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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 20, 2021

 

-वादे एवं दावे तथा जुमले -आम समझ और नेता जी

चुनावी सभाओ में बड़े नेताओ के वादे भरे भाषणो में भांति - भांति के आश्वसान मतदाता को दिये जाते रहे हैं | हालांकि वे आम आदमी को केन्द्रित कर कहे जाते हैं | एवं इन नेताओ के वादो को गाव्न का का किसान और दलित वर्ग तथा गरीब "सत्ता"” के मुख से निकला हुआ सच ही मान लेती हैं | पर हक़ीक़त तब सामने आती हैं -जब "”जनता " में से कोई सरकारी दफ्तर जाकर मंत्री जी के कथन का हवाला देकर सहता या अधिकार मांग लेता हैं ! तब वनहा बैठा "” बाबू "” उस निरीह को बताता हैं की मंत्री जी के कहने से देश का शासन नहीं चलता ---जब तक की सरकार का लिखित या टाइप में हुकुमनामाँ दफ्तर में नहीं आता ! तब महान भारत का वह "”नागरिक " ठगा रह जाता हैं ! हालांकि ऐसी घटनाए अब नहीं होती -क्योंकि अब विश्व के इस महान गणतन्त्र का नागरिक यह जान गया है -समझ गया हैं की --चुनावी सभा में दिये गए आश्वासन या वादे "”कोरे जुमले बाज़ी हैं "” ! अब वह नागरिक इस झूठ के फरेब के जाल को "”सहजता से लेता हैं | क्योंकि उसे माँ लूम हैं की वह "”नेता जी "” के भाषण के वादो को कनही से भी लागू नहीं करा सकता | उनका कहना बच्चो को सोते समय लोरी या कहानी सुनाने जैसे हैं | जिनहे सिर्फ सुन लेना चाहिए ----पर ना तो विश्वास करना और नाही भरोसा करना चाहिए -----क्योंकि चंदा मामा को कटोरी में उतारने की बात किस्से - कहानी में होती हैं ----हक़ीक़त में नहीं !

जबकि चुनाव की राजनीति और उसका प्रचार तो आए दिन कनही ना कनही होता रहता हैं | अब नेता जी जनहा जाते हैं ----वनहा की ड्रेस पहन लेते हैं दो - चार उनकी भाषा के शब्द बोल कर बुलाई गयी भीड़ में कुछ तालिया बाजवा लेते हैं | कुछ लोग उसी में ज़िंदाबाद के नारे भी लगा देते हैं --अब उनकी पहचान भक्त - समर्थक और पार्टी के सदस्य के रूप में भी हो सकती हैं | पर वह आवाज और नारे '’’आमजन '’ के तो कतई नहीं हो सकती, क्योंकि बोलने वाले और नारा लगाने वाले को मालूम हैं की ----जो कुछ वह कह रहा या कर रहा हैं वह "” सत्य "” तो बिलकुल नहीं हैं !

सवाल उठता हैं तब फिर क्यू इन नेताओ की सभाओ में नारे और तालिया क्यू बजती हैं ? क्या देश का नागरिक /मतदाता इतना भोला है या मूर्ख हैं जो नेताओ के इस वाग्जाल में फंस जाता हैं ! अथवा रोम साम्राज्य के दिनो की भांति स्टेडियम में ग्लेडियतर और शेर की लड़ाई को सत्ता की क्रूरता और अमानवियता के बजाय "””मनोरंजन "” का सादन संजता था | अभी रोम वासियो को "”नीरो " का शासन सहना पड़ा ! हालांकि वे सभी लोग उस समय के सबसे शक्तिशाली और वैभवशाली साम्राज्य के "”” नागरिक थे "” !

भारत के गणतन्त्र के जीवन में शायद { " मेरे अनुमान से , जो गलत भी हो सकता हैं } कुछ वैसा ही समय हैं | रोमन साम्राज्य का खूंखारपना ईसाई धरम ग्रंथो में वर्णित हैं | ईसा को सूली पर चढाये जाने के बाद बिखरते हुए साम्राज्य के शासक ने ही उस धरम को स्वीकार किया --जिसे उसके "”पूर्वजो "” ने नकारा था ! रोमन लोग अपने सिवाय अन्य सभ्यताओ --आस्थाओ और कर्मकांडो को "”हीन"” या निकरष्ट मानते थे | जैसा की मिश्र साम्राज्य ने यहूदी धरम के प्रवर्तक हज़रत मूसा के साथ किया था | दोनों ही महान { स्व घोषित नहीं -वरन यथार्थ में } साम्राज्य थे "”हक़ीक़त में ! उसके बाद तो अनेकों साम्राज्य हुए -जो भिन्न -भिन्न विश्वासों पर आधारित थे |परंतु जिनके शासक का वास्तविक उद्देस्य अपने अहंकार अथवा सोच या विचार के अनुसार दुनिया को ढालना था | हिटलर -से अगर उली गिनती करे तो हमे अनेकों ऐसे "”शासक मिलेंगे -जिनहोने स्वयं को परमात्मा का दूत --अथवा दैवी हुकुमनामे अथवा धरा पर न्याय और सत्य को स्थापित करने की "”घोसना की "” अगर हम महाभारत को ही देखे तो उसमें भी " धरम और सद नीति को ----सीधे नहीं चलने दिया गया ! किए गए करम को "” तर्क से विश्वास पर लाया गया "” | परंतु हिटलर ने आमजन के विश्वास को अपने तर्को से "” यहूदियो के खिलाफ नफरत "”” में बादल दिया ! तबसे '’ सत्ता के चुनाव में वादे -दावे में बदले गाये | फलस्वरूप राजनीतिक विमत रखने वाला अथवा विरोधी विचारधारा के व्यक्ति को --- शत्रु या दुश्मन मानने की प्रथा शुरू हुई | लोग भले ही कहे की विमत या विरोधी को शत्रु मानकर "”अपराधी "” जैसा व्यवहार करने की प्रथा "”वामपंथी आंदोलन या समाजवादी - कम्युनिस्ट शासन की दें हैं "” परंतु यह पूर्ण सत्य नहीं हैं | आज मिश्र - तुर्की - या ईरान तथा कल तक के इराक के सद्दाम हुसैन -या कर्नल गद्दाफ़ी - रुमानिया - और मौजुद फिलीपींस को हम वां पंथी तो किसी तरह नहीं कह सकते | रूस हो या चीन उत्तरी कोरिया हो इन्हे वां पंथी कैसे कह सकते हैं ? गोर्बछोव के पेरिस्त्रिका के बाद – समय पर चुनाव का नाटक भी नहीं होता | स्टेलिन की मौत के बाद यह साफ हो गया था की कोई भी व्यक्ति राष्ट्र का आजीवन नेत्रत्व नहीं कर सकेगा | परंतु चीन के शी जिन पिंग और रूस के पुतीन "”राष्ट्र के पुरातन गौरव "” का नारा देकर अपनी कमियो और बुराइयों को ढकते रहते हैं |

इतिहास को देखे तब हम पाएंगे की हिटलर समेत सभी तानाशाहो ने "”राष्ट्रवाद "” के नारे से ही अपनी गल्तियो और अत्याचार को "” उचित ठहराने की कोशिस की हैं "” ? अब भले ही यह पड़ोसी म्यांमार की बात हो अथवा पाकिस्तान के आयुब खान से लेकर जिया उल हक्क हो अथवा परवेज़ मुशरफ हो सेना को भी धरम और राष्ट्र के नाम से इस्तेमाल किया | नोबल पुरस्कार विजेता आंग सान सु की को भी देश बचाने के नाम पर सेना ने बंदी बना लिया | अब यह कौन सी देश भक्ति हैं ! ऊपर बताए गए देशो और उनके नेताओ ने अपनी राष्ट्र वादी सोच से कौन सी उपलब्धि प्राप्त की हैं ? मुझे तो नहीं पता , हाँ फिर वही "””दावे और वादे ही मिलते हैं "” !

भारत के संदर्भ में :- राष्ट्रवाद और देश की सुरक्षा के नाम पर सरकारी एजेंसियो द्वरा सैकड़ो नामचीन लोगो को गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया गया ! बात यानहा तक पहुंची की जे एनयू या एय एम यू आदि के छत्रों को राष्ट्रद्रोह का मुकदमा का अभियुक्त बनना पड़ा | तो झारखंड के 80 वर्ष के ईसाई मिशनरी के फादर और दर्जनो अध्यापक आदि को भीमा कोरे गाव मामले में आरोपी बनाया गया ! आज राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी --- और पुलिस कनहिया तक के वीरुध चार्ज शीट नहीं दाखिल कर सकी | लेकिन 80 दिनो से हजारो किसानो के चल रहे धरणे और आंदोलन के नेताओ को भी पुलिस ने लाल किले के मामले में "लपेटना " चाहा , पर ऐसा हो न सका ! अब मामला राष्ट्रवाद का है और देश की सत्ता के सामने है ---- अंतराष्ट्रीय पर्यावरणविद ग्रेटा थोन्बेर्ग तथा गायक कलाकार रिहाना इन लोगो ने किसानो के आंदोलन का समर्थन डिजिटल दुनिया में किया | जिसमें भारत के कुछ युवा भी शामिल थे | देश में किसानो के आंदोलन को विश्व व्यापी समर्थन मिलने से मोदी सरकार की परेशनीया बद रही हैं | स्थिति यानहा तक खराब हो गयी की --रिहाना और थोन्बेर्ग के ट्वीट के जवाब में भारत सरकार का विदेश विभाग को मर्यादा छोड़कर सरकार की ओर से जवाब देना पड़ा | मज़े की बात हैं की राष्ट्रवाद की हुंकार भरने वाले आसाम में स्थानीय लोगो को सब्ज़बाग दिखाये तो मिज़ोरम में बीफ या गौमांस खाने की छूट की बात फुँकवा दी जाती हैं | बंगाल में कार्यकर्ताओ की मौत को राजनीतिक हत्या बताया , लेकिन त्राणमूल सरकार के मंत्री ज़ाकिर शाह पर रेलवे स्टेशन पर बम से हमला करके 26 लोगो को घायल करने का जिम्मेदार कौन हैं ? केंद्रीय ग्राहमन्त्री बताएँगे ? वैसे ममता बनेरजी के भतीजे ने "” अमित शाह पर मानहानि का केस लगा दिया हैं , वैसे उन्हे खुद गैर हाजिर होने से छूट मिल गयी हैं | यह तो होना ही था |