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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 9, 2013

क्या आइ ए एस अफसरो को प्रदेश मे नियुक्ति संवैधानिक रूप से ज़रूरी हैं ?

 क्या आइ ए एस  अफसरो को प्रदेश मे नियुक्ति संवैधानिक रूप से ज़रूरी हैं 
                   दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन को लेकर इस फैसले के उचित अथवा  न्यायसंगत  होने की  बहस के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव के बयान ने इस विवाद की धारा ही बदल दी हैं | देश के मीडिया मे निलंबन के सरकार के फैसले की हो रही आलोचना  के मद्दे नज़र उन्होने केंद्र सरकार के मंत्री नारायनसामी  द्वारा प्रदेश शासन से इस मामले की रिपोर्ट मांगे पर नाराजगी ज़हीर करते हुए  केंद्र सरकार को चुनौती दे दी की की अगर दिल्ली चाहे  तो राज्य से सभी आइ ए एस अफसरो को बुला ले , राज्य प्रशासनिक सेवाओ के अधिकारियों से शासन चला लेंगे |

                 इस बयान से दो ध्वनिया उठती हैं -- क्या राज्य सरकारे इस भांति अखिल भारतीय सेवाओ के अधिकारियों को वापस लेने की मांग कर सकती हैं ? दूसरा  यह की क्या केंद्र अधिकारियों के अलॉट्मेंट का कोटा  अपनी सुविधा से करती हैं अथवा  इसका कोई  आधार और संवैधानिक कर्तव्य हैं ? 
                  आज़ादी के बाद हमने ब्रिटिश स्टाइल  की सरकार और प्रशासन तंत्र को अंगीकार किया था | सिविल सर्वेण्ट की अवधारणा  उसी विरासत का परिणाम हैं | राष्ट्रपति  प्रणाली मे भी  संघीय और राज्य के अधिकारियों की जरूरत होती हैं | ब्रिटेन मे  प्रशासन दो इकाइयो से चलता हैं -- बरो और काउंटी  | बरो के समान हमारे  यंहा नगर परिषद - नगर पालिका - नगर निगम ,यद्यपि अनेक नगर निगम इतने विशाल हैं की वनहा से प्रदेश विधान सभा के लिए अनेक और लोकसभा के लिए भी कम से कम एक और अधिक से अधिक चार सांसद चुने जाते हैं | मुंबई नगरनिगम से तीन सांसद चुने जाते हैं |  खैर स्थानीय शासन की इन संस्थाओ के बाद राज्य विधान सभा के लिए विधायक चुने जाते हैं जो प्रदेश मे सरकार बनाते हैं | लोकसभा के निर्वाचन छेत्र से चुने सांसद  केंद्र की सरकार बनाते हैं | ब्रिटेन मे राज्य सरकारो का वजूद नहीं हैं ,  कम से कम  जैसे हमारे यंहा ''प्रदेश''' सरकारे काम करती हैं | उनको संविधान से निश्चित  शक्तिया  और दायित्व  प्राप्त हैं |  ब्रिटेन  के प्रदेश स्कॉटलैंड - आयरलैंड - वेल्स  का शासन परंपरों  के आधार पर चल रहा हैं | 

              फिर भी ब्रिटेन मे परमानेंट  नौकरशाही का वजूद हैं , उन्होने ही राष्ट्रमंडल  देशो के शासन के लिए  इंपेरियल  सर्विसेस  का गठन किया  जिसके सहारे गौरांग प्रभुओ ने  हम पर शासन किया |  सिविल सेवाओ के लिए और पुलिस सेवाओ के लिए अलग - अलग संगठन बनाए | जिनके आधार पर आज के आइ एएस और आइ पी एस  और विदेश सेवा का गठन हुआ | जिनके बाद  प्रदेशों मे भी सेवाओ का गठन हुआ |आज़ादी के बाद  इसी तरीके से नीचे से लेकर  दिल्ली  तक का प्रशासन  चल रहा हैं | इस व्यवस्था  को संवैधानिक  सुरक्षा भी हैं |  

                                      आज़ादी के बाद इन सेवाओ को खतम करने की मांग पर जवाहर लाल नेहरू ने कहा था की यह '''लौह  कवच  ही देश को बांध के रखेगा "" यह बात आज भी लागू हैं | संघ  का दांचा  होने बावजूद भी केंद्र  की शक्ति सर्वोपरि हैं | एवं केंद्र अपनी सेवाओ को जमीनी हक़ीक़त से रूबरू रखने के लिए इन सेवाओ को राज्यो मे नियुक्त करता हैं | इस के नियम हैं |
                इसलिए  राम गोपाल यादव  की चुनौती न केवल बेमानी हैं वरन संविधान की आत्मा के विपरीत हैं | उन्हे  यह भूल जाना होगा की वे एक स्वतंत्र रियासत के नहीं वरन संघ की एक इकाई के प्रशासन  चलाने की ज़िम्मेदारी भर ही निभा रहे हैं | जितनी जल्दी यह सच जान ले इनके लिए  अच्छा  हैं ..............................