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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 16, 2022

 

 मोदी सरकार की सुप्रीम कोर्ट  को खुली चुनौती

 अदालतों में जजो की रिक्तियों और नियुक्तियों का मुद्दा लटका रहेगा – ऋजुजु


                                संसद  सत्र के दौरान  राज्य सभा में  एक प्रश्न के उत्तर में  विधि मंत्री  किरण ऋजुजु  ने कहा की अदालतों में फैसले के लिए अटके लाखो मुकदमे  लटके हुए हैं और ,  सुप्रीम कोर्ट जमानत और स्टे जैसे छोटे -छोटे मामलो की सुनवाई करती हैं | जो उसे नहीं करनी चाहिए |   कानून मंत्री ने यह भी कहा की   देश की त्रि -स्तरीय  न्यायिक व्यसथा  , लंबित मुकदमो की बडती संख्या का कारण हैं !  कानून मंत्री के मत में अगर  किसी भी निकाय या फोरम द्वरा किसी भी मामले में  फैसला हो जाता हैं  तब उसे किसी  भी अदालत में “”ट्रायल” करना गलत हैं |  साथ ही उन्होने यह भी राज्य सभा में साफ कर दिया की   हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट  में जो स्थान खाली हुए हैं ,एवं  उनको भरने के लिए  “कालेजियम “ ने जो नाम सरकार को भेजे हैं , उन पर कोई फैसला नहीं  लिया जाएगा | जब तक की  नियुक्तियों के लिए कोई नयी व्यसथा  नहीं बनाई जाती !!  बाद  में उन्होने कहा की  जजो की  पद स्थापना  कालेजियम के “”सुझाव “” पर हो सकती हैं ,पर सुप्रीम कोर्ट को ऐसे नाम जजो के लिए भेजे जो समाज के सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व करते हो !!

 

       संविधान और उसकी व्यवस्था को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार का पिछले सात सालो में रवैया बहुत  ही “”असममानपूर्ण “” रहा हैं |  मौजूदा सत्ता  संविधान के तीन निकायो -  विधायिका -कार्यपालिका  और न्यायपालिका  में से  पहले दो अर्थात  विधायिका यानि की संसद  में “”बहुमत “  के आधार पर  कार्यपालिका <यानि की  सरकार  पर भी उसका  नियंत्रण हैं |    विगत सात सालो में भिन्न भिन्न समय पर  सरकार ने  शासन तत्न्त्र की परम्पराओ  को “ईमानदार और सत्य””  को देश की जनता के सामने प्रस्तुत करने से रोका हैं | 

                               संविधान के तीसरे निकाय -जिसे जनता के अधिकारो का रक्षक के रूप में माना जाता हैं , यानि न्यायपालिका  को मोदी सरकार   संसद की भांति  “”पालतू”” बनाने के लिए विगत वर्षो से प्रयास रत  हैं |  इधर  मोदी सरकार को  सुप्रीम कोर्ट  से  उसकी नीतियो और फैसलो  की “”जांच करने “ की नीति को अपनी  तौहीन  मानता हैं |  इसी लिए  सारा  मोदी तंत्र जिसमें  सरकार और सरकारी दल भी शामिल हैं ---लगातार यह कोशिस कर रहे हैं की सुप्रीम कोर्ट को पालतू  बनाने  कोशिस कर रहा हैं |  इस कड़ी में इस बार  तब महत्वपूर्ण बदलाव आ गया जब  राज्य सभा  के सभापति जो देश के उप राष्ट्रपति  भी हैं , श्री  धनखड़ जी ने अपना पद भर ग्रहण करते ही न्यायपालिका  को संविधान की   लक्ष्मण रेखा को लाल रेखा  समझने की बिंमांगी सलाह दे डाली थी !  यह तब  जबकि धनखड़  एक वकील रहे हैं !  इस इशारे के बाद कानून मंत्री  किरण ऋजुजु का अभियान  दम पाकर फिर शुरू हो गया |

                     कानून मंत्री जिस प्रकार संविधान  की व्याख्या करते हैं ---- लगता हैं उन्होने सुप्रीम कोर्ट के “ न्यायिक  परीक्षण “” के अधिकार के बारे में नहीं पढा है ! हक़ीक़त में नरेंद्र मोदी सरकार ने  जिस प्रकार  “”नोटबंदी “ का फैसला  बिना विधि सम्मत प्रक्रियाओ  का पालन करते हुए –प्रधान मंत्री जी ने जिस ढंग से देश के करोड़ो लोगो को लाइन में लगवा दिया ,यानहा तक की  अनेक लोगो की मौत भी हो गयी !  दूसरा जिस प्रकार बिना किसी  योजना और इंतेजाम के “”देश में लाक डाउन “  लगया , जिससे की लाखो लोगो को सड़क पर सैकड़ो मील की पैदल यात्रा करने पर मजबूर होना पड़ा |  जिसके कारण ना केवल  लाखो लोगो को बहुत गंभीर  तकलीफ उठानी पड़ी |

 

                     इस समय सुप्रीम कोर्ट में 22  याचिकाए  इस मुद्दे

पर लंबित हैं की  किस प्रकार  नोटबंदी का फैसला -बिना देश के केंद्रीय बैंक यानि की रिजर्व बैंक  से सलाह -मशविरा किए बिना  मोदी जी ने अपने कुछ “मित्रो “ को लाभ पाहुचने के लिए लिया , उसकी वैधानिकता  कैसे मोदी सरकार सिद्ध करेगी ? इसी प्रकार भारत बंद – कोविड काल में वैक्सीन  और ऑक्सीज़न  वितरण में केन्द्रीय सरकार ने  राज्यो के सारे अधिकार निलंबित करते हुए , केंद्रीय गृह मंत्रालय  ने समूचे तंत्र को अपने अधीन कर लिया था | परंतु जब  ड्यूटी पर मरने वाले  डाक्टरों – पुलिस जनो , नर्सो  एवं अन्य लोगो को  मुआवजा देने की ज़िम्मेदारी का मुद्दा उठा  तब  अमिता शाह जी के मंत्रालय ने हाथा झाड लिए ! कोविड काल के दौरान रोज -बरोज  नए  SOP जारी हुआ करते थे |  राज्य सरकारो और ज़िला प्रशासन को इन निर्देशों का पालन करने के लिए ना तो साधन थे नाही मैन पावर | अब उनके बारे में अदालत की “”पूछ -ताछ “  से मोदी सरकार परेशान हैं | क्यूंकी सरकार ने वे सब फैसले किसी प्रक्रिया के तहत नहीं लिए थे ---वरन फौरी तौर पर बिना किसी दस्तावेजीकरण  के जारी किए गए थे |

 बॉक्स

                         केन्द्रीय विधि मंत्री किरण ऋजुजु को संविधान का अध्ययन करना चाहिए --- जिसमें हाइ कोर्ट के अधिकार अनुछेद 226 और सुप्रीम कोर्ट  के अधिकार अनुछेद 32  में दिये गए हैं | इसके अलावा  ज़िला स्तर  की अदालतों को भी उच्च न्यायालय  के अधीन रखा गया हैं | देश के कानुन के अनुसार  ज़िला से लेकर हाइ कोर्ट होती हुई यह सुप्रीम कोर्ट तक जाती है  हैं |  अब ऐसे में बिना समझे -बुझे यह सलाह  सुप्रीम कोर्ट को देना की “” वे जमानत और छोटे मामले के मुकदमे नहीं सुने | 

            ऐसा कानून मंत्री देश में पहली बार हुआ हैं -----जिसे  संविधान  और न्यायायिक  प्रक्रिया का ज्ञान ही ना हो , और वह बिन मांगे ही निर्देश जारी कर दे |  केंद्र सरकार  के पास  कलेजियम ने  सुप्रीम कोर्ट के खाली पदो को भरने के लिए  पाँच नाम विधि मंत्रालय को भेजे हैं | जिस पर मंत्री महोदय का कहना हैं की जब तक  “” नयी व्ययस्था  नहीं  बनती , तब तक रिक्तियों और भर्तियों का मुद्दा “” लटका रहेगा “”” | अब यह भाषा  किसी भी प्रकार से  एक संवैधानिक निकाय  के बारे में शालीन तो नहीं कही जाएगी |   

                   केंद्रीय  तंत्र की परम्पराओ  पर   खुलापन  पर रोक लगाने  का काम सबसे पहले  पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली  ने किया था | जब महालेखा परीक्षक  ने अपनी रिपोर्ट जारी कर दिया था , जिसमे मोदी सरकार के गुजरात माडल  पर हुए खर्चो  की हक़ीक़त बयान की थी | जो मोदी सरकार की छवि पर धक्का था | तब वित्त मंत्रालय ने  महालेखा परीक्षक  को निर्देश दिया की बिना केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर  वे कोई भी  आंकड़े या तथ्य  ना तो संसद को देंगे ना ही  प्रैस को देंगे |  

               2---  दूसरा मामला  तब आया जब मोदी जी के चुनावी वादे की देश में 2 दो करोड़ रोजगार हर वर्ष पैदा किए जाएंगे |  सांख्यकी   विभाग ने इस विषय पर श्रम मंत्रलाय  के आंकड़ो को जारी कर दिया था | जिनहोने  मोदी सरकार  के वादे और दावे की पोल खोल दी थी |  तब एक बार फिर पी एम ओ ने निर्देश जारी किया की  सांखयकी विभाग  किसी भी प्रकार की गणना करने के लिए  पारंपरिक  गाइड लाइन को छोड़ कर  , मंत्रालय  से अनुमति लेने के बाद ही किसी प्रकार का सर्वे  या डाटा एकत्र करेगा | 

               ऐसा इसलिए किया गया  जिससे की  मोदी जी के राजनीतिक वादो की सच्चाई  सरकारी आंकड़ो  द्वरा झुठला ना दी जाये |  मोदी सरकार के सत्तासीन होने के पूर्व  केंद्र और राज्यो  में विभिन्न विभागो के आंकड़े  नियम पूर्वक एकत्रित किए जाते थे | जिनहे  इस घटना के बाद बंद कर दिया गया | अब तो बीजेपी  की राज्य सरकारे  भी आंकड़ो वाली कंपेडियम  को छपना ही बंद कर दिया | क्यूंकी  सरकार के आंकड़ो को  कोई कैसे झुठला  सकता हैं |

             3  इन कारणो से  मोदी सरकार  सुप्रीम कोर्ट  में ऐसे

लोगो को चाहती हैं --- जो सरकार को ही राज्य  और संविधान  स्वीकार करे !   यही चुभन  सत्तारूद दल के नेता और मंत्रियो  को लगातार हो रही हैं |  लेकिन सरकार और सुप्रीम कोर्ट के इस टकराओ में  देश और संवैधानिक व्यसथा  का तो बंटा धार  तो हो ही जाएगा |