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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 10, 2017

दुष्प्रचार की राजनीति मे सोशल मीडिया का -प्रयोग और परिणाम ? क्या प्रजातन्त्र और चुनाव को निरर्थक करने की साजिश?

ब्रिटेन मे यूरोपियन यूनियन से बाहर निकालने का जनमत संग्रह क्या सोशल मीडिया मे एक मनोवैज्ञानिक प्रचार का परिणाम था ? एवं अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव मे डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के विरुद्ध तथ्यहीन प्रचार के कारण ट्रम्प की जीत हुई ? क्या फ्रांस के राष्ट्रपति और वंहा की संसद के चुनाव मे यह तकनीक आज़माई तो गयी परंतु वंहा नागरिकों ने इंटरनेट के दुष्प्रचार से अपने को सफलता पूर्वक अलग रखा ?

इन सभी प्रश्नो पर विचार इसलिए ज़रूरी है क्योंकि विश्व के अधिकतर प्रजातांत्रिक देशो मे बहू दलीय प्रणाली है| शासन करने वाले लोगो को उनके दल अथवा उनकी नीतियो और उपलब्धियों के आधार पर मतदाताओ से समर्थन की अपील की जाती है | हाँ शासक दल की असफलताओ की आलोचना ज़रूर की जाती है | परंतु उम्मीद यही की जाती है की वे आधारहीन तथ्य या आरोप नहीं लगाएंगे , परंतु यह मर्यादा अधिक बार भंग हुई है |
अभी कैम्ब्रिज एनेलिटिका नाम की कंपनी का भंडफोड हुआ है , जिसने मंजूर किया की लोगो को प्रभावित करने के लिए उनकी निजी जानकारी ले कर उनकी पसंद और नापसंद को प्रभावित किया जा सकता है | यह एक मनोवैज्ञानिक तरीका है जिसमे एसएमएस और इंटरनेट से संदेशे भेजे जाते है | अब सवाल यह उठता है की सभी देशो मे खासकर जिंका ऊपर ज़िक्र किया गया है उनमे निजता का सम्मान का कानूनी प्रविधान है | तब किसी मतदाता की निजी पसंद जानने के लिए उसके बारे मे डाटा तो सरकार के पास अथवा टेलीफोन कंपनियो के पास एवं फेसबूक या टिवीटर के पास होता है | , अतः यह मान लेना उचित ही होगा की बिना इनके सहयोग के विरोधी के खिलाफ दुसप्रचार संभव नहीं ? अभी एक खबर आई थी की फेसबूक के इस्तेमाल करने वालो के डाटा की चोरी हो गयी , यह संख्या करोड़ो मे थी | ऐसा ही भारतीय कंपनी ''जियो '' के बारह करोड़ उपभोक्ताओ के डाटा चोरी होने का समाचार आया है | टेलीफोन कंपनिया अपने ग्राहको के विवरण और नंबर अक्सर उन कंपनियो को दे देते है फिर उन लोगो के पास बिक्री के लिए अपील की जाती है | उनकी सेल्स गर्ल्स फोन द्वारा लोगो को प्रेरित करने का प्रयास करती है | अक्सर इस प्रयास मे घर की महिलाए प्रभावित हो जाती है
यह सब इसलिए संभव हो रहा है की सभी नागरिक अपनी निजी जानकारी आय कर मे फोन लेते समय फेसबूक या टिवीटर पर और स्टॉक एक्सचेंज की कंपनियो के शेयार लेते समय देना अनिवार्य है परंतु उस जानकारी को गोपनीय रखने की ज़िम्मेदारी मे लापरवाही बरती जा रही है |

कैम्ब्रिज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने बीबीसी को दिये इंटरव्यू मे हालांकि इन तीनों घटनाओ मे अपनी कंपनी की संलिप्तता होने से इंकार किया | परंतु यह स्वीकार किया की जानकारी होने से व्यक्ति को अपनी "”रॉय बनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है "” | ब्रेकसीट जनमत संग्रह की समर्थक प्रधान मंत्री टेरेसा मे की कंजरवेटिव पार्टी की संसदीय चुनाव मे हुई पराजय ने संकेत दे दिया की वंहा के नागरिक उनके फैसले से सहमत नहीं है | फ्रांस के राष्ट्रपति के चुनाव मे भी ऐसा दुष्प्रचार हुआ | वंहा की वामपंथी पार्टी की उम्मीदवार मेरीन लेपें को इस प्रचार से लाभ होने की आशंका जताई जा रही थी | क्योंकि चुनाव के कुछ दिन पूर्व ही मरीन लेपें मास्को मे रूसी राष्ट्रपति पुतिन से मुलाक़ात की थी | समझा यह जा रहा था की जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावो मे "मजबूत "” प्रतिद्वंदी को बदनाम करके समर्थन पाया जा सकता है | आम तौर पर मतदाता अपनी पसन्द के उम्मीदवार के बारे मे कुछ "” अनैतिक कार्यो का खुलासा सुनता -देखता - पढता है तो वह दूसरी ओर लुड़क जाता है "” हिलेरी क्लिंटन के मामले मे ऐसा ही हुआ | एफ़बीआई के डाइरेक्टर जॉन कोमे को ट्रम्प ने इसलिए बर्खास्त कर दिया क्योंकि उन्होने एक प्रैस कोन्फ्रेंस मे यह खुलासाहा कर दिया था ---की जिन ई मेल को ट्रम्प गोपनियता भंग करने वाला बता रहे है ---वे वास्तव मे गोपनियता की परिधि मे नहीं आते है ! यही एक कारण था जिसके फलस्वरूप अमेरिकी मतदाताओ का समूह उचाट गया | यद्यपि पापुलर वोटो मे क्लिंटन ट्रम्प से 3 मीलियन वोटो से आगे थी | परनू एलेक्टोराल कालेज मे वे पचास फीसदी मत नहीं प्रपट कर सकी | आज ट्रम्प के चुनाव मे रूसी दखलंदाज़ी की जांच तीन स्तरो पर हो रही है | क्या उनके चुनावी प्रचार मे रूस ने क्लिंटन को पराजित करने के लिए उनकी मदद की थी | अब उनकी रिपुब्लिकन पार्टी भी जांच के लिए सहमत है | मामले जांच एक स्पेशल काउंसल मुल्लर कर रहे है जो एफ़बीआई के भूतपूर्व डाइरेक्टर रह चुके है | निचले सदन और सीनेट की समितीय भी अपने स्टार पर जांच कर रही है | यह पहली बार हुआ है की कोई राष्ट्रपति पदारोहन के सौ दिन के अंदर ही ऐसे गंभीर विवादो से घिर गया हो |

फिलहाल रूस किसी भी देश के चुनावो मे दखलंदाज़ी के आरोप से इंकार करता है ---परंतु शक की सुई उसी की ओर घूमती है | ब्रिटेन और अमेरिका मे सफल हुई इस मनोवैज्ञानिक तकनीक को फ्रांस मे मुंह की खानी पड़ी | वंहा के लोगो ने विकिलिक्स और झूठे प्रचार को रद्द कर दिया | गौर तलब है की ट्रम्प ने अपने प्रचार मे ई मेल के विकिलिक्स की खबर को देशद्रोह बताया था | और क्लिंटन को सार्वजनिक रूप से कहा था की चुने जाने के बाद वे हिलेरी को जेल मे डाल देंगे !!
इस संदर्भों मे हम अगर भारत मे हुए चुनावो को देखे तो पाएंगे की 2014 के बीजेपी के धुवाधार प्रचार मे अन्य राजनीतिक दल दब से गए थे ---क्योंकि वैसे प्रचार के लिए जिस धनराशि की ज़रूरत थी वह उनके पास नहीं था समझा जाता है की कुछ औद्यगिक घरानो ने इस प्रचार मे अंधधुंद पैसा लगाया | जिसका लाभ उन्हे सरकारी कृपा से मिल रहा है | 63 देशो की यात्रा मे सर्वाधिक व्यापारिक समझौते जिस घरानो के हुए है --वह सत्या को उजागर कर देता है |
परंतु भारत की राजनीतिक पार्टियो को अब ऐसे धुवाधर प्रचार और मनोवैज्ञानिक तकनीक से मुक़ाबला करना होगा | अन्यथा वे राजनीति के पटल से गाब हो जाएँगे | क्योंकि कैम्ब्रिज जैसी कंपनी को तो धन चाहिए , उन्हे देश के प्रजातन्त्र और चुनाव की शुचिता से उनका कोई मतलब नहीं | सरकार जिस प्रकार मीडिया मे प्रचार पर खर्च कर रही है वैसा कभी पहले नहीं हुआ | भारत का मतदाता अभी इतना समझदार नहीं हुआ है की वह फ्रांस के नागरिकों की भांति प्रचार को नकार कर अपनी रॉय बना सके |