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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 28, 2018


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लखनऊ का बुढवा मंगल - बजरंगबली और अली को जोड़ता अवध पर्व
माडर्न प्रभाव अब शर्बत और बूंदी का प्रसाद नहीं वरन पिज्जा -बर्गर - चाउमीन और पूड़ी का भंडारा !

क्या कोई आज के सांप्रदायिक माहौल मे विश्वास करेगा की अवध की राजधानी लखनऊ का महत्वपूर्ण पर्व पंचांग के अनुसार जेठ माह के मंगल को बजरंगबली के नाम पर मनाए जाने वाले बुड्वामंगल की शुरुआत नवाब शुजौदौला की हिन्दू पत्नी छत्र कुँवर ,जिनहे इतिहास "”मलिक-- आलिया "”के नाम से जानता है उनके द्वारा शुरू किया गया था !


अवध के नवाबो की अनेक हकीकते ऐसी है ,जिनहे आज के लोग किस्से कहानी के मानिंद समझते है | उनही मे एक है लखनऊ का बुदवा मंगल , | इस की शुरुआत नवाब शुजौदौल्ला की दूसरी पत्नी छात्रकुँवर की मन्नत से शुरू होती है | वे राइकवार ठाकुर घराने से थी - उन्होने मन्नत मांगी की अगर उनका बेटा सुल्तान बना तो वे "”हज़रत अली की याद मे एक बस्ती बसएंगी और अपने इष्ट बजरंगबली का मंदिर बंवाएगी | 1797 मे उनका बेटा यामिनुडौला सुल्तान बना |जिसे इतिहास सादत अली खान दोयम के नाम से जानता है बेगम ने अपने माने हुए वादे के अनुसार लखनऊ के किनारे "”अलीगंज नामक बस्ती बसाई | और उसी के मध्य हनुमान जी जिनहे अवध मे बजरंगबली ही कहा जाता है उनका एक मंदिर बनवाया | इस मंदिर के ऊपर चाँद तारा लग वाया गया 1801 मे मोहर्रम के माह मे कर्बला की याद मे नवाबीन कर्बला के पास ही शर्बत और तबरुक लोगो मे वितरित किया गया था | वह जेठ का मंगलवार था | यह भी कहा जाता है की मलके आलिया सआदत अली खान को '''मंगलू '' बुलाती थी --क्योंकि उनका जनम मंगलवार को हुआ था |

अली और बजरंगबली की समानता का एक कारण था | इस्लाम मे हज़रत अली को शारीरिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है , जैसे पौराणिक कथाओ मे पवनपुत्र - हनुमान -बजरंगबली को माना जाता है | हिन्दू रानी ने इस प्रकार दोनों ही धर्मो को सम्मान देने का प्रयाश किया | इतिहास गवाह है की अवध मे हिन्दू -मुस्लिम झगड़े नहीं हुए | यानहा तक की जब 1949 मे फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी केकेके नय्यर की लापरवाही से मस्जिद को तोड़ कर अखंड रामायण शुरू करा दी गयी | तब भी कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ | जब मस्जिद गिराई गयी तब भी लखनऊ औयर फ़ैज़ाबाद शांत ही रहे |

दो सौ साल चले आ रहे इस लखनवी पर्व मे अब बहुत बदलाव हो गया है | पहले अपनी कामना पूर्ति के लिए लोग तपती धूप मे नगे बदन लेट कर मंदिर तक की दूरी तय की जाती थी | यह कठिन तपस्या उन श्र्धलुओ को कितना संतोष अथवा फल देती थी -इसके बहुत से किस्से लखनऊ मे सुने जा सकते है | परंतु दो सौ साल से चली आ रही इस परंपरा मे विगत कुच्छ वर्षो से धार्मिक श्र्धा और आस्था का स्थान आज विज्ञापन और शो बाज़ी ने ले लिया है | जैसे भोपाल मे रंगपंचमी और पूना मे गणेश चतुर्थी का स्थानीय अवकाश होता है , वैसे ही शामे अवध की इस नागरी मे भी छुट्टी रहती है |
अपनी यात्रा के दौरान मैंने देखा की समाचार पात्रो मे तथा देवरो मे चिपके इश्तिहारों मे सूचना दी गयी थी की अबकी मंगल को फलां स्थान पर भंडारा है -जिसमे प्रसाद के रूप मे पूड़ी सब्जी के साथ , कलाकंद मिलेगा या आइस्क्रीम कोण दी जाएगी | गणेशगंज और फतेहगंज के गल्ला व्यापारियो ने इस अवसर पर लोगो को बर्गर और पिज्जा बांटने का ऐलान किया | अमीनबाद के व्यापारियो ने कचौड़ी और मटर के साथ कोल्ड ड्रिंक बांटने का इंतज़ाम किया था | जिन बजरंगबली को बताशे और लड्डू का प्रसाद चदाए जाने की परंपरा रही हो ---- वे अमर हनुमान जी अपने भक्तो के इस आधुनिक प्रसाद से कितना प्रसन्न होंगे या अप्रसन्न होगे यह तो आने वाला समय बताएगा | वैसे प्रति वर्ष जेठ के चारो मंगल को उत्सव समान माहौल रहता है |परंतु इस वर्ष इस उत्साह मे दो गुनी व्रधी हुई है |कारण इस वर्ष "”अधिक मास "” होने से दो जेठ माह हो गए है | इस लिए आठ मंगलवार को भंडारे और मंदिर दर्शन होंगे |


प्रसाद चड़ाने की अवधारणा मे अधिकतर लड्डू और मोदक तथा बूंदी मिठाई आदि ही मंदिरो मे चड़ाई जाती है | परंतु बजरंगबली के भक्तो द्वारा आम जनता को को जो प्रसाद वितरित किया जाता है ---- उसके लिए कोई बाध्यता नहीं है | मैंने प्रबंध समिति के एक सदस्य से इस बारे मे पूच्छा तो उनका कहना था ----हम बजरंगबली की शान मे लोगो को शर्बत आदि पीला रहे है |जो समितीय सक्छ्म है वे जनता की मांग पर उनके लिए खाने का प्रबंध कर रही है | कितने भंडारे शहर भर लगे होंगे उन्होने कहा आज तक किसी ने गिना नहीं ,जिसकी जनहा श्रद्धा हुई ----उसने लोगो को खिलाया |इस भंडारे मे सिख और मुस्लिम व्यापारी भी लोगो को डिब्बे बाँट रहे थे | कनही कोई धर्म या जाति का कोई झगड़ा नहीं | यही है अवध की गंगा - जमुनी तहजीब जिसकी मिसाल आज भी लखनऊ मे देखने को मिलती है |

May 16, 2018


शीर्षक सुझाव :- विद्यामठ से मंदिर बचाओ अभियानम की "”काशी यात्रा प्रारम्भ "” 29 मई तक चलने वाली यात्रा दशासमेव घाट से मानिकरणिका तक
मंदिरो को हटाने के वीरुध शंखनाद "काशी को काशी ही रहने दो की मांग |

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चौका घाट --लहरतारा ओवरब्रिज दुर्घटना क्या दैवी संकेत है --काशी को क्योटो बनाने वालो को !! अठारह लोगो की बलि के बाद भी क्या वाराणसी स्मार्ट सिटी प्रबंधन द्वरा विश्वनाथ मंदिर के पास के दर्जनो मंदिरो को हटाने और सैकड़ो शिवलिंगों को ""उखाड़ "" देने और चार लाख लोगो को विस्थापित करने के बर्बर योजना पर पुनः विचार करेंगे ? ____________________________________________________________________________________________________________________________________

मंगलवार 15 मई को चौकाघाट से लहरतारा के मार्ग पर बनने वाले ओवेरब्रिज के एक खंड के धराशायी होने से 20 लोगो की मौत -कया योगी - मोदी सरकार को दैवी चेतावनी है ? गौर तलब है की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल मे ओवरब्रिज के गिरने को "” एक्ट ऑफ गाड' बताते हुए ममता बनरजी की सरकार के वीरुध दैवी संकेत कहा था | आज वही स्थिति उनके खुद के निर्वाचन छेत्र मे हुई है |
गौर तलब है की विद्यामठ के स्वामी अविमुक्तनन्द की अगुवाई मे एक अराजनीतिक अभियानम विगत दस मई को अस्सी संगम से शुरू हुई थी | इस आयोजन मे काशी विद्वत समाज और -विदुषी समाज तथा गंगा सेवा के निषाद संगठन तथा घाट के पडा और पुजारी के साथ आस्थवन महिलाए पुरुषो की बड़ी संख्या मे उपस्थित अपेछित है | 16 मई से से 29 मई तक चलने वाली इस काशी यात्रा का उद्देस्य जन्मानस को "”स्मार्ट सिटी प्रबंधन द्वरा उनके धार्मिक स्थलो और विग्रहो के अपमान के प्रति जागरूक करना है "”| इसके पूर्व भी महिलाओ ने सूप बजाकर स्मार्ट सिटी द्वरा मंदिरो को हटाने का विरोध किया गया था | अब इस आंदोलन का प्रभाव गंगा सेवा के नाविको तक पहुँच गया है | उनके संगठन ने भी विद्यामठ की काशी यात्रा मे शामिल होने का फैसला किया है | इस संगठन के मल्लाह ही यात्रियो और पर्यटको को गंगा की सैर कराते है | काशी से सीधे रामनगर के लिए भी बस नाव ही सबसे सस्ता जरिया है |

“”अर्पण और तर्पण के लिए भी यही नाविक एक मात्र आसरा है | इनके अभियानम मे शामिल होने से पर्यटको और तीर्थ यात्रियो को परेशानी होने की उम्मीद है | काशी के विद्यरथी और महिला संगठन ने भी धरोहर बचाओ की इस मुहिम मे भाग लेने की आशा है | विश्वनाथ मंदिर से लेकर मानिकरणिका घाट तक प्र्स्तवित "”पाथ वे " के रास्ते मे दर्जनो छोटे मंदिरो को हटे जाना है | अभी तक सूत्रो के अनुसार दर्जनो मंदिरो की विग्रह को हटा कर -उन्हे गिरा दिया गया है | इस अभियानम से राजनीतिक दलो से जुड़े लोगो को दूर रखा गया है | जिस से इस सार्वजनिक प्रयास की शुचिता की सराहना हो रही है |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय छेत्र होने के कारण "”प्राचीन नगरी को आधुनिक कलेवर देने की ज़िद्द मे इस स्थान के धार्मिक और सामाजिक महता को दरकिनार कर दिया गया है| जिस स्थान का चार हज़ार वर्ष से वेदिक धर्म मे और विशेस्कर शैव मत के लिए तो अत्यंत ही महत्वपूर्ण है | करोड़ो लोगो की आस्था यानहा के मंदिरो और घाटो से जुड़ी हुई है | यह हक़ीक़त है की बाबा विश्वनाथ के दर्शनों के लिए बड़े -बड़े लोगो को भी पैदल ही चल के जाना होता है , यानहा तक की काशी नरेश भी जब पारंपरिक अवसरो पर मंदिर आते है तब वे भी पैदल आते है |
यह भी सही है की गलियो मे स्थित इस ज्योतिर्लिंग की राह किसी माल की फर्श की भांति साफ या चमकीली नहीं है ---परंतु करोड़ो हिन्दुओ की हजारो वर्ष की आस्था ने इस मार्ग को जीवंत बनये रखा है | परंतु यानहा के सांसद की निगाह मे इस नगरी को जापान के क्योटो नगर की भांति साफ और चौड़ी सड्को वाला हो | परंतु वे भूल जाते है की जापान मे सम्राट की परंपरा उसे "”दैविक अवतार का स्थान देती है "” | दूसरे विश्वयुद्ध के पूर्व सम्राट को सूर्य पुत्र माना जाता है | युद्ध मे पराजय के बाद अमेरिकन जनरल डगलस मैकार्थार ने इस विश्वास को तोड़ने के लिए --सम्राट को सम्पूर्ण जापान का दौरा करने को कहा था | इस से उनकी दैवी अवतार की छ्वी खतम की गयी | वे जापान के राजधर्म शिटो के भी मुखिया है | क्योटो सदियो से इसी वंश के सम्राटों के लिए धरम नगरी रहा है |

भारत मे धर्म की आस्था व्यक्ति से अधिक मूर्तियो और स्थानो मे निहित है – जैसे चार धाम - बारह ज्यूतेर्लिंग - 72 देवी स्थल आदि | काशी के इतिहास के बारे मे खुद स्मार्ट सिटी के प्रबन्धको ने अपनी रिपोर्ट मे स्वीकार किया है की इसनगर का चार हज़ार साल का लिखित इतिहास है | जो लिपि बद्ध है और सुरछित है | विश्व मे इतनी प्राचीन नागरी जो आज भी "”जीवंत हो "” दूसरी नहीं है | हजारो सालो मे यानहा धरम और परंपराए विकसित हुई है , जो कुछ भी इतिहास मे निर्माण हुआ "”वह धरोहर ही है | उसे सम्हालना और बनाए रखना हमारा और सरकार का परम धर्म है |

May 13, 2018


चार हज़ार साल प्राचीन काशी को क्योटो बनाने की सनक शिव के त्रिशूल पर टिकी --विश्वनाथ की नगरी के एक तिहाई बाशिंदों के घर और दुकान को "”अतिक्रमण "” घोषित कर दिया है ! यहा "सौंदर्यीकरण और सहज और सरल -सुविधापूर्ण "” शहर बनाए जाने के विरोध मे मंदिर - मठ - धरमशाला और अनेक संरक्षित धरोहर को धराशायी किए जाने के विरोध मे 16 मई से काशी बचाओ आन्दोलनम की हुंकार --विद्या मठके स्वामी अविमुक्तनन्द
विद्वत सभा और विदुषी सभा के साथ वारिष्ठ नागरिकों का समर्थन









विश्व के इतिहास मे ऐसा पहली बार ही हो रहा होगा जब - सरकार चार हज़ार साल के ऐतिहासिक नगर के पारंपरिक स्वरूप को बादल कर "”उसे चंडीगढ़ बनाने के लिए अरबों रुपए ठेकेदारो और ई गवर्नेंस और डिजिटल प्रबंधन के नाम पर बड़ी - बड़ी कंपनियो को देने की योजना बनाए |
इस मुहिम को केंद्र सरकार की एजेंसियो ने बहुत ही लुभावने नारे गढे है | जैसे '''सुरम्य काशी "” समुन्नत काशी "”और निर्मल काशी "”! मंदिरो और घाटो के लिए विश्व प्रसिद्ध काशी को अब "”योगी और मोदी "” की पहल से नया "””मेकअप "” करने की यह कोशिस , 4.37 लाख लोगो को शरणार्थी बना देगी |

दुनिया मे इतना प्राचीन नगर जिसका लिपिबद्ध इतिहास हो -ऐसा दूसरा कोई नहीं है ,, इतने पुराने नगर – पुरातत्ववेताओ अथवा इतिहासकारो केलिए "खन्डहर या भग्नाव्शेस '' के रूप मे अध्ययन का विषय है | परंतु इतना प्राचीन होने के बाद साहित्य और संगीत तथा धरम का "”प्रमुख पीठ "” रहा हो ---ऐसा कोई नगर या स्थान दूसरा नहीं है | आज जब देश और जातिया अपने "” गौरव शाली अतीत "” की खोज के लिए अभियान चला रही हो तब हजारो सालो से एक ---फलते फूलते शहर को "”आधुनिक सिटि "” बनाने की मुहिम तो तुगलकी ही कही जाएगी |
संस्कृत और हिन्दी भाषा का गढ सुर और संगीत का सदियो से केंद्र रहा यह नगर साहित्यकारों के लिए "बनारस ' रहा है | भारतेन्दु युग से आधुनिक काल के काशीनाथ सिंह तक ने इस नगर के लिए कविता गायी है | यहा की पुरातनता का ही प्रभाव है की अधिकान्स "”बनारसी लोग सहज संतुष्ट जीवन शैली जीने के आदी है | लाल गमच्छा और बनारसी पान आज भी इस नगर की पहचान है |
जिस नगरी की धरम -साहित्य - संगीत आदि कलाओ का केंद्र हजारो साल से रही हो उसके --स्मारकों - को धरोहर मानकर जीर्णोद्धार "””स्मार्ट सिटी योजना के तहत अथवा स्वच्छ अभियान के अंतर्गत नहीं किया जाता ,, वरन उसे पुरातत्व मंत्रालय के अधीन "” सहेजा जाता है "” बुल्ल्डोजर से धराशायी नहीं किया जाता "” |

वेनिस मे पर्यावरण परिवर्तन के कारण वनहा की नहरों मे पानी मे कूड़ा अधिक एकत्र हो गया तब वनहा की सरकार ने उसे आर्किटेक्टो को यह काम नहीं दिया | वरन विशेसज्ञों की टीम ने सफाई और मरम्मत का काम कराया था | उन्होने सदियो की अपनी धरोहर को बनाए रखने के लिए भरपूर प्रयास किया ! वेनिस भी बनारस की भांति "”जीवंत शहर है "” | फिर क्यू 4000 एकड मे बसी इस पुरातन नगरी को "” आधुनिकता के खांचे मे फिट करने का प्रयास सरकार कर रही है ?” विश्व मे कनही भी इतिहास से जुड़ी धरोहरों को नुकसान पहुंचाया जाता है -----तब वह खबर बन जाती है | बामीयन मे जब तालिबन ने बुद्ध की मूर्ति को तोड़ा तब सारे विश्व ने आतंकवादियो की भर्त्स्ना की थी ! इस चार हजार साल पुरानी नगरी को जिसके लिपिब्ध इतिहास को स्मार्ट सिटी योजना के "”करता - धर्ता " भी मंजूर करते है --फिर इसे क्यू कंक्रीट का जंगल बनाने की तैयारी मे है ? ई गवेर्नेंस और डिजिटल प्रबंधन से विश्वनाथ मंदिर और गंगा के घाटो का "मूल स्वरूप बदलने से बेहतर होता की इन स्थानो पर सफाई और सुरक्षा का प्रबंध किया जाता ! “ मंदिर के चारो ओर एक किलोमीटर के परकोटे मे रहने वाले पडा - पुजारी और उनके मंदिरो को सहेजा जाता ,, परंतु सौंदर्यीकरण के नाम पर धरती को "सपाट किया जा रहा है "”! एक अनुमान के अनुसार छोटे -छोटे लगभग साथ से अधिक मंदिर हटा दिये गए है ! साथ ही जगह जगह पर सैकड़ो शिवलिंग को बेरहमी से एक स्थान पर पटक दिया -----कहते है की आस्था हो तो देवता नहीं तो पत्थर -वही हो रहा है , जो लाखो हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक है -उन्हे प्रशासन बस पाथर ही मानता है !

राजनेताओ की धार्मिकता इस "आंदोनालम " से स्पष्ट हो गयी है | जबकि सभी दलो के भारतीय जनता पार्टी - समाजवादी पार्टी और काँग्रेस के नेता स्थानीय लोगो की बरबादी को देख कर भी मौन है | विकास और सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखो लोगो को जिस भांति उनके घरो और दूकानों तथा कारखानो से " बेदखल किया जा रहा है "” वह दिल्ली को बसाने के समय किसानो से ली गयी भूमि का मुआवजा भी सभी को साठ सालो मे नहीं मिल पाया | कुछ वैसा ही योगी और मोदी की सरकार मे भी होने की आशंका है ! इसीलिए राजनेताओ की आम लोगो की समस्या से बेरुखी के कारण ही आंदोनालम के लोगो ने किसी भी राज नेता को अपने अभियान मे शामिल नहीं किया है |

औरंगाबाद के कमलापति त्रिपाठी जी और महामना मदन मोहन मालवीय तथा सम्पूर्णानन्द ऐसे नेताओ की धरती आज इतने बड़े अन्याया को सहने को मजबूर है | जिन गलियो मे काशी बसती हो वनहा अंडर ग्राउंड सिवेज सिस्टम डालने के लिए की जानी वाली खुदाई अगल -बगल के मकानो की सदियो पुरानी नीव को ही दरका देगी | इसी प्रकार मानिकरणिका घाट मे विद्युत शवदाह गृह की योजना सरहनीय है परंतु लोगो की आस्था पर चोट भी है | इस तीर्थ स्थान का स्वरूप बदलने की कोशिस क्या रंग लाएगी -यह तो भविष्य ही बताएगा ?

जनहा गलियो से आवागमन हो रहा है -वनहा मकान को चौड़ा कर किसके लिए सुविधा बनाई जा रही है ? क्या दर्शनार्थी ही ? मिश्र के पिरामिडो मे सड़क आदि कम है -फिर भी वनहा टूरिस्टो का तांता लगा रहता है | वे उस काल की इमारत को देखने आते है , वे वनहा सुविधा के लिए नहीं जाते है |

एक बात बहुत हंसी की है की "” एरिया बेसड डेव्लपमेंट की बात करने वाले जब सदियो पुरानी इमारतों को "” अतिक्रमण "” बताते है !! अरे भाई जब "सिटी प्लान 'का कानून बना उससे बहुत पहले से ये भवन और मंदिर बने है !! जब कानून ही बाद मे बना तब क्या "”भूतलक्षी प्रभाव से इन इमारतों को अतिक्रमण घोसीत किया जाएगा ?” जनहा तक मुझे मालूम है की टाउन अँड कंट्री प्लाननिग के कानून के लागू होने से पहले के कब्ज़ो को "'अतिक्रमण नहीं बता सकते "” |उन्हे हटाने के लिए वाजिब मुआवजा देना होता है | फिर यानहा तो मामला कुछ लोगो या सैकड़ो का नहीं वरन
4लाख लोगो का है ! तो क्या इतनी बड़ी आबादी को सरदार सरोवर बांध की भांति विस्थापित कर दिया जाएगा ??

May 7, 2018


मोदी सरकार के राज मे एक खास बात है की --- नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसले बड़े जोश - -खरोश और विज्ञापनबाजी के साथ शुरू हुए ,, परंतु रोज बरोज उनमे संशोधन करके इतना बदल दिया की नाम के साथ लगी मुसीबत को छोडकर ----बाक़ी सब बदल गया----- और जवाब यह की ---- आम जनता की कठिनाइयो को देख कर ऐसा किया गया है !!!बनारस सौंदर्यीकरण भी ऐसी ही योजना सिद्ध हुई !!मंदिरो को तोड़ने का बाद अब उनके '''पुनर्निर्माण '' को पुनरुधार का नाम दिया गया !!!


बाबा विश्वनाथ की तीन लोक से न्यारी ,नगरी काशी को "”क्योटो '' जैसा बनाने की घोसणा,, --को पूरा करने की मुहिम मे --- ,अनादिकाल की इस नगरी को 21वी सदी के पैमानो मे ढालने की बेरहम कोशिस की गयी | दो माह तक इस मुहिम के कारण , विश्वनाथ मंदिर के आस पास के भवनो के धराशायी होने और इनके निवासियों के शरणार्थी होने की आशंका हो गयी थी | अनेक महत्वपूर्ण स्थान और छोटे - बड़े मंदिर इस '''सनक के चलते ज़मींदोज़ कर दिये गए |स्थानीय लोगो के विरोध और अंतराष्ट्रिय संगठन "””युनेस्को "” के दबाव मे भारत सरकार को इस "” सौंदर्यीकरण "' की योजना को "” संशोधित '' करना पड़ा !
शहर को खूबसूरत बनाने सनक केंद्र सरकार को तब आई जब जापान के प्रधान मंत्री शिंजों आबे को को वे वाराणसी के घाटो की सुंदरता के साथ अर्वाचीन विश्वनाथ मंदिर के भी दर्शन कराना चाहते थे | परंतु संकरी -संकरी गलियो मे दो प्रधान मंत्रियो की "” सुरक्षा बंदोबस्त का ताम -झाम "” हो पाना असंभव था | विदेशी मेहमानो को अपना पुरातत्व वैभव दिखने की चाह मी सबसे बड़ा अड़ंगा काशी की इन "”डगरियो'' मे ही हजारो साल से भक्त - यात्री और व्यापारी विचरते रहे है | मध्य काल मे भी नरेशो के आवागमन के विवरण मिलते है | परंतु तब इन राजा -महाराजाओ की सुरक्षा मे सैनिक हुआ करते थे | परंतु आज कल के सुरक्षा कर्मी अपने भारी - भरकम बंदोबस्त के साथ मशीनों को लेकर चलते है | जिनके आकार - प्रकार को इन गलियो मे शायद सरकना भी मुश्किल हो जाये | इसके अलावा नगर का सामान्य जन - जीवन भी मौजूदा सुरक्षा "”प्रोटोकाल "” के तहत "” चल नहीं पाएगा "” क्योंकि छतो से गलियो मे झाक पाना मुश्किल है |

केंद्र की इस योजना को आदित्यनाथ सरकार मोदी जी की ख़्वाहिस को प्राण – पन से पूरा करने के लिए '''' बुलडोजर भी चलाने के लिए तैयार थी ''' परंतु काशी की पहचान को बदल कर वाराणसी करने की इस कोशिस मे स्थानीय जनो को कष्ट और धरम भीरु जनता की आस्था को चोट लग रही थी ! जिस प्रकार जिला प्रशासन से भारत माता के मंदिर को गिराया तथा अनेक छोटे बड़े मंदिरो को ढहाया --उससे लोगो के मन धीरे -धीरे रोष उत्पन्न हो रहा था | जो लोकसभा के चुनाव मे मोदी जी को "””भारी पड़ने वाला था "””| स्थानीय निवासियों के अलावा यानहा आने वालो के माध्यम से प्रदेश के मध्य और पूरब छेत्र तक ''' बाबा की नगरी को तोड़ने -और मंदिरो की मूर्ति की अवमानना करने की खबर वैसे ही फ़ेल रही थी ----जैसी आपातकाल के जमाने नसबंदी की खबर ''''मुंह -दर -मुंह सैकड़ो मील का सफर एक रात मे तय कर लेती थी | “” इन सब तोड़ -फोड़ के लिए जिला प्रशासन --आदित्यनाथ और मोदी जी को जिम्मेदार मानते है | इस स्थिति मे प्रदेश और केंद्र सरकार के खिलाफ लोगो मे गुस्सा उमड़ रहा था | जो राजनीतिक रूप से घातक हो सकता है |

अभी तक देश और प्रदेश की सरकार को मुसलिमविरोधी माना जाता है , परंतु मंदिर को तोड़ने और मूर्तियो और सैकड़ो शिवलिंगों को बिखरे हुए देख कर दूर से आने वाले यात्रियो को ठेस पाहुचती थी | मानिकरणिका घाट पर अपने परिजनो को ,डोम राजा से खरीदी गयी "”अग्नि से "” अंतिम विदायी देने वालो को उनकी " श्रद्धा "” पर वज्रपात लग रहा है ! हिन्दू धर्मावलंबियो मे धीरे -धीरे रिसने वाला यह रोष प्र्शसनिक रूप से और राजनीतिक रूप से घातक सीध हो रहा था | इसलिए ज़िला प्रशासन ने 36 धरोहरों और मंदिरो को तोड़ने के बजाय उन्हे अब मूल स्वरूप मे संरक्षित किया जाएगा |

अब शासन गंगा को विश्वनाथ मंदिर तक लाने की परियोजना बना रहा है | साथ ही जिन विनायक मंदिरो को तोड़ दिया गया है उनका पुनर्निर्माण कराये जाने का आश्वासन निवासियों को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट योगेस्वर राम मिश्रा ने दिया | उन्होने कहा विश्वनाथ कारीडोर बनाने मे सभी मंदिरो के न्यासियों और महंत से सलाह ली जाएगी |

May 6, 2018


चुनाव प्रचार और व्यापारिक विज्ञापन बाज़ी मे अब इतना ही अंतर है
की चुनाव मे बोले गए या कहे गए ----असत्य और आधारहीन बाते और दावो
के लिए ठगा गया मतदाता -किसी भी न्यायालय मे न्याय नहीं पा सकता ,,
जबकि बाजारू चीजों के विज्ञापन के झूठ को "”उपभोक्ता फोरम "” मे चुनौती
दी जा सकती है !! क्या मतदाता इतना "असहाय '' है की वह उपभोक्ता से भी
गया बिता है !! उसे चुनाव प्रचार के सुनहरे वादो
की सत्यता का परखने का कोई ठौर --ठिकाना नहीं !!!!!!!



विगत 20 वर्षो से लोकसभा के चुनावो के प्रचार मे ऐसे - ऐसे वादे जनता --मतदाता से किए जाते है , जो उसकी कल्पना से भी बाहर होते है | परंतु चुनाव जीतने के बाद ----वो वादे हक़ीक़त --यथार्थ की ज़मीन पर कभी नहीं उतरते !!
और मतदाता जो नेताओ के चुनावी वादो को "””सच मानकर "” अपना मत उनके सुझाए गए चुनाव चिन्ह के सामने ई वी एम मशीन के बटन को दबा कर दे देता है ! पर पाँच मिनट की उस कवायद का फल उस राजनीतिक पार्टी को तो एक प्रतिनिधि के रूप मे मिल जाता है <<पर उससे किए हुए भासण के वादे मानो धार्मिक प्रवचनों की तरह हो गए -------जिनका कोई "”प्रतिफल नहीं होता ---क्योंकि वह किरतनिया द्वारा कहा गया सब कुछ भविष्य मे अथवा अगले जनम मे मिलेगा || जिसे अभी तक किसी ने नहीं देखा |


इस हालत मे भारतवर्ष का गणतन्त्र हर बार कुछ कुछ नए वादो और नए सपनों के साथ समय के पाठ पर बाद जाता है | अभी कर्नाटक के विधान सभा चुनावो मे काँग्रेस और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यो द्वारा जो -जो भी कहा जा रहा है वह तो वनहा के नागरिकों को परमसुखी बनाने के करार जैसा है ! परंतु क्या वास्तविकता मे ऐसा है ???
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने तूम्कुर की सभा मे राहुल गांधी को पंद्रह मिनट बिना कागज बोलने की चुनौती दी -----वनही उन्होने पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा के लिए पुत्रवत व्यवहार का वाद करते हुए यानहा तक कहा की "””वे अपना समय जनहा कनही भी बिताना चाहे वनहा उनके रहने का प्रबंध कार्वा देंगे – वे चाहे तो किसी बंगले अथवा फार्म हाउस या आप मेरे साथ रहना चाहे तो मई एक पुत्र की भांति आप की सेवा करूंगा "””” कितना बाद सम्मान और आदर !!! पर्ंतु दो दिन बाद ही मोदी जी ने अपना 48 घंटे पूर्व दिया हुआ प्रस्ताव रद्द कर दिया !!!

उनपर आरोप लगाया की वे चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी के आधार मे सेंध लगा रहे है | देवगौड़ा जी ने भी मोदी जी को धन्यवाद कहते हुए कहा की वे अपने स्थान पर संतुष्ट है | अब दो दिनो तक चले इस "” प्रणय प्रस्ताव "” की परिनिति
ने राजनेताओ के कथन और करनी को उजागर कर दिया |

इसी प्रकार इनके दावो के आंकड़ो की हक़ीक़त की जांच भी "”नहीं हो सकती "”” क्योंकि दावा करने वालो ने मतदाता के सर से बहुत ऊंचे से यह बात कही है "” अब निरीह मतदाता उसको नाही चुनौती दे सकता है ---और ना ही इसे पालन करवाने का कोई उपाय उसके पास है ! अगर आपके पास कोई तरकीब हो तो मान्यवर उसे बता दीजिये !

सवा सौ करोड़ के लोकतन्त्र का प्रधान मंत्री चुनाव के दौरान अपने मुक़ाबिल से इस तरह की घर और परिवार की बात कहे --वह भी मात्र 48 घंटे के लिए !!!!
फिर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की "” अंतकछारी"”” का ज़िक्र भी जरूरी है | गांधी परिवार संघ और बीजेपी के लिए चांदमारी का ठिकाना है !! परंतु अब वनहा से भी वार को पलटा दिया जाता है ----अपनी सादगी और उनके प्रति सम्मान से !! राहुल का कहना की आप जो भी कुछ कहे मै आप पर हमला नहीं करूंगा ??? क्या यह शराफत है अथवा परंपरा ?? जिस तरीके से अभिनय की मुद्राओ मे मोदी जी जनता को संभोधित करते है ----- वह लोगो को कुछ और भी याद दिला देती है |
लगता है आने वाला कुछ समय भारत वर्ष मे धर्म के नाम पर "”पाखंड "” और गेरुवा वस्त्र धारियो के दखलंदाज़ी के रहेंगे | जैसे यूरोप के इतिहास मे 1500 ईस्वी तक था | लेकिन अंत मे उन चोगाधारियों को दस वर्ग मील के "” धार्मिक साम्राज्य वैटिकन सिटि "”” मे समेट दिया गया | इस नज़र से इन बाबाओ और मठो तथा मंदिरो का राजनीति मे दखलंदाजी - अब खतम ही होगा !

क्या चुनाव कमीशन कोई ऐसी " एडवाइजरी"” जारी कर सकता है की जिसमे क्या कर सकते है "नेता या राजनीतिक पार्टिया ''' यह लिखा हो | क्योंकि क्या "””नहीं करना चाहिए "” इसकी लिस्ट तो है | परंतु मतदाता से वादे करने और सुनहरा भविष्य दिखाने पर ---- आर्थिक और कानूनी सीमाओ की लगाम हो " !

आखिर मे एक ही लाइन मतदाता के लिए उम्मीद पर दुनिया कायम है !!!