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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 31, 2020


ज्ञान अर्जन की हिन्दू और वेदिक परंपरा का अंतर

शिक्षा में रामायणी प्रवचन पद्धति-या- वेदिक शंका का समाधान हेतु विमर्श पद्धति ?

आजकल शिक्षा संस्थानो में एक बहस चलाने की कोशिस हो रही हैं की – विद्यालयो में किसी भी प्रकार के विमर्श की बजाय जो बताया जाये {{ प्रवचन }} उसे ही इतिश्री करे | शंका का समाधान अथवा विमर्श पूरी तरहा प्रतिबंधित है | ऐसे ही तत्वो की विचार धारा का नारा हैं की शिक्षा संस्थान पूरी तरह गैर राजनैतिक बने -किसी भी प्रकार की घटना अथवा विचार धारा के प्रभाव से अछूती रहे | जो कहा जाये "”बस उतना ही सत्य "” समस्या अथवा शंका छात्र नहीं उठा सकते | कूल मिलाकर टोटल पॉज़िटिव एट्टीट्यूड | यह हैं हिन्दू शिक्षा पद्धति जिसके प्रवर्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हैं | संघ की छोटी सी शाखा का बौद्धिक हो अथवा शिविर {सम्मेलन}} में भी प्रश्न पूछने की इजाजत नहीं हैं | इनके यानहा सिर्फ संबोधन और श्रवण हैं | जैसा रामायनी किरतनिया अथवा रामलीला अथवा रासलीला के "” संबोधनकरता - चाहे वे गुरु हो अथवा स्वामी या भगवाधारी हो अथवा रामायनी हो रामलीला या रासलीला के प्रसंगो पर प्रवचन या उपदेश देना हो -----इन सब में एक बात कामन हैं की वे एक तरफा होते हैं | अर्थात ज्ञान का प्रवाह मंच पर बैठी मूर्ति की ओर से ही श्रद्धा से हाथ जोड़े बैठी भीड़ की ओर बहता हैं -----जो आरती के समय अपनी पूरी श्रद्धा – धन के रूप में थाली में उड़ेल देती हैं | किसी श्रोता के मन में अगर कोई शंका हो तो उसे "”व्यासपीठ "” से नहीं पूछ सकता !!!

कुछ ऐसा ही वातावरण ज्ञान और अनुशासन तथा परंपरा के नाम पर आईआईटी मुंबई और शांति निकेतन कलकत्ता में करने की कोशिस की जा रही हैं !!उपरोक्त शिक्षा अथवा ज्ञान प्रदान करने की "”हिन्दू धर्मपद्धति "”” ही क्या वेदिक आर्य परंपरा है ज्ञान प्रदान करने की ??? बिलकुल नहीं | वर्तमान में वेदिक धरम को जैसा हम पाते हैं वह केरल में जन्मे आदिगुरु शंकराचार्य की कृपा से मिला हैं | जिनहोने ही बौद्ध धरम के भारत में प्रसार को रोका | इसके लिए उन्होने काश्मीर से लेकर आसाम तक तथा समस्त भारत में वाद - विवाद अर्थात शास्त्रार्थ के जरिये ही किया ,मंडन मिश्र से उनका शास्त्रार्थ आज भी उदाहरण बना हुआ हैं | वाद - विवाद में जनहा किसी घटना या विषय के पक्ष या विरोध के लोग अपना - अपना तर्क और प्रमाण रखते हैं | निर्णायक ही घोषित करता हैं की कौन विजेता और कौन नहीं , जैसा मंडन मिश्रा और आदिगुरु के मामले में मंडन मिश्रा की पत्नी ही निर्णायक बनी थी | !!!! श्रोताओ पर निर्भर करता हैं की वे किसे स्वीकार करते हैं | उन्हे शंका का समाधान करने के लिए सवाल करने का अधिकार होता था |

यही पद्धति आश्रमो में भी थी --प्रत्येक उपवेशन के उपरांत शिक्षक ----बटुक /ब्रहमचारी से शंका पूछते थे | इस परंपरा का निर्वहन भारतीय सेना में आज भी किया जाता हैं | वनहा कोई ऑर्डर अथवा ड्रिल करने के समय अफसर समस्त परिस्थितियो से -सैनिको को अवगत कराते हैं , हमले के साथ बचाव और साधन की संभावनाओ आदि समस्त जानकारी देने के बाद कमांडर कहता हैं की ---””” कोई शक या सवाल "”” | बस यही अनुभव से ज्ञान पाने का तरीका हैं |

परंतु आईआईटी मुंबई में वनहा संस्थान के प्रभारी ने 15 नियम जारी करके छात्रावासों में किसी भी प्रकार के वाद - विवाद अथवा नाट्य मंचन या कविता पाठ पर प्रतिबंध लगा दिया हैं | बतया जाता हैं की ऐसा इसलिए प्रबन्धको ने किया , क्योंकि इस माह में वनहा के छात्रों और - शिक्षको ने राष्ट्रीय झण्डा लेकर विवादित नागरिकता संशोधन विधि औरकानो में बोल गयी की राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के विरोध में रैली निकली थी | चूंकि आईआईटी प्रबंधन केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत आता हैं ---- इसलिए कोई चिड़िया प्रभारी के कानो में बोल गयी की , प्रदर्शन नहीं चलेगा !! बस नए नियम बन गए | ना छत्रों से कोई विमर्श हुआ नाही शिक्षको की संस्था से कोई मशवरा किया गया !! बस हो गया ---और शिक्षा संस्थान की स्वायत्ता समपट हो गयी !!
कुछ ऐसा ही दुर्ज्ञान रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वरा स्थापित शांति निकेतन के कुलपति महोदय ने किया | वनहा के छात्रों ने जामिया मिलिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालया तथा जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालया नई दिल्ली के छात्रों की पुलिस द्वरा पिटाई किए जाने और नागरिकता कानून के विरोध में सार्वजनिक रूप से रैली निकाल कर प्र्दराशन किया था | उन्होने 28 जनवारी को छात्रो को बुला कर कहा की संसद देश की सर्वोपरि संस्था हैं --उसके द्वरा बनाए गए नियम का विरोध करना गैर कानूनी हैं !! संसद यदि चाहे तो संविधान की प्रस्तावना भी बदल सकती हैं ! हमारा संविधान अल्प मत से संविधान सभा से पारित हुआ था , अतएव इसकी महता संसद ही तय करेगी !! एक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान का प्रभारी ऐसी "”असंवैधानिक बात "” छात्रों से कहे इससे ज्यड़ा गलत और क्या हो सकता हैं ! जबकि संविधान के प्रत्येक अनुछेद पर बहसा हो कर उसे सदस्यो की रॉय के अनुरूप बनाकर ही पारित किया जाता था | 14 अगुस्त 1947 को संविहान सभा की पहली बैठक हुई | इस सभा में ब्रिटिश इंडिया के 16 परदेशो के अलावा रियसती भारत के 90 लोगो को भी इस सभा में भाग लिया | 389 सदस्योकी सभा में देश के हर छेत्र और वर्ग के लोगो को शामिल किया गया था | संविधान सभा की नवंबर1949 की हुई बैठक में इसे देश के लिए अंगीकार किया गया | संविधान ध्वनि मत से पारित किया गया था | किसी भी सदस्य ने इसके किसी उपबंध पर तब कोई असहमति नहीं जताई |
अब सवाल यह उठता हैं की शांतिनिकेतन के कुलपति महोदय को यह ज्ञान कान्हा से मिला की हमारा संविधान "””अल्प मत से पारित हुआ ?? “” कोई भी विधि विधान सभा हो या संसद हो कभी अल्प मत से पारित हो ही नहीं सकती | यही नियम हैं -----सदन का बहुमत अत्यंत आवश्यक हैं |
उधर आईआईटी कानपुर ने मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज़्म "” हम देखेंगे ...........”” की इस बात की जांच करा रहा हैं की कनही यह "”देशद्रोह"” अथवा गैर हिन्दू {{ आर्य एवं वेदिक धर्म में निराकार की उपासना होती हैं }} तो नहीं ? शासक के ज़ुल्मो क खिलाफ जनता की आवाज को बुलंद करने वाली नज़्म की जांच करने वाले का "”ज्ञान"” क्या होगा ?? इसी तर्ज़ पर अमेरिकी अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग की कविता "”” हम होंगे कामयाब "” की भी जांच की जा सकती हैं , क्योंकि उन्होने ने भी अपने देश के "”रंगभेद "” कानून के खिलाफ आंदोलन चलाया था |

अंत में बस यही कहना हैं की सत्तर साल के लोकतन्त्र में अब "”पहनावा – खानपान --और व्यवहार "”” क्या सभी सरकार ही तय करेगी ?? जैसा हिटलर ने जर्मनी में और स्टेलिन ने सोवियत यूनियन में किया था ? क्या सरकार के काम का विरोध देशद्रोह हैं ? जबकि सुप्रीम कोर्ट अनेकों बार अपने फैसलो में दुहरा चुका हैं की --- सरकार का विरोध राष्ट्र द्रोह नहीं हैं -----क्योंकि सरकार ही राष्ट्र नहीं हैं | सरकार जनता की प्रतिनिधि हैं -जबकि राष्ट्र में समस्त निवासी और सरकार भी शामिल हैं |


Jan 27, 2020


राजनीति और धर्म गुरु की भूमिका

राजनीति में धर्म गुरुओ का दखल - क्या चुनाव आयोग पंगु हुआ !!
देश में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर जैसा विरोध सड्को पर युवा और कल तक पर्दे में रहने वाली महिलाए जिस प्रकार सतत विरोध कर रही हैं – उससे सरकार और सत्ता धारी दल के माथे पर बल पड गए हैं | आसाम से राजस्थान और उत्तर प्रदेश से केरल तक सरकार के इन कानूनों का विरोध आज़ादी के समय साइमन कमीशन के विरोध की याद ताज़ा कर देता हैं | तब भी ब्रिटिश शासन ने सत्ता के क्रूर बल प्रयोग से आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया था --परंतु आखिर में उन्हे आपण इरादा बदलने पर मजबूर होना पड़ा | उस आंदोलन की अगुआई राष्ट्र पिता महात्मा गांधी कर रहे थे -----परंतु इस जन आंदोलन ने राजनीतिक दलो को बाहर कर दिया हैं | भारतीय जनता पार्टी अपने समर्थको को लेकर कुछ स्थानो पर इन कानूनों के समर्थन में , आन्दोल्ङ्करियों किभांति तिरंगा लेकर रैली निकाल रहे हैं | परंतु नोटबंदी के बाद मोदी सरकार की बात और वादे की साख खत्म हो चुकी हैं | एक ओर सरकार है और उसकी पित्र संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है - बीजेपी हैं --तो दूसरी ओर स्वतंत्र युवा और महिलाए हैं | इस आंदोलन के चलते एक महत्वपूर्ण बात देखने में आई हैं - की चाहे शाहीन बाग हो अथवा लखनऊ के घंटाघर पर आंदोलनकारी मुस्लिम महिलाए हो , वे सब अब घरो से निकल कर सड़क पर आ गयी हैं | कहते है जिन महिलाओ को सूरज भी नहीं देख पाता था – अब वे आबदार होकर कड़ाके की ठंड में नारे लगा रही है | उनको पर्दा प्रथा से निजात मिल गयी हैं | कहते हैं की हर घटना में कुछ ना कुछ अच्छी बात जरूर होती हैं , सो जो काम राजा राम मोहन रॉय या महतमा फुले जैसे लोगो ने सनातनी परिवारों के घूँघट के पर्दे को खतम कराया | कुछ कुछ वैसा ही इस नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में मुस्लिम महिलाओ के साथ हुआ हैं | अब वे आज़ाद हो गयी हैं ----अब कोई मुल्ला - या फतवा उन्हे पर्दे में क़ैद करने की कोशिस नहीं कर सकता |
1--- हालांकि सरकार के मंत्री विधायक और सांसदो के बोल अभी भी इस आंदोलन को "””हिन्दू और मुसलमान "” के नजरिए से दिखाने की कोशिस कर रहे हैं | परंतु सरकार आसाम और मेघालय तथा पूर्वोतर के अन्य राज्यो में केंद्र के इन कानूनों के विरोध में जो लोग आंदोलन कर रहे हैं वे 90 फीसदी सनातनी या बीजेपी की भाषा में "”हिन्दू "” हैं !! आखिर वे क्यो इतने नाराज हैं की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की जापान के प्रधान मंत्री से मुलाक़ात का कार्यकरम रद्द करा पड़ा ? फिर दुबारा भी जब वे आसाम में सार्वजनिक सभा के लिये जाने वाले थे तब भी खुफिया एजेंसियो ने उन्हे वनहा नहीं जाने की सलाह दी !! और वे नहीं गए | वे आजकल उनही राज्यो में जा रहे हैं जनहा बीजेपी की सरकरे हैं ,जैसे उत्तर प्रदेश | यहा तक की सहयोगी के साथ बिहार में नितीश कुमार की सरकार के राज्य में भी सभा करने नहीं जा रहे हैं !! गणतन्त्र दिवस पर अरेड की समाप्ती पर आधा किलोमीटर पैदल चल कर उपस्थित दर्शको की भीड़ को हाथ हिलाते रहे और खुश होते रहे ! यह तब था की परेड के लिए सुरक्षा के कड़े प्रबंध थे, तब वे पैदल चल सके क्योंकि सड़क पर यूने सुरक्षा कर्मियों के अलावा और कोई नहीं चल रहे थे | का इसे ही मोदी जी की लोकप्रियता का पैमाना माना जाये ?
2----- देश के प्रधान न्यायाधीश बोरवाड़े ने नागरिकता कानुन के विरोध में आई 144 याचिकाओ को सुनने से पहले देश में आग लगी है ,पहले वह शांत हो जाये तब विचार किया जाएगा !! अब देश के नागरिक केंद्र के कानून से आशंतुष्ट हो कर आंदोलन कर रहे है , तब न्यायपालिका से अपेक्षा थी की वे कुछ ऐसा करेंगे की सरकार की लाठी से घायल लोगो के घाव पर मरहम लगेगा , लेकिन अदालत ने "””हालत "” के शांत होने तक "”रुई का फाहा भी नहीं रखा !!
कुछ ऐसा ही जामिया के छात्रो और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालया में बाहरी नकाबपोश {{ विश्वविद्यलाया प्रशासन ने खुद इस बात को माना हैं की सर्वर रूम में कोई हमला नहीं हुआ था ,और कुछ नकाबपोश गुंडो ने छात्रों और शिक्षको पर हमला कर घायल क्या }}} लोगो द्वरा हमले पर पुलिस की एक तरफा कारवाई पर जब '’राहत '’ के लिए याचिका लगाई गयी तब भी यही कहा गया की पुलिस जांच कर रही हैं ? जबकि पुलिस छात्रसंघ की आद्यकश्हा की प्रार्थना पर विचार नहीं करते हुए प्रशासन की शिकायत पर जांच कर रही थी !
3---- अब असली मसला भारत निर्वाचन आयोग चुनाव के दौरान प्रचार के समय धरम के उपयोग को प्रतिबंधित करता हैं | अभी हाल में दिल्ली विधान सभा चुनावो में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार कपिल मिश्रा पर 48 घंटे तक प्रचार का प्रतिबंध लगाया था ----क्योंकि उन्होने कहा था मतदान के दिन भारत और पाकिस्तान का मुकाबला होगा ! गजब की बात हैं की प्रधान मनरी नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह सभी "”भारत से बंगला देशी लोगो को निकालने की बात कहते हैं ----परंतु उलाहना पाकिस्तान का देते हैं !

4--- अब बात भगवा ब्रिगेड के राजनीति में दखल की --- जबसे नागरिकता कानून को लेकर विवाद शुरू हुआ हैं --- तब से भगवधारी रामदेव हो या जग्गी वसुदेव हो सभी धरम छोडकर सारा ध्यान इस बात पर लगा रहे हैं की नागरिकता कानून और नागरिक रजिस्टएर सभी देशो में हैं | अब इन दिग्गजों से कौन प्रश्न करे की यूरोप में सिर्फ ड्राइविंग लाइसेन्स ही व्यक्ति की पहचान होता हैं | संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में काउंटी चुनाव में मतदाता का आयु प्रमाण पत्र जो की विद्यालय से जारी किया जाता हैं | वही उनके नागरिक और मतदाता होने की पहचान हैं | अगर माता -पिता नागरिक हैं तब उनकी संतान स्व्यमेव नागरिक हो जाती हैं | इसे राजनीति शस्त्र में "” पैदाशी नागरिक "” कहा जाता हैं | और केंद्र जिस प्रकार पाक और अन्य देश के हिन्दुओ को नागरिकता देने को कह रही हैं उसे नाग्रिकीकारण कहते हैं !उनके यानहा आबादी रजिस्टर ही सारे विवरण रखता हैं | प्रवासी भी उसमें होते हैं | परंतु उन्हे मतदान का अधिकार नहीं होता | जब धरम का आसरा सरकार लेने लगे तब "”तर्क और तथ्य "” की हत्या हो चुकी होती हैं | विधि तर्क और तथ्य पर आधारित होती हैं |
जबकि धर्म "””भावना --आस्था - और परंपरा "”” आधारित होता हैं , जिनमें तर्क नहीं होता |
भोपाल के आसपास अनेक स्थानो में रासलीला ---रामायण ----- भागवत पाठ के कार्यक्रम चल रहे हैं | जिनमें अनेक धर्मगुरु शामिल हैं | हालांकि उनमे अधिकान्स "”भगवा धारी नहीं हैं "” परंतु फिर भी वे धार्मिक उपदेश के साथ ही उपस्थित जन समुदाय को "””हिन्दू "”” हने का स्मरण कराते चलते हैं | फिर संयोग से वे नागरिकता कानून का ज़िक्र करके समुदाय को समझाते हैं की __आप लोगो को इससे कोई नुकसान नहीं हैं !!!
दिगंबर जैन साधुओ की साधना वाकई अत्यंत कठिन हैं ---- मौसम --भूख -प्यास पर उनका नियंत्रण अद्भुत हैं जो किसी भी आस्थावान को उनके सम्मुख सर झुकने पर मजबूर कर देता हैं | ए जब सड़क पर चलते हैं तो लोग सम्मान में रास्ता देते हैं | राजनेता और अधिकारी तथा सेठ साहूकार उन लोगो के आशीर्वाद के लिए जाते हैं | त्याग -तपस्या की इन मूर्तियो को जब यह कहना पड़े की नागरिकता कानून संशोधन -जैसा सरकार लायी हैं , वह सह और उचित हैं !!! अब उनके हजारो अनुयाईओ के लिए तो यह ब्रामह वाकय बन गया ------वे इस विषय को तब चर्चा से ऊपर स्वीकार कर लेते हैं | जो ना तो धार्मिक रूप से उचित हैं ना ही देश के गणतन्त्र के लिए लाभकारी हैं | लोकतन्त्र में नागरिक अगर भक्त की भांति व्यवहार करेगा तब विमर्श की संभावना समाप्त हो जाएगी | सभी धर्मो में विमर्श और शंका - समाधान की रीति हैं | इसी प्रक्रिया से धरम या मत परिष्करत होता हैं | आदि गुरु शंकराचार्य ने कहा था की "”अगर किसी बात या तथ्य में शंका है --- तब प्रथम्त्तह उसका निवारण करो | अगर मैं भी कुछ काहू और तुम्हें लगे की यह सही नहीं | तब उसको प्रशन द्वारा रखो | ऐसी स्थिति में कोई श्रमण - या साधु राजनीति के दलदल मे फंस जाए तो वह उसके लिए भी उचित नहीं होगा ,और भक्तो को ठेस लगेगी |

5-------- भगवा ब्रिगेड जिसका पालन पोषण विगत कई दशको से संघ और बीजेपी के नेत्रत्व द्वरा किया जा रहा हैं , वह किटन धार्मिक हैं | इसकी विवेचना करङ्गे | आदि गुरु शंकराचार्य द्वरा सन्यासियों के लिए नियम निर्धारित किए गए हैं | मूलतः यह नियम वेदिक धरम की परंपरा में हैं |
इसके अनुसार जिस किसी क भी सन्यास ग्रहण करना है --- तो पहले वह अपने माता -पिता और पत्नी {यदि हैः तब } उनकी सहमति प्राप्त करे | तत्पश्चात वह किसी को अपना गुरु बनाए | और उससे अपनी आकांच्छा व्यक्त करे | गुरु उसे जो भी कार्य दे ,उसे मन लगाकर करे | इस ट्रेनिंग के दौरान उसे सफ़ेद चीवर धरण करना होगा | अर्थात सिले हुए कपड़ो का त्याग | कम से कम सामान रखे --एक पानी का पात्र और एक कंबल या चादर जो उसके ओड़ने और बिछाने के काम होगा | जब गुरु से किसी विद्या में पारंगत हो जाएगा , तब एक शुभ दिन को अन्य साधुओ की उपस्थिती में उसको स्वयं का श्राद्ध करने के लिए सर मुड़वना होता हैं | तत्पश्चात उसको नया नाम और भगवा वस्त्र तथा दंड और कमंडल गुरु द्वरा भेट किए जाते हैं | उस दिन के बाद उसका पुराना जीवन अस्त हो जाता है | ना उसके कोई सगे - संबंधी होते हैं ना कोई सानसारिक रिश्ते |
यह तो हुई वेदिक धरम की परंपरा | बौद्ध धरम हो या जैन धर्म ---- जिस रूप मै संसार मे आए थे उसे अंत करना ही होता हैं |||||
अब इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के भगवा बिग्रेड के लोगो को परखे तो सर्वप्रथम यही तथ्य अनैतिक लगता हैं की ----- राजनीति सांसरिक लोगो का विषय है , जिसमे समर्थक और विरोधी होते हैं | जबकि भगवा धारी को "” सम्यक द्रष्टि "”” रखना जरूरी हैं | जो वर्तमान भगवा सांसद और विधायक तो बिलकुल नहीं रखते | महावीर और बुद्ध ने सन्यास के लिए राज- पाट त्यागा था !!! आज तो बिलकुल उसका उल्टा हो रहा हैं -----सन्यासी राज सत्ता के लिए हत्या और बलात्कार तक कर रहा हैं | स्वामी नित्यानन्द इसके उदाहरण है जो शाहजहाँपुर में '’’’परमार्थ निकेतन "” चलते थे ,यह बात और हैं की एक दूसरे भगवा धारी जो कहने को योगी है नाम हैं आदित्यनाथा जो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं ----उन्होने इस मामले को अदालत से वापस लेने का "””हुकुम "”” निकाल दिया ||
सवाल यह हैं की जो व्यक्ति जिस पहचान को लेकर जन्मा था ,जब उसने उस पहचान का क्रिया कर्म कर दिया – खुद का श्राद्ध करके अपने को सांसरिक रूप से समाप्त कर दिया | उसकी किस पहचान को चुनाव आयोग मानेगा ??? क्या इस भ्ग्वधारी को उस म्रतक का वारिस मान लिया जाये ?? या एक ही जनम में दो रूप मान लिया जाये ? क्योंकि भगवा धरण करने के उपरांत वे "”” आम आदमी नहीं रह जाते , तब उन्हे आम व्यक्ति की भांति क्यू माना जाता हैं ?? यदि इन्दिरा गांधी के प्रधान मंत्री के रूप में सुरक्षा के रूप में किए गए खर्चे को "”” अनियमित मान "” कर उनका चुनाव रद्द किया जाता हैं , तब इन भगवा धारियो को देख कर तो सभी को वेदिक धर्म की छ्वी दिखाई पड़ती है ! तब क्या यह चुनाव आयोग द्वरा धर्म को चुनाव प्रचार को अयोग्यता मानते हुए इन भगवा धारियो के निर्वाचन रद्द नहीं किए जाने चाहिए ???? जो नाटक करते हैं संसार छोडने का --और लिपटे रहते हैं राज लिप्सा में उन पर विश्वास कैसे करे ?? जो अपने घर परिवार को छोड़ कर सन्यासी का बाना पहना और बाद में सत्ता की चमक में खो गए ? सवाल है उत्तर खोजना होगा ----धरमलिए और राज सत्ता को शुद्ध रखने के लिए |
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जिस जन गणना में धर्म को लेकर इतनी हाय तोबा मची है ---और जो
हिन्दू ह्रदय सम्राट की बात कर रहे हैं --- जो मुसलमानो को बाहरी बता
रहे हैं --- उन्हे यह जान के ताज्जुब होगा की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की 1925 में स्थापना के छ्ह वर्ष पश्चात भी देश की धर्म के आधार पर हुई जन गणना में "””हिन्दू "””” धरम का अस्तित्व ही नहीं था ! था तो बस आर्य धरम और सनातन धरम का ...........

Jan 21, 2020


राजनीति में धरम का इस्तेमाल

आखिर संघ को मोदी सरकार के बचाव में भगवा धारियो की मदद लेनी पड़ी !!

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर देश व्यापी विरोध को देखते हुए लगता है अब बीजेपी ने अपने संकटमोचन राष्ट्रीय स्वायसेवक संघ से आर्त गुहार लगाई हैं | संघ ने भी देश की नब्ज को भापते हुए ---इस मुद्दे को पुनः हिन्दू - मुसलमान की तर्ज़ पर हल करने की कवायद शुरू कर दी हैं | जिस प्रकार राम मंदिर निर्माण के आंदोलन के समय विश्व हिन्दू परिषद ने भगवा धारियो को अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया था ------उसी प्रकार अब केंद्र के नागरिकता कानून के वीरुध उमड़े जन विरोध को शांत करने और सरकार के पक्छ में लोगो को लाने 6 की मुहिम चलाने का फैसला किया हैं |
वैसे मोदी सरकार समर्थक कुछ "”बाबा "” लोग जैसे भगवा धारी योग सीखने वाले रामदेव जो अब अरबपति व्यवसायी भी हैं तथा श्वेत वस्त्र धारी जग्गी वसुदेव काफी समय से नागरिक्त कानूनों की सार्वजनिक रूप से पैरवी कर रहे हैं | अपने भक्तो - शिष्यो को वे बताते हैं की सरकार लोई भी नियम बना सकती हैं | हमारा दावित्व हैं की हम उसका पालन करे | परन्तु महीनो के प्रयास के बाद भी "””मन चाहा "”परिणाम नहीं मिलने के कारण अब विश्व हिन्दू परिषद को इस मुहिम में लगाया गया हैं | क्योंकि वीएचपी का ट्रैक रेकॉर्ड राम मंदिर आंदोलन के समय काफी सफल रहा हैं | शुरुआत में लोगो के मन धर्म की भावना बैठने के लिए साधुओ के प्रवचन , फिर उसी दौरान राम मंदिर आंदोलन के समर्थन की सलाह | भोले - भले धरम भीरु लोगो से समर्थन पक्का करने के लिए उनसे "””एक ईंट और एक रुपया "” मंदिर के नाम पर मांगा गया | अब इंटो की संख्या तो अयोध्या में गिनी जा सकती हैं , परंतु लोगो ने मंदिर के नाम पर कितना चंदा दिया हैं इसका हिसाब आज तक वीएचपी ने सार्वजनिक नहीं किया |
इसी सफलता को देखते हुए संघ नेत्रत्व ने एका बार पुनः परिषद को नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगो के बारे विष वमन करने और सरकार की नियत को संविधान सम्मत बताना हैं | अबकी बार इल्लहबाद उर्फ प्रयाग राज़ में माघ मेला के दौरान विश्व हिन्दू परिषद ने अपने समर्थक साधुओ को देश के विभिन्न भागो में भेजने का कार्यकरम शुरू कर दिया हैं | इस मुहिम के लिए यात्रा और ठ्हरने की व्यसथा के लिये संघ से जुड़े आनुसंगिक सगठनों को सटरक कर दिया गया हैं |

परंतु इस बार परिषद के काम में अनेक भगवा धारी ही कंटक बन गए हैं | राम मंदिर निर्माण में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के बाद भी "”निर्माण समिति में निर्मोही आखाडा का भी एक प्रतिनिधि होगा "”” उसका अनुपालन अभी नहि हुआ | हालांकि केंद्र सरकार कह रही हैं की अभी इस ओर कोई निर्णय नहीं हुआ हैं | परंतु जिस प्रकार अयोध्या के महंत न्र्त्य गोपाल दास की सुरक्षा में केंद्र ने व्रधी की हैं उससे हनुमान गढी और दूसरे अखाड़ो और मठो के महंतो में रोष हैं | हाल ही में आपस में आरोप -प्र्त्यरोप का दौर भी हुआ | एक उप महंत ने अपने पद से त्यागपत्र भी दे दिया |विवाद का कारण नरृत्य गोपाल दास का एक वीडियो विरल होना था , जिसमें वे किसी से कह रहे थे की आद्यक्ष के लिए उनका नाम चलाओ !
अब हरिद्वार और प्रयाग तथा अयोध्या के बाबाओ में मंदिर को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा हैं | काफी लोग ऐसे हैं जो मूलतः ब्रामहन है उनकी शिकायत हैं की मुख्या मंत्री आदित्यनाथ जाति के ठाकुर हैं - वे अपने आस पास सिर्फ ठाकुरो को ही देखना चाहते हैं | प्रशासन में भी यह आरोप अक्सरलगता रहता हैं की गोरखनाथ पीठ देश का एकमात्र पीठ हैं जनहा सिर्फ एक छत्रिय ही मठाधीश हो सकता हैं | इस्स कारण अयोध्या में साधुओ में असन्तोष हैं | प्रयाग राज़ में ही साधुओ के एक बड़े धडे ने परिषद समर्थक साधुओ की इस पहल का विरोध किया था | उनका कहना था हमारा न तो कोई आधार कार्ड हैं ना कोई वोटिंग कार्ड हम हिन्दू मुसलमान के झगड़े में नहीं पड़ेंगे | यह कोई धार्मिक मुद्दा नहीं हैं ---की हाँ लोग जन जागरण करे | यह सरकार का काम हैं उनही की पार्टी करे | सम्मेलन के दौरान ही एक बड़े समूह ने सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की और इसे गैर जरूरी बताया |
भगवा धारियो के इस रुख से संग - और परिषद काफी तनाव में हैं | कुच्छ समझदार और पड़े लिखे महंतो का कहना हैं की राम मंदिर आंदोलन का विरोध किसी भी वर्ग द्वरा नहीं किया जा रहा था , यानहा तक की मुसलमान भी खुले रूप से खिलाफ नहीं थे | और हिन्दुओ में तो राम की छवि भगवान की हैं --इसलिए वे चंदा और समर्थन दे रहे थे | तब लोग हमे धार्मिक काम करने वाले मानते थे | वे हमारी आवभगत करते थे | परंतु इस बार सब कुछ सरकारी और राजनीतिक हैं | जिसमे विरोध तो बीज में होता हैं | लोग एक दूसरे की नियत पर शंका करते हैं , क्योंकि बात सरकार बनाने और सरकार गिरने की होती हैं | यहना सब कुछ धुंधला होता हैं ----- बात सब देश की करते हैं परंतु पार्टी और अपना स्वार्थ आगे होता हैं | जो राम मंदिर आंदोलन में नहीं था | वनहा सब कुछ सीधा और सामने था | भले ही कुछ लोगो को उस आंदोलन से राजनीतिक लाभ मिला , परंतु सरकारी फैसले को धर्म और आस्था तथा श्रद्धा के सहारे नहीं समझा जा सकता | वनही संघ और परिषद के नेता चाहते हैं की भगवा की समाज में इज्ज़त हैं ---लोग उसकी सर झुकाते हैं , इसी सद भावना का लाभ लेकर साधु लोग जनता को समझाये की मोदी सरकार का यह कदम देश के "””हिन्दुओ "” के लिए जरूरी हैं \| विधर्मियों ने देश को दूषित कर रखा हैं | अंततः बात वनही हिन्दू और मुसलमान पर आकार टिक गयी | जो संघ और परिषद तथा बीजेपी का छिपा एजेंडा हैं |
परंतु एका बात तो निश्चित हैं की मंदिर आंदोलन और नागरिकता कानून के लिए समर्थन का "”एक राह "”” नहीं हो सकती | अब की नयी तरकीब सत्ता धारियो को लनी पड़ेगी इस नागरिकता विरोधी आंदोलन के मुक़ाबले के लिए |


Jan 20, 2020


राज्यो के संघ को एकात्मक बनाती मोदी सरकार !


संसद का बहुमत क्या राज्यो के अधिकारो को सीमित करेगा ?


संविधान के प्रथम अनुछेद में ही साफ साफ लिखा हैं की भारत "राज्यो का एक संघ है जो 30 राज्यो और 2 संघ शशित छेत्रों से मिल कर बना हैं | परंतु जिस प्रकार नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता रजिस्टर को लेकर सम्पूर्ण देश में जन विरोध हो रहा हैं --क्या उसे सिर्फ इसी आधार पर मोदी और शाह खारिज कर सकते हैं की उनके "उद्देश्य को संसद की सहमति प्राप्त है ! आज देश में उत्तर प्रदेश हो दिल्ली हो बिहार हो बंगाल या केरल अथवा राजस्थान एवं पंजाब अथवा करहो मुंबई हो लखनऊ सभी जगह सार्वजनिक रूप से पुलिस के दमन के बावजूद लोगो का आक्रोश किसी लाठी -डंडे से शांत नहीं कराया जा सकता | इसके लिए ईमानदार संवाद की जरूरत हैं | यह नहीं की अमित शाह सभा में कुछ बोले और उसके विपरीत केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की वेब साइट कुछ और ही बया करे ! मोदी जी सभाओ में कुछ और कहे तथा आधिकारिक स्तर पर बिलकुल उल्टी तस्वीर दिखयी दे !
इस संदर्भ में बंगला देश की प्राधान मंत्री शेख हसीना का बयान मौंजू हैं की नागरिकता संशोधन विधेयक एक गैर जरूरी फैसला है , पर यह भारत का अंदरूनी मसला हैं | एनआरसी की शुरुआत आसाम में बंगला देशी घुशपाइठीयो पर रोक लगाने के लिए की गयी थी | बंगला देश के विदेश मंत्री ने अमित शाह को संभोधित करते हुए कहा था की वे उन्हे इन घुसपाईठियों की सूची मुहैया करा दे हम उन्हे ले लेंगे ! पर इस पर अमित शाह जी की कोई प्रतिकृया नहीं आई !!!! सी ए ए का उद्देश्य बताया जा रहा हैं की बाहर से आने वाले गैर मुसलमानो को भारत में शरण देना हैं – परंतु देश की वित्त मंत्री श्रीमति सीता रमन ने एक बयान में कहा हैं की व्गत 6 छ वर्षो में केवल 3924 विदेशियों को भारत की नागरिकता दी गयी हैं !! अब इतनी 150 करोड़ की आबादी के देश में यह संख्या कितनी हैं !!!! जबकि मोदी सरकार विदेशियों की नागरिकता देने के मामले में 30 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने वाली हैं !!! इसे ही शेख हसीना ने गैर ज़रूरी बताया था | कुछ जाने माने मुसलमानो को भी नागरिकता दी गयी जैसे गायक अदनान सामी और विवादो में रहने वाली लेखिका नसरीन !
मोदी सरकार की नियत इस मामले में कभी भी ईमानदार नहीं रही ---उन्होने कहा की देश में एक भी "”डिटन्शन सेंटर नहीं '’’ हैं उनके बोलने के दूसरे दिन ही आसाम के छ और महा राष्ट्र में बन रहे एक ऐसे केंद्र की पुष्टि हो गयी ! अब अगर देश का मुखिया असत्य और बर्गलने वाली बात सार्वजनिक रूप से करता हैं ----- की वे कुछ भी कहे अथवा करे उनका कोई कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता क्योंकि उन्हे लोकसभा में बहुमत प्रापत है ! शायद इसे ही सत्ता का नशा कहते हैं जो शासक के सर पर चाड जाता हैं ---तब वह नागरिकों की जरूरतों से ज्यादा अपनी महत्वाकांछा को महत्व देता हैं , फिर उसके लिए चाहे उसे नियम तोड़ने - मरोड़ने पड़े अथवा संवैधानिक निकायो को भयभीत करना पड़े |

आखिर तो मोदी सरकार को यह समझना होगा की की संसद में 303 सांसदो के बहुमत से वे केंद्र में सरकार तो बना सके है --परंतु अभी भी उनके विरोध में 377 सांसद हैं ! इसी प्रकार संघ गणराजय के 30 परदेशो और यूनियन छेत्र के कुल 4625 विधायकों में से भारतीय जनता पार्टी के मात्र 1547 ही विधायक हैं !! इसलिए यह समझना की मोदी सरकार ही देश की बहुसंख्यक जनता की आवाज़ है -भूल होगी | जिस प्रकार सी ए ए और एनआरसी का जन विरोध देश के बड़े हिस्से में हो रहा वह इस बात की निशानी हैं की मोदी सरकार "” देश के सभी नागरिकों की आवाज़ नहीं हैं "” | दिल्ली में जन विरोध को दबाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाले धरना - जुलूस और -प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाना , तथा लखनऊ में योगी सरकार द्वरा 144 लगा कर किसी भी प्रकार के सरकार के विरोध को कुचलने की तरकीब लोकतान्त्रिक तो बिलकुल नहीं हैं | सुप्रीम कोर्ट ने एवम हाइ कोर्ट ने अनेकों बार फैसलो में यह साफ कर दिया हैं की सरकार का विरोध "”” देश द्रोह नहीं हैं "” | संघ और बीजेपी द्वरा विगत में जब इस प्रकार मंदिर या गाय रक्षा के नाम पर प्रदर्शन किए जाते थे , तब तो सरकारो ने इन्हे "”देश द्रोही "” नहीं कहा !!
लखनऊ में जिस बेदर्दी से आंदोलनकारी महिलाओ को पुलिस ने लाठी के बल पर सर्द रात में घंटाघर से हटाया हैं वह निंदनीय हैं | ऐसा इसलिए हुआ चूंकि वनहा बीजेपी की योगी सरकार थी | जब मध्य प्रदेश में राजगड में का के समर्थन में बीजेपी को रैली निकालने की अनुमति नहीं मिलने के बाद – बीजेपीविधायक ने महिला जिलाधिकारी से झूमाझटकी की -उसके जवाब में जब उन्होने प्रति रोधक कारवाई की तब पूर्व मुख्य मंत्री शिवराज सिंह समेत समस्त पार्टी नेता अफसर को जन प्रतिनिधि से व्यवहार का पाठ सीखने लगे !! नेता प्रति पक्ष गोपाल भार्गव ने तो कह दिया "” अधिकारी वेश्या के समान होते हैं -जो सरकार के अनुसार कपड़े उतारते है "” ! क्या यह राजनीतिक रूप से उचित नहीं होगा की अगर बीजेपी शासित राज्यो में दूसरे राजनीतिक दलो के आंदोलन के साथ जैसा व्यवहार ज़िला प्रशासन करता हैं वैसा ही व्यव हर भारतीय जनता पार्टी के आंदोलनो के साथ होना चाहिए !!! मध्य प्रदेश में बीजेपी और संघ समर्थक का के समर्थन में रैली निकलते हैं -प्रशासन उन्हे भी अनुमति देता हैं , फिर भी झूमा झटकी पुलिस से की जाती हैं , |
अब अगर काँग्रेस शासित राज्यो में मध्य प्रदेश -छतीस गड -पंजाब में का समर्थन रैलियो पर प्रतिबंध लगा दिया जाये तब बीजेपी रोना रोएगी की न्याया नहीं हो रहा हैं !!!!
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मोदी सरकार के राजय में राज्यपालों के व्यवहार में संयमित और
संवैधानिक गरिमा के अनुरूप भाषा का उपयोग नहीं हो रहा हैं | राज्यपाल
का पद केंद्र के प्रतिनिधि के रूप होता हैं | जबकि राज्य सरकारे जनता
द्वरा सीधे चुनी गयी होती हैं | परंतु केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद
ने केरल को भी संघ शासित छेत्र समझ लिया हैं | केरल सरकार द्वरा
सी ए ए और एनआरसी के वीरुध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की , तब
उन्होने राज्य सरकार के फैसले पर सख्त एतराज जताया | जैसे की सरकार
को उनसे अनुमति लेकर फैसले लेना चाहिए | अलीगड़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के स्नातक को संविधान की सीमाओ का ज्ञान ना हो ऐसा नहीं माना
जा सकता , बस यही कहा जा सकता हैं , नए नए संघम शरनम गच्छमी
हुए है | इसलिए आगे आगे बड कर स्वामिभक्ति जाता रहे लगते हैं |
परंतु मिज़ोरम के राज्यपाल तथागत रॉय
द्वरा जिस प्रकार गैर बीजेपी दलो और खासकर काँग्रेस को राजनीतिक
निशाना बनाया था --उसकी कड़ी आलोचना हुई | परंतु केंद्र ने उनका अन्य
राज्य में तबादला किया | दिल्ली के उप राज्यपाल और वनहा की
केजरीवाल सरकार के बीच रस्साकशी जग ज़ाहिर थी | कुछ इसी प्रकार
देश की प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी का व्यवहार पॉण्डिचेरी
के मुख्य मंत्री के साथ किया -जब वे सरकार के फैसलो की फाइल मांगने
लगी | चूंकि उप राज्यपाल को वैधानिक अधिकार होते हैं जिनके आधार
पर वह राज्य के काम में दाखल दे सकता हैं |