Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 27, 2021

 

राष्ट्रियता -धरम और जातीयता की राजनीति ही अशांति है





जिस प्रकार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में धरम को लेकर कुछ उन्मादी तत्व राजनीतिक हित साधने का प्रयास कर रहे हैं , वह देश के मध्य भाग में बहुत बड़ी अशांति का कारण बन सकता हैं | इंदौर में एक चूड़ीवाले को कुछ हिन्दू यूवकों ने पहचान के लिए आधार कार्ड दिखाने को कहा , कहा जाता हैं , की वह नौजवान मुस्लिम था | इन बजरंगियों ने उसे हिन्दू इलाके में आने की सज़ा के तौर पर खूब मारा पीटा | बाद में पुलिस ने कुछ लोगो के खिलाफ मारपीट का मुकदमा कायम किया | पर दूसरे ही दिन उसके खिलाफ भी मुकदमा कायम कर दिया ! कलेक्टर साहब ने तो बयान देकर चूड़ीवाले को आतंकी संगठन से संबद्ध बता दिया | जबकि प्रदेश के पुलिस महा निरीक्षक श्री जौहरी ने इस घटना का किसी भी आतंकी संगठन से होने का खंडन किया | इतना ही नहीं उन्होने पत्रकारो को सलाह दी की वे कलेक्टर से ही जा कर पुछे की उन्होने किस आधार और सोचना पर यह बयान दिया | देवास में भी ब्रेड रस्क बेचने वाले एक बुजुर्ग मुस्लिम को भी इन हिन्दू उन्मादियों का शिकार होना पड़ा | पुलिस ने उनकी रिपोर्ट तो लिख ली ,पर कोतवाली के घिराव के लिए दर्जनो मुस्लिमो के खिलाफ सरकारी काम में बाधा डालने के लिए रिपोर्ट लिख डाली |उज्जैन में भी ज़िला प्रशासन द्वारा मुस्लिम मलिन बस्ती को इसलिए उजाड़ दिया ,चूंकि कथित तौर पर मुहर्रम के जुलूस में पाकिस्तान ज़िंदाबाद का नारा लगाया गया था | जिला प्रशासन द्वारा बस्ती उजाड़ना उसी की सज़ा थी | व्हात्सप्प पर हिन्दू धर्म ध्व्जधारियों ने इसे मुसलमानो को सबक निरूपित किया |

इन घटनाओ में राजनीतिक उद्देश्य साफ झलकता हैं | प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी पार्टी के लोग राष्ट्रियता को लेकर बहुत चिंता जताते हैं --- परंतु इस चिंता में वे धरम के आधार पर बटी हुई जातीयता को भूल जाते हैं | हालांकि बीजेपी नेत्रत्व इन जातीय समूहो की पहचान के लिए जनगणना की मांग को लेकर वे दुविधा में फंस गए हैं | क्यूंकी धरम को लेकर मंदिरो के निर्माण को वे अपनी उपलब्धि मान रहे हैं , परंतु वे भूल रहे हैं की भारत में सनातन धर्म के अंदर अनेक जातीयता हैं , जिनमें बहुत "”” सौहार्द "” संबंध नहीं हैं | उत्तर प्रदेश - हरियाणा और गुजरात में भी , दलित या छोटी जातियो के साथ बारात मेंदूल्हे को घोड़ी पर बैठ कर बारात निकालने की घटनाओ में सवर्ण या ऊंची जाती वाले लोगो ने अत्यंत हिंसक व्यवहार किया हैं | उन्हे अपने निवास के सामने से बारात नहीं निकालने देने और और बैंड नहीं बजाने और घोड़े की सवारी नहीं करने जैसी घटनाए अनेक बार हुई हैं | हरियाणा की एक महिला आईएएस अफसर को तो हाइ कोर्ट की सहायता से अपनी शादी सम्पन्न करनी पड़ी थी | उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर में भी दलित जाती के दूल्हे को अपनी शादी के लिए हाइ कोर्ट के आदेश का इंतज़ार करना पड़ा था | तब वह घोड़ी पर सवार हो कर अपनी बारात ले जाने पाया था |

देश के अनेक भागो में विशेस कर उत्तर भारत में यह जातीय उंच - नीच आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी देखने को मिलता हैं | देश के राजनीतिक नेत्रत्व को समाज की इन असमानताओ को दूर करने की फिकर नहीं हैं | उसे देश विभाजन की विभिशिका की "””याद "” है और वे उसे खोद -खोद कर राष्ट्रीय मानस पटल पर ज़िंदा रखना चाहते हैं | विभाजन के दंगो में अपना घर बार और परिजनो को खोने वाले परिवारों की अब दूसरी पीड़ी जनहा उन बुरी स्म्रतियों को भूलना चाहती हैं , वनही केंद्र की सरकार उसे चिरस्थाई रखना चाहती हैं | मशहूर धावक मिलखा सिंह विभाजन के दश को सहने वाले उन लोगो में से एक थे जो उस विभिश्का के गवाह थे | उन्होने कभी भी उस बुरे सपने को सार्वजनिक रूप से नहीं बखान किया < फिर क्यू उस दर्दभरी दास्तां को याद रखना | शायद यह भी "”वोट बटोरो "” नीति का अंग हो |

राष्ट्रीयता देश की सीमा से आबद्ध नहीं होती | वह तो सन्स्क्रतिक और खान पान तथा पहरावा आदि से जुड़ी होती हैं | सलवार - कुर्ता आज सारे देश में महिलाओ की पोशाक हैं | हिन्दू - मुसलमान और आँय धर्मो की भी महिलाए इसे रोजाना पहनती हैं | यह पोशाक पंजाब और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के कबायलियों की पोशाक हैं | तंदूर का इस्तेमाल आज समूचे भारत के भोजनालयों में होता हैं ---पर इसका इस्तेमाल अफगानिस्तान -पाकिस्तान में भी होता हैं | सीख कबाब ईरान -इराक़ तथा अफगानिस्तान - और ताजिकिस्तान तथा तुरकेमनिस्तान और पाकिस्तान समेत भारत में भी सभी प्रांतो {उत्तर -पूर्व के राज्यो को छोड़ कर } में बनाया और खाया जाता हैं | तंदूरी और रूमाली रोटी भी देशो की सीमा लांघ कर भारत -पाकिस्तान और ईरान तक में प्रचलित हैं | राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओ ने भले ही जमीन को बाँट दिया हो परंतु संसक्राति एक ही हैं | बंगला देश में मुस्लिम महिलाए भी साड़ी ही पहनती हैं |जो किसी भी प्रकार से मुस्लिम पहरावा नहीं हैं |तब हम क्या माने ? उनकी भाषा भी बांग्ला ही है जो भारत के संविधान की 14 मान्य भाषाओ में एक हैं !

खान - पान और पहरावा तथा भाषा ही किसी भी सान्स्क्रतिक विरासत की पहचान हैं | जिसे देश की राजनीतिक सीमाए नहीं मिटा सकती हैं | इसका उदाहरण पाकिस्तान और बांग्ला देश हैं |जनहा के लोगो को देख कर नहीं पहचाना जा सकता |

अफगानिस्तान की समस्या :- अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष के मूल में भी यही बात हैं | विगत तीस वर्षो से अमेरिका की मदद से तालिबान को हटा कर एक ढुलमुल लोकतान्त्रिक डांचा खड़ा किया था | जो नर - नारी की समानता और शिक्षा तथा राजय के फैसलो में भागीदारी की हामी थी | जो कुरान के निर्देशों के खिलाफ नहीं थी परंतु वनहा बसने वाली 14 समूहो के रुडीवादी परम्पराओ से अलग था |जिसमें नारी को एक '’वस्तु '’ से ज्यादा की हैसियत नहीं थी | उन्हे शिक्षा के नाम पर सिर्फ कुरान पड़ने की इजाजत थी |विगत तीस वर्षो में अफगान आबादी ने महिलाओ को पाइलट - और डाक्टर तथा सांसद बनते हुए देखा है \अफगान लड़के -लडकिया विदेश जा कर अध्ययन करते हैं | यह सब पशतुन -ताजिक - उज़्बेक - तुर्क - बालूच और अरब कबीलो आदि के मर्दो को अपनी तौहीन लगती हैं | तालिबान के लोग अधिकतर नमाज पड़ने के अलावा अधिक शिक्षा प्रापत नहीं हैं | ये सभी 14 चौदह कबीले या जातिया स्वभाव से लड़ाकू हैं | ब्रिटिश सेना भी इन्हे क़ाबू करने के लिए इनके सरदारो को रिश्वत दिया करती थी |

आज की अफगान समस्या तालिबन को बहुत जल्दी ही पशतुन और ताजिक तथा उज़्बेक तुर्क और बालूच आदि समूहो की सरकार में भागीदारी को लेकर टकराव होना अवश्यंभावी हैं | खुरासनी इस्लामिक आतंकी संगठन ने तो आतम घाटी दस्ते से तालिबान के क़ब्ज़े को चुनौती दे दी हैं \