथ लगा लेती है , और अभद्र सीन को देख कर आँख की ओट कर लेती है | यह इलाकाई संवेदना – पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट- गुजर और यादव बाहुल्य इलाके में नहीं मिलती | उसका कारण है की इस छेत्र की महिलाए भी खेतो में खलिहानों में मर्द के कंधे से कंधा मिला कर काम करती है | इसी कारण उनमें पुरुष जन्य कठोरता आ जाती है | जबकि पूरबी उत्तर प्रदेश में सवर्णों की महिलाए घर से ही काम काज करती हैं | वे अन्य छेत्रों की महिलाओ के मुक़ाबले कोमल होती है | उनमे गहरी संवेदना को समझने की शक्ति होती है | ऐसे इलाके में एक मशहूर परिवार की विरासत की सुंदर महिला के प्रति वही भाव होगा जो राजा - रजवाड़ो के इलाके में "” घंडी खंभा "” को देख कर होती है ! जंहा कुछ पाने के लिए नहीं वरन एक "”आभा" को देखने और आतम सात करने की होती है | जिसके सामने सर झुक जाता हैं | लाव - लश्कर के बिना सूती साड़ी में दिखती प्रियंका के मुक़ाबले तड़क - भड़क के सलवार सुइट में मायावती की छवि ----- का पराजित होना निश्चित हैं , ऐसा मेरा अनुभव कहता हैं |

रायबेरेली और अमेठी में माता सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के प्रचार का प्रबंधन करने को जिन लोगो ने समीप से देखा है , वे उनके मुस्कराते हुए दो टूक उत्तर और संभव सहायता के आश्वासन से परिचित होंगे | पत्रकार मंडली भी उनसे ऐसा कुछ नहीं कहलवा पाती जो ब्रेकिंग न्यूज़ बन सके | इन्दिरा गांधी से लेकर सोनिया तथा अब प्रियंका का राजनीति में पदार्पण सादगी - सौम्यता और सहजता का प्रतिमान है | वे कभी किसी को न तो गाली देती है ना ही क्रोध करती है

Jan 22, 2019


धरम -जाति के बाद अब भगवाधारी अखाड़े और महंत बने दलो के वोट बैंक !! संघ और साधुओ के विरोध से चुनावी वैतरणी खतरे में
जैसा अपेक्षित था की इल्लाहबाद उर्फ प्रयाग राज़ में हो रहे अर्ध कुम्भ को, योगी सरकार ने कुम्भ प्रचारित कर के भगवा ब्रिगेड को चुनावी राजनीति में माफिक करने की कोशिस --उल्टी पद गयी | महीनो से जिस प्रकार प्रयाग में हो रहे इस धार्मिक आयोजन को भगवा धारियो की मदद से मंदिर के नाम पर संघ और भारतीय जनता पार्टी समर्थक अनेक आखाडा और मठाधीशों ने लाखो साधुओ का मार्च करने ---- मंदिर निर्माण का अंतिम फैसला कुम्भ में होने का प्रचार हो रहा था , वह अब फुस्स हो गया |


धर्म को राजनीतिक हथियार बनाने और देश की धर्मभीरु जनता की आस्था को वोट के लिए इस्तेमाल करने के ठेकेदारो संत -परमहंस -महामान्द्लेस्वर – के नामो का इस्तेमाल चुनाव में करने की कोशिस विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के नाम पर बीस वर्ष पूर्व की थी | जो पहली बार सफल भी हुई | -अटल बिहारी वाज्पेई प्रधानमंत्री बने | परंतु 1977 में आपातकाल के बाद हुए लोकसभा चुनावो में श्रीमति गांधी को देश के चारो पीठ के शंकरचार्यों ने संयुक्त रूप से --समर्थन देने की अपील की थी | राष्ट्रीय संत विनोबा भावे ने भी अनुशासन पर्व कहा था | परंतु अशिक्षित -धर्मभीरु जनता ने उन्हे सत्ता से हटाया !!! इस उदाहरण के बाद भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने देश के अनेक मठो और आखाडा सहित साधुओ के संगठन से "””मंदिर निर्माण "” के नाम पर चुनावी आशीर्वाद लेने की कोशिस की | पर अनुभव बताता है की श्रद्धा अथवा विश्वास का "दुरुपयोग " अथवा धोखा एक ही बार दिया जा सकता है | कोई भी चिटफंड कंपनी एक ही बार अपने निवेशको को लूट सकताई है ------दूसरी बार नहीं |


धर्म और कर्तव्य पर हाल मे ही हुई आईएएस आफिसर्स एसोसियसन की वार्षिक मिलन समारोह में लद्दाख के प्रमुख शिक्षाविद डॉ वांगचुक {कहते है फिल्म थ्री ईडियट इनके जीवन से प्रेरणा लेकर बनी थी } ने अपने संबोधन में बेहतर तरीके से कहा की देश में लोग धर्म का करमकांड अधिक करते है |परंतु अपनी जिम्मेदारियो का पालन नहीं करते है ! उन्होने यंहा तक कहा की , जो अपने दायित्यों का सही रूप से पालन नहीं करते है वे वास्तव मे चीन की मदद करते हैं ! शायद वे दुनिया में अकेले ऐसे व्यक्ति है जो एक ऐसी "” एकेडमी चलते है जनहा वही छात्र भर्ती हो सकता है जो "फेल" हुआ हो अथवा साधहीन हो !
गिरे हुए को उठाने का जज़बा बिरले लोगो में होता हैं | क्योंकि नेता के दरबार से लेकर अफसर के आफिस और महंतो और मंडलेशवरों के आश्रमो में भी बड़े -बड़े धन्ना सेठो या रसूखदारों की ही पहुँच होती है |, साधनहीन ज़रूरतमन्द – जैसे मंदिर के बाहर भूख और बीमारी से तड़पते रहते है , वैसे ही इन धर्म ध्व्जाधारी के दरवाजे पर भी गरीबो की कोई पूछ नहीं होती हैं | अभी तक तो नेता और सेठ तथा अफसर अपनी निजी तकलीफ़ों - संकटों के लिए इन देवदूतों के आश्रय जाते ,थे | परंतु आज की बदली हुई राजनीतिक स्थिति में अब इन "”आश्रमो --मठो "” से राजनेता समर्थन पाने के लिए भी "” कीमत देने को तैयार रहते है | दक्षिण के प्रदेशों में तो यह चलता ही था ---अब इस मर्ज ने सारे देश को जकड़ लिया है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह भैया जी जोशी द्वरा "”तंज़" में दिया गया यह बयान की मंदिर तो 2026 में बनेगा | केंद्र में सत्तारूड "”मोदी -शाह और जेटली "की टोली को काफी तंग कर रही हैं | अशोक सिंघल के जमाने में अयोध्या मे राम मंदिर निर्माण के धार्मिक मुद्दे को जिस प्रकार राजनीतिक ढंग से "”भुनाया गया "” अब वह 2019 के लोकसभा चुनावो में "”नोटबंदी "” मे गैर कानूनी हुए रुपये की भांति "” मात्र एक पुकार रह गयी हैं | क्योंकि संघ और -साधुओ की युगल जोड़ी ने जिस प्रकार इस मुद्दे पर भारतीय जनमानस की आस्था से "”सत्ता के लिए खिलवाड़ किया था --वह आज उन्नीस साल बाद "ध्वष्त! ! हो गया है |

अर्ध कुम्भ को पूर्ण कुम्भ {{जो 12 वर्ष बाद होता है }} कहकर दुनिया में प्रचारित करने की कला भी भगवा वस्त्र पहन कर राजनीति करने और सफ़ेद पहन कर धर्म और जाति तथा आस्था का सहारा लेकर सत्ता तक पहुचने --- का फार्मूला लगता है इस बार नहीं चलेगा | क्योंकि अखिल भारतीय आखाडा परिषद के अध्यक्ष "”महंत नरेंद्र गिरि "” ने आगामी चुनावो में भारतीय जनता पार्टी को चुनावो में समर्थन देने से इंकार कर दिया है ----- इस प्रकार नरेंद्र मोदी को को अपने नामधारी आखाडा प्रमुख से ही चुनौती मिल गयी है !!
धरम बनाम कम्प्यूटर ;--
फिलहाल लोकसभा चुनावो की घंटी बजने मे कुछ दिन बाक़ी है ----परंतु दीवार पर इबारत का उभरना शुरू हो रहा है | 2014 का संसदीय चुनाव जिस प्रकार संगठित रूप से और लगातार किया गया था वह सर्वथा नवीन प्रयोग था | उस से दूसरे राजनीतिक दलो ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया है | अब छोटे या बड़े सभी दल "सोश्ल मीडिया पर प्रचार पर विशेस ध्यान दे रहे है | कांग्रेस - हो या एनसीपी अथवा शिवसेना हो सभी के "”” मीडिया वार रूम "” सज्जित रहने लगे है |पार्टी कार्यकर्ताओ से ज्यादा महत्व इन एमबीए पास कम्प्युटर ज्ञान से सज्जित सूटेड - बूटेड युवको का है | जिनकी बात बड़े से -बड़े नेता भी "अति गंभीरता से लेते है " | कारण यह की अधिकतर जमीनी नेता - कम्पयुटर का ककहरा भी नहीं जानते | हा जेब में मोबाइल भले ही दो होंगे जो 25 से 50 हज़ार रुपये की कीमत वाले होगे |

इसका सबूत प्रशांत किशोर है ---2014 में मोदी जी के चुनाव की रूप रेखा और प्रबंधन का जिम्मा इनहि का था | परंतु चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इनकी माहवारी मोटी फीस को लेकर एतराज़ जताया तब मन -मुटाव हुआ ,और वे बिहार के विधान सभा चुनाव में भाजपा की पराजय का कारण बने !!! अभी बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने एक इंटरव्यू में "खुलासा "” किया की ,-उन्होने अमितशाह द्वरा दो बार सिफ़ारिश किए जाने पर जनता दल का पदाधिकारी बनाया था | लेकिन तब से लेकर अब तक पटना की गंगा में काफी पानी बह गया है |

फिल्मों का उपयोग ;-
चुनावी साल में प्रदर्शित हुई दो फिल्मे ---एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और उरी -द सर्जिकल स्ट्राइक का तफसील से बयान करना ज़रूरी है | क्योंकि इन दोनों ही फिल्मों का प्रदर्शन चुनावी वर्ष मैं इसलिए किया गया हैं ----की अधिक से अधिक लोगो में "” देशभक्ति के नाम पर मोदी सहस्त्र् नाम "” हो | सभी राजनीतिक दलो को आफ्नै विचारधारा का प्रचार - प्रसार का पूरा अधिकार हैं | जिस प्रकार 2014 में इन्दिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह को देश की वर्तमान सभी समस्याओ का जिम्मेदार बताया था - और सोश्ल मीडिया से लेकर विज्ञपनों तक में इस परिवार को देश का दुर्भाग्य निरूपित किया गया था ---- वही तरीका सधे हाथो से इन फिल्मों के जरिये अपनाया गया है | परंतु मोदी ब्रिगेड के लोग यह चूक कर जाते है ---की "”अति "” नुकसान देह होती है | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके पालित -पोषित तत्व जो भारतीय जनता पार्टी समेत 32 आनुसंगिक संस्थाओ में बैठे लोग ---- बस एयक सवाल का जवाब नहीं दे पाते की "” आखिर ये लोग जनता द्वरा चुने गए थे "” और इनहोने कभी कोई मंदिर या मस्जिद के सहारे राजनीति नहीं की "| जब आप के संगठन सिर्फ और सिर्फ यही कर रहे हैं |
क्या इस स्वयंसेवको की जमात में किसी ने भी देश की आज़ादी के लिए जेल गए ? आखिर आपका संगठन भी तो 90 साल पुराना है ? जबकि आज़ादी मिले अभी 72 साल ही हुए हैं ! क्या इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत को देश भुला सकता है ? मनमोहन सिंह दस वर्ष प्रधान मंत्री रहे उनकी भी सीबीआई की जांच हुई ---पर क्या निकला ? एक जुमला की वे रेनकोट पहन कर नहाते थे !!!! _यह मोदी उवाच है |

बक़ौल हरीशंकर व्यास जी के ढाई लोगो की सरकार जितनी सुरक्षा लेकर चलती है ---उतने "”रिंग राउंड " किसी दूसरे नेता के हुए है ? श्रीमति गांधी के चरित्र पर कीचड़ उचालने का काम फिल्म आँधी से शुरू हुआ था | परंतु उसके बाद 1980 के चुनावो में वे बहुमत के साथ सरकार बनाई | ऑपरेशन ब्ल्यूए स्टार भी उनके समय हुआ ---- उन्होने अपने सिख अंगरक्षकों के खिलाफ "”””देशद्रोह की धारा लगा कर बंद नहीं करा दिया "” ? जैसा की असमिया साहित्यकारों और पत्रकारो के खिलाफ किया गया ! “ फिर अनेक फिल्मे बनी जिनमे इस परिवार को भ्रष्टाचारी - बेईमान --- और यंहा तक की अंग्रेज़ो का पिट्ठू भी कहा गया |
पर इल्हाबाद के आनंद भवन से महात्मा के आशीर्वाद से जो राष्ट्र वादी विचारधारा चली वह आज भी जिंदा है | मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या ने महात्मा के उद्देस्यों को दुनिया में फैलने से रोकने में असमर्थ रही ---- गोडसे उनके शरीर की हत्या कर सका "”बस "” | प्रचार तो काँग्रेस के महात्मा गांधी से लेकर मोतीलाल नेहरू - जवाहर लाल नेहरू - इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की चरित्र हत्या के सतत प्रयास चल रहे है | परंतु यह नफरत मोदी और -शाह को वोट नहीं दिला सकेगी |
तो अब गाँव के सरपंच और मुखिया के अलावा दबंगों के आतंक से वोट नहीं मिल सकेंगे | तब मंदिर निर्माण की काठ की हांडी तो नहीं सफलता देगी | अब सबका साथ और सबका विकास का नारा चलेगा या नोटबंदी तथा जीएसटी की मार झेल रहे नागरिकों और व्यापारियो के कष्ट बोलेंगे ----यह तो समय बताएगा |