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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 23, 2019


पुरुलिया कांड


भगवा का आतंक देश मैं नया नहीं हैं--- 25 वर्ष पहले भी ऐसी घटनाए हुई थी !

भगवा आतंक को लेकर एक खास विचारधारा के लोग इसे वेदिक धर्म का अपमान निरूपित करने का प्रयास करते हैं , परंतु धार्मिक परिधान के तले सब कुछ "””पवित्र और शुभ " ही हैं ऐसा मानना अथवा विश्वास करना यथार्थ से नितांत पलायन करना हैं | धार्मिक परिधान -या वस्त्र आखिर मनुष्यो द्वरा ही धारण किए जाते हैं , एवं वे सभी "”संत अथवा महात्मा "” नहीं हो जाते हैं | इसलिए जो मनुष्य के विश्वास या आस्था को किसी परिधान अथवा चोगे का गुलाम बनाए वह बिलकुल भी सभ्य समाज या देश मैं माना जाने योज्ञ नहीं हैं

बंगाल के महान लेखक बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास "” आनंद मठ "” ए प्रभावित होकर बंगाल मैं एक "”पंथ अथवा मत याकि संप्रदाय "” का उद्भव हुआ | गौर तलब हैं की उपन्यास मैं ईस्ट इंडिया कंपनी के समय हुए सन्यासी विद्रोह से प्रभावित हो कर एक बंगाली सज्जन ने आनद मार्ग की स्थापना की | राष्ट्रीय गीत "””बंदे मातरम "” इसी उपन्यास से जाना गया | जिस पर बाद मै एक फिल्म भी बनी | धर्म की रक्षा के लिए विदेशियों के वीरुध हथियार उठाने की प्रेरणा दी गयी थी |

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया नामक स्थान मैं आनंद मार्ग मत का मुख्यालय था | इस तिमंजली सफ़ेद इमारत मैं ही प्रभात रंजन सरकार उर्फ बाबा का आश्रम था | इस संप्रदाय का घोषित उद्देश्य एवं सामाजिक -धार्मिक संस्थाओ की भांति शिक्षा और योग का प्रचार करना था | उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इस संप्रदाय अथवा मत के शिष्यो अथवा समर्थको या भक्तो ने , स्थान -स्थान पर स्कूलों की और समागम के लिए आश्रम भी खोले | जिनमैं बालको को धर्म की शिक्षा और बड़े लोगो को योग द्वरा सनातन धर्म के लक्ष्यो की प्राप्ति के लिए जगह - जगह पर वर्ग लगाए जाते थे " जिन मैं इन भगवा धारियो द्वरा पुरतन गौरव और जीवन शैली पर चर्चा हुआ करती थी | इस पंथ की स्थापना 1 जनवरी 1955 को प्रभात रंजन सरकार ने की | मत की स्थापना के बाद बहुत जल्दी ही यह संप्रदाय सारे देश मैं फ़ेल गया | बड़े -बड़े बुद्धिजीवी और समाज के विभिन्न तबको के लोग इनके अनुयायी बन गए | उन मैं सरकारी अफसर और करमचरियों के अलावा शिक्षा -स्वास्थ्य सेवाओ उद्योग व्यापार आदि से जुड़े लोगो को योग और अध्यातम के नाम पर जोड़ा गया |
परंतु साथ के दशक के बाद ये भगवा धारी जो भगवा पगड़ी भी पहनते थे-- तंत्र विद्या द्वरा लोगो की बीमारी दूर करने और बिगड़े काम बनाने का आश्वासन दे कर अपने साथ जोड़ते थे | परंतु साथ और सत्तर के दशक के मध्य ऐसे भगवधारी सन्यासियों के पास से नर मुंडो की बरामदगी ने प्रशासन को चौकन्ना किया | बंगाल और बिहार तथा राजस्थान ऐसे छेत्रों मैं मै इन के शिष्यो से पूछ ताछ की जाने लगी | तब समाज के कुछ प्रभाव शाली लोगो ने इसे आस्था पर प्रहार बताते हुए विरोध किया | इन भगवा धारियो का दल झुंड मैं चलता था | और "” बाबा नाम केवलम "” का जैकारा लगाता था | चिमटा बजते हुए बड़ी बड़ी दाढी आम नागरिकों को वैसा ही आतंकित करती थी जैसे नागा साधुओ की टोली से नागरिक भयभीत होते थे | अथवा जैसे निहंग सिखो को देख कर भिंडरावले के समय मैं हुआ करते थे |

17 मई 1995 को पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया इलाके मैं एक हवाई जहाज से हथियारो की खेप गिराए जाने की घटना ने इस संप्रदाय के गेरुआ वस्त्र धारी शिष्यो के इरादो को उजागर कर दिया | जब रात के अंधरे मैं चार लातविया की और एक डेन्मार्क के नागरिक जो अंटोव मालवाहक जहाज से राइफले और विस्फोट की सामाग्री आनंद मार्ग के मुख्यालय के पास गिरने की कोशिस की गयी | जिसे बाद मैं वौ सेना के जहाज ने कलकत्ता हवाई अड्डे पर उतरने को मजबूर किया | इस पूरे घटना का मुखिया देवी नामक डेन्मार्क का नागरिक था | इन पांचों को गिरफ्तार कर सीबीआई ने मुकदमा चलाया | इस घटना मैं आनद मार्ग की सलिप्तता को उस समय एसियान एज के रेपोर्टर रवि झा द्वरा अपने अखबार मैं विस्तार से लिखा गया | अपनी रिपोर्ट के लिए झा पुरुलिया मैं आनद मठ मैं रहकर उनके बारे मैं जानकारी प्रपट की थी | यह उस समय की बेहतरीन खोजी पत्रकारिता का नमूना बनी |

इस घटना के बाद सीबीआई ने झा की खबर की आधार पर देश मैं अनेक स्थानो पर छापे मारे , लोगो को गिरफ्तार किया गया | मुकदमाइन भी चले | यह था भगवा का आतंकी स्वरूप , जिसको लेकर आज बहुत से लोग संवेदनशील होकर संविधान द्वरा स्थापित राज्य को अपने अनुसार बनाना चाहते हैं | हाँ आनंद मार्गियों ने भी एक राजनीतिक दल का गठन किया था ---प्रउटिस्ट ब्लॉक नामक पार्टी भी बनाई थी , जो आनंद मार्ग का राजनीतिक मुखौटा था |

अब दूसरे पंथ या धर्म की बात करे जनहा अपने धार्मिक उद्देश्यों के लिए खालसा धर्म के एक निहंग सन्यासी थे - जिनका नाम था भिंडरावले | बाद मैं सबको पता हैं की किस प्रकार सिख संप्रदाय के इस सदस्य ने ना केवल सिख संप्रदाय के पवित्र स्थान अमृतसर के अकाल तख्त पर कब्जा कर लिया | इस दौरान पंजाब और हरियाणा मैं आतंक इतना फैला की लोगो ने रात को निकालना छोड़ दिया | पंजाब और हरियाणा तथा दिल्ली तक मैं लोगो ने अपने घरो के बाहर डर के मारे सोना बंद कर दिया !!! पंजाब मै शांति -व्यसथा ध्वष्ट हो गयी | सिखो के पवित्र स्थान '’दरबार साहेब " जिसे लोग गोल्डेन टैम्पल के नाम से जाना जाता हैं | जब अकाल तख्त के प्रबन्धको शिरोमणि गुरुद्वरा समिति को बेदखल कर भिंडरवाले के अनुयाईओ ने कब्जा कर लिया ,तथा प्रदेश की शासन व्यसथा को चुनौती देने लगे ,तब केंद्र सरकार भी चिंतित हुई | महीनो तक समझौते की कोशिस के असफल होने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया | जिसमाइन बहुत खून खराबा हुआ | परंतु बाद मैं संत कहे जाने वाले भिंडरवाले अपने साथियो सहित मारे गए | बाद मैं इन्दिरा जी की हत्या उनके सिख अंगरक्षक ने की |
धर्म के नाम पर अलग राज्य "””खालिस्तान "” की मांग करने वालो का इस प्रकार अंत हुआ |

धर्म के नाम पर आस्था का दुरुपयोग का यह भारत मैं दूसरा मामला था |

श्री लंका मैं हाल मैं हुए विस्फोटो मैं जिस प्रकार एक इस्लामिक संगठन ने दो आत्मघाती लोगो ने खून खराबे का आतंक फैलाया वह वास्तव मैं ईसाई धर्म के लोगो के वीरुध उनकी नफरत का कांड हैं | लंका के प्रधान मंत्री भंडार् नायके की हत्या भी बौद्ध चरम पंथियो द्वरा की गयी थी | म्यांमार मैं भी बौद्ध गेरुआ वस्त्र धारियो ने मुस्लिमो के खिलाफ मारकाट की थी | अभी भी रोहिङिया मुस्लिमो को वापस लेने मैं वनहा की नेता आंग सान सु की राज़ी नहीं हैं | क्योंकि वनहा के बहुसंख्यक बौद्ध धर्म मानने वाले अपने नेताओ के कारण यह संभव नहीं लगता | बौद्ध भी वेदिक धर्म के सन्यासियों की भांति पीला या गहरा गेरुआ चोगा धरण करते हैं |

अब ईसाई धर्म मैं भी धार्मिक चोगे का अपमान अनेकों बार हुआ हैं | केरल की सनयसिनों द्वरा एक वारिस्ठ पादरी के खिलाफ यौन उत्पीड़न और बलात्कार का आरोप लगे हैं | जिसका मुकदमा चल रहा हैं | दक्षिण अमरिका के राष्ट्रो मैं हेरोइन की तस्करो द्वारा मारकाट और सरकार के नेताओ के भ्रष्ट आचरण से हिंसक गोलबंदी मैं चर्च ही बीच बचाव करता हैं |
अभी वेटिकन ने भी अपने पादरियों द्वरा बच्चो के यौन शोषण किए जाने की मसले पर पोप ने सार्वजनिक रूप से दुनिया के लोगो से माफी मांगी | यह सब अन्याय धर्म के चोगे मैं रहते हुए किए गाये |

भारत मैं धर्म भीरु लोग बहुसंख्यक हैं | जिनके भोले पन का फाइदा गेरुआ वस्त्र धारी अथवा सफ़ेद वस्त्र धारियो द्वरा किया जाता हैं | इसका उदाहरण आशाराम - और रंगीले गुरु राम रहीम इनशा जो डेरा सच्चा सौदा के करता -धर्ता थे ----- उनकी दशा देख कर आम तौर पर लोगो की धारणा इन लोगो के बारे मैं बादल जानी चाहिए थी | परंतु अचरज हैं की धर्म के नाम की आंखो पर पट्टी बांधे इन "””भक्तो "” को कानूनी कारवाई के बाद भी यह नहीं विश्वास हैं की वे "”अपराधी हैं "” !!

हक़ीक़त मैं भगवा आतंक , धर्म के नाम पर कानून से खेलने वालो के लिए एक हथियार हैं | ये संत - महात्मा -गुरु - आदि भोले - भले आदमियो की आस्था का नाजायज फाइदा लेने वालो का षड्यंत्र हैं | धर्म के नाम पर ये अपने को भगवान स्वरूप पुजवाते हैं | और धन -सम्पदा इकथा करते हैं | आज इन "”संतो"” की मिल्कियत अरबों रुपये हैं | जो किसी सामाजिक भलाई के करी मैं नहीं वरन इनके सुख - सुविधा पर खर्च होती हैं | कहने का अर्थ कोई भी परिधान पवित्र या अपवित्र नहीं हैं " वरन किस चरित्र के लोगो ने इसे धारण किया हैं वही पहचान हैं |


Apr 22, 2019


विदेशो मैं नाम

मोदी जी भारत का नाम हजारो वर्ष पूर्व की सभ्यताओ मैं भी आदरणीय था !


प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पाँच साला उपलब्धियों मैं एक नारा है विदेशो मैं भारत का सम्मान बढाया प्रधान मंत्री ने | अब काँग्रेस नेता सोनिया गांधी को पढ कर भाषण देने वाली नेता कह कर , भारतीय जनता पार्टी के नेता बहुत खिल्ली उड़ाया करते थे | खुद मोदी जी भी इस बात पर चुटकी लिया करते थे | अब संघ समर्थक और बीजेपी के लोगो को यह जान कर बहुत धक्का लगेगा की देश को दिशा देने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी खुद अपनी चुनावी रैलियो मैं दो - दो टेली प्रोंप्टर के सहारे भाषण देते हैं !!! सोमवार को वाराणसी संसदीय छेत्र से उनके द्वारा नामांकन भरे जाने की संभावना हैं | उनके अनेक नारो या जुमलो मैं आज कल यह नारा "””उन सभी स्थानो मैं प्रमुखता से से विज्ञापन के रूप मैं होर्डिंग और सड़क के आर - पार लगने वाले कपड़े के थान पर भी लिखा मिलता हैं "” प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के समय मैं विदेशो मैं देश का सम्मान बड़ा हैं "”” और हस्ब्मामूल उसी लंबाई -चौड़ाई मैं फोटो भी लगा होता हैं |

अब हमारे प्रधान मंत्री इतिहास मैं कुछ कमजोर हैं – इसलिए उन्हे यह नारा "” गलत नहीं लगा होगा "” क्योंकि उन्हे मालूम ही नहीं , हजारो साल पूर्व जब मिश्र और सुमेरियान -तथा रोम सभ्यताए अस्तित्व मैं थी तब वनहा भारत के मसाले – सूती और रेशमी कपड़े तथा सोने के आभूसण और हीरा -जवाहरात का व्यापार होने के ऐतिहासिक उदाहरण हैं ! उनके गुजरात से अफ्रीका के देशो के व्यापार हुआ करता था | जिसका उदाहरण गुजरात मैं बसे हुए नीग्रो जाती के लोगो का होना हैं ! अब पारसी धर्म के अनुयायी
भी व्यापार के अनुभव के बाद ही शरण के लिए गुजरात के तट पर आए थे !! शिवाजी की जल सेना मैं सिद्दिक नाम के सरदार का नाम आया हैं --जो नीग्रो था ! अब यह सब कुछ मोदी जी अथवा संघ या भारतीय जनता पार्टी के अस्तित्व मैं आने के पूर्व के हैं , तब किस प्रकार उन्होने देश का सम्मान बड़ाया ??
अतिशयोक्ति और अतिरेक ही शायद मोदी जी के सोच और भाषण का आधार हैं | क्योंकि सिकंदर के हमले से पूर्व भी त्रिवांकुर -कोचीन के तटो से इन्डोनेसिया -मलाया --कंबोडिया - लाओस आदि तक दक्षिण भारत के व्यापारी मसाले और रेशमी कपड़े - आभूषण का व्यापार करते थे |
अब मोदी जी यह बताइये की अगर आदर और विश्वास नही होगा तो व्यापार कैसे होगा ?? आखिर आप तो गुजरात के "”बनिया "” हैं ? तब कोई बनिया अथवा व्यापारी ऐसे स्थान पर व्यापार करने जाएगा --जनहा सुरक्षा और सम्मान नहीं होगा ????
जिन अरब कबीलो को संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी आतंक का पर्याय मानती हैं --उनसे भी अदन के रास्ते व्यापार होता था ! शायद इनके भाषण के लिखने वाले इन्हे{{ मोदी जी को }} पूरी जानकारी नहीं देते , वनहा भी वे धर्म भीरु और शांति प्रिय जनता मैं "””परोसा जाने वाला मसाला ही देते हैं , जिसका कोई दस्तावेजी आधार नहीं होता और जो तर्क हीन होती हैं ! क्योंकि मध्यकाल मैं जब येरूशलम के लिए इस्लामी फौज का नेत्रत्व सलहदीन कर रहे थे वनही दूसरी तरफ ईसाई धर्म की ओर से पोप के लिए इंग्लैंड के सम्राट रिचर्ड लड़ रहे थे | तब भी अदन और ईरान से भारत का व्यापार बदस्तूर जारी था | अब नरेंद्र भाई से कोई पूछ तो ले की आप के दौर मैं कौन सी ऐसी बात हुई जो आप कह सकते हों की देश के सम्मान मैं व्रधी हुई ??? सिर्फ दुबई मैं स्वामीराम के मंदिर का उदघाटन ही अगर उनके लिए सम्मान का सूचक हैं ----तब कह सकते हैं की बाबरी मस्जिद ढहाने वालो के संगठन ने इस्लामी कानून {{ सिर्फ कुछ सीमा तक ही }} वाली रियासत मैं :: हिन्दू धर्म का परचम फहराया हैं :: अब 31 .04 लाख की आबादी मैं {जिस मैं भी 38% गैर बाशिंदे हैं } अब इतनी "”बड़ी कहे या छोटी "” जगह मैं मिला सम्मान देश की कलगी पर कितना स्थान घेरेगा ? आखिर दुबई हैं तो एक शहर का देश ! जनहा तक अनेक अन्य देशो देशो द्वरा ,अपने यनहा के राष्ट्रीय सम्मान से मोदी जी को नवाज़े जाने का हैं तो वह औपचारिक सद्भाव का प्रतीक हैं | व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधो को समय - समय पर "” तेल पिलाने "”की ही यह कवायद हैं | इससे देश का तो मान बदता हैं की नहीं --लेकिन ऐसा सम्मान पाने वाला व्यक्ति तो समाज और व्यापारियो मैं प्रमुखता पाता हैं !

इस संदर्भ मैं राजस्थान मैं दिया उनका चुनावी "”जुमला "” सिर्फ सर झुकने पर मजबूर करेगा , उन्होने अपने भाषण मैं राजस्थान की काँग्रेस की सरकार को कोसते हुए कहा की अगर अपने हिस्से के सिंधु नदी के पानी को पाकिस्तान को नहीं दे देते तब राजस्थान मैं जल की कमी नहीं होती ?? अब कौन इन्हे याद दिलाये की पुलवामा पर हुए आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को कुसूरवार बताते हुए – मोदी मंत्रिमंडल के दो मंत्रियो ने कहा था की हम अपने हिस्से के सिंधु नदी के जल को अब पाकिस्तान नहीं जाने देंगे ? सवाल हैं सिंधु जल अंतराष्ट्रीय मसला हैं --जिस मैं कोई भी राज्य सरकार दाखल नहीं दे सकती ! ऐसे मसले केंद्र की सरकार द्वरा दूसरे देश की सरकारो के साथ होते हैं | परंतु मोदी जी का क्या --कहना था सो कह दिया !!!!


अभी अभी उन्होने दो नए "”जुमले निकाले हैं , एक हैं "” मैं गाली को भी गहना बना लेता हूँ |”” जिसका अर्थ हैं की मैं अपनी आलोचनाओ को ही अपनी उपलब्धि बना लेता हूँ | अब गाली या अपशब्द कोई जमा कर रखने की बात नहीं हैं – परंतु हमारे प्रधान मंत्री जी को यह भी एकत्र करने का गुर आता हैं !! आलोचनाओ का जवाब देते तो मोदी जी को कभी सुना नहीं गया ? दूसरा है "””जुमला "” अमित शाह जी ने स्पष्ट किया की 2014 मैं सभी को 15 लाख रुपया देने का "”वादा "” नहीं था , वरन जुमला था ! अब वादा भी "”वाक्य "” है और जुमला भी उर्दू भाषा मैं इसी अर्थ मैं प्रयुक्त होता हैं | अब अमित शाह का यह कहना की जुमला तो बस उछालने के लिए हैं ----- और हिन्दी मैं कहा गया "” 15 लाख मिलेंगे "” भी उर्दू का जुमला बन गया !! वाह वाह मोदी जी और अमित शाह जी !




Apr 20, 2019


बाना धर्म का – कर्म राजनीति का – बोल अहंकार के --रूपक सन्यासी का

वेदिक धर्म मैं मनुष्य को आशीर्वाद हमेशा "”जीवेम शरदह शतम "” का दिया जाता हैं | एवं इस आयु को चार भागो मै विभाजित किया गया हैं | पहले 25 वर्ष व्यक्ति को अध्ययन का काल होता हैं | इस अवधि मैं उपनयन संस्कार के उपरांत अध्ययन किया जाना चाहिए | तदुपरान्त आजीविका तथा विवाह संस्कार के बाद "”वंश व्रधी "” | 50 वर्ष की आयु के बाद "”वानप्रस्थ "” का विधान हैं | जिसमैं व्यक्ति परिवार मैं रहते हुए अध्यातम की राह खोजता हैं | इस अवधि मैं यज्ञ आदि कारी करने की सलाह दी गयी हैं | 75 के बाद सन्यास आश्रम का विधान हैं , जिस मैं वन गमन तथा तप एवं गुरु की खोज करने को कहा गया हैं | यदि अध्ययन काल मैं अथवा उसके बाद "”सन्यास " लेने का संकलप हैं तो व्यक्ति को दुनियावी मोह माया - छोड़ कर आजीवन ब्रह्मचारी रह कर ज्ञान और अध्यातम का मार्ग चुनना पड़ता हैं | इसके लिए गुरु का मार्ग दर्शन ज़रूरी हैं | जैसा की वेदिक धर्म के पुनरुथान करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था | लेकिन आज कल लोग संसार के प्रतियोगी वातावरण से भाग कर भगवा वस्त्र धरण कर सन्यासी का चोला पहन लेते हैं |

परिवार और संसार की जिम्मेदारियो से भागने वाले ऐसे लोगो को क्या हम "”सन्यासी कह सकते हैं ?? जिंनका ना तो कोई अध्ययन हैं ना ही कोई तप अथवा ज्ञान ----परंतु मात्र गेरुआ वस्त्र पहन कर यायावरी करना कोई धार्मिक काम नहीं हैं | परंतु अधिकतर ग्रामीण छेत्रों मैं यह होने लगा हैं ,की घरबार से भाग कर सन्यासी बाना पहन कर भोजन और आश्रय प्राप्त करना | क्या भगवा वस्त्र धारण कर के राजनीति करना अथवा व्य्यपार करना भी सन्यास माना जाएगा ?? सनातन धरम के मानने वालो को सिर्फ आवरण देख कर "”सन्यासी "” ऐसे गुरुतर पद को बदनाम करने वालो से रक्षा करे |क्या सफ़ेद कोट पहनने वाले सभी लोगो को डाक्टर और काला कोट पहनने वालो को वकील मान लेंगे ? आखिर इन पेशो मैं भी तो परीक्षा और अनुभव देखा जाता हैं ! तब सन्यासी के लिए क्यो नहीं ? वैसे राजनीति भी ऐसा ही छेत्र हैं जिस मैं पैर रखने के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं --सिवाय उम्र और दिमागी संतुलन के अलावा ! तब क्या सन्यासी और राजनीति को एक समान मान ले ? इस से कम से कम धर्म का अवसान तो नहीं होगा |
जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी की साझा रूप से मनोनीत प्रत्याशी प्रज्ञा भारती {ठाकुर} ने शाहेड करकरे को श्राप देने का अहंकार पूर्ण कथन किया ---- वैसा तो हाल मैं किसी ऋषि आदि ने नहीं किया होगा !!

हमारे देश की बहुसंख्यक आबादी भगवा वस्त्र धारियो को सम्मान से देखती हैं | उन्हे दान - दक्षिणा आदि भी मिलती हैं | सनातन धर्मियों के धर्म भीरु होने के कारण ही देश मैं हजारो मठ एवं आश्रम , चल रहे हैं | कुछ तो सौ सालो से भी ज्यादा पुराने हैं | वेदिक धरम की पुनर्स्थापना करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य के बनाए चार मठ तो नौवी शताब्दी से अनवरत क्रियाशील हैं | परंतु विगत सौ वर्षो मैं भारत के अनेक हिस्सो मैं मठ या आश्रमो की संख्या बहुत बढी हैं | मतो या गुरुओ की भिन्नता के बावजूद भी इन सभी मैं एक समानता हैं --वह हैं सन्यास धरण की प्रक्रिया | जो आदिगुरु ने प्रतिपादित की थी | उस समय पुरुष ही सन्यास धारण करने के लिए --गृह त्याग और स्वयं का पिंडदान करके अपने गुरु से नवीन नाम पाते थे | परंतु बंगाल के स्वामी रामकृष्ण जिनहे उनके अनुयाईओ ने "परमहंस " कहा , जिनहोने देश को विवेकानंद ऐसा शिष्य प्रदान किया | आदिगुरु के चार मठो के उपरांत देश मैं रामकृष्ण मिशन ही ऐसी संस्था हैं -जो वेदिक धर्म और जन परोपकार मैं लगी हुई हैं | दक्षिण भारत मैं अनेक मंदिर ऐसे हैं जनहा अनवरत प्रसाद के नाम पर लोगो को प्रसाद के रूप मैं आहार दिया जाता हैं |

आज़ादी के उपरांत देश मैं जब खुला वातावरण मिला तब बहुत सी संस्थाए और मत उभर आए | अनेक संगठन भी पुनर्जीवित हुए जो इन सन्यासियों को श्रेणीबध करते हैं | परंतु सन्यासी के लिए यम - नियम - प्राणायाम - प्रत्याहार और अपरिग्रह अनिवार्य रहा हैं | सन्यास धर्म के अनुसार व्यक्ति को या तो केश रखने होते हैं ,अथवा केशविहीन होना होता हैं | बालो को समय - समय पर हैयर कटिंग कराना तो निषिदध् हैं | परंतु आजकल अनेक भगवा धारी सन्यासी अथवा सन्यासिन मनचाहे स्टाइल मैं बाल रखने लगी हैं | उस मैं ही है भोपाल संसदीय छेत्र से भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार प्रज्ञा भारती {ठाकुर} ! जो अहंकार मैं दुर्वाषा ऋषि से भी बड़ी बनती हैं ! उनके अनुसार तो मुंबई मैं हुए आतंक वादी हमले मैं शहीद हुए पुलिस के अफसर हेमंत करकरे की मौत , उनही के श्राप से हुई | उनके अनुसार उनको गिरफ्तार करने के पश्चात जो पूछताछ की वह "”अमर्यादित और धरम वीरुध थी ! “” अब सवाल यह हैं की रेशमी वस्त्र {पीत} पहनने वाली इस महिला सन्यासी को क्या इतनी शक्ति प्राप्त है ? प्रश्न यह भी हैं की धर्म के प्रचार और प्रसार करने का कर्तव्य उन्हे सुनील जोशी हत्यकाण्ड मैं संदिग्ध बनाता है ? क्यो , फिर उनका नाम मालेगाव विस्फोट मैं कैसे आ गया ? एक धार्मिक व्याकति का इन सब आपराधिक और हिनशा के मामलो से क्या संबंध ? उनके गुरु स्वामी अवधेशानद और उनके हजारो शिष्यो मैं प्रज्ञा ही क्यो इन आपराधिक मामलो के चलते के कानून और पुलिस के दायरे और उसकी पूछताछ की निशाना बनी ?

प्रज्ञा जी को क्या यह नियम नहीं मालूम की "” सन्यासी का आहार स्वाद के लिए नहीं --वरन शरीर को धारण करने भर का ही होना चाहिए ? उन्हे किसी भी परिवार के निवास मैं नहीं विश्राम करना चाहिए ? क्योंकि यदि वे प्रत्याहार नियम का पालन करती तो उन्हे "”” अपने वज़न और उससे उपजे व्याधियों का सामना नहीं करना पड़ता ! सन्यासी दीक्षा लेने के बाद गुरु उसे "”धर्म दंड "” देता हैं , और एक कमंडल भी सुलभ कराता हैं , जो भूख -और प्यास मिटाने के लिए होता हैं ? प्रज्ञा शायद अपनी मित्र सन्यासिनों की भांति ही हैं ---जो गेरुए परिधान को राजनीति मैं प्रवेश और जनमानस मैं सम्मान पाने के लिए प्रयोग करती हैं | इन्हे ना तो वेदो का अध्ययन किया हैं ना ही सन्यास आश्रम के नियमो का पालन किया हैं | बीजेपी मैं प्रश्रय प्राप्त अनेक भगवा अथवा गेरुआ वस्त्र धारियो को उनके प्रभाव से राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता रहा हैं , अथवा सन्यास आश्रम के व्यक्ति से तो सांसारिक मोह - माया , और सभी प्रकार की आकाछाओ के त्याग की उम्मीद की जाती हैं < क्योंकि वह सन्यास धरण करने की पहली शर्त होती हैं | परंतु भगवा पहन कर राजनीति करना अथवा व्यापार करना आज का फैशन बन गया हैं | निर्णय मैं नैतिकता और वाणी तथा कर्म मैं "”संयम "” का इन राजनीतिक सन्यासियों की जमात मैं पूरी तरह से अभाव हैं |

बीजेपी उम्मीदवार के रूप मैं राष्ट् की बात करना तो चलेगा क्योंकि वह उनकी पार्टी की लाइन हैं – परंतु सन्यासी को अखिल ब्रह्मांड की चिंता होती हैं , वह प्राणिमात्र के कल्याण की बात सोचता हैं , परंतु इन राजनीतिक गेरुआ वस्त्र धारियो ने अपना लक्ष्य "”” पार्टी का उद्देश्य "”” बना लिया हैं | ऐसी हालत मैं जब वे अपने परिधान के साथ "” न्याय "” नहीं कर रही तब --उन्हे इन वस्त्रो को पहनने का क्या अधिकार हैं ?