लोकसभा
"चुनाव
"या
"प्रतियोगिता"
अथवा
धर्म युद्ध ?
भोपाल
संसदीय छेत्र से भारतीय जनता
पार्टी की उम्मीदवार जिनहे
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
ने नामित किया है ---उन्होने
पार्टी द्वरा उम्मीदवार बनाए
जाने के साथ ही एक पोस्टर जारी
किया हैं |
जिस
मैं उन्होने इस चुनाव को
धर्मयुद्ध घोषित किया हैं |
एवं
अपने को देशभक्त उम्मीदवार
बताया हैं !
जनहा
ताल इन पंक्तियो को लिखने वाले
की जानकारी हैं ----
किसी
भी अन्य बीजेपी उम्मीदवार ने
अपने प्रचार मैं '’देशभक्त'’
शब्द
का प्रयोग नहीं किया है |
आखिर
क्यो इन गेरुआ वस्त्र धारी
महिला को यह शब्द लिखना पड़ा
?
क्या
यह अपराधबोध माले गाव विस्फोट
मैं अभियुक्त होने के कारण
हैं ?
हालांकि
वे प्रारम्भिक अदालत मैं अपने
सहयोगीयो के साथ रिहा हो चुकी
हैं !
रही
बात धर्म युद्ध की तो वे कारण
क्या हैं जिनके कारण "””वेदिक
धर्म की सनातन परंपरा "”
खतरे
मैं हैं ??
अथवा
उनका तथाकथित हिन्दू धर्म
संकट मैं हैं ?
जिसे
वे मतदान द्वारा हुए चुनाव
से उबार पाएँगी ?
इस
देश मैं 800
साल
विदेशियों का शासन रहा ----
इस्लाम
और ईसाई शासक थे ,
परंतु
तब वेदिक धर्म खतरे मैं नहीं
आया !
विगत
70
वर्षो
मैं भी गणतांत्रिक चुनाव
राजनीतिक मुद्दो पर लड़े गए
---परंतु
कभी "”धर्म
खतरे मैं नहीं आ रही हैं ?
या
"”
तब
2019
मैं
कैसे संकट मैं आया ?
हाँ
सांपदायिक दंगे हुए – जिन मैं
वेदिक धर्मी और इस्लाम के
बंदे शामिल थे ,
परंतु
बात दोनों तरफ बराबर थी |
धार्मिक
आधार पर ,
संविधान
और कानून की नज़र मैं सनातनी
-
इस्लाम
और सीख ईसाई -पारसी
और यहूदी सभी कानून की नजरों
मई बराबर हैं |
तब
किसके वीरुध प्रज्ञा धर्म
युद्ध छेड़ रही हैं ?
कनही
यह सनातन धर्म की विभिन्न
शाखाओ जैसे शाक्त [
शक्ति
उपासक या देवी पूजक }
शैव
{शिव
या लिक्ग के उपासक }
अथवा
वैष्णव मत की अनेक शाखाओ ,
जैसे
अवतारो की आराधना राम या कृष्ण
उपासको के वीरुध }
आखिर
उन्हे बताना होगा मतदाताओ की
कौन है जो सनातन धर्म के वीरुध
हैं ?
परंतु
अपने राजनैतिक विरोधी के
खिलाफ "””
धर्म
युद्ध की बात करना "”
तो
उन्हे ही '’असत्यवादी
'’’
साबित
करेगा |
यह
सार्वजनिक सत्या हैं की उनके
विरोध मैं काँग्रेस प्रत्याशी
दिग्विजय सिंह ---भगवा
धारी नहीं हैं |
परंतु
उनकी धार्मिक आस्था उनकी छ
माह चली नर्मदा की पद यात्रा
उनकी सनातन धर्म मैं आस्था
को साबित करता हैं |
बीजेपी
के सांसद प्रहलाद पटेल ने भी
नर्मदा की पद यात्रा की हैं
|
कहने
को मुख्य मंत्री रहे शिवराज
सिंह ने भी '’’किश्तों
-
किश्तों
'’
मैं
की हैं |
क्या
ऐसी कोई परिक्रमा प्रज्ञा
भारती जी ने की हैं ?
सिर्फ
गेरुआ वस्त्र पहन लेने से कोई
वेदिक धर्म का ज्ञाता नहीं
हो जाता ,
जैसे
सफ़ेद कोट पहनने से कोई डाक्टर
या काला कोट पहनने से वकील
नहीं हो जाता |
वस्त्र
के नीचे उसका ज्ञान या आस्था
ही उसके परिधान को सम्मान
दिलाती हैं |
वरना
परिधान तो बजाजे की दुकान मैं
टंगे रहते हैं |
लोकसभा
के चुनाव मैं भारत के सभी वयस्क
नागरिक "”मतदाता
"”
होते
हैं |
कोई
लिंग भेद नहीं कोई जातिभेद
नहीं और निश्चय ही कोई धरम भेद
उनके मतदाता अथवा प्रत्याशी
बनने मैं इन सब आधारो का कोई
महत्व नहीं हैं |
परंतु
भारतीय जनता पार्टी ने शायद
इसे अपने अस्तित्व की लड़ाई
मान लिया हैं ----इसीलिए
भोपाल की लोकसभा की प्रत्याशी
प्रज्ञा भारती ने अपने चुनाव
को "”धरम
युद्ध "”
का
नारा दिया हैं !
उधर
उनकी राजनीतिक पार्टी के
अध्यक्ष अमित शाह ने तो इसे
"”
पानीपत
की तीसरी लड़ाई "”
घोषित
किया हैं !
अब
इन महानुभावों को इन शब्दो
के सही अर्थ या तो मालूम नहीं
----अथवा
अज्ञानतावश वे इन शब्दो का
प्रयोग कर रहे हैं |
महातमा
बुद्ध के समय भी उत्तर भारत
मैं जनपद और महा जनपद हुआ
करते थे --जिनकी
शासन व्यवास्था "”
गणतान्त्रिक
"”
थी
| दो
सदन हुआ करते थे |
एक
व्यसाय के मुखियाओ का दूसरा
चयनित प्र्टिनिधियों का |
आमात्य
और सेनापति का भी चुनाव होता
था |
नागरिकों
की राय द्वरा अधिकारियों की
नियुक्ति का इतिहास इतना
पुराना हैं |
चुनाव
को हम प्रतियोगिता भी मान सकते
हैं -
क्योंकि
आखिर जो भी नियमो के अधीन
उत्क्रष्ट सीध होगा वही विजयी
होगा |
नियमो
की अवहेलना या उल्ल्ङ्घन
दंडनीय हमेशा हुआ करते हैं |
जैसा
की केंद्रीय चुनाव आयोग ने
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के
बाद फैसले लेने शुरू किए |
उपरोक्त
दोनों ही तरीको मैं जय -
पराजय
मैं दोनों ही पक्ष संतुस्त
होते थे |
क्योंकि
नियम सभी प्रतिभागियो के लिए
एक जैसे होते थे |
अब
जिस धर्म युद्ध अथवा पानीपत
की तीसरी लड़ाई {{
जो
कभी हुई ही नहीं }}
मैं
विजेता
और विजित यानि की पराजित होते
हैं |
कहते
हैं ना प्यार और युद्ध मैं सभी
कुछ जायज हैं ,
अर्थात
धोखा -नियमो
का उल्लंघन और अमर्यादित
व्यवहार |
इसमाइन
विजेता ही जीवित बचता हैं ,
और
पराजित मारा जाता हैं |
मेरे
लिखने का आशय सुधि पाठको को
इन तीन शब्दो के यथार्थ बताना
ही था |
अब
इस संदर्भ मैं भारतीय जनता
पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं
सेवक संघ की साझा उम्मीदवार
प्रज्ञा भारती द्वरा अपने
प्रचार को "”धरम
युद्ध "”
घोषित
किया जाना और स्वयं को "”देश
भक्त "”
बताया
जाना अलंकारो की भाषा मैं "”
अतिशयोक्ति
"”
ही
कह जाएगा !
क्योंकि
यह धरम युद्ध नहीं हैं ----
राम
-रावण
युद्ध भी धरम युद्ध नहीं था
| वह
धरम के विभिन्न मूल्यो अर्थात
"”देव
"”
संसक्राति
और "”रक्ष
"”
सनस्क्र्ति
के मध्य हुआ था |
दोनों
ही पक्षो के अपने मूल्य थे |
हालांकि
सन्स्क्रातियों के इस लड़ाई
मैं जय पराजय हुई |
ऐसा
ही एक ही कुल के कौरव --पांडवो
के मध्य हुए महाभारत मैं धरम
नहीं था |
कुछ
लोग इसे गीता के "”धरम
क्षेत्रे कुरु क्षेत्रे '””
से
धर्म की रक्षा का युद्ध मान
लिया ,
परंतु
वास्तव मैं यह दो लोगो की राज्य
के लिए हुई लड़ाई थी |जिस
मैं
अन्य
युद्धो की ही भांति "”जय
- पराजय
हुई "”
|
इसलिए
लोकसभा चुनावो को धरम युद्ध
कहना नितांत अनुचित हैं |
क्योंकि
किसी एक मत द्वरा दूसरे मत को
धार्मिक नहीं हैं -ऐसा
कहना अनेक विवादो को जनम देगा
| गेरुआ
वस्त्र धारी प्रज्ञा स्वयं
भू साध्वी है |
जैसा
की आज कल अनेक धार्मिक प्रमुख
अपने नाम के आगे खुद ही संत या
महात्मा लगाने लगते है --उदाहरण
के तौर पर बापू आशाराम -
बाबा
राम रहीम अथवा संत राम पाल
जिन पर आपराधिक मुकदमें चल
रहे हैं <
सजाये
भी सुनाई जा चुकी हैं |
दक्षिण
भारत के अनेक भगवा धारियो पर
महिलाओ से अश्लील आचरण के
मुकदमाइन दर्ज़ हैं |
एक
है दाति महराज जो सदैव काले
कपड़े पहन कर शनि से सुरक्षा
के उपाय टेलेविज्न पर बाते
करते हैं |
उनके
आश्रमो से बेसहार दर्जनो
युवतियो को पुलिस ने अदालत
के आदेश के बाद बरामद किया !!
आज
कल जीतने गेरुआ वस्त्र धारी
धार्मिक प्रमुख अपने लाव
लश्कर के साथ कुम्भ या अर्ध
कुम्भ मैं नज़र आते हैं ------वे
दूसरों को सांसरिक माया -
मिह
से दूर रहने का उपदेश देते हैं
| परंतु
खुद चँवर डुलती महिलाओ के साथ
मंहगी कारो मैं बैठे नजर आते
हैं |
धार
प्रमुखो के इस पाखंड की बदौलत
भारत की भोली -भली
जनता इनके झांसे मैं आ जाती
हैं |
अधिकतर
इन धर्माचार्यो अथवा मठाधीशो
अथवा मंडलेसवरो का रहन -सहन
किसी भी पश्चिमी ढंग से रहने
वालो के समान ही हैं |
सुबह
टूथपेस्ट चाहिए फिर स्नान
के लिए सुगंधित तेल और साबुन
चाहिए ,
वस्त्र
भी मुलायम रेशमी -जो
भगवा या बसंती रंग का हो ,
चाहिए
| भोजन
मैं मेवे -फल
और बिसलेरी बोतल का पानी चाहिए
| अब
ऐसे धर्म प्रमुखो से त्याग
-संयम
और विलासीता से दूर रहने के
उपदेश क्या असर डालेंगे |
हाँ
किन कारणो से और कैसे इनके
कार्यक्रमों मैं भीड़ आती हैं
, खोज
का विषय हैं |
जैसे
मोदी जी या राहुल की सभाओ मैं
भीड़ आती है और मंच का इंतज़ाम
होता हैं ,
कुछ
उसी रहस्यमय तरीको को इन धरम
के ठेकेदारो ने भी अपनाया हैं
,ऐसा
लगता हैं |