शिक्षा
का निजीकरण बनाम
मूल अधिकारो का हनन ??
मध्य
प्रदेश मे शिक्षा का अधिकार
आज संकट मे है ,
क्योंकि
राजनीतिक नेत्रत्व तो जन -
जन
के हित मे प्राइवेट स्कूलों
की फीस तथा उनके द्वारा किताबों
और कापियो के नाम पर पालको का
हो रहा शोषण को रोकने का प्रयास
कर रहा है |
परंतु
अफसरशाही उनकी इच्छा के विपरीत
स्कूल प्रबंधन की लाभ कमाने
की सभी कठिनाइयो को दूर करने
के लिए कटिबद्ध है |
हाल
ही मे प्रदेश के स्कूलो मे
मंत्रियो और अफसरो ने दौरा
किया और वनहा के छात्रो के
"”ज्ञान
की "”परीक्षा"”
ली
तो पता चला की छठी और सातवी
के छात्रो को साधारण भाषा और
गणित का भी ज्ञान नहीं है |
इस
हकीकत के पहले ही माध्यमिक
शिक्षा बोर्ड ने राज्य के सभी
विद्यालयो मे नवी और ग्यारहवि
क्लास के लिए बोर्ड के पैटर्न
पर परीछा कराई |
परंतु
निजी संस्थानो का परिणाम
अच्छा नहीं आया |
इस
कारण अब शिछा निदेशालय ने
सरकार से सिफ़ारिश की है वे
निजी स्कूलो को इस बंधन से
मुक्त कर दे !!!
आखिर
क्यो ?
इसलिए
की अफसरशाही तो निजी प्रबंधन
की ही तरफदारी करेगी |
इन
संस्थानो मे ज्यादा -ज्यादा
फीस और कापी और किताब के बेहिसाब
खर्चे को जायज बताने से यह तो
साफ हो गया की मंत्री या राजनीतिक
नेत्रत्व कुछ भी चाहे ,,
यथार्थ
मे वही होगा जो अफसर चाहेंगे
|
शिक्षा
मंत्री विजय शाह ने निजी
संस्थानो की फीस और किताब
-कापी
के शोषण का हल निकालने के लिए
बुलाई गयी बैठक मे सरकार की
भाषा वही निकली जो अफसर सुनाना
चाहते थे |
मंत्री
भी निरुपाय हो गए |
अंत
मे अभिभावकों ने अपनी समस्याओ
का निदान नहीं होने पर मजबूरन
नारे बाजी की ---और
बैठक बिना किसदी हल के समाप्त
हो गयी |
एक
बार फिर शिक्षा का मौलिक अधिकार
पैसे की ताकत से हार गया |और
सरकार भी नागरिकों के हितो
का ध्यान नहीं रख सकी |
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