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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 29, 2021

 

निरंकुश सत्ता कितनी तथ्य और तर्क विहीन होती है कुछ नमूने

1-- गुजरात के उप मुख्य मंत्री नितिन पटेल ने गांधी नगर में विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में उन्होने कहा की अगर देश में हिन्दू अलपसंख्यक हुआ तो ना तो संविधान और ना ही धरम निरपेक्षता बचेगी और ना लोकसभा ! उन्होने मीडिया को इंगित करते हुए यानहा तक कहा की मेरी बात को रेकॉर्ड कर ले !

साथ में उन्होने यह भी कहा की देश में लाखो मुसलमान देश भक्त है लाखो ईसाई भी देश भक्त हैं | गुजरात पुलिस में लाखो मुसलमान है वे सभी देश भक्त हैं |

एक संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति द्वरा सार्वजनिक रूप से ऐसी चेतावनी देना राष्ट्र के ताने - बाने को कितना मजबूत करेगी यह सहज ही समझा जा सकता हैं | जिस व्यक्ति ने देश की अखंडता और प्र्भुता की शपथ ली हो ,वह यदि खुद ही उस अखंडता को तार-तार करने वाला बयान दे तो क्या उसे शपथ का उल्लंघन नहीं माना जाएगा ? क्यूंकी किसी भी डीएचआरएम भारत वर्ष में हिन्दू - मुस्लिम और ईसाई के अलावा सीख तथा फारसी बौद्ध जैन धरम के लोग भी रहते हैं | किसी भी धरम की आबादी को लेकर यह भयदोहन करना क्या उनकी सरकार और राज्य के लिए कानुनन उचित होगा | पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाने पर उनकी बस्ती को उज्जैन में उजाड़ दिया जाता हैं , तब ऐसी बात कह कर क्या समाज में धरम के आधार पर विभाजन की रेखा नहीं खिची जा रही ? क्या यह देशभक्ति हैं ? क्या सरकार के उच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति को इतना गैर ज़िम्मेदारी वाला बयान देना कानून की निगाह में सही हैं ? क्या किसी अन्य व्यक्ति द्वरा ऐसा बयान दिये जाने पर पुलिस कारवाई नहीं करती ? दिल्ली दंगो और यालगर परिषद के आरोपियों पर तो भी ऐसे ही आरोप एनआईए ने लगाया हैं | कानून की निगाह में सब बराबर हैं की उक्ति तब बेअसर हो जाती हैं जब देश के प्रधान न्यायधीश रमन्ना कहते हैं की सरकार में बैठे लोगो के साथ पुलिस का गठजोड़ चिंता का विषय हैं | इससे कानून का पालन नहीं होता हैं | अब पाठक ही इस विषय में विचार करे और न्याय भी करे माननीय नितिन पटेल को मालूम होना चाहिए की भारत में हिन्दुओ की जनसंख्या 79.9 % है जबकि मुसलमानो की आबादी मात्र 14.4% ही हैं | अब ऐसे में हिन्दुओ के अलपसंख्यक होने की संभावना कैसे हैं ? क्या हिन्दू आबादी घटेगी और मुस्लिम आबादी कितनी तेज़ी से बड़ेगी की हिन्दू देश में अलपसंख्यक हो जाएंगे ? अभी मुस्लिम हिन्दू आबादी का चौथाई ही हैं , और बड़ी की व्रधी दर दोनों समुदायो में लगभग समान ही हैं | तब यह भ्यादोहन क्यू और किस उद्देश्य से ? क्या यह हिन्दू समाज को डराने का प्रयास हैं , जिससे वे आगामी चुनावो में भारतीय जनता पार्टी की ओर खिसके ? लगता तो ऐसा ही हैं , क्यूंकी जिस प्रकार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सार्वजनिक रूप से धरम के कारण लोगो की पिटाई की जा रही हैं उससे हिन्दुओ के आतंकी चेहरे का नमूना मिलता हैं |

2- दूसरा नमूना हैं देश के पूर्व प्रधान न्यायधीश गोगोई का है , जिनके अयोध्या मंदिर के दिये गए फैसले को लेकर पहले ही अनेकों लोग संदेह जाता चुके हैं की यह विधि और न्याया के सिद्धांतों के अनुसार नहीं हुआ हैं | उन्होने 19 अगस्त को एक ट्वीट किया हैं "” मुस्लिम को मुस्लिम देश छोड़ना पड़े , और दूसरा मुस्लिम देस उसको शरण ना दे तो उसे अपनी अंतरात्मा से इस्लाम त्याग देना चाहिए "” उनका यह ट्वीट अफगानिस्तान में चल रहे ग्रहयुध जैसे हालातो पर टिप्पणी हैं | वे अफगानिस्तान के हालातो पर टिप्पणी करते , तालिबन की आलोचना करते , वनहा पर स्त्रियो के ऊपर हो रहे अत्याचारो की निंदा करते तो समझा में आता हैं , परंतु वनहा से भाग रहे लोगो को अपना धरम छोड़ देने की सलाह कान्हा से तार्किक अथवा तथ्यात्मक है ? अफगानी शरणार्थी तालिबन के दर के कारण अपने देश से पलायन कर रहे हैं , पाकिस्तान सभी अफगानी मूल के लोगो को अपने यानहा शरण देने की स्थिति में नहीं हैं | ईरान और तजकिस्तान और उज्बेकिस्तान अपने मूल के ही लोगो को शरण दे रहे हैं | गौरतलब हैं अफगानिस्तान में 14 रेस अथवा नस्ल अथवा मूल के लोगो को मान्यता है | जिसमें पख्तून की संख्या ज्यादा हैं | तालिबन में उनका प्रभुत्व ज्यादा हैं | वे पिछली बार किए गए अत्याचारो के लिए बदनाम हैं | इसलिए महिलाए सर्वाधिक रूप से आतंकित हैं | काबुल हवाई अड्डे पर हुए बम धमाको में 170 लोगो की जान गयी जिसमे 13 अमेरिकी सैनिक भी थे | अब जिस देश में इतनी अफरा -तफरी मची हो वनहा के लोग धरम छोड़ देंगे तो क्या तालिबानी आतंक से वे बच जाएंगे ? भारत के पूर्व प्रधान न्यायधीश द्वरा जो की बीजेपी द्वरा राज्यसभा में नामित हैं , उन्हे अपने पद की गरिमा के अनुसार बयान देना चाहिए था |


3- कैसे भावनात्मक मुद्दो पर राजनीति की जाती है इसका उदाहरण सीता मऊ और गरोठ में एक किलोमीटर लंबी चुनार यात्रा निकाली गयी , जिस आयोजन को ज़िला प्रशासन द्वरा सिर्फ 5 पाँच व्यक्तियों की अनुमति थी , उसमें तीन किलोमीटर तक हजारो लोगो की भीड़ थी | जिला प्रशासन ने कहा की घत्न्स्थल पर मजिस्ट्रेट नियुक्त हैं उनकी रिपोर्ट पर कारवाई की जाएगी |

इस आयोजन में बीजेपी के राष्ट्रीय महमन्त्री कैलाश विजय वर्गीय और मंत्री हरदीप सिंह डंग तथा रामायण धारावाहिक के के कल के राम उर्फ अरुण गोविल भी शामिल थे |

इस महा कुंभ का आयोजन का उद्देश्य था चंबल को -मालवा की गंगा का दर्जा दिलाने का ! अब गंगा तो एक ही हैं परंतु इस महाकुंभ द्वरा चंबल को उसकी शाखा का सम्मान दिलाने की हैं ! अब आम जनो में यह मुद्दा धरम और गंगा से जुड़ा होने से लोग एकत्र तो हो गए , पर चंबल को मालवा की गंगा का दर्जा कौन देगा ? केंद्र या राज्य सरकार और किस प्रकार यह सवाल खोजना होगा |

Aug 27, 2021

 

राष्ट्रियता -धरम और जातीयता की राजनीति ही अशांति है





जिस प्रकार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में धरम को लेकर कुछ उन्मादी तत्व राजनीतिक हित साधने का प्रयास कर रहे हैं , वह देश के मध्य भाग में बहुत बड़ी अशांति का कारण बन सकता हैं | इंदौर में एक चूड़ीवाले को कुछ हिन्दू यूवकों ने पहचान के लिए आधार कार्ड दिखाने को कहा , कहा जाता हैं , की वह नौजवान मुस्लिम था | इन बजरंगियों ने उसे हिन्दू इलाके में आने की सज़ा के तौर पर खूब मारा पीटा | बाद में पुलिस ने कुछ लोगो के खिलाफ मारपीट का मुकदमा कायम किया | पर दूसरे ही दिन उसके खिलाफ भी मुकदमा कायम कर दिया ! कलेक्टर साहब ने तो बयान देकर चूड़ीवाले को आतंकी संगठन से संबद्ध बता दिया | जबकि प्रदेश के पुलिस महा निरीक्षक श्री जौहरी ने इस घटना का किसी भी आतंकी संगठन से होने का खंडन किया | इतना ही नहीं उन्होने पत्रकारो को सलाह दी की वे कलेक्टर से ही जा कर पुछे की उन्होने किस आधार और सोचना पर यह बयान दिया | देवास में भी ब्रेड रस्क बेचने वाले एक बुजुर्ग मुस्लिम को भी इन हिन्दू उन्मादियों का शिकार होना पड़ा | पुलिस ने उनकी रिपोर्ट तो लिख ली ,पर कोतवाली के घिराव के लिए दर्जनो मुस्लिमो के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने के लिए रिपोर्ट लिख डाली |उज्जैन में भी ज़िला प्रशासन द्वारा मुस्लिम मलिन बस्ती को इसलिए उजाड़ दिया ,चूंकि कथित तौर पर मुहर्रम के जुलूस में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाया गया था | जिला प्रशासन द्वारा बस्ती उजाड़ना उसी की सज़ा थी | व्हात्सप्प पर हिन्दू धर्म ध्व्जधारियों ने इसे मुसलमानो को सबक निरूपित किया |

इन घटनाओ में राजनीतिक उद्देश्य साफ झलकता हैं | प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी पार्टी के लोग राष्ट्रियता को लेकर बहुत चिंता जताते हैं --- परंतु इस चिंता में वे धरम के आधार पर बटी हुई जातीयता को भूल जाते हैं | हालांकि बीजेपी नेत्रत्व इन जातीय समूहो की पहचान के लिए जनगणना की मांग को लेकर वे दुविधा में फंस गए हैं | क्यूंकी धरम को लेकर मंदिरो के निर्माण को वे अपनी उपलब्धि मान रहे हैं , परंतु वे भूल रहे हैं की भारत में सनातन धर्म के अंदर अनेक जातीयता हैं , जिनमें बहुत "”” सौहार्द "” संबंध नहीं हैं | उत्तर प्रदेश - हरियाणा और गुजरात में भी , दलित या छोटी जातियो के साथ बारात मेंदूल्हे को घोड़ी पर बैठ कर बारात निकालने की घटनाओ में सवर्ण या ऊंची जाती वाले लोगो ने अत्यंत हिंसक व्यवहार किया हैं | उन्हे अपने निवास के सामने से बारात नहीं निकालने देने और और बैंड नहीं बजाने और घोड़े की सवारी नहीं करने जैसी घटनाए अनेक बार हुई हैं | हरियाणा की एक महिला आईएएस अफसर को तो हाइ कोर्ट की सहायता से अपनी शादी सम्पन्न करनी पड़ी थी | उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर में भी दलित जाती के दूल्हे को अपनी शादी के लिए हाइ कोर्ट के आदेश का इंतज़ार करना पड़ा था | तब वह घोड़ी पर सवार हो कर अपनी बारात ले जाने पाया था |

देश के अनेक भागो में विशेस कर उत्तर भारत में यह जातीय उंच - नीच आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी देखने को मिलता हैं | देश के राजनीतिक नेत्रत्व को समाज की इन असमानताओ को दूर करने की फिकर नहीं हैं | उसे देश विभाजन की विभिशिका की "””याद "” है और वे उसे खोद -खोद कर राष्ट्रीय मानस पटल पर ज़िंदा रखना चाहते हैं | विभाजन के दंगो में अपना घर बार और परिजनो को खोने वाले परिवारों की अब दूसरी पीड़ी जनहा उन बुरी स्म्रतियों को भूलना चाहती हैं , वनही केंद्र की सरकार उसे चिरस्थाई रखना चाहती हैं | मशहूर धावक मिलखा सिंह विभाजन के दश को सहने वाले उन लोगो में से एक थे जो उस विभिश्का के गवाह थे | उन्होने कभी भी उस बुरे सपने को सार्वजनिक रूप से नहीं बखान किया < फिर क्यू उस दर्दभरी दास्तां को याद रखना | शायद यह भी "”वोट बटोरो "” नीति का अंग हो |

राष्ट्रीयता देश की सीमा से आबद्ध नहीं होती | वह तो सन्स्क्रतिक और खान पान तथा पहरावा आदि से जुड़ी होती हैं | सलवार - कुर्ता आज सारे देश में महिलाओ की पोशाक हैं | हिन्दू - मुसलमान और आँय धर्मो की भी महिलाए इसे रोजाना पहनती हैं | यह पोशाक पंजाब और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कबायलियों की पोशाक हैं | तंदूर का इस्तेमाल आज समूचे भारत के भोजनालयों में होता हैं ---पर इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान -पाकिस्तान में भी होता हैं | सीख कबाब ईरान -इराक़ तथा अफगानिस्तान - और ताजिकिस्तान तथा तुरकेमनिस्तान और पाकिस्तान समेत भारत में भी सभी प्रांतो {उत्तर -पूर्व के राज्यो को छोड़ कर } में बनाया और खाया जाता हैं | तंदूरी और रूमाली रोटी भी देशो की सीमा लांघ कर भारत -पाकिस्तान और ईरान तक में प्रचलित हैं | राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओ ने भले ही जमीन को बाँट दिया हो परंतु संसक्राति एक ही हैं | बंगला देश में मुस्लिम महिलाए भी साड़ी ही पहनती हैं |जो किसी भी प्रकार से मुस्लिम पहरावा नहीं हैं |तब हम क्या माने ? उनकी भाषा भी बांग्ला ही है जो भारत के संविधान की 14 मान्य भाषाओ में एक हैं !

खान - पान और पहरावा तथा भाषा ही किसी भी सान्स्क्रतिक विरासत की पहचान हैं | जिसे देश की राजनीतिक सीमाए नहीं मिटा सकती हैं | इसका उदाहरण पाकिस्तान और बांग्ला देश हैं |जनहा के लोगो को देख कर नहीं पहचाना जा सकता |

अफगानिस्तान की समस्या :- अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष के मूल में भी यही बात हैं | विगत तीस वर्षो से अमेरिका की मदद से तालिबान को हटा कर एक ढुलमुल लोकतान्त्रिक डांचा खड़ा किया था | जो नर - नारी की समानता और शिक्षा तथा राजय के फैसलो में भागीदारी की हामी थी | जो कुरान के निर्देशों के खिलाफ नहीं थी परंतु वनहा बसने वाली 14 समूहो के रुडीवादी परम्पराओ से अलग था |जिसमें नारी को एक '’वस्तु '’ से ज्यादा की हैसियत नहीं थी | उन्हे शिक्षा के नाम पर सिर्फ कुरान पड़ने की इजाजत थी |विगत तीस वर्षो में अफगान आबादी ने महिलाओ को पाइलट - और डाक्टर तथा सांसद बनते हुए देखा है \अफगान लड़के -लडकिया विदेश जा कर अध्ययन करते हैं | यह सब पशतुन -ताजिक - उज़्बेक - तुर्क - बालूच और अरब कबीलो आदि के मर्दो को अपनी तौहीन लगती हैं | तालिबान के लोग अधिकतर नमाज पड़ने के अलावा अधिक शिक्षा प्रापत नहीं हैं | ये सभी 14 चौदह कबीले या जातिया स्वभाव से लड़ाकू हैं | ब्रिटिश सेना भी इन्हे क़ाबू करने के लिए इनके सरदारो को रिश्वत दिया करती थी |

आज की अफगान समस्या तालिबन को बहुत जल्दी ही पशतुन और ताजिक तथा उज़्बेक तुर्क और बालूच आदि समूहो की सरकार में भागीदारी को लेकर टकराव होना अवश्यंभावी हैं | खुरासनी इस्लामिक आतंकी संगठन ने तो आतम घाटी दस्ते से तालिबान के क़ब्ज़े को चुनौती दे दी हैं \



Aug 13, 2021

 

धरम से जाति और अब आरक्षण से समाज में सद्भाव



संसद के दोनों सदनो से देश की पिछड़ी जातियो को शिक्षा और नागरिक सेवाओ एन आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए – जैसी सर्वानुमती सभी राजनीतिक दलो ने दिखाई हैं , वैसा आजतक के संसदीय इतिहास एन देखने को नहीं इलता हैं | सिवाय शोक प्रस्तावो के ! इस विधायन से कुछ सवाल उठते हैं जिन पर विचार करना जरूरी हैं |

1--- केवल शिक्षा और नागरिक सेवाओ में आरक्षण देना ही इस वर्ग की जनसंख्या की उन्नति के लिए पर्याप्त हैं शायद नहीं ?

2-- विधान सभाओ और लोक सभा में इन जातियो /वर्गो को आरक्षण क्यू नहीं ? जैसा की अनुसूचित जातियो और जन जातियो के लिए हैं ,वैसा क्यू नहीं ?

क्या इसलिए की ऐसा करने से धरम और जाति के वोट बैंक के मध्य संघर्ष बदेगा ? जैसा की बिहार और उत्तर प्रदेश का विगत इतिहास बताता हैं !


आपातकाल के दौरान देश के सांविधान में एक क्रांतिकारी संशोधन किया गया था इस प्रक्रिया में 42 वा था | इसें कहा गया था की "” भारत संप्रभु समाजवादी ध्रमनिरपेक्ष लोकतन्त्र गणराज्य है "” प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के एक मार्गदर्शक बल्ल्भ्भई पटेल हैं ,जिनकी याद में उन्होने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाई है | 1931 के कराची में काँग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष पद से संभोधित करते हुए कहा था "”मैं भारत एन समाजवादी गणराजय चाहता हूँ " उन्होने चार उद्देश्य भी कार्यकर्ताओ के सम्मुख रखे थे –

1- जाति प्रथा और धार्मिक अंधविसवासों का खत्म हो

2-किसानो और मजदूरो को समाजवादी कार्यक्रम के आधार पर संगठित किया जाये |

3- स्त्रियो की सार्वजनिक भूमिका मे बदलाव हो

4- नौजवानो को अनुशासन सिखाया जाए

अब 127वे सविधान संशोधन ने तो बल्लभ भाई के सपनों को चकनाचूर कर दिया हैं | जाति गत आरक्षण राजनीति एन एन तो नहीं हुआ --पर शिक्षा और सरकारी सेवाओ एन किया गया , वह भी सुप्रीम कोर्ट की नियत सीमा से अधिक ! इतिहास में 1931 और 1978 तथा 2021 की तिथिया अंकित हो गयी जो एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं |

पर इसी समय देश के अनेक हिस्सो से जातिगत जनगणना की जोरदार मांग भी उठी | जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया ! सवाल उठता हैं की जब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्राविधान किया हैं तब विधान सभाओ और लोकसभा तथा अन्य निकायो में क्यू नहीं ?

मजे की बात यह हैं की मोदी सरकार ने जातिगत आरक्षण के लिए संविधान को बदलने की कोशिस की तो की , परंतु राजनीति में अर्थात विधान सभाओ और लोकसभा में जातिगत आरक्षण से इंकार किया | इतना ही नहीं स्त्रियो के आरक्षण की सुविधा केवल स्थानीय निकायो तक ही सीमित रही , आखिर क्यू ?

देश ने विगत सात वर्षो में दो मुख्य धरमो के बीच कट्टरता के कारण जिस प्रकार नफरत का वातावरण बना हैं , वह अब और आगे बड़ा दिया हैं --- 124वे संविधान संशोधन ने | इसके द्वरा राज्यो को यह आज़ादी दी गयी हैं की वे अपने छेत्र की पिछड़ी जातियो

को 24 प्रतिशत आरक्षण दे सकेंगे | यदि सर्वोच्च न्यायालय ने रोक नहीं लगाई | वैसे अभी यह रोक जारी हैं | वैसे धरम के आधार पर कोई आरक्षण नहीं हैं | परंतु राजनीतिक दलो ने फूँक मारकर इन्हे वोट बैंक में बदलने की पूरी कोशिस की हैं |

वैसे ब्रिटिश हुकूमत ने धर्म और जाति के आधार पर तथा -पेशे के आधार पर प्रांतो की धारा सभाओ में स्थान आरक्षित किए थे |

1934 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में मुस्लिम , सिख और भारतीय ईसाइयो तथा एयरोपियन समुदाय को आरक्षण दिया गया था | इतना ही नहीं पिछड़े छेत्र और जन जातियो को भी यह सुविधा थी |इतना ही नहीं जो काम हमारे संविधान निर्माताओ से बिसर गया -वह था महिला आरक्षण , ब्रिटिश सरकारने उसका भी प्रविधान किया था | इतना ही नहीं व्यापार और उद्योग , भूमि स्वामियों और विश्वविद्यालयो तथा श्रमिकों का भी स्थान आरक्षित था ! कुल बारह प्रकार के आरक्षण थे | परंतु तब स्वतन्त्रता संग्राम की धुन में समाज के वर्गो में वैमनस्यता का अभाव था | इसलिए इन सुविधाओ का राजनैतिक लाभ उठाने की किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं की -----जिसकी इस संविधान सनसोधन से पूरी संभावना हैं |

एक बात और इन आरक्षण में थी की -मुस्लिम

महिलाओ को बंबई - मद्रास - बंगाल -और सयुक्त प्रांत में तथा पंजाब और सिंध में था |मद्रास में 6 सीट थी बॉम्बे 5 सीट तथा संयुक्त प्रांत में 4 सीट थी |बिहार और सेंट्रल प्रोविन्स एन 3 -3 थी | आसाम में 4 सीट थी |औसतन महिलाओ का आरक्षण 3 से 6 प्रतिशत था | आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी कानुन बनाने में महिलाओ की भागीदारी राजनीतिक दलो के नेताओ की कृपा पर निर्भर हैं | इस कारण महिलाओ को अपने नेताओ की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता हैं | जो स्वास्थ्य परंपरा नहीं हैं |

जाति संघर्ष का इतिहास :- बिहार में जातीय वयमनस्यता का लंबा इतिहास रहा हैं | जिनमे बेल्छी का 1977 जिसमें पिछड़े वर्ग के लोगो द्वरा 15 दलितो की हत्या की गयी !

पिपरा में 1980 एन भी पिछड़े वर्ग द्वरा 14 दलितो की हाती की गयी | भोजपुर के द्वार बीहटा में सवर्णों द्वरा 22 दलितो का नर संहार हुआ |

औरंगाबाद के भ्गौना गाव में पिछड़ी जातियो के दबंगों द्वरा 52 दलितो का नर संहार हुआ ! 1989 में जहानाबाद के नागवाल में 18 पिछ्डे और दलितो की हत्या हुई ! 1991 में पटना के तिसखोरा और भोजपुर के सहियारा में 15 - 15 दलितो की हत्या हुई !

इन पीड़ित वर्गो के लोगो के द्वरा गया जिले के बारा गाव में माओवादियो ने 35 भूमिहारो को नहर के किनारे ले जाकर गला काट कर हत्या कर दी ! यह दलितो का बदला था शायद |

1997 में रणवीर सेना जो छत्रियों की हिट रक्षक थी उसने जहानाबाद में 61 लोगो का नर संहार किया जिसमें बच्चे और गर्भवती महिलाए भी थी ! इस घटना के 26 अभियुक्त पटना हाइ कोर्ट द्वरा बारी कर दिये गए ! हैं ना अचरज की बात !

1999 में जहांबाद के सेनारी गाव में 37 सवर्णो की हत्या हुई ! वनही प्रतिशोध स्वरूप शंकर बीघा में 22 दलितो की हत्या हुई | तथा नारायणपुर 11 दलितो को आर डाला गया |

16 जून 2000 को औरंगाबाद के मियापुर में 35 दलितो की ह्त्या भीड़ द्वरा कर दी गयी | तेरह साल बाद पटना उच्च न्यायलय द्वरा 10 दोषी अभियुक्तों में 9 को बारी कर दिया गया ! कितना न्याय हुआ आरक्षितों का ?

अब थोड़ा उत्तर प्रदेश को देखे तो यानहा भी दलितो को नल से पानी लेने अथवा शादी में 2017 में घोड़ी पर बारात निकालने को लेकर हाइ कोर्ट को आदेश देना पड़ा | बुलंदशहर में बीएसपी नेता मायवाती के दौरे से पूर्व राजपूत और दलितो के संघराश में कलेक्टर को घर से भग्न पड़ा था | राजपूत और दलित संघराश एन एक व्यक्ति की मौत हुई !

तो यह हैं समाज में आरक्षण पाये लोगो की हालत का , अब इस नए कानून से क्या होगा ,यह तो समय ही बताएगा ?

Aug 12, 2021

 

धरम से जाति और अब आरक्षण से समाज में सद्भाव


आपातकाल के दौरान देश के सांविधान में एक क्रांतिकारी संशोधन किया गया था इस प्रक्रिया में 42 वा था | इसें कहा गया था की "” भारत संप्रभु समाजवादी ध्रमनिरपेक्ष लोकतन्त्र गणराज्य है "” प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के एक मार्गदर्शक बल्ल्भ्भई पटेल हैं ,जिनकी याद में उन्होने दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवाई है | 1931 के कराची में काँग्रेस के अधिवेशन में अध्यक्ष पद से संभोधित करते हुए कहा था "”मैं भारत एन समाजवादी गणराजय चाहता हूँ " उन्होने चार उद्देश्य भी कार्यकर्ताओ के सम्मुख रखे थे –

1- जाति प्रथा और धार्मिक अंधविसवासों का खत्म हो

2-किसानो और मजदूरो को समाजवादी कार्यक्रम के आधार पर संगठित किया जाये |

3- स्त्रियो की सार्वजनिक भूमिका मे बदलाव हो

4- नौजवानो को अनुशासन सिखाया जाए

अब 127वे सविधान संशोधन ने तो बल्लभ भाई के सपनों को चकनाचूर कर दिया हैं | जाति गत आरक्षण राजनीति एन एन तो नहीं हुआ --पर शिक्षा और सरकारी सेवाओ एन किया गया , वह भी सुप्रीम कोर्ट की नियत सीमा से अधिक ! इतिहास में 1931 और 1978 तथा 2021 की तिथिया अंकित हो गयी जो एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं |

पर इसी समय देश के अनेक हिस्सो से जातिगत जनगणना की जोरदार मांग भी उठी | जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया ! सवाल उठता हैं की जब शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्राविधान किया हैं तब विधान सभाओ और लोकसभा तथा अन्य निकायो में क्यू नहीं ?

मजे की बात यह हैं की मोदी सरकार ने जातिगत आरक्षण के लिए संविधान को बदलने की कोशिस की तो की , परंतु राजनीति में अर्थात विधान सभाओ और लोकसभा में जातिगत आरक्षण से इंकार किया | इतना ही नहीं स्त्रियो के आरक्षण की सुविधा केवल स्थानीय निकायो तक ही सीमित रही , आखिर क्यू ?

देश ने विगत सात वर्षो में दो मुख्य धरमो के बीच कट्टरता के कारण जिस प्रकार नफरत का वातावरण बना हैं , वह अब और आगे बड़ा दिया हैं --- 124वे संविधान संशोधन ने | इसके द्वरा राज्यो को यह आज़ादी दी गयी हैं की वे अपने छेत्र की पिछड़ी जातियो

को 24 प्रतिशत आरक्षण दे सकेंगे | यदि सर्वोच्च न्यायालय ने रोक नहीं लगाई | वैसे अभी यह रोक जारी हैं | वैसे धरम के आधार पर कोई आरक्षण नहीं हैं | परंतु राजनीतिक दलो ने फूँक मारकर इन्हे वोट बैंक में बदलने की पूरी कोशिस की हैं |

वैसे ब्रिटिश हुकूमत ने धर्म और जाति के आधार पर तथा -पेशे के आधार पर प्रांतो की धारा सभाओ में स्थान आरक्षित किए थे |

1934 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में मुस्लिम , सिख और भारतीय ईसाइयो तथा एयरोपियन समुदाय को आरक्षण दिया गया था | इतना ही नहीं पिछड़े छेत्र और जन जातियो को भी यह सुविधा थी |इतना ही नहीं जो काम हमारे संविधान निर्माताओ से बिसर गया -वह था महिला आरक्षण , ब्रिटिश सरकारने उसका भी प्रविधान किया था | इतना ही नहीं व्यापार और उद्योग , भूमि स्वामियों और विश्वविद्यालयो तथा श्रमिकों का भी स्थान आरक्षित था ! कुल बारह प्रकार के आरक्षण थे | परंतु तब स्वतन्त्रता संग्राम की धुन में समाज के वर्गो में वैमनस्यता का अभाव था | इसलिए इन सुविधाओ का राजनैतिक लाभ उठाने की किसी भी राजनीतिक दल ने नहीं की -----जिसकी इस संविधान सनसोधन से पूरी संभावना हैं |

एक बात और इन आरक्षण में थी की -मुस्लिम

महिलाओ को बंबई - मद्रास - बंगाल -और सयुक्त प्रांत में तथा पंजाब और सिंध में था |मद्रास में 6 सीट थी बॉम्बे 5 सीट तथा संयुक्त प्रांत में 4 सीट थी |बिहार और सेंट्रल प्रोविन्स एन 3 -3 थी | आसाम में 4 सीट थी |औसतन महिलाओ का आरक्षण 3 से 6 प्रतिशत था | आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी कानुन बनाने में महिलाओ की भागीदारी राजनीतिक दलो के नेताओ की कृपा पर निर्भर हैं | इस कारण महिलाओ को अपने नेताओ की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता हैं | जो स्वास्थ्य परंपरा नहीं हैं |


Aug 5, 2021

 

अपराध -जांच और फैसले पर जासूसी की छाया में ,न्याय


प्रधान न्यायाधीश रम्म्न्ना का कथन की रूल ऑफ ला देश में होना चाहिए ना की रुल बाइ ला ! हाल ही में राष्ट्रिय छीतीज पर अनेक ऐसे घटनाए हुई हैं , जो "”विधि के राज्य "”” की अवधारणा को ही खंडित करती हैं | इसमे पेगासास द्वरा सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायधीश अरुण कुमार मिश्रा सहित न्यायलय की रजिस्ट्री शाखा के दो अफसरो सहित अनेक लोगो के फोन टैप किए जाने की खबर आई हैं | और भी अनेक जजो के और प्रमुख वकीलो के फोन भी टैप किए जाने की खबर द वायर में छपी हैं |वैसे प्रमुख अखबारो और मीडिया में यह खबर नदारद हैं | क्यूंकी अधिकान्स विजुयाल मीडिया पर दो व्यापारिक घरानो का शिकंजा हैं , और उनको राज्य आश्रय प्रपट है एवं वे राज्य के सहायक हैं | कानून के पालन के कुछ अद्भुत उदाहरण पेश हैं :-

1 ---- आसाम -मिजोरम झड़प :- ऐसा उदाहरन हैं जो दिखाता हैं की संघ सरकार और राज्य सरकारो में तालमेल की कितनी कमी हैं , वह भी जब की तीनों स्थान पर बीजेपी की सरकार हैं { मिजोरम में सहयोगी हैं } | दोनों राज्यो की पुलिस सीमा पर उनकी पुलिस गोली बारी करती हैं , जबकि केंद्रीय सुरक्षा बल की वनहा तैनाती थी और पोस्ट भी थी | दोनों मुख्य मंत्री केंद्र से गुहार लगाते रहे , ओर 48 घंटे तक स्थिति विस्फोटक बनी रही | फिर दोनों राज्यो ने एक दूसरे के सांसद और अधिकारियों के खिलाफ अपने -अपने यानहा के पुलिस थानो में एफआईआर दर्ज की !! पांचवे दिन जा कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर एफ आई आर से वीआईपी लिगो के नाम हटाये गए !

सवाल हैं की नेताओ के कहने पर मुकदमा दर्ज़ किया जाना और फिर उनके कहने पर नाम हटा देना -------विधि का राज्य हैं ?यह एक झांकी हैं की पुलिस किस प्रकार मुकदमे दर्ज़ करती हैं और किस प्रकार नाम हटती हैं | आईपी सी और सी आर पीसी की धाराए अब गरीबो और उन लोगो के लिए हैं जो सरकार से सवाल पुछते है या उनके फैसलो की खिलाफत करते हैं | जैसे भीमा कोरे गाव्न के आरोपी ,जिनहे बिना मुकदमा चलये साल से बंदी बना रखा हैं |

2:--- विधि के शासन का अर्थ हैं की राष्ट्र के कानूनों के तहत की शासन कारवाई करे | परंतु राज्यो में खास कर उत्तर प्रदेश में सरकार की शह पाकर पुलिस और प्रशासन कारवाई करता हैं वह प्रमाण है की शासन ना तो रूल ऑफ लॉं का पालन कर रहा हैं और नाही रूल बाइ लॉं हो रहा है | किसी भी आरोपी को एन काउंटर कर देना और तो और उसके घर को बुलडोजर से तबाह कर देना ! अब किस कानून के तहत पुलिस किसी भी आरोपी का घर नेस्तनाबूद कर सकती है ,वह कानून तो ना दंड संहिता हैं और नाही प्रक्रिया संहिता में ! बस राजनीतिक आकाओ के हुकुम को ही कानुन से ऊपर मानकर प्रशाशन काम कर रहा हैं |

3:- उत्तर प्रदेश की पुलिस की कारवाई अनेकों बार हाइ कोर्ट के निर्देशों के बाद भी नहीं सुधर रही हैं , छहे वह उन्नाव की रेप पीड़ित महिला का मामला हो अथवा बदानयू की छोटी जाती की लड़की के रेप और हत्या का मामला हो , जिसमें शव को रात को जबरन जला दिया गया ,जिससे पोस्ट मार्टम ना किया जा सके | और हक़ीक़त सामने ना आजाए | अब पुलिस ने जन आक्रोश को देखते हुए और मंत्री के निर्देश के बाद ऊंची जाती के कुछ लोगोकों गिरफ्तार तो किया हैं , परंतु पोस्ट मार्टम के अभाव मे रेप और हत्या के सबूतो के अभाव में अभियुक्तों को सज़ा मिलना मुश्किल हैं |

4:- राजनीति के अपराधी करन की मिसाल बलविंदर सिंह उर्फ बबलू को उत्तर प्रदेश की बीजेपी में सदस्य बनने से मिलती हैं | बबलू को बीजेपी संसद और पूर्व मुख्य मंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा का घर जलाने के आरोप में मुकदमा चला और दोष सिद्ध हुआ | उसके बाद उनका सत्तरूद दल में शामिल होने का एक ही कारण हैं की वे "” मुख्या मंत्री आदित्यनाथ की जाति के हैं यानि छ्तृय हैं | जिंका इस समय राज्य में बोलबाला हैं |

5:- पुलिस और जिला प्रशासन कितना कानून के अनुसार चल रहा हैं ,उसका उदाहरण राज्य के पंचायत और ज़िला परिषद के चुनावो से मिलता हैं | साधारणतया चुनाव में नामजदगी दाखिल करने के स्थान पर पुलिस की तैनाती प्रत्याशियों की सुरक्षा के लिए होती हैं | परंतु इन चुनावो में डिप्टी कलेक्टर ने पुलिस तो राखी परंतु केवल सत्ताधारी दल के उम्मीदवारों के लिए | अन्य उम्मीद्वारो को नामजदगी का पर्चा दाखिल करने से इनहि पुलिस वालो का उपयोग हुआ | जब बीजेपी और आँय डालो के प्रत्याशियों में विवाद हुआ तब पुलिस चुपचाप देखती रही | किसी के भी खिलाफ "”” कर्तव्य पालन में कोताही "” के लिए कोई कारवाही नहीं हुई ! क्या यह विधि के अनुसार अथवा विधि का शासन हैं ?

योगी आदित्यनाथ के समय में केवल लखीमपुर खीरी में चुनाव के दौरान महिला प्र्तयशी की धोती खिचने का वीडियो वाइरल हो जाने के कारण "निलंबित किया "” अब उनकी तैनाती कान्हा हैं यह पता करना होगा |

तो यह हैं आज के लोकतन्त्र में विधि शासन की हालत | केंद्र ना तो आठ माह से दिल्ली के मुहाने पर धरना दे रहे किसानो का मसला हल कर रहा हैं और ना ही पेगासास में अपनी भूमिका को उजागर कर रहा हैं | जब देश के दो औद्यगिक घराने 52 टीवी चाइनलों को नियंत्रित करें तब सरकार की गल्तियो को सबके सामने लाने में देर तो होगी पर सच तो सामने आएगा ही |