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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 27, 2020


कराहते श्रमिकों को बेहाली में - राज्यारोहण की वर्षगांठ -कितना क्रूर हैं !

घर वापसी के लिए उत्तर प्रदेश - बिहार -झारखंड और मध्य प्रदेश
के मजदूरो से भरी श्रमिक ट्रेनों की बदहाली और बदइंतजामी शायद मोदी सरकार के दूसरी पाली का सबसे दुखद अनुभव होगा - अगर उन्हे लगा तब ! अन्यथा रेल मंत्री पीयूष गोयल के खोखले कथन ट्विटर पर आते ही हैं | जिनमें वे अपने को पूरी तरह से पाक साफ और बेदाग होने का दावा करते ह हैं ! हालांकि देश के लोकतन्त्र के इतिहास में सत्ता का सच से मुंह मोड़ने के कई अनुभव हुए हैं | परंतु कोरोना के आतंक ने तो केंद्र और -राज्य सरकारो के हाथ -पैर ही सुन्न कर दिये हैं , इसीलिए शायद उन्हे बसो से 43 डिग्री की लू और गर्मी में भी बिना खाना और -पानी के अपने - अपने जनम स्थान की ओर आस की डोर लगाए सब कुछ सह रहे हैं | उनका कष्ट उनका हैं , वे शायद उस जनता के भाग नहीं हैं ---जो सरकारो को {सत्ता सिंहासन } बनाती हैं ! कान्हा तो कोरोना के हमले के मुक़ाबले के लिए सरकारो ने बड़े - बड़े सार्वजनिक बयान दिये , फिर क्या हुआ जो भारत आज नागरिकों के टेस्ट और उनके परिणामो को "”गोपनीय"” रख रहा हैं ? क्यो नहीं संक्रमितों और भर्ती होने वालो की अस्पताल वार गिनती बताने का कोई आधिकारिक श्रोत नहीं हैं ? केंद्र ने भी अपने संयुक्त सचिव को प्रैस से मिलने औए सवाल पुछने की सुविधा बंद कर दी ~!राज्यो में भी सावलों के के उत्तर देने के लिए भटकना पड़ता हैं ? क्यू नहीं केरल की भांति मुख्य मंत्री प्रतिदिन कोरोना के आतंक और उससे लड़ने की कारवाई तथा मजदूरो के राहत के लिए किए जा रहे कार्य सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं ? क्यू आम विधियो के अंतर्गत राहत कार्यो के स्थानो और कितने लोगो को क्या भोजन - पानी दिया , इसकी जानकारी नहीं सुलभ कराई जा रही ? निजी पथोलोजिकल लैब को निर्देश हैं की कोरोना की जांच की रिपोर्ट उस व्यक्ति को ना देकर सरकार को दें ? क्या बात हैं की निजी अस्पतालो में कोरोना मरीजो से इलाज के लिए लाखो रुपये के बिल दिये जा रहे हैं ? जबकि सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए नियत फीस घोषित कर रखी हैं ? इंदौर के एक अस्पताल के वीरुध तो कारवाई क मांग भी हुई ---जिसने एक अवकाश प्राप्त सरकारी करमचारी के शव को देने से इंकार कर दिया था -जब तक की उसके बिल्लो का भुगतान नहीं हो जाता !! एक पुलिस अधिकारी के साथ भी ऐसा हुआ तब वारिस्थ लोगो के बीच -बचाव से मामला सुल्टा ! इलाज और मेडिकल सामानो की खरीद में बहुत ज्यादा भ्र्स्तचार की शिकायते आ रही हैं , राजनीतिक संरक्षण प्रापत फ़रमो और अस्पतालो को गैर जरूरी भुगतान किए जा रहे हैं | अभी गुजरात की एक कंपनी द्वरा बनाए गए वेंटीलेटरो की गुणवतता रद्दी होने के कारण अनेक प्रदेशों ने उनकी सप्लाइ वापस कर दी | कमीशन बाज़ी के कारण सामानो की गुणवत्ता खराब मिल रही हैं | भोपाल मेडिकल कालेज में तीन दिनो से सफाई करामचरि और नरसो को किट पहनने के बाद तबीयत खराब हुई हैं | अब तो बात यानहा तक बिगड़ गयी हैं की एक बड़े दैनिक अखबार को प्रथम पन्ने पर इन तत्वो के खिलाफ चेतावनी स्वरूप एडिट सा लिखना पड़ा |
सरकारो की बयानबाजी और मजदूरो की हालत की हक़ीक़त :- लाक डाउन

चौथे चरण में जब सड्कों पर लाइन बना कर तप्ति धूप में पैदल जा रहे स्त्री - पुरुषो और बच्चो की तस्वीरे सार्वजनिक हुई --तब केंद्र को लगा की अब तो रेल चलनी ही पड़ेगी | परंतु इस विपदा काल में भी केंद्र सरकार और रेल मंत्रालय ने कहा की राज्य सरकारे मजदूरो की जांच और गंतव्य बता कर दे -----क्योंकि ट्रेन के डब्बो में "” देह की दूरी "” के लिए 70 यात्री के डब्बे में सिर्फ 50 लोग ही भेजे जाएँगे , वह भी बिना महसूल -किराया के ! परंतु मुंबई से कहलाने वाली पहली ट्रेन के यात्रियो ने जब 758 /- का टिकट और टिकट देने वाले द्वरा 100/- प्रति यात्री वसूले जाने का तथ्य सामने आया , तब रेल्वे ने पल्ला झाड़ते हुए कहा --- हमने तो राज्य सरकार को टिकट दिये हैं ! महा राष्ट्र सरकार ने रेल्वे के इस दावे का खंडन किया | पर रेल मंत्री पीयूष गोयल के अफसरो ने अपने झूठ को बार -बार बोला | तब केंद्र सरकार की ओर से बयान आया की ट्रेन के खर्चे का 85% भारत सरकार वहाँ करेगी और 15% संबन्धित राज्य सरकार करेंगी | लगा लूटे -पिटे मजदूरो को कुछ राहत मिली ! परंतु वह भी आश्वाशान भी जीवन की भांति "”छणभंगुर ही सिद्ध हुआ | क्योंकि महा राष्ट्र और गुजरात तथा कर्नाटक से चलने वाली "”श्रमिक स्पेशल ट्रेन "” के यात्रियो को टिकट लेकर ही यात्रा करना पड़ा --और उसका किराया भी चुकाना पड़ा ! सूरत में तो बाकायदे मजदूरो की लिस्ट को जिला प्रशासन अनुमति देता था --तब बीस - बीस की टोली बना कर उनसे किरे वसूला जाता था फिर उन्हे टिकट स्टेशन पर दिये जाते थे ! सवाल हैं की कान्हा ज्ञ केंद्र सरकार का हिस्सा और कान्हा गया राज्य सरकार का हिस्सा ----लूटा तो गया बेचारा मज़दूर !!! आज भी यू पी बिहार झारखंड जाने वाली श्रमिक ट्रेन कभी - कभी यहूदियो को आश्विट्ज़ ले जाने वाली ट्रेन के डिब्बो में जैसा भरा जाता था , कुछ - कुछ वैसा ही द्र्श्य इन गाड़ियो के डिब्बो का हैं | ना खाने का नाही पीने के पानी का इंतेज़ाम हैं | इन गाड़ियो के शुरू होने से लेकर अभी तक एक दर्जन से अधिक लोगो की मौत हो चुकी हैं ---पर जिम्मेदार तो कोई नहीं !!!! एक भक्त बोले अरे जब मना करने के बावजूद घर जाने की ज़िद्द लगाए बैठे हैं ---तो जाये मरे ! वे यह नहीं मानना चाहते थे की बेरोजगारी के कारण जब कमाई नहीं हुई तो --कैसे घर का किराया चुकाए अथवा खान कैसे खाये !!! जब उन्हे सुझाव दिया गया की उन्हे वनही मर जाना चाहिए था क्या ? तब वे झेपने लगे |
लेकिन सवाल अभी भी वनही अटका हुआ हैं की आखिर ट्राइनो में सबसिडी देने का वादा किस मंत्रालय ने किया था ? और फिर उसे क्यो नहीं निभाया ? क्या वह भी चुनावी जुमला था ! राज्य सरकारो के मुख्य मंत्रियो ने भी एक स्वर में अपना हिस्सा देने की बात की थी ---- तब वह धन राशि कान्हा गयी ? क्योंकि मजदूरो को तो पूरा किराया देना पड़ा | रेल मंत्रालय की कारगुजारी -यानही नहीं थमी , बल्कि जब रेल सेवाओ के शुरू करने की बात आई तब--- थर्ड वातानुकूलित डिब्बो के बीच की भी बर्थ के रिज़र्व किए जाने का ऐलान हुआ !! थोड़ा आश्चर्य हुआ की जिस केंद्र सरकार ने सार्वजनिक स्थानो पर तो "”देह की दूरी "” के लिए गोले तक पेंट कराये ----वही सरकार अब लगभग 8 फीट के डब्बे में तीनों बर्थ रिज़र्व कर रही हैं !!!! आज तक रेल विभाग इस तथ्य को नकारता रहा हैं की उसने मजदूरो से किराया नहीं लिया ---तब सवाल हैं की रेल्वे के टिकट किसने जारी किए और पैसा किसने लिया ?

सुख -सुविधा और सम्मान से उत्तर प्रदेश के मजदूर लाये जाएंगे !!
उत्तर प्रदेश के भगवा धारी मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रैस में बहुत ज़ोर देकर यह ऐलान किया था | पर हक़ीक़त क्या हैं आज भी गाजियाबाद होकर राजस्थान -हरियाणा से आने वाले मजदूरो को पुलिस के डंडे पद रहे हैं | योगी जी को पुलिस पर बहुत भरोसा हैं --क्योंकि वे जानते हैं की उनके कहे बिना भी पुलिस अधिकारी ,उनके मन की बात को समझ कर काम करते हैं | इलाहाबाद के चकघट पर और झाँसी की सीमा पर इटावा की मुरैना से लगती सीमा से जब उत्तर प्रदेश के मैराथन पैदल यात्री अपने घर जाना कहते हैं तब -राज्य की सीमा पर तैनात पुलिस अधिकारी कहता हैं "”हमे आर्डर हैं क किसी को भी राज्य में घुसने नहीं दिया जाए !”” इन सवालो को पूछने के लिए प्रैस को मौका ही नहीं मिलता ,क्योंकि वे भी अपने बड़े भाई मोदी जी की भांति पत्रकारो से दूर ही रहते हैं | कभी -कभार पत्रकार सम्मेलन बुलाया तो अपनी बात कह कर उठ जाते हैं बस ! उन्होने तो महा राष्ट्र सरकार पर आरोप लगाया की अगर वे सौतेली मटा की भांति भी इन मजदूरो से व्यवहार करते तो ---शायद ये लोग नहीं भागते | इस बात में सच्चाई तो है पट थोड़ी | महा राष्ट्र सरकार ने मजदूरो की जांच के लिए इतना कम अमला दिया की ट्रेन का फोरम भर्ना हो अथवा डाकटरी जांच करवानी हो ------इन सबमें लोगो को कई - कई दिन लग रहे थे | रेल्वे स्टेशन पर भीड़ के बावजूद ना कोई पानी का इंतेज़ाम था ना ही कोई शामियाना -जिसमें बैठ कर लोग विश्राम कर सके | तप्ति धूप में ही सभी बालक - युवा और व्रधों को इंतज़ार के लिए खड़ा रहन पड़ा था | लोकमान्य तिलक स्टेशन हो अथवा बसई हो जनहा हजारो -हजारो की तादाद में लोग तप्ति धूप में इंतज़ार कर रहे थे | कम से कम अगर प्रदेश सरकार खाने को कुछ नहीं दे सकती थी ---तब कम से कम पानी के टैंकरो को तो वनहा तैनात कर सकती थी ? पर ऐसा भी नहीं हुआ ! क्या ठाकरे सरकार सिर्फ मंत्रालय तक ही सीमित हो गयी --उसे इन लाखो मजदूरो का दर्द नहीं दिखाई पड़ा ---जिनहोने आज मुंबई को वर्तमान रूप दिया !
लेकिन योगी जी ने एक बयान और दिया --- की अब से प्रदेशों को मजदूर के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी ? वे भूल गए की भारत का संविधान हर नागरिक को देश की सीमा में कनही जा कर रोजी कमाने का अधिकार देता हैं ? उन्होने परवासी मजदूरो के लिए एक आयोग गठित करने की भी घोषणा की | सवाल हैं की कुशल और अर्ध कुशल अधिकतर रोजगार कारयालयों में पंजीबद्ध हैं ---वनहा से इनकी पहचान किजा सकती हैं ! परंतु हमने ये किया का दंभ तो फिर बेकार हो जाएगा | दूसरा रास्ता हैं की हर गाव में पंचायत के पास जनगणना का रजिस्टर होता हैं | उसमें से परदेश जा कर रोजी कमाने वालो की पहचान और संख्या मालूम की जा सकती हैं | योगी जी के बयान पर प्रतिकृया देते हुए महा राष्ट्र नव निर्माण समिति के राज ठाकरे ने जवाब दिया की यानहा आने वालो को हमसे इजाजत लेनी होगी , तभी वे काम कर सकेंगे ! अगर योगी जी यूपी के मजदूरो को "””पासपोर्ट "” देंगे तब राज ठाकरे उन्हे "”वीसा "” देंगे ! लगता हैं राजनीतिक बदले की भावना कनही देश को नुकसान न पहुंचाए |
अंत में बस इतना ही की क्या सत्ता इतनी किम कर्तव्यविमुड़ हो गयी है जो उसे इन हो रही घटनाओ की रोकने की ताक़त नहीं --अथवा अभी भी कोरोना और परवासी मजदूरो के कष्टो के बीच शहनाई ही सुनना हैं |

May 19, 2020


योगी जी बहुत हुआ -पर्मिट क्लर्क के अड़ंगे -मजदूरो को प्रयाण करने दे !


मजबूर मजदूरो की मैराथन पद यात्रा मैं भूखे - प्यासे स्त्री पुरुषो का कष्ट आपको नहीं दिखता -बस आपकी राजनीति फ़ेल ना हो जाए ,इस भय से आप बाबू टाइप एतराज़ लगा रहे है | और राजनीतिक विरोधियो पर झूठ बोलने आ आरोप लगा रहे है , कभी पलट कर अपने बयानो पर गौर कीजिएगा की कितना "”सच"” उनमे था !
आप की सरकार मजबूर मजदूर और मरीजो की मौत की संख्या पर आपका सत्य किसी दिन अगर होगा --उस दिन आप अपने मठ की प्रतिस्ठा को कलंकित कर चुके होग्ङ्गे ! यह समय भी निकाल जाएगा -आप अमरता नहीं लिखा कर लाये हैं , ना ही अनाड़ी काल तक आप पदासीन रहेंगे | गीता में श्री कृष्ण ने कहा है की जो "”शासक सत्या की अनदेखी कर सत्ता से चिपका रहता है उसकी अवनति निश्चित हैं | आपके आदि गुरु गोरखनाथ ने राज्य त्यागा था-सत्या की खोज के लिए , और आप सत्य से अंखे मूँद रहे है |
आज भी लाखो लोग उत्तर प्रदेश के निवासी आगरा - गाजियाबाद -झाँसी - चाक घाट पर अटके पड़े हैं , रेल की सुविधा से वंचित ,इन लोगो के पास खाना खरीदने को भी पैसा नहीं है , बिस्कुट खा कर सैकड़ो मील की मरथन यात्रा कर के ये लोग अपने घर जाना छाते हैं | | आप इन्हे रोके नहीं मदद करे | खुद बसे नहीं भेज सकते तो जो भी इस काम में सहायता कर रहे हैं --उसे मंजूरी दीजिये ---राजनीति मत करिए आप के राज्य में अभी तक 40 मजदूरो की मौत हो चुकी हैं , उनकी आत्मा के लिए ही उनके परिवार वालो को घर जाने दीजिये | कोरोना के संक्रामण के लिए आप इनकी जांच करे - संक्रमित पाये जाने पर -उन्हे क़्व्रंटाइन या एकांतवास में रखे ,गाव -गाव में स्कूल अथवा पंचायत भवन में उन्हे रखा जा सकता हैं | पर आप सरकार हैं कुछ करिए !
पैदल चलते हुए इन लोगो के बच्चो की दयनीय हालत देख कर किसी भी माता पिता का दिल और आँख भर आती है , यह वात्सल्य शायद आपको नहीं मिला इसलिए आप कठोर हो रहे हैं ! यह अनुचित हैं |
करोड़ो लोगो की सड्को पर पदयात्रा को लेकर भी आपने अपनी डांडा मार पुलिस को कह दिया हैं की कोई सड्को पर पैदल न चले -अथवा ट्रक या अन्य साधन से प्रदेश की सीमा मै नहीं प्रवेश करने दिया जाये ! क्या सड़क सिर्फ कार वालो के लिए और ट्रको के लिए ही सुरक्शित हैं ? इसलिए की पैदल चलने वाले रोड टैक्स नहीं देते ! अथवा उनको भी हिटलर के जर्मनी की भांति अनुज्ञा पत्र लेकर चलना चाहिए !
अभी तक कोरोना मर्ज का कोई अक्सीर इलाज नहीं मिला है , कहते हैं कोई वैक्सीन अमेरिकी कंपनी ने निकाली है --पर वह आम आदमी की हैसियत से बहुत दूर हैं | वह तो कुछ बड़े और विशिस्त लोगो को ही संभव होगी | आप तो इन परदेश कमाने गए मजदूरो को उनके घर जाने दे | जब वे 1400 किलोमीटर पैदल चले है --तो थोड़ा और चल लेंगे | पर आप का भासन की "””प्रवासी मजदूरो को सम्मान और सुविधा से उनके घर पहुंचाएंगे "”” किस तरीके से संभव होगा ? जो आप कर रहे हैं --उससे तो संभव नहीं | आज बड़े - बड़े अखबार भी विज्ञापन के डर से इन मजदूरो की बेबसी पर बस एक फोटो भर छाप देते हैं , उनकी व्यथा - कथा लिखने का साहस उनमें भी नहीं बचा हैं | देश विभाजन के समय रिफ़्यूजी कैसे आए और उन्होने कैसे अपने को इस देश की आबो - हवा में ढाला हम सबने देखा हैं | तब इनके दुख दर्द पर साहित्य लिखा गया ----हो सकता है , आने वाले दिनो में इनकी व्यथा भी लिखी जाये , तब आप सभी की भूमिका पर भी कलम चलेगी | सआदत हसन मंटो की टोबाटेक सिंह उस बँटवारे की पीड़ा को उजागर करता हैं | जो घर के उजाड़ जाने की होती हैं | यानहा तो अपने घरो को वापस लौटने की त्रासदी -वह भी अपने ही देश में कितनी होगी यह कल्पना ही की जा सकती हैं |
आज ये मजदूर कोरोना से भयभीत नहीं हैं -डरते है तो पुलिस के डंडे की मार से जो न यह देखता हैं की सामने महिला है हैं अथवा -पुरुष या बच्चे| आपके क़्व्रनटिन या एकांतवास की हक़ीक़त तो रायबरेली में उजगर हो चुकी हैं , जनहा डाक्टरों ने भी रहने से मना कर दिया था, तीन दिन बाद आपको फैसला बदलना पड़ा और सही स्थान पर मरीजो को भेजना पड़ा |
हम कोरोना वीरो का सम्मान जरूर करे --- पर इन मजबूर मजदूरो की शौर्य गाथा की अनदेखी ना करे | क्योंकि जिस प्रकार इन लोगो ने मुंबई - सूरत राजकोट तथा दिल्ली और राजस्थान से पैदल निकाल कर घर की ओर प्रयाण किया वह असधारण हैं |



May 8, 2020


ना तेरे लिए सड़क हैं ना रेल की पटरी वापस आने के लिए - मौत ही है !

औरंगाबाद में 14 घर लौटने वाले मजदूरो की मौत -यह साबित करती हैं की हमारे देश के "”हुकमरान "” अर्थ व्यवस्था और उत्पादन में "”श्रम"” शक्ति का इतना ख्याल रखते हैं ! सिवाय मुआवजा घोसीत के देने के को ही अपने कर्तव्यओ की इति श्री समझ लेते हैं | अगर इस दुर्घटना का मूल कारण जाने तो सरकारो की निर्ममता और लापरवाही साफ झलकती हैं | महराष्ट्र के नासिक से रेल की पटरी के सहारे चल कर उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले मजदूरो के पलायन को "”सुगम "” बनाने के बजाय इन निरीह लोगो पर खाकी वर्दी सिर्फ डंडे बरसाती हैं ---और कहती हैं की अपने - अपने घर जाओ ! कौन सा घर और कैसा घर ? वह खोली या दस फूट बी दस फूट का कमरा जिसमें आठ -आठ आदमी रहे वह उनका घर ! और जनहा खाने और पानी का बंदोबस्त नहीं उसको घर बताती है सरकार ! इन लाखो पद यात्री मजदूरो के पास खाने का ना तो समान हैं और नाही कुछ खरीदने का पैसा | क्योंकि मार्च में तालाबंदी होने के बाद इनके मालिको ने भी इनसे मुंह मोड लिया था | मजदूरो के अनुसार बीस - पच्चीस फीसदी मजदूरी का भुगतान करके इन्हे वापस लौटने की सलाह भ दी थी | परंतु सरकार के हुकुम से इन्हे अपने अपने कमरे में बैठना ही इनी मजबूरी थी | मुंबई - पुणे - जालना नासिक के इन मजदूरो के सामने दो ही रास्ते थे ---बिना खाये - पिये कमरो में मर जाये अथवा अपना सामान उठा कर अपने घर पर जाकर आफ्नो के बीच ज़िंदगी गुजारे ! अधिकतर मजूरों ने घर की ओर निकाल जाने का रास्ता चुना | पर रास्ते में इन मजदूरो की भीड़ को पुलिस की लाठी की मार मिली ! सड्को पर जगह - जगह पर बैठी पुलिस इन्हे "” अपने अफसरो के हुकुम के अनुसार "” खदेड़ती थी की अपने घरो में वापस जाओ ! जब इन लोगो ने खाने और पानी के अभाव की बात उनसे काही --तब भी हुकुम की गुलाम पुलिस का जवाब था "” हम कुछ नहीं जानते बस तुम वापस लौट जाओ ! अब इन लगो के सामने एक ही रास्ता बचा था की की अपनी मंजिल के लिए वे उसी रेल की लाइन के सहारे पैदल पैदल चले -----जिसकी पटरियो पर चलने वाली रेल पर बैठ कर वे इन महानगरो की अर्थ व्यवस्था बनाने आए थे और बनाया भी ! शुरू में पुलिस और और इन मजबूर मजदूरो की लुकाछिपी चलती रही , खाकी को देखा कर वे लोग इधर - उधर हो जाते और उनके डंडे खाने से बच जाते | परंतु कुछ श्रमिक ट्रेन के चलने के बाद -इंका धीरज भी जवाब देने लगा | जिनके पास कुछ पैसा बचा था वे ट्रेन में जाने के लिए अपना नाम लिखवाने की लाइन में लगे | परंतु एक तो फार्म अङ्ग्रेज़ी में दूसरा किसी डाक्टर से कोरोना नेगेटिव का मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाना ,इन लोगो के लिए मुसीबत बन गया | दूसरी समस्या यह भी आई की "”अपने इलाके के बीस से तीस मजदूरो के नाम देना "”” ! लेकिन असली समस्या तो थी पंजीकरण करने वाले सिर्फ 150 लोगो को प्रतिदिन पंजीकरण करते थे | जबकि भीड़ हजारो की थी -----पुलिस और सरकारी कारिंदे खुद देख रहे थे इस भीड़ को | परंतु फार्म वालो को टोकन दे देते थे की दूसरे दिन लाइन में आना फार्म ले लेंगे ! लेकिन ऐसा होता नहीं था | टीवी चैनलो में मजदूरो ने कहा की टोकन के बाद भी सुबह चार बजे से लाइन में लाग्ने के बाद उस अकेले काउंटर पर दस बजे बंद कर दिया जाता था !!
इस समस्या का निदान करने के लिए ना तो पुलिस और नाही उन कारिंदो को इनकी हालत पर दया आई , वे तो हुकुम के गुलाम की तरह बस नियत संख्या में फार्म बटोर कर अपनी दुकान बंद कर देते ? सवाल यह हैं की जो भी अफसर इस काम को देख रहा था --क्या उसे इस समस्या का हल नहीं निकालना था ? अरे भाई काउंटर ज्यड़ा खोल दीजिये आदमी बड़ा दीजिये जिससे की सुबह चार बजे से लाइन में लगे आदमी का काम हो जाये ?लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ | जबकि श्रमिक ट्रेन में कुछ भाग्यशाली जगह पाकर अपने मुकाम पर पहुँच गए | जिनकी तादाद सैकड़ो में थी ,पर दासियो हज़ार मजदूर पणजी कारण और मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए दो तीन हज़ार रिश्वत में खर्च करने के बजाय पैदल निकले | कुछ लोगो को ट्रक और टैंकर मिल गए जिनहोने दया दिखा कर 3000 रुपये लेकर इनको पाहुचने का वाद किया | पर यह संख्या भी हज़ार -पाँच सौ से ज्यादा नहीं निकली | बचे दासियो हजार मजदूर जो बिलकुल भूखे -नंगे थे उनकी लाचारी थी की वे पैदल ही घर तक का राशता तय करे | पर ऐसे लोगो को राज मार्ग और पुलिस से बच - बच कर निकलना था | इसलिए जंगलो और अंजान राशतों पर स्थानीय लोगो से पूछ कर चलते गए | जनहा रेल की पटरी मिली तो उसी के सहारे चलने लगे | पर यानहा भी आरपीएफ़ के जवान उन्हे भागते थे | वैसे देश की खाकी वर्दी लेने - दे कर मामला सुलझाने वाली हैं , परंतु इन लूटे पिटे लोगो से उन्हे कुछ मिलने की उम्मीद नहीं थी |
पुलिस कारवाई का नमूना तब देखने को मिला जब एक चैनल के पत्रकार को जो रेल की पटरी पर जा रहे लोगो के दुख दर्द को प्रसारित कर रहा था , तब असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर ने उस रिपोर्टर की विडिओग्राफी को आपतिजनक बताया , उसने कहा आप गलत कर रहे ---आप इन लोगो का मन तोड़ रहे हैं ,इन्हे कहे की ये अपने घरो में जा कर रहे !!! हम तो अपने अफसरो का हुकुम बाजा रहे हैं , हम तो इन्हे भगाएँगे !! क्या हुकुम बजाना हैं ! शायद इनहोने अपनी नौकरी में गिरहकटों को ही पकड़ा होगा !!! उन्हे देखने के बाद वनहा खाना बाँट रहे लोगो को भी उन्होने धमकाया -----खुद तो आदमियो को कुछ सुख दे नहीं सकते -जो भोजन बाँट रहा था उसे भीभगा दिया ,वाह रे वाह महाराष्ट्र पुलिस -इस बात पर कोई कैसे जय महाराष्ट्र का नर लगा सकता हैं !
अब बात करते हैं उत्तर परदेश -बिहार और छतीसगढ़ सरकारो की हेल्प लाइन फोन नंबरो की , इन सरकारो ने इन नंबरो पर आने वाली शिकायतों का कोई "”लेखा जोखा "” नहीं रखा हैं , इसलिए इन अफसरो का जवाब तो "”कोरा होना ही हैं | जबकि मजदूरो से जब पूछा गया की उन लोगो ने अपनी व्यथा अपने प्रदेश की सरकारो को बताई ----तब उनका जवाब था की , अधिकतर तो फोन एंगेज रहता हैं और आदर घंटी बाजी तब उसे उठाया नहीं जाता | महराष्ट्र की इंचार्ज आयुक्त स्तर की अधिकारी दीपाली रस्तोगी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नामित किया हैं | परंतु वे पत्रकारो के भी फोन का जवाब नहीं देती ! अब इससे हाल पता चलता हैं | दिल्ली में बैठे तीन अधिकारी रेजेडेंट आयुक्त की ज़िम्मेदारी समहलते हैं ---लेकिन उन्होने इन मजदूरो को लाने के लिए संबन्धित सरकारो से कोई पहल नहीं की | वैसे इंका काम प्रमुख रूप से मुख्य मंत्री या मंत्रियो की मुलाक़ात फिक्स करना होता हैं | परंतु इस समय तो कोई दिल्ली जा भी नहीं रहा हैं | तब भी इन्हे प्रदेश के मजदूरो की परवाह नहीं | यही
हाल उत्तर परदेश और बिहार के अफसरो का भी हैं - एयर कंडीशंड कमरो में चाय पीकर साथी अफसरो की पोस्टिंग के बारे में जानना ही इंका शगल रहता हैं |
अब उत्तर प्रदेश क योगी सरकार द्वरा अपने राज्य के ही मजदूरो से भेद भाव का हैं | पंजीकरण करने वाले अधिकारी का कहना था की उत्तर प्रदेश के सिर्फ तीन ज़िलो -अमेठी - गोन्डा और गोरखपुर के ही मजदुओ का श्रमिक ट्रेन में जाने के लिए पंजीयन किया जाये ! आखिर ऐसा क्यू ? जवाब हैं अमेठी केंद्रीय मंत्री स्म्र्ति ईरानी का और गोरखपुर योगी जी का खुद छ्त्र हैं ! ऐसी विपदा की घड़ी में भी अपने - पराए और वोट बैंक इस राजनीति को धिक्कार हैं | इसलिय की वह बीजेपी का छेत्र हैं ?
इन पैदल चलने वालो ने शायद पदयात्रा का विश्व रेकॉर्ड बना दिया हैं | जितना लोग आज महराष्ट्र और गुजरात -हरियाणा से पलायन कर रहे है -उतने लोगो ने तो देश के विभाजन के समय भी पैदल यात्रा नहीं की होगी | और चलते -चलते राष्ट्रीय स्वायसेवक संघ के नेता गिरिजेश कुमार का एक बयान छ्पा है -जिसमें उन्होने मेरठ के अपने संगठन के पदाधिकारी द्वरा ज़कात का पैसा से गरीबो को गेंहू बांटने की तारीफ की , साथ ही उन्होने कहा की मुसलमानो को चाहिए की वे रमज़ान के माह में ज़कात की धनराशि प्राइम मिनिस्टर केयर फंड में दान करे !! इस हिंदुवादी नेता को यह नहीं मालूम की ज़कात की राशि मजलूम - बेसहारा मर्द और औरतों को दी जाती हैं ------ भरे पेट वालो को नहीं दी जाती | वैसे कुवैत और खड़ी के देशो में ज़कात की राशि लेने वाले नहीं मिलते -वनहा अगर गिरजेश कुमार अपील करेंगे तो फायदे में रहेंगे !!!

May 7, 2020


चल -चल रे मजूरा अब तेरा देस हुआ परदेस -
कोरोना के कारण देश की औद्योगिक नगरियो से अपने देस -घर - गाँव जाने वाले लाखो बेबस और भूखे प्यासे "”श्रमिकों "” को उनके गाँव -राज्य में ही घुसने पर रोक लगा दी गयी हैं ! उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर फैसला देते हुए कहा हैः -की राज्य की सीमा में उनही मजदूरो को प्रवेश दिया जाये जो कोरोना की जांच में "””नेगेटिव "” पाये जाने का सेर्टिफिकेट दिखाये , जिनके पास नहीं हो उन्हे राज्य में घुसने नहीं दिया जाए ! अब हजारो मील गुजरात और महाराष्ट्र से आए हजारो मजदूरो पर यह गाज़ आन पड़ी हैं ! क्या इसका यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए की उड़ीसा के जो लोग कोरोना पीड़ित हैं ---उन्हे भी राज्य से बाहर किया जाये ? आखिर कोरोना नेगेटिव का सेर्टिफिकेट सिर्फ बेबस प्रवासी मजदूरो और उनके परिवारों पर ही क्यों ? पर जैसे भारत सरकार ने इन करोड़ो प्रवासी मजदूरो के बारे में राष्ट्रीय तालबंदी या ये कहे अघोषित कर्फ़्यू 24 मार्च को लगाया था ----तब उन्होने भी इन मजदूरो ---या की कर्नाटक सरकार की भाषा में कहे तो – "”अर्थ व्ययस्था की रीड है "” पर आर्थिक पैकेज देते समय उन्हे भी सिर्फ धोबी - नाई और टैक्सी ड्राइवरो की ही चिंता की ! मजे की बात यह हैं की जिस बिल्डर लाबी के दबाव के चलते उन्होने कर्नाटक से प्रवासी मजदूरो को मुफ्त में उनके राज्यो को ले जाने वाली "””पाँच श्रमिक ट्रेन "” का परिचालन रद्द किया उनके बारे में मुख्य मंत्री येदूरप्पा बिलकुल मौन रहे ! कितना बड़ा क्रूर मज़ाक हैं , इन बेबस मजदूरो के प्रति | पर ना तो नेता या मंत्री तथा अफसरो को इसकी परवाह हैं और नाही हमारा टेलीविज़न मीडिया को , जो अभी भी जमात और काश्मीर में आतंकवाद पर बहस करने के नाटक को कर रहा हैं |
गुजरात हो या महराष्ट्र अथवा हरियाँ याकि पंजाब सभी जगहो से उत्तर प्रदेश को जाने वाली सड़के यूपी और बिहार के मजदूरो की --सैकड़ो मील की पदयात्रा की गवाह हैं | ये सड़के इसकी भी गवाह हैं की जनहा पुलिस इन्हे राजमार्गों पर पैदल चलने की इजजाजत नहीं देती हैं , उन पर डंडे बरसाती हैं – महिलाओ बच्चो से भी अपमानजनक व्यवहार करती हैं | वंही कुछ सड्को पर बसे गाव्न इन लोगो को भोजन पानी दे रहे हैं | बहुत से दयालु लोग भी अपनी कार से सूखे खाद्य पदार्थ लाकर इन फटे हाल बिना पैसे वाले लोगो को बाँट रहे हैं | मीडिया का एक हिस्सा जो आज की इस विषम हालत में भी हिन्दू - और मुसलमान के मुद्दे पर चीखती चिल्लाती हैं , उसे इन लाखो लोगो का दर्द नहीं दिखाई पड़ रहा हैं ? वे तो सिर्फ महनगरो की बहुमंज़िली इमारतों के फ्लॅट में रहने वालो की थाली - और ताली ही दिखा सके !!
उड़ीसा उच्च न्यायालय का फैसला विधिक इतिहास का एक "”दुखद अध्याय"” ही बनेगा , जिसने भारत के नागरिक से उसके संवैधानिक अधिकार को ---- छुआछूत से बीमार होने के भय के कारण इस निराशा में बेबस मजदूरो को उनकी "गाव की माती से दूर रखा | यह फैसला प्लेग की महामारी के समय पुलिस द्वरा तथा हाकिमों द्वरा बीमारों को घरो से निकाल कए गाव्न के बाहर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था | उस समय इस बीमारी से लगभग दस लाख से ज़्यदा लोग अविभाजित बंगाल में '’काल कवलित हुए थे - तब उड़ीसा भी बंगाल का हिस्सा हुआ करता था "”” | लग्ता हैं वही भय अभी भी भद्रजनों में व्यापात हैं | ये कैसी जनहित याचिका हैं --जो केवल समाज के समर्थ लोगो की चिंता करती हैं , आबादी के 95% की नहीं !
अब बात करते हैं कर्नाटक के मुखमंत्री येदूरप्पा की घोसना की जिसमें उन्होने 1093 करोड़ की आर्थिक सहायता इन "” प्रावासी मजदूरो की घर वापसी की ट्रेन को रद्द करने के बाद की ! उन्होने कहा की प्रावासी मजदूर "”ही "” हमारी अर्थ व्यवयसथा की रीड की हड्डी हैं ! इस भावना का उनकी घोसना में कोई स्थान नहीं हैं | उन्हे अपने लोगो के कपड़े की धुलाई- उनके बाल कटवाने और टॅक्सी के लिए ड्राइवरो की जरूरत का ख्याल था | जिन बड़े बिल्डरों के दबाव में वे हज़ार करोड़ का आर्थिक पैकेज दे रहे हैं -----वह वास्तव में मजदूरो के हित के लिए नहीं वरन , इन बिल्डरों के काम /अधूरे रह जाने से लाभ नहीं होने की भरपाई के लिए हैं | राष्ट्रीय रेरा आयोग ने जो इन भवन निरमाताओ और फ्लॅट खरीदने वालो के विवाद का निर्णायक है ------उसने भी निर्माण में देरी के लिए मजदूरो का अभाव होना ही माना हैं !! जबकि हक़ीक़त यह हैं की राष्ट्रीय तालाबंदी में घरो में मजबूरन "”नज़रबंद रहे "” मजदूरो की कोई गलती नहीं ! परंतु इन बिल्डरों ने पाँच सौ का भुगतान कर खुद करोड़ो कमाए , परंतु जब मजदूर मजबूर हो गए तब किसी ने भी उनके भोजन के लिए कोई सामुदायिक रसोई नहीं चलायी ! उनके बीमारों को अस्पताल ले जाने की ज़िम्मेदारी से भी उन्होने पल्ला झाड लिया !! ऐसे ह्रदय हीन मालिक के लिए मजदूर के मन क्या आदर हो सकता हैं ?
मजे की बात यह हैं की केंद्रीय गृह मंत्रालय की विज्ञापति में कहा गया हैं की – औद्योगिक संस्थान आधे श्रमिक संख्या के साथ उत्पादन कर सकते हैं ----पर उनके रहने और खाने की व्यवस्था संस्थान के परिसर में ही करनी होगी ! अब यह पूरी तरह से निश्चित हैं की काम करने वाले मजदूरो के लिए कोई आवास तो बनयेगा नहीं -वह किसी टीन के नीचे उन्हे सोने का स्थान देकर और कैंटीन के नाम पर समोसा - पकौड़ी की व्यसथा कर देगा , उसे यह परवाह नहीं की खाने में कौन सा तेल हैं अथवा कैसा सामान इस्तेमाल हो रहा हैं | लेकिन भारत सरकार की शर्तो की खाना पूरी तो हो गयी !!!!
24 मार्च से शुरू हुए लाक डाउन की इस तीसरी किश्त मे राष्ट्र 45 दिन से ज्यादा से बंद हैं -----इससे ज्यादा नज़रबंदी काश्मीर के तीन पूर्व मुख्या मंत्रियो ने झेली थी , तो हम लोग तो उस हैसियत के हैं नहीं ---और ये कामगार तो "तुक्ष प्राणी है "” शासन और सरकार तो कुछ हज़ार लोगो की मर्ज़ी और हिट से चलता हैं -----उसमें बहुजन हिताय तो हैं ही नहीं | उधर सबसे ज्यादा मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं , जिनके संख्या दासियो लाख से करोड़ तक पहुँच सकती हैं | उड़ीसा के बाद इन मजदूरो के प्रति निर्ममता उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दिखाई , जिसने मध्य प्रदेश – दिल्ली और राजस्थान से लगी सीमा चोकियों से इन प्रवासी मजदूरो के घुसने पर रोक लगा दी | जो थोड़े बहुत रेल की पटरियो के सहारे चल कर उत्तर प्रदेश की सड्को पर आ गए तब उन्हे पुलिस के डाँडो और अपमान को झेलना पड़ा | राजमार्ग पर चलने का उनका अधिकार भी छिन गया | भूखे - प्यासे बच्च और महिलाए तथा बुजुर्गो और बच्चो को कांधे पर लादे दर्जनो या सैकड़ो लोगो की कतार चैनलो में दिखाई गयी | हालांकि सिर्फ एक को छोडकर बाकी सभी चैनलो ने इसे भी एक "”इवैंट "” माना – कितना बाद क्रूर मज़ाक हैं देश के कामगारों के साथ जो "”रोजी -रोटी " के लिए हजारो मील घर - द्वार छोडकर गए | भोपाल की एक महिला राजस्थान के सीमावर्ती ज़िले जैसलमेर से तीन साल की बच्ची को गोद में लेकर और 9 और दस साल के पुत्रो के साथ 11 दिन में देवास पहुंची !! यह हैं हमारी व्यवस्था और हमारा समाज !देवास में महिला को खाना और पानी के साथ विश्राम की व्यसथा हुई |
योगी सरकार और गुजरात सरकार की निर्ममता का उदाहरण एक घटना से मिला जब सूरत से 120 मजदूर तीन बस कर के उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के लिए निकले थे | सभी ने 5 से 6 हजार रुपये प्रति यात्री का भुगतान किया था | गुजरात सरकार ने इन्हे जाने का पत्रक भी दे दिया | पर जब ये पटोल चुकी पहुंचे तब इन्हे बताया गया की उनका आदेश रद्द कर दिया गया हैं ! उन्हे वापस सूरत जाना होगा ! सवाल था ऐसा क्यू हुआ ? जवाब था की सूरत की तीन मिलो के कारीगर इन बसो में थे , उनके चले जाने के बाद मालिक का काम बंद हो जाता ! उधर योगी जी ने भी गाजियाबाद सीमा और नोएडा में किसी को भी घुसने से मना कर दिया था --फिर क्या था जब भी आली गराह - सहारनपुर - कास गंग -एटा या आगे के ज़िलो को जाने के लिए ये मजदूर प्रयास करते तो उन्हे डडा पड़ता | योगी जी ने कोटा से लखपति पिताओ के बालको को वापस बुलाने के लिए बसे भेजी और उनके लिए क्वारंटाइन करने का सुविधाजनक प्रबंध किया | क्योंकि वे रसूख दारो की संतान थे ! कामगार तो होते ही "”खपने "” के लिए |