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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 25, 2013

आह श्रीनिवासन या वाह श्री निवासन !

 आह  श्रीनिवासन या  वाह  श्री निवासन !
                                                         नाम एक जैसा और काम उल्टा , जी हाँ  अमेरिका मैं  वंहा  की सीनेट ने श्री कान्त  श्री निवासन  को  वॉशिंग्टन  की  अपीलीय  अदालत का जज नियुक्त किए जाने को मंजूरी दे दी हैं , वंही  क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड  के  अध्यक्ष श्रीनिवासन  की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा हैं  , एक ने  भारत मे जन्म  लेने के बाद सुदूर  विदेश मे इज्ज़त कमाया और शोहरत  पायी , दूसरे ने अपने ही देश मैं  अपने कर्तव्यो से मुंह मोड़ा और देश की बदनामी करा दी  |  
         
                              श्री कान्त  श्री निवासन  का जन्म चंडीगड़  मैं हुआ था ,उनके   माता - पिता  अमेरिका मैं जा बसे थे , वंही इनकी शिक्षा - दीक्षा  हुई | कानून की  पढाई के उपरांत  उन्होने कुछ दिन एक ला  फ़र्म मैं काम किया |बाद में वे फेडरल  सर्विसेस  मैं  आ गए | वे फिलहाल संघीय प्रशासन मे  उप  सोलिसीटर  जनरल  के रूप मैं  कार्यरत हैं |   वे तीस लाख  भारत वंशियो  के लिए अभिमान का कारण हैं ,जो उन्हे एक दिन वंहा की फेडरल कोर्ट  मैं देखना चाहती  हैं , जो वंहा की सर्वोच  अदालत हैं | 
   
               दूसरी ओर  तमिलनाडु के  धनाढय परिवार  मे नारायणस्वामी   श्री निवासन     का जन्म  3 जनवरी 1945 को   मे हुआ|  जिनका व्यापार और उद्योगो मे काफी प्रभुत्व था , इनके पिता  नारायणस्वामी ने इंडिया सीमेंट्स  की स्थापना की | , श्रीनिवासन  इस समय उसके वाइस  प्रेसिडेंट और प्रबंध निदेसक हैं | | कृषि मंत्री शरद पवार  के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के प्रेसिडेंट पद से  हटने के पश्चात  श्रीनिवासन  ने यह ज़िम्मेदारी सम्हाली  थी | आई  पी  एल मैं वे    गत वर्ष की विजेता  विजेता टीम  '''चेन्नई  सुपर किंग ''' के मालिक हैं | यद्यपि उनके  जामाता  गुरुनाथ  मायाप्पन  कोई  वैधानिक  पद नहीं समहलते  हैं न ही इंडिया  सीमेंट्स  अथवा  आई पी अल  मैं परंतु  कहा यह जाता हैं की  खेल के मैदान से लेकर बोर्ड रूम तक मे  दखल    रखते हैं | यही  कारण हैं की  आज गुरुनाथ को  सभी शक  की निगाह से देखते हैं | उनके ही कारण उनके  ससुर  आज इस परेशानी  मैं   फंसे हैं | बहुत मुमकिन हैं की जल्दी ही उन्हे बी  सी सी ई  की प्रेसिडेंट  शिप को अलविदा  कहना पड़े |

May 24, 2013

क्या सही कहा हैं की - विश्व की प्रतिभाए अमीरों की समस्याओ को सुलझाने में लगे हैं , इसलिए गरीब तबका उपेछित हैं

   क्या सही कहा हैं की - विश्व  की प्रतिभाए अमीरों की  समस्याओ को सुलझाने में लगे हैं , इसलिए गरीब तबका उपेछित  हैं ,  
                                                                           सैम  पिटरोडा  जो की प्रधान मंत्री के सलहकर हैं ने यह बयान  अमरीका  की राजधानी वॉशिंग्टन मैं दे कर कोई नयी बात नहीं कही  , लेकिन  ऐसा कह कर उन्होने एक भद्दा सच दुनिया के सामने रखा | आज जब की बड़े - बड़े शिक्षा संस्थान और बड़ी बड़ी  कंपनिया  """ जन हितकारी "" और गरीबो के लिए शिक्षा और  स्वास्थय सुलभ करने के लिए करोड़ो रुपये खर्च  कर रहे हैं , ऐसे मैं एक  धनवान और सफल उद्योगपति का कथन उसके दर्द को बया करता हैं | गौर रहे की पित्रोदा इस देश मैं कम्प्युटर और इंटरनेट तथा मोबाइल की शुरुआत के कारक रहे है | राजीव गांधी से परिचय के बाद इनहोने सी - डॉट  टेक्नाल्जी के माध्यम से संचार क्रांति की  शुरुआत  की | 
                
                              आज देखते ही देखते मोबाइल का उपयोग गाँव - गाँव  मे हो रहा हैं | आज कोई कनही भी ''कमाने '' गया हो पर हफ्ते दस दिन वह अपने घर वालों से बात करके उनकी चिंताओ को दूर कर देता हैं |आज गैर पड़ी - लिखी महिलाओ को गाँव मे अपने लड़के और लड़कियो से बात  करते देखा जा सकता हैं , वे अपने परिचितों और  सगे - सम्बन्धियो के हाल चाल जान लेती हैं , बाबा की खांसी और बहू के पैर भारी  होने की  खबर भी ले लेती हैं | लड़के के लिए बहू और बिटिया के लिए दामाद की खोज के लिए हर हफ्ता दस दिन मैं अपने मायके वालों को ताकीद करती रहती हैं | 

                      सच मैं इतना नजदीक उनका पीहर कभी न था , कुछ अछि या बुरी घटना का पता बिना समय खोये लग जाता हैं | बीमार को इलाज़  भी अब तुरंत ही मिल जाता हैं , इसलिए नहीं की स्वस्थ्य सेवाए बहुत बदिया हो गयी हैं वरन इस लिए की घर के गाँव के लोग मदद के लिए पहुँच जाते हैं | अब गाँव मैं बिजली आने के बाद भी , जो की दस - बारह घंटे बाद आहि जाती हैं , लोग मोबाइल पहले चार्ज करते हैं बाकी काम बाद में | लड़के अपने कम्प्युटर के  बैटरी  बैक अप  को भी चार्ज करने की पहल करता हैं | 
            यह सब हुआ जब एक आदमी ने ईमानदारी से गरीबो के लिए कुछ करना शुरू किया | आज लाँड़ लिने से ज्यादा देश मैं मोबाइल हैं , क्या यह तरक़्क़ी  नहीं हैं ? आज गरीबो की सेहत और शिक्षा की ओर ध्यान देना ज़रूरी हैं , और गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की चिंता करने की हैं | क्या कोई राजीव गांधी और पित्रोदा इन समस्याओ को सुलझाएँगे ?धन तो काफी मात्रा  मैं इन छेत्रों  में आ रहा हैं परंतु  उस से जिस मात्रा मे परिणाम मिलने  चाहिए  वह नहीं हो रहा हैं |+ बेईमानी और झूठ ने गरीबो का हिस्सा खा लिया हैं , कोई योजना ले उसमे अरबों करोड़ो रुपये की हेरा - फेरि मिल जाए जाएगी | विकास और उन्नति को  '''कुछ लोग '''' खा रहे हैं | 

May 20, 2013

सर्वे का सच और सच्चाई ऑ

      कर्नाटक  के विधान सभा चुनावो मैं मतदान के दिन अखबारो मैं  पाँच टीवी  चैनलो  के  सर्वे  प्रसारित हुए थे | ये चैनल  थे  टाइम्स  नाउ और  ऐबी पी ,तथा हैड्लाइन्स टूड़े , सी एन एन आई बी एन एवं इंडिया टीवी | इन  भविष्य  वाणियो मैं कहा गया था की भारतीय जनता पार्टी को बहुमत  मिलेगा | और काँग्रेस को  चालीस से साथ सीट मिलने की बात कही गयी थी ,| परंतु 8 मई को घोषित हुए परिणामो ने  दो सर्वे अंदाज़ो  को सही साबित किया , वंही तीन बड़े चैनलो  के अनुमानो  को न केवल गलत सीध किया वरन ""विलोम '' परिणाम दिये | अर्थात हैड लाइंस ,, टाइम्स नाऊ और ऐबीपी चैनलो  के अनुसार भारतीय जनता पार्टी को 114 से लगाकर 132 सीट मिलने का अनुमान लगाया था , जो की उलट कर काँग्रेस को 122 और भा ज पा को चालीस सीट प्राप्त हुई | अब अगर अनुमान  का परिणाम इतना विपरीत हैं तब या तो  प्रशनावली  ठीक ढग से नहीं बनी अथवा ज़मीन के  परिणामो पर उलट फेर किया गया हैं | 

                                     यानहा इस मुद्दे को उठाने का तात्पर्य  इतना ही हैं की जब समाचार पत्रो की खबरों  से लोगो का विश्वास  उठने लगे  तब इस प्रकार के  अंदाजीया  गद्दों  से बात और बिगड़ती हैं ,बनती नहीं हैं |  एक ओर उन लोगो खुश कर दिया जाता हैं जिनके मन  मैं संदेह और  संशय  हो अपनी विजय के प्रति | परंतु वंही आम जनता के मन मैं ''थोड़ी देर ''' के लिए ही अनमना भाव उपजता हैं | जिसका कारण होता हैं की क्या मेरा मत सफल होगा या नहीं ? परंतु यह ऊहापोह  कुछ ही समय रहती हैं | मतदान के ठीक पूर्व वह  अपने निश्चय को फैसला बनाते हुए मतदान केंद्र पहुंचता हैं | तब उस पर इन सुर्वेक्षणों  का कोई प्रभाव नहीं होता | 

                 इस पूरी प्रक्रिया मैं अगर बदनाम होती हैं तो वह हैं पत्रकारिता , और लोगो के सामने जवाब देना पड़ता हैं  अखबार के उस ""कर्मचारी को जिसे दुनिया रिपोर्टर कहती हैं ''' क्योंकि कोई नहीं मानेगा की इस खेल मैं मालिक शामिल हैं , वह तो सिर्फ एक ''मोहरा'' भर हैं | 


May 17, 2013

कन्हा हैं प्रतिद्वंदीता व्यापार मैं ? जागो ग्राहक अभियान का अर्थ ?

कॅहा  हैं प्रतिद्वंदीता  व्यापार मैं ?  जागो ग्राहक  अभियान का अर्थ ? 
                   सैकड़ो करोड़ो रुपये का विज्ञापन  इलेक्ट्रोनिक चैनलो  पर देने वाली कंपनिया कितनी '''ईमानदार'' हैं  यह मुंबई के एक न्यायाधिकरण  के फैसले से सामने आया हैं | देश की दस बड़ी सीमेंट  उत्पादन करने वाली कम्पनियो पर 10 करोड़ 90 लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया  हैं | इन  '''ईमानदार '' कंपनियो ने आपस मैं मिलकर एक गैर कानूनी करार करते हुए ,सब ने उत्पादन कम करते हुए बाज़ार मैं सीमेंट के मूल्य  व्रद्धि का षड्यंत्र  किया | जब इन कंपनियो की ''हरकतों'' की जांच सरकार के विभागो ने की तब  इन उत्पादको ने , इसका विरोध किया | 

                                    सीमेंट उत्पादक जिन इकाइयो पर जुर्माना ठोका गया वे हैं ---अदित्या बिरला ग्रुप --अंबुजा सीमेंट --जेपी [जय प्रकाश ]सीमेंट --और फ़्रांस की ''ल  फार्ज ''' तथा  अल्ट्रा टेक | इन सभी कंपनियो  की बाज़ार मैं   बदिया साख हैं , और बिक्री  का संगठित जाल भी हैं | इन कंपनियो ने इस वर्ष के प्रारम्भ मैं ही यह तय कर लिया था , की  विधान सभा चुनावो  के पहले  शासकीय निर्माण कार्यो को  बड़ी  संख्या  मैं पूरा करने की ज़रूरत पड़ेगी | इसलिए सरकार को और निजी व्यापारियो को  काफी  मात्रा मैं सीमेंट की  ज़रूरत  होगी , इस संभावना को देखते हुए इन उत्पादको  ने बाज़ार मैं ""नकली''' अभाव दिखने की कोशिस करते हुए  एक साथ अपने उत्पादन का दाम बदा दिया , इस प्रकार गैर कानूनी रूप से '''लाभ '' कमाने का जरिया निकाला | 

                                  उधर  भारत सरकार  ''जागो ग्राहक जागो '' का  अभियान चला कर जन साधारण को  उचित दामो मैं खरीद का संदेश दे रहे , उधर बड़े -बड़े सेठ  बाज़ार मैं ''माल'' रोक कर अभाव दिखने की कोशिस कर रहे हैं | प्रतिद्वंदीता  नियामक  प्राधिकरण  ने इस चाल को भापते हुए जांच शुरू की , जिस मैं  इन उत्पादको ने  कच्चे माल की आपूर्ति मैं कमी  का बहाना बनाया | जांच मैं पता चला की इन लोगो ने औसत से कम के  कच्चे माल को मंगाया था , जो इनके इरादे को स्पष्ट करता था की वे बाज़ार मैं अभाव की स्थिति  बनाना चाहते  थे | जिसके फल स्वरूप अतिरिक्त लाभ कमाया जा सके | 

                         यह तो थी उद्योग मैं एक्सट्रा लाभ कमाने की प्रवृति लेकिन  व्यापार मैं भी  जब उपभोक्ता बचत करने लगे तब डीलर  कैसे उत्पादन कर्ता को ब्लैकमेल कर्ता हैं इसका भी नमूना सामने आया हैं | फ्लैट  एचडी  टीवी के दाम सिंगापुर  और थायलैंड  मैं 25 से 30 हज़ार रुपये  हैं , जो यहॉ  पर साथ से सत्तर हज़ार का पड़ता हैं | अर्थात दो गुने का अंतर | इसलिए बहुत से सैलानी जो सिंगापुर-- बैंकॉक --पटाया  जाते हैं वापसी मैं वे एक मनपसंद टीवी लेकर आते हैं | यद्यपि इस जरिये से देश मैं मात्रा कुछ हज़ार  ही सेट्स आते हैं , परंतु इस से डीलर  का लाभ मारा जाता हैं क्योंकि वह ग्राहक को मुर्गा नहीं बना  पता हैं | जो उसे बहुत अखरने लगा हैं | 
                                  अपना ''लाभ'' पक्का  करने के लिए इन व्यापारियो ने सोनी --सैमसंग -- पैनासोनिक  के उत्पादो से इंटरनेशनल वारंटी और गारंटी की सुविधा  को  भारत  मैं अमान्य करने की पहल की हैं | जबकि चाइना मैं बने उत्पादो मैं ही कोई वारंटी  या गारंटी  नहीं दी जाती हैं | अब अगर इन व्यापारियो की पहल पर इन जापानी और कोरिया के उत्पादको  ने अगर ऐसा किया तब इनके माल को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा | अब गेंद इन टीवी उत्पादको के पाले मैं हैं ? 
   
                इन दो हालातो ने साबित कर दिया हैं की जब तक सरकार कोई कड़े कदम नहीं उठाएगी तब तक व्यापारी और उत्पादक सुधारने वाले नहीं हैं | भले ही आप जागो ग्राहक जागो के अभियान के विज्ञापनो पर करोड़ो रुपये खर्च कर दो | 

May 16, 2013

उनकी हंसी जो सरकार के गले में फंसी -अदालती टिंप्प्णी

  उनकी हंसी जो  सरकार के गले में फंसी -अदालती  टिंप्प्णी
                                                     हाल में ही सूप्रीम कोर्ट की टिप्पणियॉ ने सरकार की साख पर प्रश्न चिन्ह सा लग गया | फैसला तो कुछ हुआ नहीं था , इसलिए कोई स्थायी  नुकसान नहीं हुआ , पर लोगो को चटखारे ले कर बात  बनाने का मुद्दा मिल गया |  वैसे अदालतों की कटूक्तियों  से सरकारे  पहले भी '''झटके '''खाती रही हैं , यह सिलसिला नया नहीं हैं | छटे दशक  में इलाहाबाद  हाई कोर्ट  के न्यायधीश आनद  नारायण मुल्ला ने एक फैसले मैं  उत्तर प्रदेश पुलिस को डकैतो और गुंडो का गिरोह  बता दिया था | सरकार को सूप्रीम कोर्ट  जा कर इस टिप्पणी को खारिज कराया था | अस्सी के दशक मैं मध्य प्रदेश सरकार ने शराब की आसवनियों को ठेके पर देने का मंत्रिमंडलीय फैसला हुआ ,था | जिसे अदालत मैं चुनौती दी गयी | हाइ कोर्ट ने अपने फैसले  मैं टिप्पणी की जो तत्कालीन मुख्य मंत्री के मकान के बारे मैं कहा गया की वे राष्ट्र को इस बारे मैं स्पस्टिकरण दे की यह आलीशान निवास उन्होने कैसे बनाया ? अब इस फैसलो को भी सूप्रीम कोर्ट मैं रिवियू  के लिए पेश किया गया | जिसने  हाईकोटृ को ताकीद दी की  सुनवाई के दौरान  अनावस्यक टिप्पणियॉ से सुनवाई के दौरान बचा जाये , यह कहते हुए टिप्पणियॉ को फैसले से हटाने का आदेश दिया | 
                                              तो यह थी अदालती टिप्पणियॉ की दास्तान | सूप्रीम कोर्ट मैं जस्टिस  काटजू  ने अपने कार्यकाल के दौरान अनेकों ऐसे फैसले दिये जो लीक से काफी  हट के थे |जिन पर थोड़ा विवाद भी हुआ | उसी तारतम्य में यह '''तोता वाली ''टिप्पणी को भी लिया जाना चाहिए | क्योंकि अदालत की यह बात उसके फैसले का भाग  नहीं हैं ,वरन कारवाही  का हिस्सा ''भर''ही हैं | लेकिन संदर्भ से निकाल कर  पेश करने की मीडिया की आदत काफी पुरानी हैं | वैसे खुस्क अदालती निरण्य  खबर नहीं बन पाते हैं , जब ताक़  उनमे  कुछ मिर्च --मसाला न मिलाया जाये , क्योंकि  इन्ही हैड लाइंस  को आवाज लगाकर हाकर  सड्को पर अखबार बेचते हैं | 
                       अब इस संदर्भ में अगर हम सूप्रीम कोर्ट के न्यायाधीस की टीका को देखे तो यही कह सकते की यह उनकी चिंता को दर्शाता हैं , उनका कोई इरादा सी बी आइ को बेइज़्ज़त करना नहीं था | क्योंकि अदालत ने खुद ही गुजरात के दंगो के मामले मैं ,तथा 2जी  की जांच हो सभी महत्वपूर्ण  मामलो मैं सी बी आइ  को ही जांच का जिम्मा दिया जो इस एजेंसी  के प्रति उनके विश्वाश को  रेखांकित करता हैं | 
                                वैसे अनेकों बार अदालत द्वारा किए गए आबिटरडिक्टा के कारण  भले संदेश भी दिये जाते हैं | हाल ही में एक महिला  प्र ताड़ना के मसले पर सूप्रीम कोर्ट ने कहा '''बहुओ को घर की नौकरानी नहीं वरन शोभा समझना चाहिए ''' अब इस सलाह को अखबारो  की  सुर्खी नहीं मिली क्योंकि यह '''उपदेश'' समाज  के बुजुर्ग और परिवार के लोग अक्सर देते रहते हैं ,यंहा तक की अब तो धर्म के गुरुओ ने भी प्रवचनों में कहना शुरू कर दिया हैं | पर  बहुओ की प्रताड़णा क्या बंद हुई ? जवाब हैं ''जी नहीं ''..........

May 15, 2013

पंद्रह कंपनी पाँच सौ करोड़ रुपया और पचास लाख लोगो का पैसा गायब

पंद्रह कंपनी पाँच सौ करोड़ रुपया  और पचास लाख लोगो का पैसा गायब  
                                                                                        नए - नए सपने और मोहक वादे तथा तुरत फुरत  लखपति बना देने का विज्ञापन , काफी लोगो को  भरमाने का इंतज़ाम  होता हैं | मध्य प्रदेश के छोटे --छोटे और इंदौर ऐसे बड़े शहरो में ऐसी कंपनियो का जाल आज भी हैं | अभी हाल में हुए एक सर्वे के अनुसार  इन फर्जी कंपनियो ने भोले - भाले  नागरिकों  की जमा -पूंजी हड़प कर के नौ - दो ग्यारह हो गए | आज भी  प्रदेश और देश में लगभग सात हज़ार  ऐसी कंपनी  अपना जाल फैलाये हुए हैं , पर हमारा  वित  मंत्रालय और रिजर्व  बैंक  की ओर से इनके कारोबार को को पूरी तरह बंद करने का कोई ठोस  प्रयास नहीं किया जा रहा है | रिजर्व  बैंक ने वित्तीय गदबड़ियों के उजागर होने पर  सिर्फ पाँच बंकों और चार संस्थानो को ''नोटिस'' दे कर फर्ज़ पूरा कर दिया | उधर  शारदा  चित फ़ंड कंपनी के घोटाले को लेकर  बंगाल सरकार मुसीबत मे पड़ी हैं | उस पर राजनीति तो दोनों ओर से हो रही हैं ,उधर जिन लोगो के पैसे डूब गए हैं उनके तो सपने ही टूट गए और उनके सामने तो कोई विकल्प  ही नहीं हैं | निवेशको  द्वारा  आत्महत्या  किए जाने की घटनाए रोज़ - रोज़ हो रही हैं | 
                                                अभो दिल्ली  पुलिस ने 1998 मे  गिरफ्तार जेवीजी  फ़ाइनेंस कंपनी  के मालिक  विजय शर्मा को  700 करोड़ के गबन मे गिरफ्तार कर लिया हैं | पंद्रह वर्ष पहले सात सौ करोड़ की रकम बहुत बड़ी होती थी , पर अब मंहगाई ने रुपये की कीमत को काफी घटा दिया हैं , परंतु   कानून की रफ्तार  अभी भी  धीमी कीं धीमी ंही बनी हुई हैं  अब  इस रफ्तार को तेज़ करके ही  इस विकराल  संक्रामक रोग से निजात पायी जा सकती हैं | 
                                 अभी भी बाज़ार में  कम से कम सात हज़ार से ज्यादा  नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी  अभी भी आम लोगो से हर शाम रोजंदारी  रकम वसूली जाती हैं , सिर्फ इस आशा पर ही  निवेशक रोज़ -रोज़ रकम जमा कराता हैं की जरूरत के वक़्त उसे यह जमा  राशि  वापस मिल  जाएंगी , जिस से वह लड़की की शादी कर सकेगा अथवा मकान की किशत | भर सकेगा या गाड़ी खरीदेगा | परंतु  जमादारों  के सपने  उस समय चूर - चूर हो जाते हैं जब वह अखबार  मैं पड़ता हैं की जिस कंपनी मैं अपनी  बचत जमा करा रखी हैं उसका दफ्तर बंद हो गया हैं | यह खबर  उस पर वज्रपात  बन कर आती हैं , जब वह कंपनी के दफ्तर पहुंचता हैं तब  वह देखता हैं की केवल उसका सपना ही चूर हुआ हैं बल्कि उस जैसे हजारो लोगो  की सपने बिखर चुके हैं |
                                            निराश और गुस्से से भरे  निवेशक तोड़ -फोड़ पर उतर आते हैं , मौके पर पुलिस आ जाती  हैं और लोगो को समझाती हैं की '''कानून'' अपने हाथ मे न ले | पर भीड़ पूछती हैं की क्या करे ,उनका पैसा मिलेगा  की नहीं ? इन सवालो का जवाब होता हैं की   हम कारवाई  करेंगे  परंतु  वह कारवाई थाने के कागज़  मे दम तोड़ने की कतार मे लग जाती हैं , जंहा ऐसे  काफी मामले दम  तोड़ रहे होते हैं | और एक बार फिर अखबारो  मे दो - चार दिन तक खबरे  छपती  हैं फिर धीरे - धीरे उनका साइज़  भी छोटा होता चला  जाता हैं | कानून  अपनी जगह दो - चार दिन कुछ कारवाई करने की कोशिस करती हैं पर  कंपनी  के स्थानीय  प्रतिनिधि  ही हाथ लगते हैं | , जिनहे बस इतना ही मालूम होता हैं की '''सर ''' अक्सर  दिल्ली या बॉम्बे  जाते थे ,उसे यह भी नहीं मालूम होता की वे कहा  के  रहने वाले थे  या उनका परिवार कहा  रहता हैं  यह जानकारी उसे नहीं हैं ,|  अब  इन हालत मैं पुलिस को फौरी तौर पर कुछ नहीं सूझता हैं ,इसलिए वह मामले को '''दाखिल दफ्तर '' कर देता हैं | 
                                            अब यह कहानी  साल मे दस - बारह बार दुहराई जाती हैं , पर न तो पुलिस न ही सरकार  इसका कोई  कारगर इलाज़ नहीं खोज पाती हैं , और आम लोग धोखा  खाते रहते हैं | सवाल यह हैं की यह कहानी कब तक दुहराई जाती रहेगी ?

May 13, 2013

देसी बहू राष्ट्रिय कंपनिया --जहा बीमार पड़ना मना हैं !

देसी बहू राष्ट्रिय कंपनिया --जंहा बीमार पड़ना मना हैं !
                                          बीमा और बैंकिंग के व्यवसाय मे  लगे देसी संस्थान का ताम-झाम तो किसी शो रूम जैसा ही होता हैं , जो कॉस्मेटिक समान बेचने वालो  जैसा ही  होता हैं | यंहा पर काली पैंट और सफ़ेद कमीज़ पहने तथा टाई लगाए लड़के और लड़कियां आपको दिखाई पड़ेंगे , जिनको अँग्रेजी मे बात करने की ताकीद उनके ''बॉस''या सुपर बॉस की  होती  हैं | देखने मे तो लगेगा की ये लोग काफी चुस्त - दुरुस्त होंगे | पर प्रबंधन की डिग्री या डिप्लोमा लेकर बड़ी - बड़ी उम्मीदों से आए ये बच्चे मोटे - मोटे  पैकेज की लालच मे इस नौकरी मैं आ तो जाते हैं पर , धीरे - धीरे उन्हे पता चलता हैं की यंहा आदमी को आम तरीके से ज़ीने भी  नहीं दिया जाता हैं |सुबह  आठ  बजे से जो ड्यूटि पर आते हैं तो न तो लंच का वक़्त मिलता हैं ना ही घर जाने का टाइम नियत होता हैं | 
                                                    बस एक बात का ही इस दूकान मे ख्याल रखा जाता हैं , वह हैं ''' टार गेट'''' मतलब नए अकाउंट लाओ वह भी बड़े - बड़े मोटे -मोटे ,भले ही वह काला धन हो या सफ़ेद इस से कोई फर्क नहीं पड़ता | यंहा तक की अगर जरूरत पड़े तो उस आदमी की पहचान भी बदल दो या गलत डीटेल दे कर के वाई सी की खानपुरी कर दो | हालांकि यह सब इन नए लड़के -लड़कियो से कराया जाता हैं , जिस से की अगर कोई कानूनी कारवाई हो तो इन्हे  आगे कर के ''सुपर बॉस ''' बच सके |   

      इन बड़ी - बड़ी कंपनियो  मैं  न तो किसी श्रम  कानून का पालन किया जाता हैं न ही कार्य स्थल के लिए ज़रूरी सुविधाए होती हैं | आप को जान कर आश्चर्य होगा की यंहा के सभी  काम करने वालों को हिदायत रहती हैं की अपना - अपना पीने का पानी ले कर आए | ग्राहको के लिए रखे वॉटर डिस्पेंसर से पानी न ले | वाश रूम मैं ताला पड़ा होता हैं , जिस से अगर किसी को ज़रूरत  लगे तो वह अपने अधिकारी से इजाजत और चाभी ले कर नेचर कॉल  अटेण्ड करे , साथ मैं अफसर का उलाहना भी सुनना पड़ता है की  मल्टी नेशनल  मैं काम करते हो और दो - तीन बार वाश रूम जाते हो | यानि की काम करने वाले से उम्मीद की जाती हैं की वह सिर्फ और सिर्फ टारगेट को पूरा करने के लिए लगा रहे , पखना - पेशाब और पानी पीना भूल जाये | 

                      अब बात करे की यंहा कामगारों  को कहते तो अफसर हैं ,मतलब ''मैनेजर '' पद नाम तो आम हैं , हाँ चपरासी की सेवाए  किसी ठेकेदार की मार्फत ली जाती हैं |क्योंकि ये देसी  अंग्रेज़  ऑफिस बॉय तो रख नहीं सकते , क्योंकि बैलेन्स शीट मैं वह मद इनकी हैसियत गिरा देगी | यंहा न तो नियुक्ति  का ना ही  पददोन्नति के नियम हैं , सब कुछ कोंपिटेंट अथॉरिटी  नाम की किसी हैसियत के पास होते हैं , जो भगवान की तरह रहता तो आस - पास हैं पर कौन हैं यह किसी अनुशासनात्मक कारवाई होने पर ही पता चलता हैं , यानि सिर्फ शॉप देने के लिए ही उनका वजूद हैं ,| न्याय या अन्याय देखने के लिए नहीं |   

                                           वैसे अभी कुछ समय पहले ही कोबरा पोस्ट  ने इन देसी कंपनियो का खुलासा किया हैं , जिस मे चार बैंक  को गदबड़ियों का जिम्मेदार पाया गया हैं |ये हैं आई सी आई सी आई तथा एच दी एफ सी और एक्सिस बैंक द्वारा बिना ग्राहको की पूरी पहचान बताए ही उनके खाते खोले गए |  सारी बाते एक स्टिंग   आपरेसन के जरिये फिल्मायी गयी | इस बात की खबर उजागर होने पर रिजर्व बैंक ने नोटिस दिया , पर जब इन   गड्बड़ियों पर हो - हल्ला मचा तब रिजर्व बैंक को कारवाई करने पर मजबूर होना पड़ा | वैसे ये सभी बैंक जमा और मुनाफे के ''हिसाब''से  ही काम करते हैं | इनके  लिए सिर्फ और सिर्फ मोटे अकाउंट  और  बीमा की मोटी- मोटी पॉलिसी  बेचने मे ही लगी रहते हैं | इनकी इस गलत और गैर कानूनी हरकतों से ही रिजर्व बैंक ने इन्हे नोटिस दिया हैं | इन पर आरोप हैं की इनहोने और इनके अफसरो ने बिना वेरीफाये  किए हुए  लोगो से झूठे पैन  नंबर दे कर  अपना धंधा बड़ाने  मे किया हैं , इसलिए गैर बैंकिंग नियमो का सहारा लेने के आरोप मैं आईसीआईसीआई बैंक को नोटिस देकर जवाब मांगा हैं | लेकिन बैंक ने इन ''गैर बैंकिंग ''हरकतों ''' के लिए अपने चौदह अफसरो को बलि का बकरा बनाया हैं | अब इन लोगोकी  नौकरी  जाना पक्का हैं और जो कुछ भी कानूनी कारवाई होगी वह भी इन्हे खुद ही झेलनी पड़ेगी | 

May 8, 2013

सहारा हुआ अब बेसहारा , सूप्रीम कोर्ट का फैसला

  सहारा हुआ अब बेसहारा , सूप्रीम कोर्ट का फैसला 
                                                                      देश के आर्थिक और वित्तीय जगत मे सात मई यादगारी दिन  साबित हुआ जब सूप्रीम कोर्ट ने स्वयंभू  सहारा श्री  सुब्रतों रॉय को आखिरी बार निर्देश दिया की की वो अपनी और अपनी कंपनी के डाइरेक्टर के जायदाद  के कागजात सेबी को सौप दे , जिस से 24000हज़ार  करोड़ की रकम की वसूली हो सके | नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी  द्वारा किस प्रकार आम जनता  को भोले - भाले वादो मे फंसा  कर उनकी ज़िंदगी  भर की कमाई को जमा करा लिया , फिर वादे  से मुकर गए | छटे दशक मैं  गोरखपुर मैं चित फ़ंड कंपनी की शुरुआत करने वाले सुब्रत रॉय और उनके सहयोगी  श्रीवास्तव  ने दो - दो रुपये प्रतिदिन की लोगो से उगाही कर के उन्हे लॉटरी का प्रलोभन दिया जाता 
था | परंतु लाटरी  मिलने वाले का कभी आता पता नहीं होता था | जमा करता , मन - मसोस कर अपनी जमा रकम पर साधारण ब्याज से संतुस्त हो लेता था | इस आशा मे की अगली बार उसे ही लाखो रुपये वाली लॉटरी मिलेगी , पर ऐसा होता नहीं था | वित्तीय गड्बड़ियों की शिकायत जब गोरखपुर मे ज़्यादा होने लगी तो सुब्रत रॉय परिवार सहित लखनऊ मे डेरा जमाया | वजह यह थी की इनाम पाने वाले की कई लोगो ने खोज -खबर  लेनी शुरू कर दी थी , परंतु जब उस आदमी का वजूद ही नहीं होता तब लोग इनसे पता ठिकाना पूछते | हिला - हवाला कर के बहाने बनाते और कह देते की ''देखो उसने पूरी रकम हुमसे वसूल ली हैं जिसकी यह रसीद हैं '', यह कुछ वैसे ही होता था जैसे उन्होने अभी सूप्रीम कोर्ट के आदेश पर कहा की चौबीस हज़ार करोड़ की रकम  को उन्होने उनके जमा कर्ताओ तक पहुंचा दिया हैं | जबकि ऐसा कुछ नहीं होता था , वरन फर्जी दस्तावेजो द्वारा रकम के वसूले जाने का दावा किया जाता था | 
                                                 कानून के दायरे मे सहारा तब आया जब लखनऊ मे इनहोने गोल्डन की या सुनहरी  चाभी  योजना का ऐलान किया | परंतु राजधानी होने के कारण इन्हे यंहा काफी  जमाकर्ता  और उनसे काफी धनराशि भी मिली ,|जिसे इनहोने बाज़ार मे महाजनी पर चलाया और काफी फायदा उठाया , इसी समय इनहोने ''बाहु बलियो '' का इस्तेमाल भी शुरू किया , छोटे - छोटे  व्यापारियो को अनाप - शनाप ब्याज की दरो पर रकम  उधार देते और कड़ाई से वसूलते | , अक्सर दूकानदार वक़्त पर ब्याज नहीं चुका पाते , तब फिल्मी सेठो की भांति कंपनी के आदमी उसकी वस्तुओ को उठा लेते |  इस तरह से बड़ी जल्दी ही लखनऊ मेन इनकी तूती बोलने लगी | फिर क्या था देखते ही देखते  सहारा ने जमीने खरीद कर मल्टी स्टोरी खड़ी करना शुरू कर दिया | इस काम मे इनहोने राजनीतिक  मदद भी हासिल की | फिर क्या था कुछ सालो मे ही ये शहर तो शहर प्रदेश के धन कुबेर बन गए | पाँच सालो मे सुब्रत राय की कंपनी एक से अनेक हो गयी | लगभग बीस - बाईस कंपनिया खड़ी हो गयी और फ़ाइनेंस के अलावा भवन निर्माण ,इन्फ्रा स्ट्रक्चर  तथा मनोरंजन मे इंका  दखल हो गया | अब इंका कार्यछेत्र  सारा देश बन गया था |बैंकिंग का काम सारे देश मे फ़ेल गया ,तथा महाराष्ट्र मे पुणे मे ऐमबी वैली  तथा पिछले वर्ष एक स्टे दीयम  का निर्माण कराया , आई पी एल मैं पुणे वारीयर की क्रिकेट टीम को खरीदा | अकेले इस टीम को खरीदने मैं अरबों रुपये का खेल हुआ  | यह सारा बिजनेस साम्राज्य महज़ तीस वर्षो मे हुआ | अब किसी राजनेता की संपति मे अगर इस रफ्तार से  बदोतरी हुई होती तो अखबार और मीडिया जान ले लेते , परंतु सहारा तो स्वयं अखबार  और चैनल का मालिक था इसलिए मीडिया ने इनकी कारगुजारियों को नज़र अंदाज़ किया | 
                      परंतु सूप्रीम कोर्ट मे एक याचिका ने न केवल इनके  खेल को उजागर किया वरन गैर बैंकिंग कंपनी होते हुए भी रियल स्टेट मैं इनके निवेश पर उंगली उठाई | फलस्वरूप सेबी को भी कारवाई करने पर मजबूर होना पड़ा | फिर सहारा ग्रुप ने कानून के हर उस तरकीब को अपनाया  जो इनकी संपति और व्यापारिक साम्राज्य की रक्षा कर सकता था | परंतु सूप्रीम कोर्ट ने सेबी को जांच का आदेश दिया और एक जांचकर्ता भी नियुक्त किया | जिसने 24000हज़ार करोड़ की बेनामी धनराशि को उजागर किया | बस यही एक चूक थी जिसने इनको पराभव का रास्ता दिखा दिया | फिलहाल अब एक ही चिंता हैं की क्या उन करोड़ो लोगो की जमा पूंजी कोर्ट वापस दिलाएगा जो इनहोने भ्रम फैला कर एकत्र की हैं | 
                    

May 7, 2013

आखिरकार वित्त मंत्रालय की कुंभकरणी नींद वित्तीय घोटालो से टूटी

 आखिरकार  वित्त  मंत्रालय  की कुंभकरणी नींद वित्तीय घोटालो से टूटी
                                             
                                                                        कोबरा पोस्ट के खुलासो से यह तथ्य स्पष्ट  हो गया हैं की चाहे निजी छेत्र  हो अथवा सार्वजनिक  सभी बैंक रिजर्व बैंक  के चार्टर के उल्लंघन के अपराधी हैं | निहायत शरम की बात हैं की भारत सरकार के ऐसे वित  संस्थान काले धन को सफ़ेद करने के गैर कानूनी धंधे मैं  जुटे पड़े हैं | इस से भी ज्यादा ताज्जुब की बात यह हैं की रिजर्व बैंक की जान करी मैं सारी बात आने के बाद भी , वह कोई कडा कदम नहीं उठा रहा हैं | सरकार मैं कोई ऐसा घपला हो तो लोग और राजनेता सीधे सरकार  और उसके मंत्री से इस्तीफे की मांग करना शुरू कर देते हैं , पर यंहा तो बस आईसीआईसीआई , और आईडीबीआई तथा एचएफ़डीसी  एवं  एक्सजिम जैसे निजी स्वामित्व वाले बंकों के अलावा सार्वजनिक छेत्रों के दो दर्जन बैंक भी यही गोरख धंधा अपनाए हुए हैं , की काला  बाज़ारियो के काले धन को सफ़ेद कैसे किया जाये , यही गुर बताते ग्राहको को बताते हैं | भले इस कारवाई मे उसकी पहचान को छुपाए रखने के रास्ते भी सुझाए जाते हैं | सवाल हैं की क्या रिजर्व  बैंक को इस घोटाले के उजागर होने के बाद भी चुप रहना अथवा रस्मी जांच करने का निर्देश देना ही पर्याप्त हैं ? यही काम बीमा कंपनिया भी कर रही हैं | लगता हैं ये सभी वित  संस्थान लोक कल्याण से विरत हो कर केवल और केवल धन पतियों के स्वार्थ साधन का तंत्र बनते जा रहे हैं | आज इनके अनुसार आपका पैसा कानूनों या गैर कानूनी तरीके से जमा किया हो , उसकी कोई परवाह नहीं हैं , बस चिंता इतनी हैं की यह पैसा ''आप'' हमारे यंहा जमा कराएं | यह हैं लोक हितकारी  नीति  इन संस्थानो की | अब शायद सहारा - श्रद्धा और संचयनी जैसी कंपनियो  द्वारा लोगो के धन से गुल्छरे उड़ाने का मौका देने की जिम्मेदार  अगर कोई हैं तो रिजर्व बैंक हैं |पर कंही से भी यह आवाज नहीं आ रही हैं की रिजर्व बैंक मैं बैठे लोगो से इस बाबत पूछताछ होनी चाहिए ? आखिरकार इन संस्थानो मे करोड़ो भारतवासियों  की बचत का धन जमा हैं ,जिसका दुरुपयोग हो रहा हैं |






                                                                                                  सूप्रीम   कोर्ट  द्वारा सहारा ग्रुप को 24000 हज़ार करोड़ रुपये  जमा करने  के आदेश के बाद देश मे  बड़ी - बड़ी कंपनियो  द्वारा आम आदमियों की बचत से खिलवाड़ करने और उसे हजम कर जाने के खेल का पिटारा खुल गया | इस फैसले का महत्व यह हैं की गैर बैंकिंग कंपनीयओ द्वारा  धन उगाही करने के गैर कानूनी हरकत पर नियंत्रण की शुरुआत हुई हैं | सहारा द्वारा सभी कानूनी हथकंडो को अपनाने के बाद भी सूप्रीम कोर्ट ने फटकार लगते हुए उन्हे सेबी  द्वारा दिये गए निर्देशों का मियाद के अंतर्गत सारा धन जमा करने को कहा हैं | अब सहारा ग्रुप  ने जनता का ध्यान आकर्षित क रने  के लिए सारे देश में एक साथ जन गण मन के राष्ट्र गान को गाने का रेकॉर्ड बना ने का प्रयास ही तो हैं | यद्यपि इस कोशिस का क्या  परिणाम होगा , यह तो  भविष्य  ही बताएगा ? 
                                 भारत सरकार के  वित्त  मंत्रालय ने  सार्वजनिक छेत्र के बैंको को निर्देश दिया हैं की वे उन अधिकारियों को कड़े निर्देश दें जिनहोने ग्राहको को भ्रमित किया हैं  कोबरा पोस्ट  के स्टिंग आपरेसन से  हुए खुलासे से पता चलता हैं की |बैंक और बीमा कंपनिया अपने मूल काम से हट कर कलाबजरियों के काले धन को  को ''सफेद'' करने मे लगे रहते हैं | मूलतः आम आदमी से जमा लेकर उसे ब्याज देना और उनकी बचत को सुरक्षित रखना , तथा ज़रूरत पड़ने पर निजी काम के लिए अथवा  घर बनवाने के लिए उधार  देना होता हैं | 
                                                   ऐसी स्थिति मैं सुलगता सवाल यह हैं की क्या बैंको और गैर बैंकिंग कंपनियो के अवैधानिक  कारोबार पर रोक लगाई जाएगी या नहीं ?

May 2, 2013

पेट्रोल हुआ सस्ता फिर भी मंहगाई डायन जाये नाही काहे ?

पेट्रोल हुआ सस्ता फिर भी मंहगाई डायन जाये नाही काहे ?
                                आखिर सरकार ने पेट्रोल के दाम कम  किए जब विदेशी बाज़ार मे कच्चे  तेल के दाम गिर गए , पर दिल्ली मे उसी दिन टॅक्सी के किराए मे बदोतरी हो गयी | पेट्रोल के दामो मे गिरावट से जो फर्क परिवहन और अन्य छेत्रों मे होना था , वह नहीं हुआ | पर ऐसा क्यो हुआ इस सवाल का जवाब उन लोगो के पास भी नहीं हे जिनहोने दामो के बड़ाये जाने पर काफी हो - हल्ला मचाया था | मज़े की बात हे की सोना और चाँदी के दामो मे भी लगातार गिरावट देखी जा रही हे पर रोज़मर्रा की वस्तुओ  के दामो मे कोई कमी नहीं आ रही हे , आखिर इसका क्या कारण हे , यह अर्थ शास्त्रियों के शोध का विषय है | 
                                                 बाज़ार मे चीनी के दाम और सीमा पर चीनियों का अतिक्रमण  चिंता का कारण बना हुआ है , सवाल यह है की जब दाम बदते है तब दुकानदार कभी पेट्रोल कभी तक्ष का बहाना बनाते है पर जब डरो मे कमी आती है तब वे अपने दाम कम नहीं करते , और सड़क पर लोग गाना गाते है की "मंहगाई डायन खाये जात है " पर इसके उलट जब होता है तब कोई पैरोडी नहीं बनती | क्या इसका कारण यह है की  आम जनता के कष्टो का कारण तो सरकार की  नीतियाँ  है|  पर क्या यह तस्वीर सही है ? 
                       बाज़ार पूरी तरह से मांग - आपूर्ति {गडकरी वाली नहीं } पर नहीं चलता है , कई स्थानो पर सरकारी नियंत्रण या हस्तछेप  बाज़ार भावो मे प्रभाव डालता है | परंतु क्या बात है की दाम मे सरकारी कदम के कारण बड़ी हुई कीमत , तब कम  नहीं होती जब यह नियंत्रण ढीला होता है | इसे व्यापारियो  की मुनाफा कमाने की मानसिकता कहे या कुछ और संज्ञा दे ? हवाई जहाज़  के ईंधन के दामो मे कमी हो गयी पर उनके किराए की दरो मे यह नहीं दिखाई पड़ता ,जब की मुसाफिर के टिकिट मे ईंधन के नाम पर अलग वसूली होती है | आज भी उसी दर पर यह वसूली जारी है जबकि उसके दामो मे कमी हो गयी है , यह कुछ ऐसे प्रश्न है जिनके  उत्तर हुमे खोजने होंगे , और जबर्दस्ती सड़क पर धारणा -प्रदर्शन करने के पहले इन स्थितियो पर विचार करना होगा | 

May 1, 2013

राहत -राहत फीस तय होने से छात्र और मरीजों को राहत

राहत -राहत  फीस  तय होने से  छात्र और मरीजों को राहत 
                                                          रविवार  तारीख २ १ अप्रैल  को दो खबरे ऐसी मिली जिनसे  एक आशा जगी की प्रदेश के स्कूल  अब मनमानी फीस नहीं वसूल सकेंगे , और निजी नर्सिंग होम भी अब  शक्ल देख कर फीस नहीं बता सकेंगे । क्योंकि राज्य सरकार ने दोनों ही प्रकार के संस्थानों पर लगाम लगाने की कवायद शुरू कर दी हे । २ ० १ ३  के सत्र में व्यासायिक संस्थानों में छात्रो की भर्ती की प्रक्रिया  केन्द्रीकरण होने से अब निजी संसथान मनचाहे छात्र  को अपने यंहा भारती नहीं कर सकेगे , वरन उन्हे   उसी छात्र या छात्रा  को लेना होगा जिसे शासन द्वारा नामित किया जायेगा । संसथान और कोर्स  का चयन तीन प्राथमिकता पर निर्भर होगा , एवं उपलब्धि और नम्बरों  के अनुसार छात्र को कोर्स दिया जायेगा । इसके साथ ही शासन ने इन संस्थानों को ताकीद की हे की वे अपने यंहा के फीस का  और अध्यापको का संपूर्ण विवरण  सुलभ कराये जिस से लोग विषय का चुनाव कर सके । 
                                  अभी तक होता यह था की माध्यमिक शिखा मंडल द्वरा  प्रायोजित परीक्षा में नियत नम्बर प्राप्त छात्र किसी भी संसथान  में भर्ती  हो सकता था , , परन्तु अधिक से अधिक छात्रो को खीचने  के लिए अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज  दलाल नियुक्त  कर रखे थे  जो प्रलोभन देकर  किसी भी कोर्से में उसे भर्ती  करा देते और उसके मूल प्रमाण पत्र  आदि रखने के बाद उससे अनेकानेक  मदों में फीस वसूली अभियान शुरू हो जाता था  । इस शोषण  का भयावह रूप लड़के सामने तब आता था जब उसे पता चलता था की   संसथान में फैकल्टी  के नाम पर मात्र पांच - सात ही अध्यापक हे और बाकी गेस्ट फैकल्टी के नाम पर महीने में   एक दिन आकर पांच घंटे तक धारा  प्रवाह  पड़ा कर हफ्ते भर के पीरियड  का कोटा पूरा कर देते , ,देर रात से भोर तक की इस लगातार  अध्ययन  से कितना भला स्टूडेंट्स का होता होगा ,वह संसथान के रिजल्ट से पता चलता था जब क्लास  के साथ फीसदी लड़के पूरक परीक्षा में बैठते थे । और  कई कई लडको को तो तीन या चार बार इम्तहान देना पड़ता था ,तब एक पेपर क्लियर हो पता था  । 
                                      प्रबंधन मे एक और बुरी प्रथा थी की वे इंटरनल पेपर मे पास करने के लिए पैसो का लेन -देन करते थे , इस प्र का भला और प्रबन्धको पर नकेल कसी जा सकेगी  कार छात्र  और अभिभावक दोनों ही ठगे जाते हे |   और अभिभावक दोनों को ही ठगा जाता था  | परंतु अब    नयी  व्यसथा मे सभी  छात्रों को प्राप्तांक  के अनुसार ट्रेड  और  कॉलेज  का आवंटन होगा | इससे  छात्रों का भयदोहन नहीं हो सकेगा ,  फलस्वरूप  अभिभावकों  से  धन का दोहन भी नहीं होगा , कम से कम ऐसी  ऐसी आशा तो करनी ही चाहिए | | शिक्षा  माफिया द्वारा जिस प्रकार समस्त  व्यवास्था  को नष्ट - भ्रष्ट  किया  और भर्ती मे दलालो का परिचय कराया हे वह अत्यंत घ्राणित हे | 
                                                      दूसरी ओर शासन ने निजी अस्पतालो या नर्सिंग  होम  मे सभी प्रकार की सेवाओ के लिए दरे निर्धारित करने का फैसला लिया हे वह अत्यंत ही श्रेयसकारी है | इस से भी प्रदेश की जनता को बहुत राहत होगी , क्योंकि अभी त क़ सभी निजी अस्पताल या नर्सिंग होम विभिन्न जाँचो के लिए मनमाने दाम वसूल करते थे | एक ही प्रकार की खून की जांच की फीस मे कई - कई गुना अंतर  होता था | फिर अधिकतर मरीज़ो के परिजन अस्पतालो के चक्कर  नहीं समझते थे , इसलिए वे रुपये पर रुपये भरते जाते थे | फलस्वरूप  मरीज को जब आराम आता था तब तक  वह कंगाल  हो जाता था | अनेकों बार हुआ हे की अस्पताल प्रबंधन  ने भुगतान न होने पर महिला मरीज को बंधक बना लिया अथवा शव को परिजनो को सौपने से इनकार कर दिया | ऐसे अमानवीय व्यवहार की  अपेक्षा कम से कम चिकित्सा जगत से नहीं थी परंतु आए दिन समाचार  पत्रो मे ऐसी  घटनाओ की बाड आ गयी थी ,तब सरकार को कोई न कोई कदम तो उठाना ही था | 
                                        इसी कड़ी मे वेंटिलेटर  के  नाम पर डाक्टरों द्वारा की जाने वाली लूट भी शामिल हे , मरीज की हालत गंभीर हो जाने पर ये सेहत के सौदागर  उसे ज़िंदा रखने की कसरत  करते थे | भले ही मरीज  क्लीनिकल्ली  डेड  हो गया हो पर चौबीस घंटे  मे एक बार सीसे  की दीवार  के पीछे से किसी एक परिजन को दिखा कर उसके ज़िंदा होने और जल्दी ठीक होने का झूठा वादा करते रहते और उनको चूसते  रहते जब परिजन ज़मीन को गिरवी रख कर पैसा चूकाते रहते तबतक मरीज के ज़िंदा होने के भ्रम को भगवान के ये दूत  बरकरार  रखते | ऐसे गंदे हथकंडे अपनाकर ये फलते फूलते हे | हालांकि  अस्पताल के गंदे कुडे को ठीक से ठिकाने लगाने के लिए ये बड़े - बड़े अस्पताल कूड़ा जलाने का संयंत्र नहीं लगाएंगे वरन उसे सड़क पर या फिर तालाब या नदी मे चोरी से बहा देंगे , जिस से बीमारियो  को फैलाने मे मदद होती हे | इनके लिए सेहतमंद  आबादी  एक अभिशाप हे जिसे ये कभी नहीं देखना चाहते | 
                                                                  लेकिन नए प्रावधानों के लागू हो जाने से अब इन पर नियत दरो से अधिक दाम वसूलने पर आपराधिक कारवाई की जा सकेगी , अब देखना होगा की सरकार का शिकंजा कितना कडा होगा | म