Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 22, 2014

आखिर वाम पंथ को क्या हो गया ? जो देश की राजनीति से बाहर हो गए


देश की आज़ादी के तुरंत बाद तेलंगाना मे सर्वहारा वर्ग द्वारा हथियार उठा कर विद्रोह करने का बीड़ा जिस कम्यूनिस्ट
पार्टी के नेता वासव पुननाया के नेत्रत्व मे उठाया था , आज उसी धरती पर उनका नामो निशान भी खतम हो गया | जो नकसलबारी मे कई
दशको बाद दुबारा उठा | 1957 के आम चुनावो मे जिस पार्टी ने पहली बार गैर कांग्रेससी सरकार देश मे बनाई | नम्बूदरिपाद देश के
पहले वामपंथी पार्टी {कमुनिस्ट पार्टी } के मुख्य मंत्री बने | आज़ादी के बाद राजनैतिक रूप से यह वां पंथ की सुनहरी विजय थी , देश के
कामगारों मे एक विश्वास जागा , लगा की की एक समतावादी समाज का निर्माण बिना खूनी क्रांति के भी संभव है | बुलेट नहीं बैलेट मे भी
आस्था हुई | अंग्रेज़ो के जमाने मे जो गैर बराबरी और ना इंसाफ़ी हुई थी ---उसके खात्मे की किरण दिखाई पड़ी | धीरे -धीरे समाजवादी
विचार धारा ने केंद्र मे सत्तारूड कांग्रेस को भी प्रभावित किया | 1957 से 1967 के दरम्यान देश के अन्य प्रांतो मे भी काफी उथल -पुथल
हो रही थी | छेत्रीय दल भी स्थानीय समस्याओ को लेकर बनने लगे थे | तमिलनाडु मे द्रविड़ कडगम रामासामी नायकर के नेत्रत्व मे
ब्रामहन राजनैतिक नेत्रत्व के खिलाफ खड़ा हुआ था वह सनातन धर्म को तहस -नहस करने का इरादा रखता था | वनही उत्तर प्रदेश मे धूर
दक्षिण पंथी दल जैसे हिन्दू महा सभा और राम राज्य परिषद उठ खड़े हुए थे | जिनका अस्तित्व ही धर्म आधारित था | बिहार और उत्तर प्रदेश
आचार्या नरेंद्र देव और बाबू बसवान सिंह तथा आचार्या कृपलानी आदि नेता कांग्रेस छोड़कर किसान मजदूर प्रजा पार्टी भी पचास के दसक मे
बनाई थी | जो दूसरे आम चुनाव के पूर्व प्रजा समाजवादी पार्टी के रूप मे अवतरित हुई | झोपड़ी चुनाव चिन्ह और राष्ट्रिय वेतन नीति
नारा -----सौ से कम ना हज़ार से ज्यादा , सोसलिस्ट का यही तक़ाज़ा | 1957 के चुनाव मे ऐसी सोच समाजवादी ही थी |


छटे दशक मे शिक्षा और भूमि सुधार के लिए संघर्ष करने का जुनून भी इसी वाम पंथ की सोच का
श्रोत रूस की 1917 की क्रांति थी , जिसके द्वारा देश के मजदूर --कामगार --किसान को राष्ट्रिय उन्नति मे न्यायपूर्ण हिस्सा दिलाने
का प्रयास था | आज़ादी के बाद देश की जनता मे परिवर्तन के लिए उत्साह और कामना थी | काँग्रेस की मध्यम राजनीति के चलते
देश के सर्वहारा वर्ग की आकांच्छाओ को जल्दी अमली जामा पहनाना आसान नहीं लगता था | क्योंकि सत्तारूद दल के नेत्रत्व मे बड़े -बड़े
जमींदार -राजा रजवाड़े और धन पतियो का वर्चस्व था | ऐसे मे कुछ जागरूक नेताओ ने काँग्रेस त्याग कर किसना मजदूर प्रजा पार्टी बना कर
लोगो मे संदेश देने का प्रयास किया की """"""बदलाव जल्दी ही होगा """"'| वाम पंथ मे दो भाग हो चुके थे ----एक था रजनी पल्म्दुत्त
द्वारा इंग्लैंड मे स्थापित कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और दूसरी ओर जर्मनी से पद कर आए द्र राम मनोहर लोहिया -इंग्लैंड से आए
डॉ ज़ेड ए अहमद ने पहले काँग्रेस मे शामिल हो कर आज़ादी की लड़ाई मे गांधी जी के मार्ग दर्शन मे भाग लिया ||| लेकिन देश आज़ाद
होने के बाद विचारो की उग्रता ने इन लोगो को पार्टी छोड़ने का फैसला लेना पड़ा | 1957 से लेकर 1962 के मध्य चुनावी राजनीति के कारण
कई दल मिटे और कई नए बने | नए - नए समीकरण बने | परंतु चीन द्वारा भारत पर हमले से कम्यूनिस्ट पार्टी को लोग संदेह की
निगाह से देखने लगे | आम जनता मे बदते अविश्वास ने कम्यूनिस्ट आंदोलन को प्रभावित किया -----फलस्वरूप चीन को सर्वहारा वर्ग
का सही दिशा देने वाले और रूस की अक्तूबर क्रांति के समर्थक अलग होने की सोचने लगे | अजय घोष के महा सचिव रहते हुए पार्टी मे
दो फाड़ हो गए | बंगाल मे भी वाम पंथ दो भागो मे विभाजित हुआ तो केरल मे भी हुआ | आंध्रा और ट्रेड यूनियन चीन को आदर्श मन रहे थे |
प्रगतिशील विचार धारा के इस प्रकार बिखर जाने से सर्वहारा की लड़ाई कमजोर हुई | परंतु इन्दिरा गांधी के आपातकाल लगाने से मार्क्सवादी
खेमे को नुकसान हुआ जबकि रूस समर्थक खेमा को शासन का संरक्षण प्राप्त हुआ परंतु आम लोगो मे प्रतिस्था घटी|


आपात काल के बाद बंगाल मे वामपंथी सात डालो ने ज्योति बाबू के नेत्रत्व मे विधान सभा चुनाव लड़ा , और लोक सभा तथा
विधान सभा चुनावो मे सफलता मिली | इसका एक कारण '''आपरेशन बरगा ''''था जिसके द्वारा बटाईदारों को उस जमीन का हक़ मिला
जिस पर वे मालिक के लिए खेती करते थे | यह नकसलबारी की घटना का परिणाम था | जनहा बड़े बड़े भूपतियों ने बटाईदारों का जीना मुहाल
कर रखा था | गुस्साये बटाईदार मजदूरो ने मालिको को परिवार सहित मार डाला | कूच बिहार मे भीदंगे हुए | तत्कालीन मुख्य मंत्री सिधार्थ शंकर राय
ने इस हिंसक आंदोलन को पुलिस की सख्ती से साफ कर दिया |बहुत से लोग मारे गए सैकड़ो गिरफ्तार हुए | शासन जीता ----लेकिन लोगो के
मन से सरकार से नफरत हो गयी | 1977 के चुनाव मे काँग्रेस की पराजय हुई | बंगाल -केरल - त्रिपुरा मे मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी को
अरत्याशित सफलता मिली | यद्यपि केंद्र मे गैर काँग्रेस दलो के महा गठबंधन की सरकार थी , परंतु इन तीन राज्यो मे वाम पंथी दलो का
बोलबाला रहा |
1980 मे भी चुनावो मे [दोनों ] कम्यूनिस्टपार्टियो को सफलता बरकरार सी ही रही |बंगाल वाम पंथ का गद रहा | लेकिन
ज्योति बाबू के पद छोड़ने का फैसला करने के बाद लगने लगा था की इंका स्वर्णिम काल गया | 2010 के विधान सभा चुनावो मे ममता बनेरजी
ने 2014 मे लोक सभा चुनावो मे इन राष्ट्रिय पार्टियो को छेतरीय पार्टियो की बराबरी ला कर खड़ा कर दिया |दक्षिण पंथी पार्टी को केंद्र मे और
राज्यो मे काफी सफलता मिली | लगभग 25 सालो मे ही शिखर और फिर पराभव का क्या कारण है , इन दलो को खोजना पड़ेगा | वैसे कूच
विचारको का कहना है की रूस के विघटन और गोर्बछोव द्वारा खुलेपन के सिधान्त के कारण भारत मे वाम पंथ की सफलता के बारे मे संदेह
होने लगा था | कूच अन्य का कहना है की रूस की भांति पार्टी नौकरशाही के कारण ज़मीन कमजोर पद गयी और लोग भरमीट होने लगे |
अब जो भी कारण हो आज वाम पंथ देश मे अंतिम साँसे ले रहा है |