पंडित नेहरू बनाम आदिवासी
ऋजुजु - इतिहास की समझ
इधर जब से चैनलो पर “गोदी “ तत्वो का कब्जा हुआ हैं , तब से 70 वर्ष पूर्व की घटनाओ की मीमांशा वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में किए जाने का चलन शुरू हो गया हैं |
केंद्रीय मंत्रियो ऋजुजु और हरदीप पूरी
ने काश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ ले जाने का दोषी होने का आरोप लगाया हैं |
इतिफाक से दोनों का जन्म आज़ादी के वर्ष के आसपास ही हुआ होगा | तत्कालीन राजनीतिक समस्या की पेचीदगियों को समझने की अक़ल तो निश्चित ही नहीं होगी | परंतु इतिहास का ज्ञान पुस्तक -अभिलेखो आदि से बाद में भी किया जाता हैं | जैसे
आज हम सिकंदर के बारे में अध्ययन करते हैं | और उसकी विवेचना और संभावनाओ को समझते हैं |
शायद इसी तकनीक से दोनों केंद्रीय मंत्रियो ने
काश्मीर के भारत में विलय की घटना का अध्ययन कर “”नए तर्क और समभावनए खोजने की कोशिस
की है , जिससे
की देश के प्रथम प्रधान मंत्री के फैसले को गलत बतया जा सके | दोनों मंत्रियो के अनुसार पंडित नेहरू द्वरा काश्मीर
के मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना “”एक गलती थी , जिसका परिणाम आज देश को भुगतना पड़ रहा हैं
“”” अब इन दोनों
मंत्रियो को यह समझ में नहीं आ रहा हैं की
संयुक्त राष्ट्र संघ के ओब्ज़ेर्वर किसी देश
के “” मांगने या कहने से नहीं भेजे जाते है |
संयुक्त राष्ट्र की परंपरा हैं की दो राष्ट्रो में जब विवाद हिंसक हो जाता हैं , और निरीह आबादी प्रभावित होती हैं ,तब सुरक्षा परिषद मसले पर अध्ययन के बाद “” उस स्थान पर शांति स्थापना के लिए , और आबादी की सुरक्षा के लिए ही “”शांति सेना
की तैनाती “ की जाती है | अफ्रीका के अनेक देशो में आज
संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना की तैनाती हैं
|
सत्ता –
संघ और सरकार द्वारा देश की आज़ादी में खून
देने वालो की छवि को “खराब” करने की कोशिस उन लोगो द्वरा की जा रही हैं -----जिनके
पुरखे इस लड़ाई से कोसो दूर थे | इतना ही नहीं वे हिटलर के हिमायती और अंग्रेज़ सरकार के सहायक थे | गांधी के हत्या के आरोपी सावरकर की माफी
मांगने वाले पत्र इस बात के प्रमाण हैं की
– सत्ता और संघ का स्वधिनता संग्राम में बरतनिया हुकूमत की पैरोकारी कर रहे थे |
किस अधिकार से ये महानुभाव नेहरू -इन्दिरा और राजीव के फैसलो का छिद्रानवेषण कर रहे हैं | अव्वल
कश्मीर का मुद्दा तत्कालीन संयुक्त
राष्ट्र सभा में पाकिस्तान द्वरा उठाया गया
था | एक तरफ पाकिस्तान ने इसे सीमा विवाद और दूसरी ओर स्थानीय काश्मीरियों के हक़ की बात उठा कर प्रस्ताव पेश किया था | सेंटो गठबंधन का सदास्य होने के कारण अरब राष्ट्रो ने भी “” जनमत संग्रह
को समाधान बताया था “” | गौर तलब हैं किरजा अफजल बेग की जमात “प्लेबिसीट
फ्रंट “” घाटी में आंदोलन रात थी | अंतराष्ट्रीय जगत में नवोदित आज़ादी पाये राष्ट्र को सुरक्षा परिषद की
सलाह थी | दूसरे महायुद्ध की विभिश्का से विश्व त्रष्ट था – शांति की कोशिस
दुनिया का उद्देश्य था | इन हालातो में स्मयुक्त राष्ट्र संघ ने काश्मीर में शांति सेना भेजी | जिसका उद्द्शेय पाक और भारत की सीमाओ पर दोनों देशो की तैनाती की
निगरानी करना था |
जो आज भी हो रहा हैं | पाकिस्तान के साथ हुए दो युद्धो में – संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
की भूमिका नहीं थी | क्यूंकी उनका “” छेत्रधिकर या मेनडेट”” जम्मू – काश्मीर में दोनों देशो की सीमा पर सेनाओ
की स्थिति को जाँचना हैं |
इसलिए दोनों केंद्रीय मंत्रियो और उनके शोध कर्मियों द्वरा दिये गए तर्क तथा सुझाए गए उपाय निरर्थक हैं | क्यूंकी यह उसी प्रकार हैं जैसे कृष्ण माता
यसोदा से पुछते हैं की तू क्यू गोरी मेन क्यू काला !!
No comments:
Post a Comment