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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 28, 2017

क्या न्यायपालिका ने वेतन-- भत्तो के लिए सरकार का दबाव मानकर --जजो के चयन मे बार और बेंच का   अनुपात  उलट दिया ???

सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट के जजो के वेतन भत्ते अब कैबिनेट सचिव - चुनाव आयुक्त तथा महालेखाकार के समान हो जाएंगे | इससे तीन गुना बदोतरी हुई है | परंतु इसी के साथ ही कालेजियम ने बेंच के जजो के लिए 58वर्ष 6माह नियत की है ,,जबकि बार अथवा वकीलो के जज बनाये जाने के लिए यह आयु 45 वर्ष से 55 वर्ष रखी गयी है | इस अंतर का अर्थ हुआ की सरकार के चहेते वकील दस से - पंद्रह साल बेंच पर रह कर अपने लोगो को उपक्रत कर सकेंगे | वनही बेंच या ज़िला अदालतों के जज उच्च न्यायालय मे प्रोन्नत किए जाने के लिए 58 वर्ष 6माह की आयु होने का अर्थ हुआ की वे अधिकतम कार्यकाल 60 वर्ष होगा | बेंच से प्रोन्नत हुए जज राजनीतिक दबाव को नकारने का साहस रखते है | जबकि वकालत से जज बनने वाले लोगो का वास्ता भांति --भांति के लोगो से होता है | जो उन्हे अदालत मे न्ययाधीश बनने के बाद भी बांधे रहती है |
इस से ज्यादा अपमानजनक उत्तर तो केंद्र सरकार ने कालेजियम के उस प्रस्ताव पर दिया -जो जज के नाम को मंजूर करने की सलाह पर दिया | केंद्र ने कहा की सरकार प्रस्तावित जजो के नाम पर जांच को " राष्ट्रीय सुरक्षा"” के नाम पर वीटो करने का अधिकार चाहती है | जिस पर कालेजियम ने कहा की सीबीआई या आईबी से जांच के परिणाम को किसी स्वतंत्र निकाय से भी कराया जा सकता है | सरकार की यह पहल उसकी नीयत को स्पष्ट करती है की वे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के लिये यौग्यता से अधिक स्वामी भक्ति को महत्व देना चाहती है | क्या इस से न्यायपालिका की निसपक्षता बरकरार रह पाएगी ? शायद ऐसी सरकार के गलत फैसलो पर न्याय नहीं दे सकेगी |

सरकार "”राष्ट्रिय सुरक्षा "””को ऐसा आधार बनाना चाहती है --जिस से उसे अपने किए गए फैसलो का कारण को "”गोपनीय "” की परिभाषा मे लाकर सार्वजनिक रूप से असली मंशा को छुपा लेने मे समर्थ हो सके |संविधान की कसम को बेअसर बनाने मे यह तरकीब कारगर होने की संभावना है |

Mar 27, 2017

जेटली जी भूल गए क्या -बोफोर्स और 2जी तथा 3जी कोयला के बारे मे भी तो – कैग ने ही संभावित हानी का "”अंदाज़ "” विनोद रॉय जी ने लिखा था – जिसको लेकर मोदी जी तथा बीजेपी नेत्रत्व ने घनघोर मचाया था - इस्तीफा मांगा था ---अब कैग शशिकान्त शर्मा की "व्यापाम पर की गयी ”आपतिया "”
अखरने लगी क्यो ??
महालेखाकार परीक्षक संविधान के अनुछेद =148 द्वारा नियुक्त संवैधानिक पद है | उसे भी राज्यपाल और जजो के अनुरूप ही शपथ लेता है | एवं उसे भी केवल महाभियोग द्वारा ही हटाया जा सकता है | अर्थात मात्र सरकार बनाने के बहुमत की ताक़त पर कुछ नहीं हो सकता |
इस संदर्भों मे जेटली जी तथा भाजपा के कुछ नेताओ की टिप्पणियॉ को मात्र "”बंदर घुड़की ही "” माना जाना चाहिए | मोदी जी ने स्वयं और उनके भक्तो -सहयोगीयो ने 2जी 3जी और कोयला मामलो मे तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ ना केवल देश भर मे नारे बाज़ी और -प्रदर्शन किए वरन उनको भ्रष्टाचार का दोषी बताते हुए इस्तीफे की मांग भी की थी | उनकी सरकार को अनैतिक -भ्रष्ट सरकार बताते हुए राष्ट्रपति से उन्हे बरख़ासत करने के लिए ज्ञापान भी सौपा था |
आज जब व्यापाम ऐसे घोटाले की बेईमानी उजागर की तब क्यो तकलीफ हो रही है | रिपोर्ट मे साफ लिखा है की विगत 2008 से इस संस्थान को ना तो शासकीय निकाट का दर्जा दिया -परंतु आईएएस अधिकारी मुखिया होते रहे और सरकार के मंत्रियो के निर्देश पर ही त्रिवेदी - उपरित आदि जैसे भ्रष्ट लोगो को शिकायतों के बाद भी पदो पर बनाए रखा | सरकारी सेवाओ मे भर्ती को लेकर --ना केवल मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग के छेत्र मे दखलंदाज़ी की वरन लाखो नौजवानो का भविष्य बर्बाद किया वरन रिश्वत खोरी के सहारे अरबों रुपये व्य्यपाम और उनकी जांच के लिए बनाई स्पेशल टास्क फोर्स के लोगो ने छ्त्रो के पालको से दारा - धमका कर करोड़ो रुपये वसूले
अब सत्ताधारी पार्टी के नेताओ को कैग की रिपोर्ट "””सनसनी "” फैलाने वाली लगती है | प्रदेश बीजेपी प्रवक्ता कोठारी के अनुसार कैग की रिपोर्ट अंतिम नहीं है वाह क्या बात काही है <<कोठारी जी वित्तीय नियमन के अनुसार शासकीय व्यय पर महालेखाकर की टिप्पणी अंतिम होती है | उन्हे यह भी नहीं मालूम होगा की वे किसी भी शासकीय निकाय के खर्चे की जांच करके रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का संवैधानिक दायित्व है | अब भाजपा के नेता अपना वादा न न निभाए पर कैग को तो निभाना है | भले सरकार को चुभे या अखरे !!

Mar 24, 2017

धर्म के हाथो मे राजदंड --- क्न्हा -क्न्हा और फलित

वैसे भगवा वस्त्र सन्यासी का वस्त्र है ---जो आदिगुरु शंकराचार्य के अनुसार संसार से वैराग्य और मोह त्यागने के बाद पहना जाता है | सन्यास की दीक्षा लेने के पहले व्यक्ति को परिवार से नाता तोड़ना पड़ता है | शास्त्रो के अनुसार अपना पिंड दान भी स्वयं कर के गुरु द्वारा दिये गए नाम की ही पहचान होती है | आदित्यनाथ योगी गोरखनाथ मठ के प्रमुख है | जो नाथ संप्रदाय अथवा जिसे आम भोजपुरी -अवधी भाषा मे कनफ़टवा जोगी कहा जाता है | गोरखपुर का नाम भी इसी मठ के कारण ही हुआ |

वैसे विश्व मे तीन राष्ट्र है जिनके प्रमुख भी अपने - अपने धर्म के प्रमुख भी भी है | इस श्रंखला मे सर्वप्रथम है रोमन कथोलिक के मुखिया पोप| उन्हे राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दुनिया भर के देश देते है | उनका राष्ट्र वैटिकन सिटी है | जिसका छेत्रफल 0.44 वर्ग किलो मीटर है | परंतु वे धार्मिक और सम्प्र्भु सत्ता है | दूसरा उदाहरण ईरान के आयतोल्ला का है जो निर्वाचन से परे है परंतु वे दुनिया भर मे फैले इस्लाम के शिया समुदाय के धर्मगुरु है | आम तौर पर सुन्नी समुदाय मे "”फतवा"” आदि मौलवी देते है | परंतु शिया समुदाय मे किसी स्थानीय मौलवी द्वरा ऐसा नहीं किया जाता है | विवाद होने पर दुनिया के किसी भी कोने से उस मसले को ईरान भेज दिया जाता है | उनकी सत्ता राजनीतिक और प्र्शासन से ऊपर है | उनका चुनाव धर्म गुरुओ की काउंसिल करती है |

तीसरा उधारण है ग्रेट ब्रिटेन का एलीज़ाबेथ प्रथम के समय से राजगद्दी पर बैठना वाला चर्च ऑफ इंग्लंड का प्रमुख भी होता है | साथ ही वह राजसत्ता का प्रतीक है | संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनके धार्मिक सलहकार को लॉर्ड ऑफ कैन्टरबरी की उपाधि मिलती है | उनका खर्चा भी राजकोष से मिलता है |
मज़े की बात है की इस्लाम के 73 फिरको मे से सुन्नी संप्रदाय सबसे बड़ा है | सऊदी अरब मे मक्का और मदीना को दुनिया के सभी इस्लाम के अनुयाई अपना तीर्थ मानते है | | परंतु दूसरे विश्व युद्ध मे तुर्की मे खलीफा का तख़्ता पलट करने के बाद ---इस्लाम की दुनिया मे किसी भी एक धरम गुरु का वर्चस्व नहीं रहा | भारत मे दाऊदी बोहरा है - फ्रांस मे खोजा मुस्लिमो के प्रमुख आग़ा खान है | कादियानी और अहमदिया संप्रदाय के अलग अलग धरम गुरु है |
दाखिला प्रायमरी मे फीस मेडिकल कालेज की ?

क्रांतिकारी भगत सिंह एवं राजगुरु और बटुकेस्वर दत्त की शहादत के दिन पर शिक्षा मंत्री विजय शाह ने स्कूल के प्रबन्धको और छात्रों के पालको की संयुक्त बैठक बुलाई | परंतु समानता के लिए प्राण उत्सर्ग करने वालो का बलिदान मानो व्यर्थ ही गया --जब सरकार ने कहा की साधन और सुविधा के आधार पर पाँच श्रेणी मे सभी निजी स्कुलो को बांटा जाएगा और ----परीक्षा -परिणाम के आधार पर नहीं ड्रेस और संस्थान के भवन और तड़क -भड़क के अनुसार फीस तय होगी |??
प्रदेश मे सरकार के 83हज़ार प्राथमिक और 30 हज़ार से अधिक माध्यमिक विद्यालय है |15 हज़ार हायर सेकेन्द्री स्कूल है | जो सभी पढाई और परीक्षा मे सुविधाओ मे एक ही स्तर के है और छात्रों की फीस और अध्यापको का वेतन भी एक जैसा है | फिर इन निजी स्कूलो मे इतनी फीस और काशन मनी और चंदे की बीमारी क्यो ?
बैठक मे उस समय हंसी का फ़ौहरा फट पड़ा जब इंदौर के एक संस्थान के प्राचार्य बोले सर हम ढाई लाख नहीं काशन मनी लेते हम तो बस 2 लाख 30 हज़ार ही लेते है | अब यह बयान इन संस्थानो की मन की स्थिति बताता है | भोपाल के एक संस्थान के मालिक बोले की हमारी बिल्डिंग ही 100 करोड़ की है ! इन सब स्पसटीकरणों से यह तो साफ हो गया की---------- वे छात्रों के परीक्षा परिणाम या अन्य उपलब्धियों के बारे मे बताने लायक उनके पास कुछ भी नहीं था | वे अपनी भौतिक हैसियत और पन्चतारा सुविधाओ का विज्ञापन कर रहे थे |

वर्तमान समय मे दस्वी और बारहवि कछा के परीक्षा परिणाम आज भी केन्द्रीय विद्यालयो का सर्व श्रेष्ठ है | लेकिन वनहा ना तो मेनू का मील है और नाही एयर कंडीशन बसे है छात्रों को लाने और ले जाने के लिए |इन फर्जी चमक - दमक वाले संस्थान सेवा के नहीं वरन व्यापार का साधन है तभी तो दूसरे उद्योगो और व्यापार वाले लोग अपनी पत्नियों और बच्चो के लिए शिक्षा की दूकान लगा रहे है | खेल -साहित्य --संगीत के छेत्र मे भी इन संस्थानो की कोई खास उपलब्धि नहीं है |

इस पूरे प्रकरण मे राजनीतिक नेत्रत्व की मंशा पर सवालिया उंगली उठ रही है | ऐसा नहीं की सरकार मे बैठे लोग जनता - जनार्दन की तकलीफ़ों को और स्कूल प्रबन्धको के शोषण से अंजान है | परंतु उनके कहे को ज़मीन पर उतारने वाली नौकरशाही उन्हे बार - बार असफल कर देती है | हालांकि मंत्री विजय शाह जी ने वादा तो किया है की बसो का किराया --और यूनिफ़ोर्म तथा किताबों की संख्या और उपलब्धता को सरल बनाएँगे | अब देखिये क्या होता है सरकार की चलती है या अफसरशाही की चलती है जनता को तो भुगतना ही है |

Mar 23, 2017

शिक्षा का निजीकरण बनाम मूल अधिकारो का हनन ??

मध्य प्रदेश मे शिक्षा का अधिकार आज संकट मे है , क्योंकि राजनीतिक नेत्रत्व तो जन - जन के हित मे प्राइवेट स्कूलों की फीस तथा उनके द्वारा किताबों और कापियो के नाम पर पालको का हो रहा शोषण को रोकने का प्रयास कर रहा है | परंतु अफसरशाही उनकी इच्छा के विपरीत स्कूल प्रबंधन की लाभ कमाने की सभी कठिनाइयो को दूर करने के लिए कटिबद्ध है |
हाल ही मे प्रदेश के स्कूलो मे मंत्रियो और अफसरो ने दौरा किया और वनहा के छात्रो के "”ज्ञान की "”परीक्षा"” ली तो पता चला की छठी और सातवी के छात्रो को साधारण भाषा और गणित का भी ज्ञान नहीं है | इस हकीकत के पहले ही माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने राज्य के सभी विद्यालयो मे नवी और ग्यारहवि क्लास के लिए बोर्ड के पैटर्न पर परीछा कराई | परंतु निजी संस्थानो का परिणाम अच्छा नहीं आया | इस कारण अब शिछा निदेशालय ने सरकार से सिफ़ारिश की है वे निजी स्कूलो को इस बंधन से मुक्त कर दे !!! आखिर क्यो ?
इसलिए की अफसरशाही तो निजी प्रबंधन की ही तरफदारी करेगी | इन संस्थानो मे ज्यादा -ज्यादा फीस और कापी और किताब के बेहिसाब खर्चे को जायज बताने से यह तो साफ हो गया की मंत्री या राजनीतिक नेत्रत्व कुछ भी चाहे ,, यथार्थ मे वही होगा जो अफसर चाहेंगे |

शिक्षा मंत्री विजय शाह ने निजी संस्थानो की फीस और किताब -कापी के शोषण का हल निकालने के लिए बुलाई गयी बैठक मे सरकार की भाषा वही निकली जो अफसर सुनाना चाहते थे | मंत्री भी निरुपाय हो गए | अंत मे अभिभावकों ने अपनी समस्याओ का निदान नहीं होने पर मजबूरन नारे बाजी की ---और बैठक बिना किसदी हल के समाप्त हो गयी | एक बार फिर शिक्षा का मौलिक अधिकार पैसे की ताकत से हार गया |और सरकार भी नागरिकों के हितो का ध्यान नहीं रख सकी |

Mar 17, 2017

क्या ट्रम्प रूसी नेता पुतिन के नारो और वादो की नकल कर रहे है

राष्ट्रवाद - अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर अपने पहले भाषण मे "”अमेरिका फर्स्ट "” का नारा सुन कर लोगो को लगा की यह उनकी "”खोज"” है ? परंतु सच्चाई यह है की रूस का राष्ट्रपति चुने जाने पर ब्लादिमीर पुतिन ने हिटलर की भांति "”महान रूस और रूसी महान "”” का नारा दिया था | जनता के मन अपने नारे की विश्वसनीयता साबित करने के लिए ही उन्होने यूक्रेन पर हमला किया था | जिसकी सभी देशो ने कड़ी आलोचना की थी | तत्कालीन अमेरिकी विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन ने अनेक मौको पर एवं विदेशो मे भी भर्त्स्ना की थी |
ट्रम्प के अमेरिका फ़र्स्ट का नारा "”महान रूस "” की तर्ज़ पर ही है | साथ ही ट्रम्प अपने पूर्वाधिकारियों की भद्द करते हुए अमेरिका को महान देश बनाने का भी नारा दे रहे है | संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों "”रेड इंडियानों "” को तो सुरछित "””बाढो"” मे रखा हुआ है | यद्यपि इनकी लंबाई - कहुदाई मिलो मे होती है | उनके सिवा सभी नस्ल - जातिया और धर्मो के लोग दुनिया के सैकड़ो देशो से आकार बसे है | फर्क इतना है की केवल कुछ अंग्रेज़ो को छोड़ कर बाक़ी अधिसंख्य के पूर्वजो की "”वंहा के स्वतन्त्रता संग्राम "” मे कोई भागीदारी नहीं रही है | ट्रम्प के पूर्वज भी सौ साल पूर्व आकार बसे | ऐसे मे राष्ट्रवाद का नारा खालिस खोखला है |

यूरोपियन समुदाय या यूनियन के प्रति ट्रम्प की नफरत सार्वजनिक है | उसका कारण है की वे देश के साथ दुनिया से भी जुड़े है अपने पड़ोसी देशो से भी |जबकि ट्रम्प तो बजट का बड़ा हिस्सा मेकसिको सीमा पर चीन की दीवार की तर्ज़ पर पक्की सीमा रेखा खींच कर इतिहास मे स्थान पाना चाहते है | जर्मनी की चांसलर एंजेला मारकेल के बारे मे उनकी टिप्पणिया काफी घटिया और निम्नस्तरीय मानी जाती है |
फिलहाल वे अम्रीका के दौरे पर गयी है शुक्रवार 17मार्च को उनकी मुलाक़ात तय हुई है | अमेरिका और अमेरीकन का नारा देकर --वे गैर गोरे लोगो को सारा रहे है | उनके निशाने पर छह मुस्लिम देश के नागरिक है -जिनके आगमन पर उन्होने दों बार रोक लगाने की कोशिस की | अदालतों के फैसलो पर उनकी टिप्पणी की अगर देश की सुरक्षा को खतरा हुआ तो क्या जज जिम्मेदार होंगे ? यह है एक राष्ट्रपति की अपने ही देश की संवैधानिक व्ययस्था के बारे मे राय ?

हालैण्ड मे हुए चुनावो मे मौजूदा प्रधान मंत्री की पार्टी को सर्वाधिक सीट मिली है |परंतु बहुमत के लिए उन्हे गठबंधन करना होगा | वंहा पर विलार्ड ने शरणार्थियो और इस्लाम के विरोध मे मुहिम चलायी थी | जो बहुत लोकप्रिय हो रही थी ,खासकर नौजवानो मे | परंतु परिणाम उनके वीरुध रहे | वनही ग्रीन पार्टी के जेससी केलेवर की विजय को महत्वपूर्ण माना जा रहा है | विलार्ड के खिलाफ उनकी आवाज खुद मजबूत है | वे एक शरणार्थी मोरक्कों पिता और इन्दोनेसिअन मटा की संतान है | वे यूरोपियन समुदाय की एकता और स्वास्थ्य तथा घर की समस्या को प्राथमिकता देते है | उनके लिए राष्ट्रवाद नसलवाद सरीखा ही है |

फ्रांस धूर दक्षिण पार्टी की नेता जिनका नाम काफी जीभ तोड़ने वाला है ----उनका नारा है देश की गौरवशाली महानता और बौद्धिक विरासत को बचाने के लिए ब्रिटेन की भांति ही फ्रांस को भी यूरोपियन समुदाय से अलग हो जाना चाहिए | मुस्लिम शरणार्थियो को देश मे प्रवेश की नीति को वे बदते अपराधो का मूल मानती है | हालांकि हाल मे हुए कुछ हिंसक घटनाओ मे अफ्रीकन मुस्लिम संलिप्त थे |
परंतु इन घटनाओ से राष्ट्रवाद ना तो मजबूत होता है और ना ही इंसानियत शरमसार होती है | बिस्मार्क से शुरू हुए इस नारे की परिणिती एडोल्फ हिटलर के रूप मे हुआ | जिसने सारी मानवता को दंश दिया ---जिसे अभी तक लोग भूल नहीं सके है |
वादा तेरा वादा पर क्या हुआ वादे का श्रीमान
-- देशो मे बाहुबली अमेरिका मे आज कल राष्ट्रपति ट्रम्प के चुनावी वादो को लेकर वनहा की संसद मे भारी घमासान मचा हुआ है | विवादो मे मुख्य है ओबामा हेल्थ केयर को समाप्त करना और दूसरा है उनके द्वरा निवरतमान राष्ट्रपति ओबामा पर चुनावो के दौरान उनकी जासूसी करने का ट्वीट और तीसरा है ट्रम्प के सहयोगीयो द्वरा रूसी राजनयिकों से संपर्क का | कहा जा रहा है की रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को पराजित करने के लिए अपनी हैसियत का उपयोग किया | जिस से पापुलर वोट मे हारने के बावजूद एलेक्टोराल कालेज मे ट्रम्प विजयी हुए | ट्रम्प प्रशासन द्वरा ओबामा हेल्थ केयर को समाप्त कर नये स्वास्थ्य कार्यक्रम को लाने वाले प्रस्तावित विधेयक का विरोध ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि सदस्य और सीनेटर कर रहे है | वे इसके वर्तमान रूप मे मंजूर करने से इंकार कर रहे है | वनही राष्ट्रपति ट्रम्प द्वरा ओबामा के वीरुध लगाए गए आरोपो की पुष्टि के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया गया है | सीनेट की समिति ने उनके आरोपो को निराधार बताया है | यह स्थिति उनकी साख को चुनौती बन गयी है |
हालैण्ड मे प्रधान मंत्री टूट की पार्टी को प्राथमिक मतगणना मे बदत है | वनहा विल्लेर्ड जो इस्लाम विरोधी और मुस्लिम शरणार्थियों के प्रवेश के विरोधी है उन्हे वनहा के नौजवानो मे लोकप्रियता मिल रही है | विलार्ड का कट्ट्ररपंथी रुख लोगो बहुत क्रांतिकारी लग रहा है | उनका वादा है की उनकी सरकार देश को यूरोपियन समुदाय से बाहर निकाल लाएगी | जबकि मौजूदा प्रधान मंत्री इन दोनों ही मुद्दो के विरोधी है | उनकी मुश्किले विलार्ड अकेले नहीं है --टर्की के राष्ट्रपति जो यूरोपियन समुदाय की सदस्यता के लिए उम्मीदवार है --उन्होने हालैण्ड को आतंकवादी देश और इस्लाम विरोधी होने का आरोप लगाया है | टर्की के राष्ट्रपति आर्डूयवान अपनी शक्तियों मे व्रधी के लिए संविधान मे संशोधन के लिए जनमत संग्रह करा रहे है | इसके लिए वे विदेशो मे बसे तुर्की लोगो मे प्रचार के लिए जर्मनी और हालैण्ड मे अपने मंत्रियो को भेजा था < परंतु वनहा की सरकारो ने उन्हे सभा करने की अनुमति नहीं दी | इस कारण वे इन देशो से कुपित है |

फ्रांस मे भी राष्ट्रपति चुनाव का माहौल चल रहा है वनहा के लिबरल पार्टी के उम्मीदवार फ्रांसिस फ़्रांसुया के विरुद्ध धन के दुरुपयोग का मुकदमा चल रहा है |परंतु उनकी पार्टी को मजबूरी मे उन्हे अपना अधिकारिक उम्मीदवार घोसीट करना पड़ा | परंतु वंहा भी दक्षिण पंथी उम्मीदवार मुस्लिम शरणार्थियो को प्रवेश दिये जाने का विरोध कर रहे है | वह ऐसा राष्ट्रवाद के नाम पर किया जा रहा है | ऐसा ही कुछ जर्मनी मे भी हो रहा है | वंहा की चांसलर मारकेल को भी अपने देश मे कट्टरवादी ताकतों से जूझना पद रहा है|
वंहा भी मुस्लिम शरणार्थियो को प्रवेश देने का नौजवान विरोध कर रहे है |



भारत हो या अमेरिका या फिर जर्मनी अथवा हालैण्ड -इन सभी लोकतान्त्रिक देशो मे बहू दलीय निर्वाचन व्यवस्था है | अब चुनाव है तो वादे भी होंगे और दावे भी किए जाएंगे , कसमे भी खायी जा सकती है | सुनहरे संसार के सपने भी दिखाये जाएँगे और भ्रस्टाचार और गैर बराबरी के उन्मूलन के दावे भी होंगे | पर जैसे प्रेमी - प्रेमिका के संबंध जब परवर के यथार्थ की खुरदरी ज़मीन पर आते है --तब काफी कुछ चुभने लगता है | जिसकी ना तो कल्पना की गयी थी और ना ही आगाह किया गया था | पर होता यही है जिसकी "”उम्मीद नहीं "””होती |

2014 मे देश मे लोकसभा निर्वाचनो के दौरान भी ऐसा ही हुआ था | अच्छे दिन तक यह पूरी तरह से ठीक नारा था -जैसा की कांग्रेस भी गरीबी हटाओ का वादा किया था | परंतु इसके बाद जब विदेशो मे जमा काले धन को लाकर सबको 15 -15 लाख रुपये बंकों मे जमा कराने का वादा किया ---बस उत्साह के अतिरेक मे हुई इस चूक के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सार्वजनिक रूप से मंजूर करना पड़ा की यह एक "”जुमलेबाजी '''थी | यानि तकिया कलाम अर्थात "”निरर्थक शब्द "” जिसे अक्सर कुछ लोग बात -बात मे दुहराते रहते है | इसकी मिसाल हाल मे पाँच प्रदेशो हुए चुनावो मे मिली | लोकसभा चुनावो की गलती से बचते हुए सिर्फ शांति – व्यवस्था अथवा व्यक्तिगत हमलो तक मामला सीमित रहा |

Mar 9, 2017

सत्ता और संपन्नता की विरासत क्या सिर्फ तीन पीढी
तक ही रहती है अथवा निरंतरता मे रहती है ??

यह भारतीय वांगमय का ही विचार है की श्रष्टि नसज्वर है – परंतु अक्सर राजनीतिक सत्ता और व्यापारिक अथवा धन की सत्ता के स्वयंभू प्रकरती के इस नियम को भूल जाते है ----जब वे सफलता के शिखर मे होते है | सिकंदर - हानिबल - सीज़र से लेकर हिटलर स्टालिन तक --दीपशिखा की भांति जले और बुझ गए | इनकी विरासत मे विखंडन ही हुआ | परंतु उद्योग और व्यापार मे कुछ परिवार ऐसे भी हुए जो सत्ता और व्यापार मे तीसरी पीढी तक रहे | और बिरले परिवार निरंतरता मे रहते है |

बड़े आदमी या परिवार की कल्पना जब करते है तब आम आदमी के मन मे या तो स्त्ता सीन अथवा धनपति की कल्पना आती है |दूसरे विश्व युद्ध मे सत्ता और संपन्नता साथ -साथ चलती थी | जैसे ब्रिटेन का शाही घराना -जापान का और हैदराबाद के निज़ाम आदि अनेकों नाम लिए जा सकते है | युद्ध के उपरांत हुए परिवर्तनों ने "””शाही संपन्नता "”” का स्थान औद्योगिक घरानो ने ले लिया | जिनहोने उत्पादन और व्यापार से युद्ध के उपरांत अकूत धन एकत्रित किया |

इन घरानो मे अमेरिका के फोर्ड जर्मनी के कृप्स हुए | फिर आया पेट्रोलियम का और औद्योगिक उत्पादो से धन का पहाड़ खड़ा करने वालो का नाम | इनमे जे पॉल गेटी और हावर्ड ह्यूजेस - राक्फ़ेलर आदि | युद्ध के दौरान सर्वाधिक संपन्नता विस्फोटक बनाने वाले नोबल के नाम भी है | \जिनके नाम नोबल पुरस्कार दिया जाता है |उनकी विरासत विसवा के नाम है |

कार निर्माण मे अग्रणी फोर्ड की आज चौथी पीड़ी है जो गुमनामी मे खो गए | अभी हाल मे उन्हे हरे राम हरे कृष्ण आंदोलन मे दिखाई पड़े | कृप्प्स जर्मनी के साँसे बड़े स्टील उत्पादक थे | युद्ध के दौरान कृप्स का निधन हुआ और कंपनी की बागडोर उनकी पुत्री कैथरीना के हाथ मे आई | युद्ध के उपरांत उनके देहांत के बाद उनके पुत्र ने सारी औद्यगिक साम्राज्य को बेचने का फैसला किया | परंतु सरकार ने इसे देश का गौरव मानकर इसे खरीद लिया | वे बाद मे अरजेंटिना मे प्लेबॉय का जीवन व्यतित किया | युद्ध के समय मे स्थापित उद्योगो मे अधिकान्स् बाद मे कॉर्पोरेट नियांतरण मे चले गए | इस प्रकार पारिवारिक उद्योग समूह का अंत हो गया |
इस उदाहरण का मतलब अब पारिवारिक विरासतों का ज़माना ढलान पर है | अमेरिका मे कैनेडी और बुश परिवार उदाहरन है | | भारत मे भी नेहरू गांधी परिवार की विरासत को ध्यान से देखे तो वह भी तीसरी पीढी मे है | अगर हम इसे जवाहर लाल नेहरू से शुरू करे तो यह चौथी पीढी है -परंतु इन्दिरा गांधी के परिवार की विरासत की यह तीसरी पीढी है | तो क्या अब इस परिवार का वर्चस्व खतम होने को है ?? प्राकरतीक नियमो के अनुसार पहली पीढी की स्थापना और उसके वारिसो द्वारा लगाए गए पौधे की देखभाल की जाती है परंतु तीसरी पीढी तक पराभव शुरू हो जाता है | परंतु हम काँग्रेस और नेहरू - गांधी की विरासत को अलग नहीं कर सकते , लोग करते भी नहीं है फिर चाहे वे इनके विरोधी हो या समर्थक | ऐसे मे काँग्रेस मुक्त का सपना असंभव है | क्योंकि काँग्रेस कोई संगठन नहीं --वरन एक आंदोलन से उपजा वह "”बरगद "” है जिसकी अनेकों शाखो ने समय - समय पर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिस की परंतु वे सब पाँच या दस साल बाद मिट गए | इन्दिरा गांधी के समय से हम देखे तो यह बात साफ हो जाएगी सत्ता की इस श्रंखला मे अभी तो नहीं लगता की काँग्रेस की इस विरासत का पराभव निकट भविस्य मे होगा | जैसा की कुछ लोगो का अनुमान है | परंपरा के इस देश मे हम मूर्ति पूजक है | अब तीन पीढी वाले राजनीतिक दलो को देखे कश्मीर की नेशनल कोन्फ्रेंस जिसे शेख अब्दुला ने स्थापित किया आज उसकी तीसरी पीड़ी ऊमर राजनीति मे है | उड़ीसा मे बीजू पटनायक के पुत्र दूसरी प्रदेश की बघड़ोर सम्हाल रहे है | महा राष्ट्र मे भले ही नहीं परंतु मुंबई मे ठाकरे परिवार भी दूसरी पीड़ी मे राज कर रहा है | समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी दूसरी पीढी मे सकीय राजनीति मे है | अब स्थापना काल मे ममता बनेरजी की त्राणमूल और स्वर्गीय जयललिता की अननाडीएमके है | इङ्का भविष्य तो आने वाला समय ही नियत करेगा | |

संपन्नता की इस लाइन मे एक परिवार है जो दुनिया मे आज भी स्वर्ण और हीरे के व्यापार और फाइनेंस के छेत्र मे सबसे आगे है | यद्यपि उसने अपनी उपस्थिती और पहचान को प्रचार और प्रसार साधनो से छुपा कर रखा हुआ है | वे है रोथचाइल्ड मौजूदा समय मे इनकी पाँच शाखाये है जो पेरिस - ब्रूसेल्स और न्यूयार्क मे है | इनका पारिवारिक इतिहास विगत तीन सौ सालो का है | जब वे यूरोपे के राजवंशो को कर्ज़ दिया करते थे | अधिकतर ये राष्ट्रिय कर्ज़ होते थे

अब हम जाने की नोबल ने ट्रस्ट बना कर पुरस्कारों की शुरुआत की | अमेरिका की लाकहीड कंपनी जिसने युद्ध के दौरान और बाद मे विमानन और विध्वंसक छेत्र मे अनेक उत्पाद सरकार के लिए बनाए | उसके मालिक हावर्ड हयूजेस अरबों - खरबो की सम्पदा के मालिक थे परंतु उनका अंतिम समय लॉस विगस के होटल की चौथी मंजिल पर गुजरा | उनकी मौत को सरकार ने रहस्य ही रहने दिया | बोइंग विमान कंपनी इसी लाकहीड़ की सहयोगी है | आज भी वे सरकार के नए प्रोजेक्टो का निर्माण करते है | र्राकफेलर ने ट्रस्ट बना कर सम्पदा का सदुपयोग किया |