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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 24, 2017

दाखिला प्रायमरी मे फीस मेडिकल कालेज की ?

क्रांतिकारी भगत सिंह एवं राजगुरु और बटुकेस्वर दत्त की शहादत के दिन पर शिक्षा मंत्री विजय शाह ने स्कूल के प्रबन्धको और छात्रों के पालको की संयुक्त बैठक बुलाई | परंतु समानता के लिए प्राण उत्सर्ग करने वालो का बलिदान मानो व्यर्थ ही गया --जब सरकार ने कहा की साधन और सुविधा के आधार पर पाँच श्रेणी मे सभी निजी स्कुलो को बांटा जाएगा और ----परीक्षा -परिणाम के आधार पर नहीं ड्रेस और संस्थान के भवन और तड़क -भड़क के अनुसार फीस तय होगी |??
प्रदेश मे सरकार के 83हज़ार प्राथमिक और 30 हज़ार से अधिक माध्यमिक विद्यालय है |15 हज़ार हायर सेकेन्द्री स्कूल है | जो सभी पढाई और परीक्षा मे सुविधाओ मे एक ही स्तर के है और छात्रों की फीस और अध्यापको का वेतन भी एक जैसा है | फिर इन निजी स्कूलो मे इतनी फीस और काशन मनी और चंदे की बीमारी क्यो ?
बैठक मे उस समय हंसी का फ़ौहरा फट पड़ा जब इंदौर के एक संस्थान के प्राचार्य बोले सर हम ढाई लाख नहीं काशन मनी लेते हम तो बस 2 लाख 30 हज़ार ही लेते है | अब यह बयान इन संस्थानो की मन की स्थिति बताता है | भोपाल के एक संस्थान के मालिक बोले की हमारी बिल्डिंग ही 100 करोड़ की है ! इन सब स्पसटीकरणों से यह तो साफ हो गया की---------- वे छात्रों के परीक्षा परिणाम या अन्य उपलब्धियों के बारे मे बताने लायक उनके पास कुछ भी नहीं था | वे अपनी भौतिक हैसियत और पन्चतारा सुविधाओ का विज्ञापन कर रहे थे |

वर्तमान समय मे दस्वी और बारहवि कछा के परीक्षा परिणाम आज भी केन्द्रीय विद्यालयो का सर्व श्रेष्ठ है | लेकिन वनहा ना तो मेनू का मील है और नाही एयर कंडीशन बसे है छात्रों को लाने और ले जाने के लिए |इन फर्जी चमक - दमक वाले संस्थान सेवा के नहीं वरन व्यापार का साधन है तभी तो दूसरे उद्योगो और व्यापार वाले लोग अपनी पत्नियों और बच्चो के लिए शिक्षा की दूकान लगा रहे है | खेल -साहित्य --संगीत के छेत्र मे भी इन संस्थानो की कोई खास उपलब्धि नहीं है |

इस पूरे प्रकरण मे राजनीतिक नेत्रत्व की मंशा पर सवालिया उंगली उठ रही है | ऐसा नहीं की सरकार मे बैठे लोग जनता - जनार्दन की तकलीफ़ों को और स्कूल प्रबन्धको के शोषण से अंजान है | परंतु उनके कहे को ज़मीन पर उतारने वाली नौकरशाही उन्हे बार - बार असफल कर देती है | हालांकि मंत्री विजय शाह जी ने वादा तो किया है की बसो का किराया --और यूनिफ़ोर्म तथा किताबों की संख्या और उपलब्धता को सरल बनाएँगे | अब देखिये क्या होता है सरकार की चलती है या अफसरशाही की चलती है जनता को तो भुगतना ही है |

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