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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 16, 2022

 

पंडित नेहरू  बनाम  आदिवासी ऋजुजु  - इतिहास की समझ

 

 इधर जब से चैनलो पर  “गोदी “ तत्वो का  कब्जा हुआ हैं , तब से 70  वर्ष पूर्व की घटनाओ  की मीमांशा  वर्तमान के परिप्रेक्ष्य  में किए जाने का चलन शुरू हो गया हैं |   केंद्रीय मंत्रियो ऋजुजु  और हरदीप पूरी ने काश्मीर के  मुद्दे को  संयुक्त राष्ट्र संघ  ले जाने का दोषी होने का आरोप लगाया हैं |  इतिफाक से दोनों का जन्म आज़ादी के वर्ष के आसपास ही हुआ होगा | तत्कालीन  राजनीतिक समस्या की पेचीदगियों  को समझने की अक़ल तो निश्चित ही नहीं होगी |  परंतु इतिहास का ज्ञान  पुस्तक -अभिलेखो आदि से  बाद में भी किया जाता हैं | जैसे  आज हम सिकंदर के बारे में अध्ययन करते हैं | और उसकी विवेचना  और संभावनाओ  को समझते हैं | 

     शायद इसी तकनीक से दोनों केंद्रीय मंत्रियो ने काश्मीर के भारत में विलय की घटना का अध्ययन कर “”नए तर्क और समभावनए खोजने की कोशिस की है , जिससे की देश के प्रथम प्रधान मंत्री के फैसले को गलत बतया जा सके | दोनों मंत्रियो  के अनुसार  पंडित नेहरू  द्वरा  काश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना “”एक गलती थी , जिसका परिणाम आज देश को भुगतना पड़ रहा हैं “”” अब इन दोनों मंत्रियो को  यह समझ में नहीं आ रहा हैं की संयुक्त  राष्ट्र संघ के ओब्ज़ेर्वर किसी देश के “” मांगने या कहने से नहीं भेजे जाते है |  संयुक्त राष्ट्र की परंपरा हैं की दो राष्ट्रो में  जब विवाद हिंसक हो जाता हैं , और  निरीह आबादी प्रभावित होती हैं ,तब सुरक्षा परिषद  मसले पर अध्ययन  के बाद “” उस स्थान पर शांति  स्थापना  के लिए , और आबादी की सुरक्षा के लिए ही “”शांति सेना की तैनाती “ की जाती है |  अफ्रीका के अनेक देशो में आज संयुक्त राष्ट्र  की शांति सेना की तैनाती हैं |

सत्ता – संघ और सरकार द्वारा  देश की आज़ादी में खून देने वालो की छवि को “खराब” करने की कोशिस उन लोगो द्वरा की जा रही हैं -----जिनके पुरखे  इस लड़ाई से कोसो दूर थे | इतना ही नहीं  वे हिटलर के हिमायती  और अंग्रेज़ सरकार  के सहायक थे | गांधी के हत्या के आरोपी सावरकर की माफी मांगने वाले पत्र  इस बात के प्रमाण हैं की – सत्ता और संघ   का स्वधिनता संग्राम  में बरतनिया हुकूमत की पैरोकारी  कर रहे थे | 

                किस अधिकार से  ये महानुभाव  नेहरू -इन्दिरा और राजीव  के फैसलो का छिद्रानवेषण कर रहे हैं | अव्वल  कश्मीर का मुद्दा  तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र सभा  में पाकिस्तान द्वरा उठाया गया था | एक तरफ पाकिस्तान ने इसे सीमा विवाद और  दूसरी ओर स्थानीय काश्मीरियों  के हक़ की बात उठा कर  प्रस्ताव पेश किया था | सेंटो गठबंधन का सदास्य  होने के कारण अरब राष्ट्रो ने भी “” जनमत संग्रह को समाधान बताया था “” | गौर तलब हैं किरजा अफजल बेग की जमात “प्लेबिसीट फ्रंट “”  घाटी में आंदोलन रात थी | अंतराष्ट्रीय  जगत में नवोदित आज़ादी पाये राष्ट्र  को सुरक्षा  परिषद  की सलाह थी | दूसरे महायुद्ध  की विभिश्का से विश्व त्रष्ट था – शांति की कोशिस दुनिया का उद्देश्य था | इन हालातो में  स्मयुक्त राष्ट्र संघ ने काश्मीर  में शांति सेना भेजी | जिसका उद्द्शेय  पाक और भारत की सीमाओ पर दोनों देशो की तैनाती की निगरानी करना था |  जो आज भी हो रहा हैं | पाकिस्तान के साथ  हुए दो युद्धो में – संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की भूमिका नहीं थी | क्यूंकी  उनका “” छेत्रधिकर या मेनडेट”” जम्मू – काश्मीर  में दोनों देशो  की सीमा पर सेनाओ की स्थिति को जाँचना हैं |

     इसलिए दोनों केंद्रीय मंत्रियो  और उनके शोध कर्मियों द्वरा दिये गए तर्क तथा  सुझाए गए उपाय निरर्थक हैं | क्यूंकी यह उसी प्रकार हैं जैसे कृष्ण माता  यसोदा से पुछते हैं की  तू क्यू गोरी मेन क्यू काला !!