""उप महामहिम"” - पारदर्शिता और सत्य के लिए प्रधान न्यायधीश चयन समिति में बैठते हैं !
उप राष्ट्रपति धनखड़ जी ने भोपाल मे राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी मे सम्बोधन करते हुए "”आश्चर्य व्यक्त किया "” की कार्यपालिका की नियुक्ति के संबंध में न्यायपालिका को कैसे हम "”शामिल "” कर सकते हैं | उनके तर्क के अनुसार लोकतंत्र में राष्ट्र के तीनों निकायों मे शक्ति के विभाजन के अनुसार सीबीआई के डायरेक्टर के चयन मे प्रधान न्यायधीश का क्या काम !! उनके अनुसार कार्यपालिका {सरकार } के कार्य सम्पादन में किसी भी प्रकार का "”हस्तकछेप "” चाहे वह विधायिका से हो अथवा न्यायपालिका से हो --- संविधान तथा लोकतंत्र के उसूलों के विरुद्ध हैं | धनखड़ जी खुद अदालतों मे वकालत कर चुके हैं | हालांकि वे सफल वकील नहीं रहे | उन्होंने कहा की संविधान में संशोधन "”केवल संसद का अधिकार हैं "”! एक अनजाने महा न्याय वादी की किताब कॉ उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा "”मेरी समझ से तो संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर बहस की जरूरत हैं "”|
जगदीप धनखड़ जी संवैधानिक पद के नंबर दोयम पर आसीन हैं | परंतु वे उच्च सदन के सभापति भी हैं | अब वे सांविधानिक --रूप से नंबर दो पर होने के बाद राष्टीय विधायिका के "”सभापति "” भी हैं ! मेरी तुच्छ बुद्धि के अनुसार यदि सांविधानिक पद पर हैं तब ,उन्हे विधायिका और उससे जन्मे व्ययस्थापिक से बिल्कुल समान दूरी बना कर रखनी चाहिए | राज्यसभा मे बैठक का संचालन करते हुए उनके व्यवहार और फैसलों को समझा जा सकता है की "””वे कितने न्याय प्रिय हैं '” विपक्ष के सांसदों ने अनेकानेक बार उन पार "” न्याय नहीं नहीं करने "”का आरोप लगाया हैं "|
सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट से बार -बार यह सुनना पड़ा था की "”वह सरकारी तोता है "” | जिसका इशारा था की सीबीआई की जांच सरकार के समर्थन में ही होती हैं | वह "”न्याय"” पूर्ण नहीं होती हैं !! क्यूंकी अधिकतर सरकार अपने किसी "”स्वामिभक्त " अफसर को इस पद पर नियुक्त करती थी | सुप्रीम कोर्ट की फटकार से "” केंद्र सरकार "” ने सीबीआई मुखिया की नियुक्ति में सर्वोच्च अदालत के प्रधान को भी शामिल किया | जिसका अर्थ यह था की कम से कम अब सीबीआई को ""पिंजरे का तोता "” सुप्रीम कोर्ट नहीं कह सकेगी |
लेकिन मोदी सरकार के समय जिस प्रकार "”जांच एजेंसियों "” ने सत्ता विरोधियों को "”निशाना "” बनाने का काम किया है , उसके बाद ही सत्तारूद दल को "वाशिंग मशीन "” की उपाधि मिल गई है | अब सरकार सीबीआई से ज्यादा इ डी की जांच को प्रमुखता से अवसर दे रही हैं | मोदी सरकार के "”काल "” मे यह मुहावरा बन गया हैं की अगर आप गैर भाजपाई है तो आपको धरमराज बन के रहना होगा | वरना आप एंडी टीवी कर प्रणव रॉय और राधिका रॉय की भांति बेगुनाह होते हुए भी -- “”सरकारी "” जांच एजेंसी इतना परेशान करेगी की आप को देश छोड़ना पड़ेगा | यह बात और है की आठ माह बाद वही जांच एजेंसी -- अदालत मे बयान देती है की की रॉय दंपति के विरुद्ध कोई कोई अपराध किया जाना नहीं पाया गया !!! कुछ ऐसा ही झूठ तू जी घोटाले के बारे में विनोद राय ने भी देश से बोल था | जिसको आरएसएस और बीजेपी ने प्रचारित कर के तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार को बदनाम किया | फलस्वरूप चुनावों मे काँग्रेस की पराजय हुई |
उप महामहिम जी को यह समझना होगा की सरकार बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण लोकतंत्र को कायम रखना हैं , और उसके लिए सत्ता रुड पार्टी के "”अनीतिक " और अवैध फैसलों को रोकने -- टोकने वाला अफसर चाहिए | ना की कार सेवको पर गोली चलवाने वाला मुख्य सचिव जो बाद में अयोध्या के राम मंदिर निर्माण का जिम्मा निभा रहा हैं | इन्ही कारणों से जांच एजेंसियों के मुखिया की रीड़ इतनी मजबूत होनी चाहिए की वह प्रधान मंत्री को भी गलत काम के लिए ना कह सके |