Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 1, 2018


प्रदेश काँग्रेस मे चुनावी लड़ाई के लिए जिस टीम को उतारा गया है --- लगता है वह बिखरी हुई पार्टी के सभी पार्टो को जुगाड़ से जोड़ कर हथियार बनाने की कोशिस की गयी है !!जिसमे दागे कारतूसों को आजमाय गया है , पर इस कोशिस से पार्टी मे नयी हलचल और उत्साह आ सकेगा ?
लेकिन क्या चुनावी रण मे यह एकता प्रभावी काम कर सकेगी ?


चुनावी राजनीति से विगत दस सालो से खुद को निर्वासित करने के बाद भूतपूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने पहली बार राज्य के सभी छ्त्रपों के साथ मिलकर मैदान मे उतरने का इरादा किया है | परंतु प्रदेश की जनता मे स्वयं के विरुद्ध आक्रोश को खतम करने के लिए उन्होने नर्मदा परिक्रमा का पश्चाताप कर के नयी रणनीति के साथ "” सबका सहयोग --सभी का साथ "” साधने का प्रयास किया है | वैसे सत्ता खोने के बाद वे एक बार पुनः पार्टी को खुद के द्वरा खोयी विरासत वापस करने की ज़िम्मेदारी उठाए हुए है |
भले ही तीन पुराने और एक ताज़ा नेत्रत्व के साथ पार्टी की पैकिंग मे -भले ही यह लगे की बिखरी हुई लकड़िया फिर राहुल गांधी के अनुशासन की रस्सी से बांध कर गट्ठर बन गयी है , परंतु बात पूरी तरह से सच नहीं है | कमलनाथ और ज्योतिरादित्य तथा वकील नेता विवेक तनखा की कमान भले ही दिग्गी राजा के पास नहीं हो ----पर पदभार लेने के पहले जिन पदाधिकारियों की घोष्णा की है ------वे सभी भूतकाल मे आजमाए हुए है | उनके बारे मे पार्टी और प्रदेश मे एक समझ सभी को है | प्रभारी महासचिव चंद्र प्रभाष शेखर अर्जुन सिंह मंत्री मण्डल मे रह चुके है | बाद मे वे राजा के खेमे मे इंदौर के उनके पुराने साथी महेश जोशी के माध्यम से आए | इंदौर की राजनीति मे भी वे "”तटस्थ नेता "” की तरह रहे है | वनहा के जन आंदोलनो या भारतीय जनता पार्टी के विरोध मे हुए धरना - प्रदर्शनो से गायब ही रहे है | चुनाव के समय उन्हे पर्यवेछक की ज़िम्मेदारी जरूर दी जाती रही है | प्रचार सचिव मानक अगरवाल मीडिया के लिए जाना -पहचाना चेहरा है , लेकिन विगत दस वर्षो से अधिक समय से उनका परदेश कार्यालय आना नहीं हुआ , एक विवाद के चलते उन्होने आना बंद किया था | अब दस साल बाद पुनः उसी पद पर वापसी से कोई तकलीफ नहीं होगी | परंतु कोशाध्यक्ष बनाए गए गोविंद गोयल की निष्ठा केवल दिग्विजय सिंह के प्रति रही है | धंधे से व्यापारी गोयल अपने अजब - गज़ब के करतबो के कारण खाशे चर्चित रहे है | प्रदेश कार्यालय मे डांस करवाने का मामला रहा हो या या अपनी गोवा यात्रा मे समुद्र तट पर सैलानियों की भांति विचरते हुए सोशल मीडिया पर भेजे गए चित्रो के कारण जाने जाते है |वे पार्टी के नेताओ को भले ही "””लाभकारी और सहायक सिद्ध हो या ना हो "” परंतु बाबूलाल गौर ऐसे दिग्गज के सामने पार्टी की उम्मीदवारी लेकर यह तो साबित ही कर दिया था की --- वे अपने आक़ा के कहने पर शेर के पिंजरे मे भी कूद जाएँगे !! शायद अबकी उनकी भूमिका मात्र "”” इंतजाम अली"” की ही रहेगी |

इस टीम को देखकर एक बात तो बिलकुल साफ है की --पार्टी हाइ कमान ने जिस "”संयुक्त नेत्रत्व का सपना देख कर अलग - अलग दिशाओ मे जाने वाले सवारों को एक साथ कदम ताल करने का आदेश -निर्देश दिया है ,, वह मंशा तो पूरी होती नहीं दिखाई दे रही | क्योंकि चुनावी टीम मे दिल्ली ने चार कार्यकारी अध्यछ बना कर इन इलाकाई नेताओ पर लगाम तो कशी है | परंतु दिन प्रतिदिन के काम और व्यवहार मे तो इन तीन पदाधिकारियों को ही रोज़मर्रा का खर्चा और काम चलाना है | दिल्ली के हुकुमनामे का पालन उसी भावना से हो रहा है अथवा नहीं यह तो तीन बड़े नेताओ और चार इलाकाई अध्यक्षों पर निर्भर है |

अब इस बिसात को देख कर भले ही दिग्विजय सिंह के :""राजनीति से
वानप्रस्थ मे जाने के उनके इरादे को --विश्वास कर लिया जाये | परंतु उनही की जबानी "” यात्रा सम्पूर्ण होने के बाद पकौड़े थोड़ी ही तलूँगा - “” के बयान से उन्होने अपने "नेक इरादे " को ज़ाहिर कर दिया | इस् राजनीतिक शतरंज की बिसात मे दिग्गी राजा भले खिलाड़ी नहीं हो ----परंतु साफ झलकता है की वे सभी खेलने वालो के कंधे पर खड़े है |

अब चुनावी राजनीति की बात करे तो काँग्रेस अपने मिजाज से ही चुनावी खेल मे नियमो और सदाशयता से भाग लेने वाली रही है | काँग्रेस और उसके विरोधी दलो के संबंध को बताने के लिए ---मशहूर सिकंदर और -पोरस का संवाद है --जिसमे कहा था की राजा दूसरे राजा के साथ शाहों जैसा ही व्यवहार करती रही है | परंतु भारतीय जनता पार्टी की स्वभाव मे गुर्राने और जीत जाने पर पराजित के साथ गुलामो जैसा व्यवहार करने के लिए जानी जाती है | सामन्य शिस्टाचार के भी निभाने के वे हामी नहीं है | उनका उद्घोष वाक्य है की "” विजय किसी भी मूल्य पर --और किसी भी प्रकार से -साम -दंड भेद आदि का प्रयोग करके --उनके आदर्श है "” छत्रपती शिवाजी "” जिनहोने छल और बल से विरोधी को पराजित करने की महारत थी |
जब दो पहलवान अखाड़े मे उतरते है -तब उनका वज़न और तरकीब एक जैसी होनी चाहिए --इसीलिए उनकी जांच की जाती है | परंतु विधान सभा चुनाव के इस अखाड़े मे दोनों दलो की "”बेमेल "” जोड़ी है --------साधन और शुचिता के मामले मे !! अब एक ही उदाहरण काफी होगा ,, की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दो मे काँग्रेस ने देश पर 60 साल राज किया है --------अब इस बयान का परिणाम धरातल पर परखे तो पाएंगे -की आज भी 160 साल से भी अधिक पुरानी पार्टी का प्रधान कार्यालय आज भी 14 अकबर रोड मे एक सरकारी इमारत मे किराए से चलता है | दूसरी ओर 4 साल के "”राज़"” मे भारतीय जनता पार्टी ने सात सितारा भवन बने है ,जनहा उसका प्रधान कार्यालय है !!!
दूसरा है भाजपा का चुनाव प्रचार – उनके नेता और कार्यकर्ता दिन प्रति दिन "”एक स्मोक बम "” छोड़ कर देश मे विचार का एजेंडा निश्चित करना चाहते है ! सबसे बड़ी बात यह की वे आज़ाद भारत की या देश के सामने चुनौतियों के मुद्दे पर मोदी जी से लेकर अमित शाह और पूरे केंद्रीय मंत्री सिर्फ "”” भविष्य मे ये कर देंगे --वो कर देंगे की बात करते है "” | जब कभी भी देश मे कोई अहम या ज्वलंत मुद्दा आता है ---तब मोदी जी मौन मोहन सिंह बन जाते है | वे अपनी उपलब्धियों के बारे रबड़ की तरह खिचते है और -घपलो या असफलताओ को नए आश्वशनों और वादो की चादर के अंदर ढँक देते है | नोटबंदी या जीएसटी जैसे मसले पर जब मोदी या जेटली फसते है तो वे "” सफाई नहीं देते वरन किसी बीस -तीस वर्ष पुरानी घटना पर "” हक़ीक़त का बयान नहीं करेंगे ----- वरन अपने दावे और वादो के स्मोक बम से भ्रम फैलाने का प्रयास करेंगे |

अब चुनाव मे जब 14 साल से डटी भारतीय जनता पार्टी की सरकार के फैसलो और घपलो और "'काँडो"” की चर्चा होगी तो ---तब उनका प्रत्याक्रमण आपातकाल --काँग्रेस का वंशवाद और राम मंदिर और हिन्दू हित के दावो की बात करेंगे | काँग्रेस की विवशता है की "”अमर्यादित और असत्य दावे का अभाव | अब इस बेमेल जोड़ी के दंगल मे प्रदेश की जनता ही दर्शक के रूप मे निर्णायक होगी | अगर वह स्मोक बम के वार से असली मुद्दो से भटक गयी तब तो ...........