4
जुलाई
को जब देश का सर्वोच्च न्यायालय
"”सरकार
के कर्णधारो को जनता की भावना
को ध्यान मे रखने और संवैधानिक
नैतिकता का पाठ सीखा रहे थे
-----लगभग
उसी समय के आसपास अहमदाबाद
मे राज्यपाल ओ पी कोहली एक
दिन पहले काँग्रेस से त्यागपत्र
दें कर भारतीय जनता पार्टी
मे शामिल वाले विधायक कुँवर
बाकलिया को मंत्री पद की शपथ
दिला रहे थे !!!
इससे
बड़ी न्यायपलिका की अवहेलना
की कोई और मिसाल नहीं हो सकती
!!
जो
सज्जन मंत्री पद की शपथ दुहरा
रहे थे की"””
मै
ईमानदारी से संविधान और विधि
का के द्वरा स्थापित शासन के
मंत्री के रूप मे बिना किसी
भय अथवा लालच के बिना अपने
कर्तव्यो का निर्वहन करूंगा
"”!!
लालच
द्वरा दल बदल कराये जाने का
स्पष्ट सबूत है ,क्योंकि
मंत्री पद के प्रस्ताव पर ही
उन्होने विधान सभा की सदस्यता
से इस्तीफा दिया होगा ,
ऐसा
मानने का पर्याप्त तर्क है |
की
चौबीस घंटे मे उन्हे मंत्री
पद से नवाजा गया !!!
मंत्री
की शपथ दिलाने वाले राज्यपाल
होते तो केंद्र सरकार के '’बनाए
हुए है '’परंतु
इतना तो वे भी मुख्यमंत्री
रूपानी को सलाह दे सकते थे ,की
भाई विधायक का इस्तीफा स्वीकार
किए जाने की गज़ट सूचना तो हो
जाने दो !!!
गौर
तलब है की आपातकाल की गुहार
लगाने वाले लोगो को अदालत का
वह फैसला भूल गए ---जब
इन्दिरा गांधी के निज सहायक
यशपाल कपूर के पद से इस्तीफा
देने और राजनीतिक सलाहकार
बनने की "”””जल्दबाज़ी
पर "””
न्यायपालिका
ने संदेह करते हुए उस क्रत्य
को अमान्य कर दिया था "”
||
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दिल्ली
की आप सरकार की याचिकाओ पर
सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय
संविधान पीठ के फैसले को ----
केंद्र
की सरकार और भारतीय जनता पार्टी
जनहा '’’’
अरविंद
केजरीवाल की हार निरूपित कर
रहे है |
उनका
तर्क है की न्यायालय ने साफ
तौर पर दिल्ली को “”पूर्ण
राज्य का दर्जा देने की मांग
को लेकर कहा की हम सपने मे भी
ऐसा नहीं सोच सकते “” वनही आप
पार्टी और केजरीवाल केंद्र
सरकारद्वारा उप राज्यपाल की
आड़ लेकर उनकी चुनी सरकार को
"”अपंग
बनाने की कोशिस का अदालत द्वरा
पर्दाफाश किए जाने को अपनी
विजय बता रहे है |
प्रधान
न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने
फैसले मे "””संविधान
को लेकर भाषाई कलाबाजी '’’
को
जनहा लताड़ लगाई है ----वह
वस्तुतः मोदी सरकार पर तमाचा
है |
नरेंद्र
मोदी 2014
मे
जब अपने विजय रथ ओर सवार होकर
|देश
मे अपने बहुमत का परचम लहरा
थे -------तब
उस विजय मद का नशा छ माह बाद
ही अरविंद केजरीवाल की आप
पार्टी ने "”””बुरी
तरह उतारा था |||
भारी
भरकम और धुंवाधार प्रचार के
साथ छह रैली दिल्ली विधान सभा
चुनाव के दौरान मोदी जी द्वरा
निकली गयी थी |
जिसकी
कमान गुजरात से आए उनके खाश
कार्यकर्ताओ के हाथ मे थी |
धन
और प्रचार का जो बंदोबस्त उस
समय किया गया था ---उसका
चस्म्दीद गवाह इन लाइनों को
लिखना वाल रहा है |
अनेक
मंत्रियो के यानहा "”
झोपदपटटियों
मे बांटी जाने वाली सामाग्री
भी भारतीय जनता पार्टी को छ्ह
सीट भी नहीं दिला सकी |
70 सदस्यीय
विधान सभा मे काँग्रेस का
सुपड़ा साफ हो गया ---तो
देश की सबसे शक्तिशाली ---सम्पन्न
राजनीतिक पार्टी सिर्फ 3
तीन
सीट बचा पायी !!!
बस
उस समय की पराजय का बदला ही था
जो उप राज्यपाल के नाम पर मोदी
जी निकाल रहे थे |
उन्होने
काही कहा था की यह हार छती मे
धंस गयी है !!
केंद्र
सरकार ने दिल्ली हाइ कोर्ट
के मुख्या न्यायाधीश जयंत
नाथ के फैसले को उद्घोष वाक्य
मान लिया की "”
दिल्ली
के बास उप राज्यपाल है ,
चुनी
हुई सरकार को उसके कहे अनुसार
चलना बाध्यकारी है !!!
वास्तव
मे संविधान पीठ ने अभी उच्च
न्यायालय के फैसले की समीक्षा
वाली अपील पर कोई निर्णय नहीं
दिया है |
उस
समय भी लोगो को अजीब लगा था की
कैसे एक जनता द्वारा चुनी
सरकार को किसी एक आदमी के सनक
के साथ चलना होगा |
केजरीवाल
का उप राज्यपाल के निवास पर
धरना भी इसी कारण था की उनके
वाजिब फैसलो को बैजल साहब आगे
नहीं बदने दे रहे है |
क्योंकि
उन्हे केंद्र से ऐसा ही इशारा
था |
धरने
को लेकर भी दिल्ली उच्च न्यायालय
ने एक याचिका के निपटारे मे
कहा था की "””किसकी
की अनुमति से धरना दिया जा
रहा है !!””
, चूंकि
अखबारो की खबर पर भी अदालते
संज्ञान लेती रही है ,
इसलिए
न्यायालय पूरी तरह से अनभिज्ञ
होगा ,ऐसा
नहीं माना जा सकता |
इस
धरणे को ही आप विरोधी '’’’अराजकता
'’
बता
रहे है ~!!
परंतु
सर्वोच्च न्यायालय को कार्यपालिका
को अभी दो -
एक
पाठ और सीखने होंगे |
क्योंकि
बहुमत का अर्थ "”
संविधान
की भाषा की जुगाली करना नहीं
है ,
वरन
उसे '’’जनहित
और जन कल्याण कारी बनने की
दिशा मे ले जाना है "”
सर्वोच्च
न्यायालया ने केशवानन्द भारती
मे यह निर्णय दिया था की --
संविधान
की “”आत्मा “” के प्रावधानों
को नहीं बदला जा सकता |
आज
दल बदल के लिए चौबीस घंटे मे
इस्तीफा दिलाकर मंत्री बना
देना ---क्या
संविधान की उस शर्त का उल्ल्ङ्घन
नहीं है जिसके अनुसार मंत्री
को ईमानदारी से काम करने की
उम्मीद की गयी थी |
लगता
है की मोदी जी के गृह राज्य के
मामले एक बार फिर सुप्रीम
कोर्ट को कड़वा घूंट पिलाना
होगा ,तभी
यह बीमारी दूर हो सकेगी अन्यथा
सत्ता के मद मे ये कुछ भी कर
के बहुमत पाने की कोशिस करेंगे
|
गडकरी
जी ने एक इंटरव्यू मे कहा ही
है की आज “””चुनाव विकास या
नीतियो पर नहीं लड़े जा सकते
है अपराधी तत्व और धन बल तथा
जाति आदि महत्वपूर्ण हो गए
है |
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