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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 20, 2021

 

अपराध और उसकी- जांच-हिरासत – जमानत और क्या हुआ इंसाफ !

कोई भी अपराध हो या सरकार की नजरों में वह "अपराध " हो उसकी जांच के लिए , पुलिस - सीआईडी -एस आई टी या सीबीआई अथवा आईटी या एनसीबी या कोई अन्य तफतीश करने वाली एजेंसी हो पहला काम वह गिरफ्तारी करती है ,या कानूनी भाषा में कहे तो वह आरोपी को हिरासत में लेती है | फिर अदालत से रिमांड मांगती है | अगर पकड़ने का काम आईबी का हो तो वनहा न कोई अपराध की प्राथमिकी दर्ज़ होती हैं नाही उस इंसान को अदालत में पेश करने की जरूरत होती है | वैसे यह काम राज्य की पुलिश भी करती हैं की "” उठा लो "” फिर उसे तकलीफ देकर "” जांच "” की जाती हैं | आज कल पुलिस कुछ मामलो में यानि की जैसे लखीमपुर -खीरी में केंद्रीय राजय गृह मंत्री "”टेनी "” के सुपुत्र जिनपर किसानो की हत्या का आरोप था , उनकी गिरफ्तारी के लिए नहीं वरन ठाणे में पूछताछ के लिए घर पर नोटिस चस्पा किया था ! जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यू पी पुलिस से पूछा था क्या हत्या के सभी आरोपियों के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता हैं ? जिस पर योगी जी पुलिस की जवाब नहीं दे सकी !

आजकल डीआई टी या फिर एनसीबी ने अपने काम को "”जन् जन तक पाहुचने के लिए "” नोटिस "” देकर पूछताछ के लिए दफ्तर में हाजिर होने का नोटिस भेजते हैं | आम तौर पर ऐसी कारवाई नामचीन हस्तियो के साथ होती हैं | खबर से सनसनी होती हैं , लोगो में खौफ होता हैं की इतने बड़े - बड़े लोग भी "”कानून"” के लंबे हाथो से नहीं बच पाते हैं | पर इन छापो और नोटिस तथा कुछ मामलो में तो हिरासत के बाद भी जांच एजेंसी कुछ भी "”आपराधिक "” नहीं साबित कर पाती हैं | कभी - कभी यह काम "”खुन्नस "” निकालने के लिए भी किया जाता हैं , जैसा की पूर्व गृह मंत्री चिदम्बरम के साथ हुआ था | क्यूंकी उन्होने एक मंत्री को हिरासत जाने से नहीं बचाया था |

अब अगर इन जांच एजेंसियो के अफसरो की इस कारवाई को चुनौती डी जाये तो ये ""आपराधिक प्रक्रिया संहिता "” की आड़ में अपनी कारवाई को बिना किसी द्वेष से की गयी शासकीय कारवाई बता कर बच जाते हैं | यानि की सरकारी कलम और कागज से ये अपनी "””मनमानी "” करते हैं और जब इनकी जांच और चार्जशीट , अदालत में सबूतो के अभाव में रद्द कर डी जाती हैं , तब भी इन्हे कोई "”शरम नहीं आती "” !! सीबीआई का राजनीतिक उपयोग इतना नंगे रूप में केंद्रीय सरकार द्वरा किया गया की सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा की वे अपनी कारवाई का ब्योरा पेश करे | खीरी में किसानो के हत्यकाण्ड की जांच में जब यूपी पुलिस ने मंत्री पुत्र को बचाने के लिए सबूत अदालत को बताए , तब देश के प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने , इस कांड की जांच यूपी के बाहर की एजेंसी से करने को कहा , तब योगी जी के रामराज की ओर से इसकी जांच सीबीआई से कराने कोकहा गया ! तब सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई पर अविश्वास व्यक्त किया | क्यूंकी सीबीआई उनही मंत्री "”टेनी "” के अधीन थी , जिनके पुत्र किसानो की हत्या के आरोपी थे | फिर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के बहा के दो पुलिस अफसरो की निगहबानी मे विशेस जांच टीम बनाई , जिसने स्थानीय पुलिस की एफआईआर को "” रद्द "” करते हुए एक रिपोर्ट अदालत को डी | जिसमें मंत्री जी को भी आपराधिक षड्यंत्र का दोषी इंगित किया गया , तथा उनके पुत्र को हत्या का आरोपी बताया | टीम ने एफआईआर को संशोधित करने की सिफ़ारिश भी की | हालांकि सरकारी अमले पर अगर हत्या जैसा मामला दर्ज़ हो जाये तो उसे "” निलम्बित"”” कर दिया जाता हैं | पर नरेंद्र मोदी जी की सरकार ने लोकसभा और राज्यसभा में ज़हीर कर दिया की वे "”टेनी "” जी को हटाने वाले नहीं हैं | वैसे पहले भी एक मौके पर बीजेपी नेत्रत्व ने साफ कर दिया था की "” मंत्री को नैतिकता "”” के आधार पर हमारे यानहा इस्तीफा नहीं होता हैं ,यह कांग्रेस की परिपाटी हैं !

अब एनसीबी द्वारा अभिनेता शाहरुख खान के बेटे को ड्रग के मामले में गिरफ्तार किए जाने के मामले में भी एजेंसी का "” """अज़ब - गजब तर्क आया "” | आर्यन खान के पास से ना तो कोई ड्रग या नशीली वस्तु बरामद हुई थी | परंतु उसकी गिरफ्तारी इसलिए हुई की उसके साथी के पास से ड्रग बरामद की गयी | आरोप यह था की आर्यन खान को यह पता था की उसका साथी ड्रग रखे हुए हैं और वह उसका इस्तेमाल करेगा | चूंकि आर्यन ने एनसीबी को यह तथ्य नहीं बताया इसलिए वह भी दोषी हैं !!! हालांकि विशेस मैजिस्ट्रेट और विशेस न्याधीश ने इस "””तर्क "” को हजम करते हुए उसकी जमानत की अर्ज़ी नामंज़ूर कर डी !!!! उनके आदेश को उच्च न्यायालय ने ईविडेंस एक्ट के वीरुध पाते हुए खारिज कर दिया | मतलब अब आपको यह पता होना चाहिए की आपके बगल का आदमी क्या करने वाला है ,नहीं तो आप भी मुलजिम हो !!!

अभी अभिनेत्री ऐश्वर्य रॉय को इन्कम टैक्स का नोटिस मिला हैं ,जिसमें पनामा पेपर्स लीक में उनके नाम होने पर पूछताच्छ के लिए उन्हे दफ्तर में हाजिर होने का हुकुम मिला हैं \| इतना सब लिखने का आशय यह है की जांच एजेंसी के अफ़सरान लोगो के यानहा जा कर क्यू नहीं "”तफतीश" करते ? वे लोगो को अपने यानहा बुला कर उस व्यक्ति की सामाजिक प्रतिस्था पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं | सिर्फ आरोप पर गिरफ्तारी पुलिस या जांच एजेंसी की "”” मर्जी "”” पर होती हैं | जैसा लखीमपुर -खीरी के मामले में पुलिस ने हत्या के आरोपी को बुलाने के लिए नोटिस चस्पा किया घर पर | शेस मामलो में गिरफ्तारी पहले पूछताछ बाद में | है न जांच एजेंसी की मर्ज़ी \