Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 28, 2020


दिल्ली में पिछले तीन माह से हो रही सरकारी हिंसा --और अदालत का रुख ?


क्यूँ न्यायालय हिंसा की घटनाओ को रोकने में दखल देने से कतराते हैं !!


दिल्ली न्यायालय की खंड पीठ के न्यायमूर्ति मुरलीधर द्वरा भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के नफरत भरे भाषणो के लिए पुलिस में प्राथमिकी लिखाने के आदेश को-- जिस प्रकार मुख्य न्यायाधीश पटेल और हरीशंकर ने अप्रैल तक विचार करने के लिए टाला -वह साफ तौर पर सरकार की मददा करने वाला ही हैं ! इस फैसले ने सर्वोच्च न्यायालय के उन दिनो की याद दिला दी जब पूर्व प्रधान न्यायाधीश मिश्रा द्वरा सरकार के वीरुध सभी जन याचिकाओ और बड़े -बड़े उदयगपतियों के विभिन्न मामलो को अपने सामने ही सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था ! उसी घटना के बाद ही चार जजो ने एक प्रकार से सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक कामकाज में पारदर्शिता के अभाव होने की हक़ीक़त सार्वजनिक हुई थी ! चाहे जवाहर लाल विश्व विद्यालय में बाहरी लोगो द्वरा घुस कर छात्रों और शिक्षको को मार - पिटाई का मामला हो -अथवा जामिया विश्व विद्यालय में बिना इजाजत पुलिस द्वरा घुस कर लोगो को मार पीट कर घायल करने का मामला हो | इन सभी मामलो में दिल्ली पुलिस{ जिसकी रहनुमाई केंद्र के गृह मंत्री अमित शाह करते हैं }} की ओर से पैरवी करने आए सालिसीटर जनरल ने याचिका या मामले की सुनवाई करने का माहौल नहीं होने और संवेदनशील होने की गुहार लगाई हैं और अदालत ने हर बार उन्हे तारीख पर तारीख देकर मुद्दे को मिट्टी में मिलने का काम किया हैं ! याचिका कर्ताओ को न्याय नहीं मिला ----हाथ पैर तुड़वाए आँख भी फुडवाये बस दर दर इलाज के लिए भटकते रहे ! इन छात्रों का कसूर भी नहीं बताया ,जैसे दो साल हो गए जे एन यू के पूर्व अध्यक्ष कनहिया की भी तीस हजारी अदालत में पेश किए जाने के समय सत्ता परस्त वकीलो ने अच्छी धुनाई की थी ---पुलिस भी नहीं बचा पायी ! लेकिन इस देशद्रोही पर आज तक चार्ज शीट भी नहीं दाखिल हुई ! इसी अदालत के परिसर में वकीलो ने पुलिस वालो की अच्छी धुनाई की एक महिला पुलिस उपायुक्त के साथ छेदखानी और वर्दी तक फाड़ दी ----पर उस मामले में उच्च न्यायालय ने तुरंत सज्ञान लेकर पुलिस को निर्देश दिया की किसी भी वकील के वीरुध कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज़ की जाये !!! पुलिस अदालत के सामने आरोप पत्र पेश करे तब सुनवाई होगी !!! आज तक किसी वकील के वीरुध की आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया नब्बे दिन की मियाद भी खतम हो गयी !
एक अखबार में छपी खबर के अनुसार विदेश में एक प्रसिद्ध गिटार वादक ने भारत के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ गाया था सब याद रखा जाएगा , तुम अदालतों में बैठ कर चुट्कुले लिखो ----हम सडको -दीवारों पर इंसाफ लिखेंगे ,!! यह एक व्यंग्य हैं हमारी न्याय व्यवस्थ्था पर |
भूतपूर्व राधन न्यायाधीश मिश्रा फिर न्यायाधीश गोगोई का समय सुप्रीम कोर्ट की प्रतिस्ठा पर बहुत "”भारी पड़ा हैं "”” | अनेकों मामलो में जो विधि सम्मत और उचित लगता था ----- वैसा नहीं हुआ | मुद्दो को निपटाने की जगह कई बार --मध्यस्था जैसे फैसले किए गए ---- जिसमे "”” ना तुम हारे ---और ना हम जीते "”” जैसा हुआ ! वो कहते हैं की विन विन सिचुएशन वही ! अब अदालत में याचिकाऔंसिल ने करता फैसला करवाने आता हैं , सम्झौता करने नहीं |
जब जब जज लोया या सोहरबुड्डीन हत्या कांड का मामला पेश करने की कोशिस की गयी तब तब अदालत की डांट पड़ी | शायद इसके मूल में वह रुख हैं , जिसके अनुसार न्यायपालिका और सरकार के मधुर रिश्ते होने चाहिए , शायद यही वजह रही होगी एक आयोजन में जस्टिस मिश्रा ने प्रधान मंत्री की तारीफ करते हुए उन्हे देश का अप्रतिम नेता बताया !! जिस पर बाद में बार काउंसिल ने भी नाराजगी जताते हुए कहा की न्यायाधीश को "””निरपेक्ष "” होना चाहिए ! पर ऐसा हैं नहीं ! सुप्रीम कोर्ट सिर्फ जनहित के मामलो में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारो के मुक़ाबले सरकार की परेशानी और प्रतिस्ठा को बचाने में दिखाई पड़ा !! विधि शास्त्र के सिधान्त के अनुसार नागरिक को न्याय देने के लिए अदालतों को थोड़ा आगे आना भी चाहिए | अभी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने जबलपुर में नगर निगम और सरकार की लापरवाही पर आने वाली याचिकाओ के लिए उनस्थानों का दौरा किया और खुद हक़ीक़त से रूबरू हुए | हाँ अधिकारियों की कागजी कारवाई की पोल खुल गयी |
हमारी न्याय व्यवस्था में अपराधी को सुधारने का संकल्प लिया गया हैं | उसके दमन का नहीं | वैसे भारतीय जेलो में पुलिस ज्यादा दमन और शोषण आम बात हो गयी हैं – रिश्वत का बोलबाला क़ैदी से मिलने से लेकर जो शुरू होता हैं वह उसको खाने की वस्तु देने तक जारी रहता हैं | बिहार में बालिका संरक्षण गृह में दर्जनो लड़कियो द्वरा प्रबन्धको के सालो तक अत्याचार सहने के लिए ---हालांकि मुखी करता धर्ता को सज़ा हो गयी | परंतु कानुनन ज़िला न्यायाधीश से यह आपेक्षा थी की वे माह में एक बार इन संरक्षण ग्रहो का मुआइना करेंगे | पर ऐसा हो न सका और अनेक लड़कियो ने अपनी जान दे दी |

दिल्ली में जो अशांति और आग जानी हुई और 40 जाने गयी सैकड़ो घायल हुए , उसका मूल आखिर क्या था ? क्या यह धरम के आधार पर दो समुदायो के मध्य नफरत फैलाने का परिणाम नहीं था ??? चुनाव के समय से ही इस नफरत की आँधी को चुनाव आयोग और पुलिस {{जिससे उम्मीद ही नहीं करनी थी }} ने अगर उस समय भड़काऊ भासनों पर कानूनी कारवाई कर दी होती तो शायद दिल वालो की दिल्ली जलने और लौटने से बच जाती --आखिर जब नादिर शाह ने दिल्ली में हमला कर तांडव मचाया होगा – उस को अगर किलोमीटर में माने तो मौजूदा मंज़र दस पाँच सेंती मीटर तो होगा ही !!! सोचो हम उस बरबादी का लाइट अँड साउंड शो के गवाह बने हैं !!
आखिर में एक शायर की चंद लाइने :-
लगा कर आग शहर को ,
बादशाह ने ये कहा , उठा हैं --आज इस दिल में
तमाशे का शौक बहुत ,
झुका के सर अपना -सभी शाह परस्त बोल उठे ,
हुज़ूर का शौक सलामत रहे – शहर हैं और बहुत भी