राजनीति में
धरम का इस्तेमाल
आखिर
संघ को मोदी सरकार के बचाव
में भगवा धारियो की मदद लेनी
पड़ी !!
नागरिकता
संशोधन कानून और एनआरसी पर
देश व्यापी विरोध को देखते
हुए लगता है अब बीजेपी ने अपने
संकटमोचन राष्ट्रीय स्वायसेवक
संघ से आर्त गुहार लगाई हैं
|
संघ
ने भी देश की नब्ज को भापते
हुए ---इस
मुद्दे को पुनः हिन्दू -
मुसलमान
की तर्ज़ पर हल करने की कवायद
शुरू कर दी हैं |
जिस
प्रकार राम मंदिर निर्माण के
आंदोलन के समय विश्व हिन्दू
परिषद ने भगवा धारियो को अपने
राजनीतिक उद्देश्य के लिए
इस्तेमाल किया था ------उसी
प्रकार अब केंद्र के नागरिकता
कानून के वीरुध उमड़े जन विरोध
को शांत करने और सरकार के पक्छ
में लोगो को लाने 6
की
मुहिम चलाने का फैसला किया
हैं |
वैसे
मोदी सरकार समर्थक कुछ "”बाबा
"”
लोग
जैसे भगवा धारी योग सीखने
वाले रामदेव जो अब अरबपति
व्यवसायी भी हैं तथा श्वेत
वस्त्र धारी जग्गी वसुदेव
काफी समय से नागरिक्त कानूनों
की सार्वजनिक रूप से पैरवी
कर रहे हैं |
अपने
भक्तो -
शिष्यो
को वे बताते हैं की सरकार लोई
भी नियम बना सकती हैं |
हमारा
दावित्व हैं की हम उसका पालन
करे |
परन्तु
महीनो के प्रयास के बाद भी
"””मन
चाहा "”परिणाम
नहीं मिलने के कारण अब विश्व
हिन्दू परिषद को इस मुहिम में
लगाया गया हैं |
क्योंकि
वीएचपी का ट्रैक रेकॉर्ड राम
मंदिर आंदोलन के समय काफी सफल
रहा हैं |
शुरुआत
में लोगो के मन धर्म की भावना
बैठने के लिए साधुओ के प्रवचन
,
फिर
उसी दौरान राम मंदिर आंदोलन
के समर्थन की सलाह |
भोले
-
भले
धरम भीरु लोगो से समर्थन पक्का
करने के लिए उनसे "””एक
ईंट और एक रुपया "”
मंदिर
के नाम पर मांगा गया |
अब
इंटो की संख्या तो अयोध्या
में गिनी जा सकती हैं ,
परंतु
लोगो ने मंदिर के नाम पर कितना
चंदा दिया हैं इसका हिसाब आज
तक वीएचपी ने सार्वजनिक नहीं
किया |
इसी
सफलता को देखते हुए संघ नेत्रत्व
ने एका बार पुनः परिषद को
नागरिकता कानून का विरोध कर
रहे लोगो के बारे विष वमन करने
और सरकार की नियत को संविधान
सम्मत बताना हैं |
अबकी
बार इल्लहबाद उर्फ प्रयाग
राज़ में माघ मेला के दौरान
विश्व हिन्दू परिषद ने अपने
समर्थक साधुओ को देश के विभिन्न
भागो में भेजने का कार्यकरम
शुरू कर दिया हैं |
इस
मुहिम के लिए यात्रा और ठ्हरने
की व्यसथा के लिये संघ से जुड़े
आनुसंगिक सगठनों को सटरक कर
दिया गया हैं |
परंतु
इस बार परिषद के काम में अनेक
भगवा धारी ही कंटक बन गए हैं
|
राम
मंदिर निर्माण में सुप्रीम
कोर्ट के स्पष्ट निर्देश के
बाद भी "”निर्माण
समिति में निर्मोही आखाडा का
भी एक प्रतिनिधि होगा "””
उसका
अनुपालन अभी नहि हुआ |
हालांकि
केंद्र सरकार कह रही हैं की
अभी इस ओर कोई निर्णय नहीं
हुआ हैं |
परंतु
जिस प्रकार अयोध्या के महंत
न्र्त्य गोपाल दास की सुरक्षा
में केंद्र ने व्रधी की हैं
उससे हनुमान गढी और दूसरे
अखाड़ो और मठो के महंतो में रोष
हैं |
हाल
ही में आपस में आरोप -प्र्त्यरोप
का दौर भी हुआ |
एक
उप महंत ने अपने पद से त्यागपत्र
भी दे दिया |विवाद
का कारण नरृत्य गोपाल दास का
एक वीडियो विरल होना था ,
जिसमें
वे किसी से कह रहे थे की आद्यक्ष
के लिए उनका नाम चलाओ !
अब
हरिद्वार और प्रयाग तथा अयोध्या
के बाबाओ में मंदिर को लेकर
कड़ी प्रतिस्पर्धा हैं |
काफी
लोग ऐसे हैं जो मूलतः ब्रामहन
है उनकी शिकायत हैं की मुख्या
मंत्री आदित्यनाथ जाति के
ठाकुर हैं -
वे
अपने आस पास सिर्फ ठाकुरो को
ही देखना चाहते हैं |
प्रशासन
में भी यह आरोप अक्सरलगता रहता
हैं की गोरखनाथ पीठ देश का
एकमात्र पीठ हैं जनहा सिर्फ
एक छत्रिय ही मठाधीश हो सकता
हैं |
इस्स
कारण अयोध्या में साधुओ में
असन्तोष हैं |
प्रयाग
राज़ में ही साधुओ के एक बड़े
धडे ने परिषद समर्थक साधुओ
की इस पहल का विरोध किया था |
उनका
कहना था हमारा न तो कोई आधार
कार्ड हैं ना कोई वोटिंग कार्ड
हम हिन्दू मुसलमान के झगड़े
में नहीं पड़ेंगे |
यह
कोई धार्मिक मुद्दा नहीं हैं
---की
हाँ लोग जन जागरण करे |
यह
सरकार का काम हैं उनही की पार्टी
करे |
सम्मेलन
के दौरान ही एक बड़े समूह ने
सरकार के इस फैसले की आलोचना
भी की और इसे गैर जरूरी बताया
|
भगवा
धारियो के इस रुख से संग -
और
परिषद काफी तनाव में हैं |
कुच्छ
समझदार और पड़े लिखे महंतो का
कहना हैं की राम मंदिर आंदोलन
का विरोध किसी भी वर्ग द्वरा
नहीं किया जा रहा था ,
यानहा
तक की मुसलमान भी खुले रूप से
खिलाफ नहीं थे |
और
हिन्दुओ में तो राम की छवि
भगवान की हैं --इसलिए
वे चंदा और समर्थन दे रहे थे
|
तब
लोग हमे धार्मिक काम करने
वाले मानते थे |
वे
हमारी आवभगत करते थे |
परंतु
इस बार सब कुछ सरकारी और
राजनीतिक हैं |
जिसमे
विरोध तो बीज में होता हैं |
लोग
एक दूसरे की नियत पर शंका करते
हैं ,
क्योंकि
बात सरकार बनाने और सरकार
गिरने की होती हैं |
यहना
सब कुछ धुंधला होता हैं -----
बात
सब देश की करते हैं परंतु
पार्टी और अपना स्वार्थ आगे
होता हैं |
जो
राम मंदिर आंदोलन में नहीं
था |
वनहा
सब कुछ सीधा और सामने था |
भले
ही कुछ लोगो को उस आंदोलन से
राजनीतिक लाभ मिला ,
परंतु
सरकारी फैसले को धर्म और आस्था
तथा श्रद्धा के सहारे नहीं
समझा जा सकता |
वनही
संघ और परिषद के नेता चाहते
हैं की भगवा की समाज में इज्ज़त
हैं ---लोग
उसकी सर झुकाते हैं ,
इसी
सद भावना का लाभ लेकर साधु
लोग जनता को समझाये की मोदी
सरकार का यह कदम देश के "””हिन्दुओ
"”
के
लिए जरूरी हैं \|
विधर्मियों
ने देश को दूषित कर रखा हैं |
अंततः
बात वनही हिन्दू और मुसलमान
पर आकार टिक गयी |
जो
संघ और परिषद तथा बीजेपी का
छिपा एजेंडा हैं |
परंतु
एका बात तो निश्चित हैं की
मंदिर आंदोलन और नागरिकता
कानून के लिए समर्थन का "”एक
राह "””
नहीं
हो सकती |
अब
की नयी तरकीब सत्ता धारियो
को लनी पड़ेगी इस नागरिकता
विरोधी आंदोलन के मुक़ाबले के
लिए |
No comments:
Post a Comment